उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान बना गया है, गलोबंद

मिट्टी के बर्तन से काँच व आभूषण तक
24-10-2025 09:10 AM
उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान बना गया है, गलोबंद

इतिहास के उस धुंधले दौर की कल्पना कीजिए, जब इंसान ने भाषा और समाज का निर्माण भी ठीक से नहीं किया था। उस समय भी, उसमें एक सहज और गहरी इच्छा थी—खुद को सजाने की, अपनी पहचान व्यक्त करने की। पुरातत्वविदों को मिले लाखों साल पुराने घोंघे के हार, चिकने पत्थर और जानवरों के दांतों से बने आभूषण इस बात का प्रमाण हैं कि 'आभूषण' मानवता की सबसे पहली कलाओं में से एक हैं। यह सिर्फ श्रृंगार नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति का पहला अध्याय था, एक मूक भाषा जिसके माध्यम से हमारे पूर्वज दुनिया को बताते थे कि वे कौन हैं।

यह सार्वभौमिक मानवीय इच्छा, हज़ारों सालों का सफर तय करके, हर संस्कृति में अलग-अलग रूपों में ढल गई। भारत में इसने स्वर्ण के प्रति गहरे प्रेम का रूप लिया, और कुमाऊँ की पहाड़ियों में यह 'गलोबंद' जैसे अनूठे और प्रतीकात्मक आभूषण में प्रकट हुई। यह कहानी उसी गलोबंद की है, जो सिर्फ सोना और कपड़ा नहीं, बल्कि पिथौरागढ़ की महिलाओं की विरासत, उनकी पहचान और उनके सुहाग का एक चमकता हुआ प्रतीक है।

इससे पहले कि हम गलोबंद की विशिष्टता को समझें, यह जानना आवश्यक है कि आभूषणों के प्रति हमारा लगाव इतना गहरा क्यों है। इसके पीछे केवल सौंदर्यशास्त्र नहीं, बल्कि गहरा मनोविज्ञान काम करता है।

  • आत्मविश्वास का स्रोत: आभूषण पहनने का सीधा संबंध हमारे आत्मविश्वास से होता है। एक सुंदर आभूषण हमें विशेष महसूस कराता है, और यह भावना हमारे व्यवहार और हाव-भाव में झलकती है। यह आत्म-देखभाल का एक रूप है, जो हमें खुद को महत्व देने का एहसास कराता है।
  • स्मृतियों का भंडार: अक्सर आभूषण सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि भावनाओं और स्मृतियों का एक पात्र बन जाते हैं। दादी से मिला झुमका, शादी का हार या किसी प्रियजन का दिया हुआ उपहार, ये चीजें हमें उन लोगों और उन अनमोल पलों से जोड़े रखती हैं। वे हमारी जीवन यात्रा की कहानी कहती हैं।
  • पहचान का प्रतीक: आभूषण हमारी सामाजिक, सांस्कृतिक और वैवाहिक स्थिति का भी एक मूक संकेतक होते हैं। वे बिना कुछ कहे यह बता देते हैं कि हम किस समुदाय से हैं या जीवन के किस पड़ाव पर हैं। इसी मनोवैज्ञानिक और सामाजिक महत्व के कारण आभूषण हर संस्कृति का एक अविभाज्य हिस्सा रहे हैं।

जब आभूषणों की बात आती है, तो भारत और सोने का रिश्ता दुनिया में सबसे अनूठा और गहरा है। यहाँ सोना सिर्फ एक कीमती धातु नहीं है; यह संस्कृति, सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक है।

  • सामाजिक प्रतिष्ठा और सुरक्षा: सदियों से, सोना धन, समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का पैमाना रहा है। इसके साथ ही, यह 'स्त्रीधन' के रूप में एक महिला की व्यक्तिगत संपत्ति माना जाता है, जो उसे आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • पवित्र परंपरा: जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु तक, हर महत्वपूर्ण अवसर पर सोने की उपस्थिति अनिवार्य और शुभ मानी जाती है। मंदिरों में देवी-देवताओं को सोना चढ़ाया जाता है, और त्योहारों पर सोना खरीदना सौभाग्य का सूचक माना जाता है।

इस स्वर्ण-प्रेम की गहराई का अंदाज़ा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि, एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास दुनिया का लगभग 11% सोना है। यह मात्रा कई बड़े देशों के कुल स्वर्ण भंडार से भी अधिक है। यह आश्चर्यजनक आँकड़ा दिखाता है कि सोना भारतीयों के लिए सिर्फ एक निवेश नहीं, बल्कि उनकी पहचान और परंपरा का एक अटूट हिस्सा है।

इसी स्वर्ण-प्रेम की पृष्ठभूमि में, उत्तराखंड की पहाड़ियों ने अपनी एक विशिष्ट आभूषण शैली विकसित की, जो मैदानी इलाकों की कला से भिन्न और अनूठी है। यहाँ के आभूषण, जैसे नथुली, पौंजी और धागुले, अपनी बनावट और प्रतीकात्मकता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इन सब में, 'गलोबंद' का एक विशेष स्थान है, जो कुमाऊँनी विवाहित महिलाओं की पहचान का सबसे प्रमुख प्रतीक है।

  • बनावट और कला: गलोबंद एक सामान्य हार नहीं है। इसे बनाने की कला अपने आप में खास है। इसमें एक लाल रंग के कपड़े या मखमल के पट्टे पर सोने के छोटे-छोटे चौकोर टुकड़े (जिन्हें 'गिल्ली' कहते हैं) बड़ी ही बारीकी से टाँके जाते हैं। इसकी सुंदरता सोने के टुकड़ों के साथ-साथ उस लाल पृष्ठभूमि से भी आती है, जो इसे एक शाही और पारंपरिक रूप देती है। यह स्वर्णकारी और वस्त्र-कला का एक अद्भुत संगम है।
  • प्रतीकात्मक अर्थ: पारंपरिक रूप से, गलोबंद एक विवाहित महिला के 'सुहाग' का चिन्ह है। इसका लाल रंग शुभता, सौभाग्य और वैवाहिक जीवन का प्रतीक है। जब एक कुमाऊँनी दुल्हन इसे पहनती है, तो यह सिर्फ एक आभूषण नहीं होता, बल्कि उसकी नई वैवाहिक पहचान और उसकी सांस्कृतिक विरासत की एक घोषणा होती है। यह उसके गले में लिपटा हुआ एक ऐसा धागा है जो उसे उसकी जड़ों और परंपराओं से जोड़े रखता है।

कई लोगों को लग सकता है कि ये पारंपरिक आभूषण अब केवल पुरानी तस्वीरों या दूर-दराज के गाँवों तक ही सीमित रह गए हैं। लेकिन गलोबंद ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया है। यह आज भी एक जीवंत परंपरा है, और इसकी चमक अब राष्ट्रीय मंच पर भी बिखर रही है।

इसका सबसे बड़ा और हालिया उदाहरण तब देखने को मिला जब भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी धोनी ने अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के हाई-प्रोफाइल प्री-वेडिंग (High Profile Pre Wedding) समारोह में पारंपरिक कुमाऊँनी पोशाक 'पिछौड़ा' के साथ एक खूबसूरत गलोबंद पहना। देश-विदेश की तमाम मशहूर हस्तियों के बीच, साक्षी धोनी का यह पारंपरिक पहाड़ी लुक तुरंत चर्चा का विषय बन गया।

यह क्षण उत्तराखंड के लिए एक बहुत बड़े गर्व का क्षण था। जब साक्षी धोनी जैसी प्रसिद्ध हस्ती इतने बड़े मंच पर गलोबंद पहनती है, तो यह उस आभूषण को एक नई पहचान और सम्मान दिलाता है। यह साबित करता है कि हमारी पारंपरिक कला कितनी सुंदर और शालीन है, और यह आधुनिक फैशन के साथ भी कदम से कदम मिलाकर चल सकती है। इसने गलोबंद को एक नई पीढ़ी के सामने प्रस्तुत किया और यह संदेश दिया कि अपनी विरासत को गर्व के साथ अपनाना ही असली फैशन है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/y7o4nqov 
https://tinyurl.com/23totkeg 
https://tinyurl.com/27p7sc2m 
https://tinyurl.com/2xjclafq 
https://tinyurl.com/2bzocukk 
https://tinyurl.com/26dznytd 
https://tinyurl.com/296vcd3t 



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