समय - सीमा 10
मानव और उनकी इंद्रियाँ 10
मानव और उनके आविष्कार 10
भूगोल 10
जीव-जंतु 10
इतिहास के उस धुंधले दौर की कल्पना कीजिए, जब इंसान ने भाषा और समाज का निर्माण भी ठीक से नहीं किया था। उस समय भी, उसमें एक सहज और गहरी इच्छा थी—खुद को सजाने की, अपनी पहचान व्यक्त करने की। पुरातत्वविदों को मिले लाखों साल पुराने घोंघे के हार, चिकने पत्थर और जानवरों के दांतों से बने आभूषण इस बात का प्रमाण हैं कि 'आभूषण' मानवता की सबसे पहली कलाओं में से एक हैं। यह सिर्फ श्रृंगार नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का पहला अध्याय था, एक मूक भाषा जिसके माध्यम से हमारे पूर्वज दुनिया को बताते थे कि वे कौन हैं।
यह सार्वभौमिक मानवीय इच्छा, हज़ारों सालों का सफर तय करके, हर संस्कृति में अलग-अलग रूपों में ढल गई। भारत में इसने स्वर्ण के प्रति गहरे प्रेम का रूप लिया, और कुमाऊँ की पहाड़ियों में यह 'गलोबंद' जैसे अनूठे और प्रतीकात्मक आभूषण में प्रकट हुई। यह कहानी उसी गलोबंद की है, जो सिर्फ सोना और कपड़ा नहीं, बल्कि पिथौरागढ़ की महिलाओं की विरासत, उनकी पहचान और उनके सुहाग का एक चमकता हुआ प्रतीक है।
इससे पहले कि हम गलोबंद की विशिष्टता को समझें, यह जानना आवश्यक है कि आभूषणों के प्रति हमारा लगाव इतना गहरा क्यों है। इसके पीछे केवल सौंदर्यशास्त्र नहीं, बल्कि गहरा मनोविज्ञान काम करता है।
जब आभूषणों की बात आती है, तो भारत और सोने का रिश्ता दुनिया में सबसे अनूठा और गहरा है। यहाँ सोना सिर्फ एक कीमती धातु नहीं है; यह संस्कृति, सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक है।
इस स्वर्ण-प्रेम की गहराई का अंदाज़ा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि, एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास दुनिया का लगभग 11% सोना है। यह मात्रा कई बड़े देशों के कुल स्वर्ण भंडार से भी अधिक है। यह आश्चर्यजनक आँकड़ा दिखाता है कि सोना भारतीयों के लिए सिर्फ एक निवेश नहीं, बल्कि उनकी पहचान और परंपरा का एक अटूट हिस्सा है।
इसी स्वर्ण-प्रेम की पृष्ठभूमि में, उत्तराखंड की पहाड़ियों ने अपनी एक विशिष्ट आभूषण शैली विकसित की, जो मैदानी इलाकों की कला से भिन्न और अनूठी है। यहाँ के आभूषण, जैसे नथुली, पौंजी और धागुले, अपनी बनावट और प्रतीकात्मकता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इन सब में, 'गलोबंद' का एक विशेष स्थान है, जो कुमाऊँनी विवाहित महिलाओं की पहचान का सबसे प्रमुख प्रतीक है।
कई लोगों को लग सकता है कि ये पारंपरिक आभूषण अब केवल पुरानी तस्वीरों या दूर-दराज के गाँवों तक ही सीमित रह गए हैं। लेकिन गलोबंद ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। यह आज भी एक जीवंत परंपरा है, और इसकी चमक अब राष्ट्रीय मंच पर भी बिखर रही है।
इसका सबसे बड़ा और हालिया उदाहरण तब देखने को मिला जब भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी धोनी ने अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के हाई-प्रोफाइल प्री-वेडिंग (High Profile Pre Wedding) समारोह में पारंपरिक कुमाऊँनी पोशाक 'पिछौड़ा' के साथ एक खूबसूरत गलोबंद पहना। देश-विदेश की तमाम मशहूर हस्तियों के बीच, साक्षी धोनी का यह पारंपरिक पहाड़ी लुक तुरंत चर्चा का विषय बन गया।
यह क्षण उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़े गर्व का क्षण था। जब साक्षी धोनी जैसी प्रसिद्ध हस्ती इतने बड़े मंच पर गलोबंद पहनती है, तो यह उस आभूषण को एक नई पहचान और सम्मान दिलाता है। यह साबित करता है कि हमारी पारंपरिक कला कितनी सुंदर और शालीन है, और यह आधुनिक फैशन के साथ भी कदम से कदम मिलाकर चल सकती है। इसने गलोबंद को एक नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत किया और यह संदेश दिया कि अपनी विरासत को गर्व के साथ अपनाना ही असली फैशन है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y7o4nqov
https://tinyurl.com/23totkeg
https://tinyurl.com/27p7sc2m
https://tinyurl.com/2xjclafq
https://tinyurl.com/2bzocukk
https://tinyurl.com/26dznytd
https://tinyurl.com/296vcd3t