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जानवरों के शरीर पर बनी धारियां हमेशा से वैज्ञानिकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का विषय रही हैं। चाहे बात भारत के जंगलों में घूमते बाघों की हो या अफ्रीका के मैदानों में दौड़ते ज़ेब्राओं की, इन दोनों के शरीर पर बनी धारियां किसी कला से कम नहीं लगतीं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये धारियां केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि जीवन रक्षा की एक अद्भुत रणनीति हैं? आज हम जानेंगे कि बाघ और ज़ेब्रा जैसे जीवों में धारियां क्यों होती हैं, इनके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है, और भारत के दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में इन धारीदार जीवों के संरक्षण के क्या प्रयास हो रहे हैं।
आज के इस लेख में हम पाँच प्रमुख पहलुओं पर चर्चा करेंगे। पहले, हम समझेंगे कि बाघों की धारियां उनके शिकार के दौरान किस तरह मददगार होती हैं। फिर, हम जानेंगे कि अफ्रीकी ज़ेब्रा की काली-सफेद धारियां उन्हें गर्मी से कैसे बचाती हैं। इसके बाद, हम डार्विन (Darwin) से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों तक के शोधों पर नज़र डालेंगे जिन्होंने इन रहस्यमय धारियों के पीछे के कारण खोजे। फिर हम देखेंगे कि कैसे ज़ेब्रा की धारियां मक्खियों से बचाव का जैविक चमत्कार करती हैं। अंत में, हम दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन की दिशा में चल रहे प्रयासों को समझेंगे।
बाघों की धारियों का रहस्य — छलावरण और शिकार की कला
बाघ सिर्फ़ अपनी ताकत या फुर्ती के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी त्वचा पर बनी धारियों के कारण भी जंगल का सबसे भयावह शिकारी कहलाता है। उसकी हर काली धार प्रकृति की एक रचना है जो उसे घास, झाड़ियों और पेड़ों की छाया में लगभग अदृश्य बना देती है। जब वह अपने शिकार के पीछे धीरे-धीरे बढ़ता है, तो उसकी नारंगी त्वचा और काली धारियां जंगल की धूप और छाया में मिलकर एक भ्रम पैदा करती हैं। यह छलावरण (camouflage) उसे शिकार के बहुत करीब पहुंचने की अनुमति देता है, बिना पकड़े जाने के डर के। वैज्ञानिकों के अनुसार, बाघ की प्रत्येक धारी का पैटर्न अलग होता है, जैसे मनुष्यों के फिंगरप्रिंट (fingerprint) अलग होते हैं। इसका अर्थ है कि कोई भी दो बाघ एक जैसे नहीं दिखते। ये धारियां केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह उनके अस्तित्व की सुरक्षा कवच हैं। बाघों का यह प्राकृतिक डिजाइन उन्हें न केवल शिकार में मदद करता है, बल्कि जंगल के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाता है।

ज़ेब्रा की धारियां — अफ्रीकी गर्मी और जीवित रहने की रणनीति
अफ्रीका के खुले मैदानों में जब सूरज सिर पर होता है और हवा तपिश से जलती है, तब ज़ेब्रा अपनी काली-सफेद धारियों की मदद से तापमान नियंत्रित करता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि इन धारियों के कारण शरीर के काले हिस्से जल्दी गर्म होते हैं, जबकि सफेद हिस्से ठंडे रहते हैं। इस तापांतर के कारण शरीर के चारों ओर सूक्ष्म वायु-प्रवाह (micro-airflow) उत्पन्न होता है जो उन्हें ठंडक प्रदान करता है - यह एक प्राकृतिक थर्मल कंट्रोल सिस्टम (Thermal Control System) है, जो किसी मशीन की तरह काम करता है। लेकिन ज़ेब्रा की धारियों की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। समूह में चलने पर सैकड़ों ज़ेब्रा एक साथ इतने समान दिखाई देते हैं कि शिकारी भ्रमित हो जाता है कि किसे निशाना बनाए। यह दृश्य भ्रम उन्हें शिकारी की पकड़ से दूर रखने में मदद करता है। इस प्रकार, उनकी धारियां न केवल गर्मी से बचाव करती हैं बल्कि सामूहिक सुरक्षा (collective defense) का भी एक माध्यम हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण — डार्विन से आधुनिक शोध तक की खोज
चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने 19वीं शताब्दी में पहली बार यह विचार प्रस्तुत किया कि जानवरों में पाए जाने वाले रंग और पैटर्न प्राकृतिक चयन का परिणाम हैं - यानी, जो पैटर्न उनके वातावरण में सबसे उपयुक्त हैं, वही जीवित रहते हैं। बाद में, वैज्ञानिकों ने इन विचारों पर और गहराई से शोध किया। उन्होंने पाया कि धारियां न केवल छलावरण में मदद करती हैं बल्कि शरीर का तापमान नियंत्रित करने, सामाजिक संकेत देने और रोग फैलाने वाले कीटों से सुरक्षा प्रदान करने का भी कार्य करती हैं। हाल के शोधों में, कंप्यूटर मॉडलिंग (computer modelling) और फोटोग्राफिक विश्लेषण (photographic analysis) के माध्यम से यह सिद्ध किया गया कि धारियों का विकास पर्यावरणीय दबावों के जवाब में हुआ है। उदाहरण के लिए, अधिक गर्म और धूप वाले क्षेत्रों के जानवरों में धारियां या हल्के रंग पाए जाते हैं, जबकि घने जंगलों में रहने वाले जीवों में गहरे रंग और जटिल पैटर्न होते हैं। यानी, धारियां केवल सजावट नहीं, बल्कि विकास की बुद्धिमत्ता हैं - प्रकृति का ऐसा डिजाइन जो जीवों को उनके वातावरण में टिके रहने की शक्ति देता है।

मक्खियों से सुरक्षा — ज़ेब्रा की धारियों का जैविक चमत्कार
शायद सबसे रोचक तथ्य यह है कि ज़ेब्रा की धारियां उन्हें केवल गर्मी से नहीं, बल्कि मक्खियों और कीड़ों से भी बचाती हैं। वैज्ञानिकों ने यह खोजा कि ज़ेब्रा के शरीर की धारियां मक्खियों के लिए एक ऑप्टिकल भ्रम (optical illusion) पैदा करती हैं। मक्खियों की आँखों में हजारों छोटे दृश्य रिसेप्टर्स होते हैं जिन्हें ओमेटिडिया (ommatidia) कहा जाता है। ये रिसेप्टर्स (receptors) अलग-अलग दिशाओं से दृश्य जानकारी एकत्र करते हैं। लेकिन जब वे ज़ेब्रा की काली-सफेद धारियों को देखती हैं, तो यह पैटर्न उनके लिए भ्रम पैदा करता है - वे यह तय नहीं कर पातीं कि सतह कहाँ है। इस भ्रम के कारण मक्खियाँ ज़ेब्रा पर उतरने या काटने से बचती हैं। चूँकि कई मक्खियाँ बीमारी फैलाती हैं, इसलिए यह प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली उनके जीवन को और सुरक्षित बनाती है। इस शोध ने साबित किया कि धारियां न केवल सुंदरता हैं, बल्कि एक जैविक कवच हैं - प्रकृति का एक अत्यंत जटिल और बुद्धिमान उपहार।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण की दिशा में प्रयास
भारत के उत्तर प्रदेश की तराई बेल्ट में स्थित दुधवा राष्ट्रीय उद्यान बाघों का एक सुरक्षित और प्राकृतिक घर है। यहाँ की हरी-भरी घास, दलदली भूमि और साल के घने जंगल बाघों, हाथियों, गैंडों, दलदली हिरणों और कई दुर्लभ पक्षियों के लिए आदर्श आवास हैं। 1977 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और 1987 में यह ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ (Project Tiger) के अंतर्गत एक संरक्षित क्षेत्र बन गया। आज दुधवा भारत के सबसे सफल टाइगर रिज़र्व्स में से एक माना जाता है। यहाँ पर्यावरण संरक्षण, जनभागीदारी और पारिस्थितिक संतुलन के कई कार्यक्रम चल रहे हैं। दुधवा न केवल बाघों के संरक्षण का प्रतीक है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति की हर धारी, हर रंग और हर आवाज़ हमारे पारिस्थितिकी संतुलन की कड़ी है। यदि हम इन जीवों और उनके आवासों की रक्षा करेंगे, तो हम अपनी पृथ्वी के भविष्य को भी सुरक्षित रखेंगे।
संदर्भ-
https://nyti.ms/3qg2YCq
https://bit.ly/3vMReIp
https://bit.ly/3wIcOz7
https://bit.ly/3iWGLro
https://bit.ly/3cWsIOv
https://tinyurl.com/4p5p7fty
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