लखनऊ में वनों से जुड़े बदलावों और उनके असर को समझने का एक सरल और संतुलित प्रयास

वन
02-12-2025 09:22 AM
लखनऊ में वनों से जुड़े बदलावों और उनके असर को समझने का एक सरल और संतुलित प्रयास

लखनऊवासियो, हमारे देश की प्राकृतिक धरोहर केवल नदियों, पहाड़ों और जीव-जंतुओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उन वनों में भी बसती है जो हमारी धरती को सांस देते हैं और जलवायु को संतुलित रखते हैं। भले ही लखनऊ एक विकसित और ऐतिहासिक शहर है, लेकिन यहाँ के लोग भी हर वर्ष बदलते तापमान, प्रदूषण और मौसम की अनियमितता को महसूस कर रहे हैं - और इन समस्याओं की जड़ कहीं न कहीं हमारे वनों के लगातार घटते स्वरूप से जुड़ी हुई है। जब भारत के कई राज्यों में वन भूमि पर अवैध कब्ज़ा बढ़ रहा है, तब यह सिर्फ किसी दूर-दराज़ के जंगल की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश, समाज और हमारे भविष्य के लिए खतरा बन रही है। इसलिए यह समझना ज़रूरी है कि वन क्यों महत्वपूर्ण हैं, अतिक्रमण कैसे बढ़ रहा है और इससे हम सब कैसे प्रभावित होते हैं।
आज के इस लेख में हम वन भूमि अतिक्रमण की समस्या को सरल और समझने योग्य रूप में जानेंगे। सबसे पहले हम भारत में वनों की भूमिका और उनके पर्यावरणीय महत्व को समझेंगे। फिर हम देखेंगे कि किन राज्यों में वन भूमि पर सबसे अधिक कब्ज़ा हुआ है और इससे स्थिति कितनी गंभीर बन चुकी है। इसके बाद, हम इस अतिक्रमण के मुख्य कारणों पर बात करेंगे, जैसे विस्थापन, जनसंख्या दबाव, सीमावर्ती विवाद और अवैध कब्ज़े। अंत में, हम इसके पर्यावरण और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को समझते हुए यह जानेंगे कि सरकार और स्थानीय समुदाय इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं और आगे क्या और करने की आवश्यकता है।

भारत में वनों का महत्व और उनकी पारिस्थितिक भूमिका
भारत के वन हमारी प्रकृति, समाज और अर्थव्यवस्था - तीनों के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। ये वन ही वह स्रोत हैं जो हमें जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन (Oxygen) प्रदान करते हैं और वातावरण को प्रदूषण से शुद्ध रखते हैं। वनों की जड़ें मिट्टी को मजबूती देती हैं, जिससे भूस्खलन और मिट्टी के कटाव में कमी आती है। वर्षा और जल चक्र का संतुलन भी काफी हद तक वनों पर निर्भर करता है। वनों में रहने वाली जैव विविधता - पौधों, पक्षियों, जड़ी-बूटियों, कीटों और वन्यजीवों की अनगिनत प्रजातियों का संरक्षण करती है, जो हमारी पारिस्थितिकी को स्वस्थ बनाए रखती है। इसके अलावा, देश के कई ग्रामीण और आदिवासी समुदाय वनों से जीवनयापन करते हैं - चाहे वह ईंधन, औषधीय पौधे, पशुचारा, शहद, फल, या लकड़ी हो। वन वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन की गति को धीमा करते हैं। इसलिए यह समझना आवश्यक है कि वन केवल पेड़ों का समूह नहीं, बल्कि पृथ्वी की सांस हैं। उनके बिना मानव जीवन और पर्यावरण दोनों संकट में पड़ जाएंगे।

भारतीय राज्यों में वन भूमि अतिक्रमण की वर्तमान स्थिति
भारत में वन भूमि का अतिक्रमण एक गंभीर और तेजी से बढ़ती समस्या है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, आज देश में लगभग 7,400 वर्ग किलोमीटर वन भूमि पर अवैध कब्ज़ा हो चुका है। इन अतिक्रमित क्षेत्रों में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य असम है, जहाँ लगभग 3,775 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र अतिक्रमण की पकड़ में है। यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि असम के घने वन कई महत्वपूर्ण वन्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों और नदियों के जल स्रोतों का आधार हैं। मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य भारत के राज्य भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं कुछ क्षेत्रों जैसे लक्षद्वीप, गोवा और पुडुचेरी में वन भूमि अतिक्रमण का स्तर कम बताया गया है। लेकिन समग्र रूप से देखा जाए तो भारत में वन भूमि के सिकुड़ने की गति पर्यावरणीय संतुलन के लिए बेहद चिंताजनक है।

वन भूमि अतिक्रमण के मुख्य कारण
वन भूमि अतिक्रमण के पीछे एक कारण नहीं, बल्कि कई जटिल सामाजिक, प्राकृतिक और राजनीतिक कारण जुड़े हैं। असम जैसे क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र नदी के बार-बार आने वाले बाढ़ और कटाव से बड़ी संख्या में लोग अपनी जमीन खो देते हैं, जिसके बाद वे जीवनयापन के लिए वन भूमि पर बसने को मजबूर हो जाते हैं। इसके अलावा, बढ़ती जनसंख्या और शहरी एवं कृषि भूमि की मांग भी वन क्षेत्रों पर दबाव बढ़ाती है। कई राज्यों में वन सीमाओं को लेकर सीमावर्ती विवाद हैं, जिसके कारण सरकारों के बीच स्पष्ट प्रशासनिक नियंत्रण नहीं बन पाता, और धीरे-धीरे वन क्षेत्र कब्ज़े में आते जाते हैं। साथ ही, लकड़ी माफिया, अवैध खनन, और राजनीतिक संरक्षण जैसी आपराधिक गतिविधियाँ भी इस समस्या को गहरा बनाती हैं। यह समस्या केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सीधा प्रशासनिक और नीतिगत स्तर की कमजोरी को भी उजागर करती है।

वन अतिक्रमण के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
वनों के घटने का सबसे पहला और गहरा प्रभाव जैव विविधता की हानि के रूप में दिखाई देता है। कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ अपने प्राकृतिक आवास खोकर विलुप्ति की कगार पर पहुँच जाती हैं। जैसे-जैसे वन कम होते हैं, वन्यजीव मानव बस्तियों की ओर आने लगते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष और दुर्घटनाएँ बढ़ जाती हैं। इसके साथ ही, जंगलों के आसपास रहने वाले आदिवासी समुदाय, जो सदियों से प्रकृति आधारित जीवनशैली का पालन करते आए हैं, अपनी संस्कृति, आवास और आजीविका खोने लगते हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से भी यह स्थिति गंभीर है - जंगलों के घटने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) और जलवायु परिवर्तन तेज होता है। परिणामस्वरूप तापमान बढ़ता है, वर्षा पैटर्न बदलते हैं और कृषि एवं जल संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।

सरकारी नीतियाँ और वन विभाग की कार्यप्रणाली में चुनौतियाँ
हालाँकि वन संरक्षण के लिए कई कानून और प्रावधान पहले से मौजूद हैं, लेकिन उनकी कार्यान्वयन क्षमता कमजोर है। कई मामलों में वन अतिक्रमण के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर (FIR) पर वर्षों तक कार्रवाई नहीं होती, या राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार के कारण मामलों को दबा दिया जाता है। वन विभाग में कई क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी, उपकरणों की कमी और प्रशिक्षण की कमी भी इस समस्या को बढ़ाती है। जमीनी स्तर पर निगरानी प्रणाली कमजोर है, जिससे अतिक्रमण को समय रहते रोका नहीं जा पाता। कई बार यह भी देखा गया है कि कुछ वन अधिकारी अवैध कब्जाधारकों से सांठगांठ कर लेते हैं। इसलिए केवल नीतियाँ बनाना पर्याप्त नहीं - ईमानदार और पारदर्शी प्रशासनिक अमल आवश्यक है।

समस्या के समाधान हेतु चल रहे प्रयास और आगे की आवश्यकता
सरकार ने वनों की सुरक्षा और विस्तार के लिए ग्रीन इंडिया मिशन (Green India Mission), प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger), और विभिन्न पुनर्वनीकरण योजनाएँ लागू की हैं। इसके अतिरिक्त, राज्यों को वित्तीय सहायता और वन संरक्षण के दिशा-निर्देश भी दिए जाते हैं। लेकिन इन प्रयासों का वास्तविक प्रभाव तभी दिखाई देगा जब:

  • स्थानीय समुदायों को निर्णय और सुरक्षा कार्यों में भागीदारी मिले
  • वन विभाग में भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त हो
  • अतिक्रमण के मामलों में त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए
  • और बच्चों एवं युवाओं में वन संरक्षण की जागरूकता बढ़ाई जाए।

वनों का संरक्षण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं - यह हम सभी की जिम्मेदारी है।

संदर्भ- 
https://bit.ly/3NtCFGx 
https://bit.ly/3LCrNnd 
https://tinyurl.com/4fmff6jm 



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