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गोंड कला भारत की उन विरासतों में से एक है जो न केवल देखने में आकर्षक है, बल्कि अपने भीतर हजारों साल पुरानी सभ्यता की धड़कन समेटे हुए है। ‘गोंड’ शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द ‘कोंड’ से हुई है, जिसका अर्थ है - ‘हरी पहाड़ी’। यह कला गोंड जनजाति की पहचान है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में बसती है, लेकिन इनकी उपस्थिति छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में भी देखी जाती है। लगभग 1400 वर्ष पुराने इतिहास वाली यह जनजाति प्रकृति, मिथकों और लोककथाओं को रंगों और आकृतियों में ढालकर अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए है। गोंड कला की पहचान इसके जीवंत रंगों और सूक्ष्म पैटर्न से होती है। कलाकार बिंदुओं और रेखाओं के संयोजन से पेड़, जानवर, पक्षी और मनुष्य की आकृतियाँ रचते हैं। पहले ये चित्र घरों की दीवारों और मिट्टी के फर्श पर बनाए जाते थे, पर अब यह कला कैनवास और कागज़ पर भी सजीव हो उठी है। पुराने समय में कलाकार प्राकृतिक रंगों - जैसे फूलों, पत्तों, मिट्टी और पत्थरों से बने रंगों - का उपयोग करते थे, जबकि आज वे पोस्टर कलर (Poster Color) और एक्रेलिक (Acrylic) माध्यम अपनाकर आधुनिकता के साथ कदम मिला रहे हैं।
प्रकृति इस कला का सबसे प्रमुख विषय है। गोंड चित्रों में वृक्षों की विशेष भूमिका होती है - साजा वृक्ष को ‘बड़ा देव’ (मुख्य देवता) का प्रतीक माना जाता है, गंजा और महुआ वृक्ष अमर प्रेम कथा के प्रतीक हैं, जबकि पीपल वृक्ष देवताओं का निवास स्थान समझा जाता है। पकड़ी वृक्ष के पत्तों से बना साग बीमारियों से बचाने वाला माना जाता है, और इमली वृक्ष ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इन वृक्षों के माध्यम से गोंड कलाकार केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि जीवन, आस्था और प्रकृति के पारस्परिक संबंध को व्यक्त करते हैं। गोंड संस्कृति में संगीत और कला का गहरा संबंध है। प्राचीन काल में गोंड कलाकार ‘बाना’ नामक वाद्ययंत्र बजाकर अपने राजाओं की वीर गाथाएँ गाते थे। वे पेड़ों के नीचे बड़े देव की आराधना करते और गीतों के माध्यम से अपने वंश की परंपराएँ आगे बढ़ाते। कला और संगीत उनके लिए मनोरंजन नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और पहचान को याद रखने का माध्यम थे।
दिलचस्प रूप से गोंड कला में ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी (Australian Aborigines) कला से अद्भुत समानताएँ देखी जाती हैं। दोनों कलाओं में बिंदुओं और डैशेज़ का प्रयोग होता है, और दोनों का उद्गम प्राचीन महाद्वीप ‘गोंडवाना’ से माना जाता है। आज गोंड कला भारत की सीमाओं से निकलकर अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुकी है। फ्रांस (France), ब्रिटेन (Britain) और अमेरिका तक इसकी प्रदर्शनी होती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/ybhyfjku
https://tinyurl.com/mry3f9as
https://tinyurl.com/5xptvdca
https://tinyurl.com/mrzk5xae