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जौनपुरवासियों, आज हम एक अत्यंत गंभीर और समाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं - भारत में बच्चों का कुपोषण और इसका हमारे समाज पर प्रभाव। जौनपुर सहित पूरे उत्तर प्रदेश में कई बच्चे पर्याप्त पोषण, स्वस्थ आहार और आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित हैं, और यह स्थिति उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास पर गहरा असर डालती है। गंभीर और मध्यम कुपोषण केवल शरीर की कमजोरी नहीं है; यह बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है, उनकी सीखने और समझने की क्षमता पर असर डालता है और उनके भविष्य को भी प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से कोविड-19 (Covid-19) महामारी, बढ़ती गरीबी और सामाजिक अस्थिरताओं ने इस संकट को और गहरा बना दिया है। इसके कारण न केवल बच्चों की सेहत पर असर पड़ा है, बल्कि उनके परिवारों और समुदायों पर भी आर्थिक और सामाजिक दबाव बढ़ा है। जौनपुर में भी कई बच्चों को सही पोषण और स्वास्थ्य सेवाएँ समय पर नहीं मिल पाती, जिससे वे विकास के महत्वपूर्ण चरणों में पिछड़ जाते हैं।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि भारत में बच्चों का कुपोषण कितना गंभीर है, इसके स्वास्थ्य और जीवन पर क्या प्रभाव हैं, और सरकार तथा वैश्विक संस्थाएँ इस समस्या को कम करने के लिए क्या कदम उठा रही हैं। साथ ही, हम देखेंगे कि आईसीडीएस (ICDS) और आंगनबाड़ी केंद्र कैसे बच्चों और माताओं को पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, मातृ वंदना योजना जैसी विशेष योजनाएँ किस तरह लाभ पहुँचा रही हैं, और समाज में जागरूकता बढ़ाकर इस समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है।
भारत में कुपोषण की स्थिति और आंकड़े
भारत में बच्चों में गंभीर और मध्यम कुपोषण (Severe Acute Malnutrition - SAM और Moderate Acute Malnutrition - MAM) एक गहरी सामाजिक चुनौती के रूप में मौजूद है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, देश में लगभग 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और इनमें से आधे से अधिक बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में आते हैं। राज्यों के हिसाब से महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित हैं। महाराष्ट्र में लगभग 6.16 लाख बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से 4.58 लाख गंभीर रूप से कुपोषित हैं। बिहार में 4.75 लाख और गुजरात में 3.20 लाख बच्चे कुपोषित पाए गए हैं। उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में क्रमशः 1.86 लाख और 1.78 लाख बच्चे कुपोषित हैं। इसके अलावा, असम, तेलंगाना और अन्य राज्यों में भी कुपोषण के गंभीर मामले दर्ज किए गए हैं। कोविड-19 महामारी, गरीबी, बेरोज़गारी और सामाजिक अस्थिरताएं कुपोषण की गंभीरता को और बढ़ा रही हैं। इसका प्रभाव केवल बच्चों की भौतिक वृद्धि पर नहीं बल्कि उनके मानसिक विकास, सीखने की क्षमता और संपूर्ण जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है।

कुपोषण के स्वास्थ्य और जीवन पर प्रभाव
कुपोषित बच्चों का स्वास्थ्य और जीवन गंभीर खतरे में होता है। गंभीर कुपोषित बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) अत्यधिक कमजोर हो जाती है, जिससे वे सामान्य संक्रमणों और बीमारियों से भी प्रभावित हो जाते हैं। उनका पाचन तंत्र पोषक तत्वों को सही से अवशोषित नहीं कर पाता, जिससे उनकी ऊर्जा केवल जीवित रहने और सांस लेने में खर्च होती है। गंभीर कुपोषण के कारण बच्चों में निमोनिया (Pneumonia), डायरिया (Diarrhea), टाइफाइड (Typhoid) जैसी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा, बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास रुक जाता है, उनकी सीखने और खेलने की क्षमता प्रभावित होती है और लंबे समय तक उनके जीवन और करियर पर असर पड़ता है। पोषण की कमी से उनका हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंग भी कमजोर हो सकते हैं, जिससे वयस्क जीवन में भी स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ बढ़ती हैं।
सरकारी और वैश्विक पहलें कुपोषण को कम करने के लिए
भारत सरकार ने बच्चों, किशोर लड़कियों और महिलाओं में जन्म के समय कम वजन, स्टंटिंग (stunting), अल्पपोषण और एनीमिया (Anemia) को कम करने के लिए 2018 में पोषण अभियान (National Nutrition Mission) शुरू किया। इस पहल के माध्यम से पोषण, स्वास्थ्य शिक्षा और विशेष खाद्य सहायता कार्यक्रम लागू किए गए। रेडी-टू-यूज थेराप्यूटिक फ़ूड (Ready-to-use therapeutic food - RUTF) के जरिए यूनिसेफ (UNICEF) ने 2020 में लगभग 50 लाख बच्चों की जान बचाई। इसके अलावा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2025 तक पोषण लक्ष्य तय किए हैं और 2030 तक कुपोषण को समाप्त करने के लिए रणनीतियाँ बनाई हैं। इन पहलों का उद्देश्य बच्चों को बेहतर पोषण, सुरक्षित भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना है। साथ ही, इन कार्यक्रमों के माध्यम से समुदाय में जागरूकता बढ़ाई जा रही है ताकि बच्चे केवल जीवित न रहें बल्कि स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें।

आईसीडीएस और आंगनबाड़ी केंद्रों का योगदान
इंटरग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज (ICDS) योजना की स्थापना 1975 में हुई थी और आज यह पूरे देश में तेजी से विस्तारित हो चुकी है। इस योजना के तहत 1.37 मिलियन (million) आंगनबाड़ी केंद्र और 7,075 पूरी तरह परिचालित परियोजनाएँ संचालित हो रही हैं। आंगनबाड़ी केंद्र बच्चों और माताओं को कई महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करते हैं, जैसे कि पूरक पोषण (Supplementary Nutrition), स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, और पूर्वस्कूली शिक्षा। 2016 तक आंगनबाड़ी सेवाओं में कई सुधार हुए, जैसे पूरक भोजन का उपयोग 9.6 प्रतिशत से बढ़कर 37.9 प्रतिशत, स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा में 3.2 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत, और बाल-विशिष्ट सेवाओं में 10.4 प्रतिशत से बढ़कर 24.2 प्रतिशत तक वृद्धि हुई। इन सेवाओं के माध्यम से बच्चों और माताओं को न केवल पोषण मिलता है बल्कि उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता में भी सुधार आता है।
विशेष योजनाएँ और मातृ वंदना कार्यक्रम (PMMVY)
प्रधान मंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) विशेष रूप से गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए लागू की गई है। 2016 में शुरू की गई इस योजना के तहत महिलाओं को 5,000 रुपये का नकद लाभ दिया जाता है, ताकि सुरक्षित प्रसव और बेहतर पोषण सुनिश्चित किया जा सके। इसके अलावा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने गंभीर कुपोषित बच्चों के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र भी स्थापित किए हैं। इन पहलों के माध्यम से बच्चों और माताओं की सुरक्षा, पोषण और स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, जिससे उनका जीवन और भविष्य सुरक्षित होता है।

कुपोषण के समाधान और जागरूकता
कुपोषण को कम करने के लिए केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हैं, समाज और समुदाय की भागीदारी भी आवश्यक है। बाल दिवस और अन्य जागरूकता अभियान बच्चों के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के महत्व को जनता तक पहुँचाते हैं। माता-पिता, शिक्षक, समुदाय और सरकार मिलकर सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर बच्चा पर्याप्त पोषण प्राप्त करे। शिक्षा, सामाजिक हस्तक्षेप और सामुदायिक भागीदारी से न केवल बच्चों का स्वास्थ्य सुधरेगा, बल्कि पूरे समाज का विकास भी होगा। अगर हम सभी मिलकर प्रयास करें तो लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है और उन्हें स्वस्थ, सशक्त और खुशहाल जीवन के अवसर मिल सकते हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/yrbjcz5s
https://tinyurl.com/ms4m8nwn
https://tinyurl.com/s8pbdfkd
https://tinyurl.com/2rta75rp
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