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जौनपुरवासियों, क्या आप जानते हैं कि हमारे आस-पास की हवा में भी ऐसे अदृश्य जीव मौजूद होते हैं जो हमारी साँसों के ज़रिए शरीर में प्रवेश कर गंभीर बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं? इन्हीं में से एक बीमारी है तपेदिक, जिसे हम आम तौर पर टी बी (ट्यूबरकुलोसिस - Tuberculosis) के नाम से जानते हैं। यह रोग सबसे ज़्यादा फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यदि समय पर इलाज न किया जाए तो शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। अच्छी बात यह है कि टी बी पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है, बस ज़रूरत है सही जानकारी, नियमित उपचार और थोड़ी सी सावधानी की। आज जब हम स्वास्थ्य को लेकर पहले से ज़्यादा जागरूक हो रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि जौनपुर के लोग भी इस बीमारी के बारे में जानें, ताकि वे खुद और अपने परिवार को सुरक्षित रख सकें।
आज हम जानेंगे कि आखिर टी बी क्या होती है और यह हमारे शरीर में कैसे फैलती है। इसके बाद हम समझेंगे कि सुप्त (लेटेंट - latent) और सक्रिय (एक्टिव - active) टी बी में क्या अंतर होता है और यह अंतर क्यों जानना जरूरी है। फिर हम इसके प्रमुख लक्षणों और पहचान के संकेतों पर चर्चा करेंगे ताकि इसे समय रहते पहचाना जा सके। आगे चलकर हम भारत में टी बी की वर्तमान स्थिति और 2024 की सरकारी रिपोर्ट से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी देखेंगे, साथ ही इसके इलाज और सरकारी प्रयासों को भी विस्तार से समझेंगे। अंत में, हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि टी बी के उन्मूलन में सरकार के साथ-साथ समाज और नागरिकों की क्या भूमिका हो सकती है।
टी बी क्या है और यह कैसे फैलती है
तपेदिक या टी बी एक गंभीर संक्रामक रोग है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक सूक्ष्म जीवाणु के कारण होता है। यह रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन कभी-कभी मस्तिष्क, रीढ़, किडनी और हड्डियों जैसे शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। संक्रमण का सबसे आम तरीका हवा के माध्यम से फैलाव है। जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता या बात करता है, तो उसके मुंह से निकलने वाले सूक्ष्म कणों में मौजूद बैक्टीरिया हवा में फैल जाते हैं। पास में मौजूद लोग जब वही हवा सांस के साथ अंदर लेते हैं, तो संक्रमण उनके शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसी कारण टी बी के मरीजों को हमेशा मास्क पहनने, खांसते या छींकते समय मुंह और नाक ढकने तथा अपने आसपास स्वच्छ वातावरण बनाए रखने की सलाह दी जाती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि टी बी का संक्रमण धीरे-धीरे फैलता है, लेकिन यदि शुरुआती लक्षणों की अनदेखी की जाए तो बीमारी गंभीर रूप ले सकती है।

सुप्त और सक्रिय टी बी में अंतर
हर व्यक्ति जो टी बी के बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, उसे यह बीमारी तुरंत नहीं होती। संक्रमण के दो रूप होते हैं - सुप्त (लेटेंट) टी बी और सक्रिय (एक्टिव) टी बी। सुप्त टी बी में बैक्टीरिया शरीर में मौजूद रहते हैं, लेकिन वे निष्क्रिय अवस्था में होते हैं। इस कारण व्यक्ति में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और वह दूसरों के लिए संक्रमण का स्रोत भी नहीं बनता। कई बार लोग सालों तक सुप्त टी बी के साथ जीते रहते हैं, बिना यह जाने कि उनके शरीर में यह बैक्टीरिया मौजूद है। जब किसी कारण से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जैसे कुपोषण, एचआईवी (HIV) संक्रमण या किसी गंभीर बीमारी के कारण, तब ये बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं। यही अवस्था सक्रिय टी बी कहलाती है, जिसमें व्यक्ति में लक्षण उभरने लगते हैं और वह दूसरों को भी संक्रमित कर सकता है। इसलिए किसी भी संदिग्ध लक्षण के प्रकट होने पर समय पर जांच कराना बहुत जरूरी है, ताकि संक्रमण फैलने से पहले ही उसे नियंत्रित किया जा सके।
टी बी के प्रमुख लक्षण और पहचान के संकेत
टी बी के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह शरीर के किस हिस्से को प्रभावित कर रही है। हालांकि फेफड़ों से जुड़ी पल्मोनरी (Pulmonary) टी बी के मामले सबसे अधिक देखे जाते हैं। इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं - लगातार तीन सप्ताह या उससे अधिक समय तक खांसी रहना, खांसी में खून आना या बलगम का रंग गाढ़ा होना, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, बुखार, रात में पसीना आना, भूख न लगना, वजन कम होना और लगातार थकान महसूस होना। यदि ये लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो इसे सामान्य सर्दी-खांसी समझकर अनदेखा नहीं करना चाहिए। ऐसी स्थिति में तुरंत सरकारी अस्पताल या नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर टी बी की जांच कराना सबसे सही कदम है। शुरुआती पहचान से न केवल इलाज आसान हो जाता है, बल्कि दूसरों तक संक्रमण फैलने का खतरा भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।

भारत में टी बी की स्थिति और सरकारी रिपोर्ट (2024)
भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जहां टी बी के सबसे अधिक मामले दर्ज किए जाते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में सरकार के निरंतर प्रयासों से इसमें उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है। भारत टी बी रिपोर्ट 2024 के अनुसार, इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर में लगातार कमी आई है। 2015 में यह दर 28 प्रति लाख थी, जो 2022 में घटकर 23 प्रति लाख रह गई। वर्ष 2023 में देशभर में 27.8 लाख नए मामले दर्ज किए गए, जिनमें लगभग एक-तिहाई मामलों की रिपोर्टिंग निजी अस्पतालों द्वारा की गई। यह दर्शाता है कि अब निजी स्वास्थ्य क्षेत्र भी सरकार के साथ मिलकर इस बीमारी से लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। सरकार ने 2023 में 95 प्रतिशत मरीजों के इलाज का लक्ष्य हासिल कर लिया, जो एक बड़ी उपलब्धि है। इसके अलावा “राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी - NTEP)” के तहत वर्ष 2025 तक टी बी को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह लक्ष्य महत्वाकांक्षी जरूर है, लेकिन सामूहिक प्रयासों से इसे हासिल करना संभव है।
टी बी के इलाज और उपचार की प्रक्रिया
टी बी का इलाज लंबा जरूर है, लेकिन पूरी तरह प्रभावी और सुरक्षित है, बशर्ते मरीज पूरा कोर्स नियमित रूप से और समय पर करे। सक्रिय टी बी का उपचार सामान्यतः चार से नौ महीनों तक चलता है। इस दौरान डॉक्टर मरीज को कुछ विशेष दवाइयां देते हैं, जिनमें आइसोनियाज़िड (Isoniazid), रिफैम्पिन (Rifampin), पाइराज़िनामाइड (Pyrazinamide) और एथेमब्युटोल (ethambutol) शामिल हैं। इन दवाओं का नियमित सेवन बेहद आवश्यक है, क्योंकि बीच में दवा छोड़ देने से बैक्टीरिया पूरी तरह समाप्त नहीं होते और ड्रग-रेसिस्टेंट (drug-resistant) टी बी का खतरा बढ़ जाता है, जिससे इलाज और कठिन हो जाता है। भारत सरकार ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है जिसे डायरेक्टली ऑब्जर्व्ड थेरेपी (Directly Observed Therapy - DOT) कहा जाता है। इस कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्यकर्मी मरीज से मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि दवाएं समय पर ली जा रही हैं। इससे मरीज की निगरानी बनी रहती है और इलाज का परिणाम अधिक प्रभावी होता है। इलाज के दौरान पौष्टिक आहार लेना, पर्याप्त आराम करना और मानसिक रूप से सकारात्मक बने रहना भी उतना ही आवश्यक है, ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे।

टी बी उन्मूलन के लिए सरकार और समाज की भूमिका
टी बी जैसी बीमारी से निपटना केवल स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें पूरे समाज की भागीदारी आवश्यक है। भारत सरकार “राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम” के तहत देशभर में मुफ्त जांच, इलाज और पोषण सहायता उपलब्ध करा रही है। निक्षय पोषण योजना के अंतर्गत टी बी मरीजों को इलाज के दौरान आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वे पौष्टिक आहार लेकर जल्दी स्वस्थ हो सकें। साथ ही, निजी डॉक्टरों और अस्पतालों को भी मरीजों की रिपोर्टिंग और उपचार सुनिश्चित करने के लिए सरकार के साथ जोड़ा जा रहा है। जिलों में स्थानीय स्वास्थ्य शिविरों, जनजागरूकता रैलियों और स्कूल-स्तरीय कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को समय पर जांच कराने और बीमारी को फैलने से रोकने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। हम सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि यदि हमारे आसपास कोई व्यक्ति लगातार खांसी या बुखार से पीड़ित है, तो हम उसे जांच के लिए प्रोत्साहित करें। समय पर पहचान ही इस बीमारी को जड़ से समाप्त करने का सबसे प्रभावी उपाय है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/5jmz7zye
https://tinyurl.com/ymwzheet
https://tinyurl.com/2tkfb4kr
https://tinyurl.com/bddrczae
https://tinyurl.com/yu8eynse
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