पिथौरागढ़ की नई पहचान बन रहे हैं, झोड़ा चांचरी और छोलिया जैसे लोकनृत्य!

दृष्टि II - अभिनय कला
24-10-2025 09:10 AM
पिथौरागढ़ की नई पहचान बन रहे हैं, झोड़ा चांचरी और छोलिया जैसे लोकनृत्य!

किसी भी क्षेत्र की सच्ची पहचान केवल उसके पहाड़ों, नदियों या इमारतों में नहीं बसती। उसकी असली आत्मा उसके लोगों के गीतों, संगीत और नृत्यों में धड़कती है। ये लोक कलाएं ही हैं जो एक समुदाय के इतिहास, उसकी मान्यताओं, उसके सुख-दुःख और उसकी सामाजिकता को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रखती हैं। पिथौरागढ़ और संपूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र के संदर्भ में, यहाँ की कला और सौंदर्य की सबसे जीवंत अभिव्यक्ति इसके लोकनृत्यों में देखने को मिलती है। ये नृत्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि इस भूमि की आत्मा का दर्पण हैं, जिसमें शौर्य और सामाजिक एकता के रंग एक साथ घुले हुए हैं।

इस सांस्कृतिक खजाने में दो नृत्य रूप विशेष रूप से चमकते हैं—एक, तलवारों की खनक से शौर्य की गाथा कहता 'छोलिया', और दूसरा, एक गोल घेरे में एकता का संदेश देता 'झोड़ा'।

कल्पना कीजिए एक ऐसे दृश्य की जहाँ संगीत की जोशीली धुन पर, पारंपरिक वेशभूषा में सजे नर्तक हाथों में असली तलवारें और ढालें लेकर हवा में उछलते हैं। उनके कदम लयबद्ध हैं, उनकी आँखों में एक योद्धा जैसी एकाग्रता है, और उनकी तलवारों की खनक अतीत के युद्धों की कहानियाँ सुना रही है। यह 'छोलिया' नृत्य है, जो सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं, बल्कि कुमाऊँ के गौरवशाली और वीर इतिहास का एक चलता-फिरता नाट्य रूपांतरण है।

माना जाता है कि इस नृत्य की उत्पत्ति सदियों पहले हुए युद्धों से हुई है, जब राजपूतों ने इस क्षेत्र में प्रवास किया था। यह मूल रूप से एक विजय नृत्य था, जिसे योद्धा युद्ध से लौटने पर करते थे। समय के साथ, यह विवाह समारोहों और अन्य शुभ अवसरों का एक अभिन्न अंग बन गया, जहाँ छोलिया नर्तकों का दल बारात के आगे-आगे चलकर उसे बुरी आत्माओं से बचाने और दूल्हे के शौर्य का प्रदर्शन करने का प्रतीक बन गया।

छोलिया नृत्य केवल तलवारबाजी का प्रदर्शन नहीं है; यह एक संपूर्ण संगीतमय अनुभव है। इसके संगीत में ढोल-दमाऊ की शक्तिशाली और लयबद्ध थाप, तुरही या रणसिंघा की तीखी और गूंजती हुई धुन, और मसकबीन (बैगपाइप) का संगीत शामिल होता है। नर्तकों की वेशभूषा भी उनके योद्धा स्वरूप को दर्शाती है—एक लंबा चोला, चूड़ीदार पजामा, और चेहरे पर युद्ध जैसी गंभीरता का भाव। यह नृत्य कुमाऊँ के लोगों के उस साहसी और स्वाभिमानी चरित्र का प्रतीक है, जिसने सदियों तक इन कठिन पहाड़ियों में अपनी पहचान बनाए रखी।

जहाँ छोलिया व्यक्तिगत वीरता और शौर्य का प्रतीक है, वहीं 'झोड़ा' या 'चांचरी' नृत्य सामूहिक एकता और सामाजिक सद्भाव का सबसे खूबसूरत उदाहरण है। यह कुमाऊँ की आत्मा का वह पहलू है जो सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है। यह नृत्य आमतौर पर मेलों, त्योहारों और वसंत के आगमन जैसे सामुदायिक उत्सवों के दौरान किया जाता है।

झोड़ा का दृश्य अपने आप में बेहद शक्तिशाली होता है। एक बड़े खुले मैदान में, गाँव के सभी लोग—जवान, बूढ़े, पुरुष, महिलाएँ—बिना किसी जाति या सामाजिक भेदभाव के एक-दूसरे के कंधे या हाथ पकड़कर एक विशाल गोलाकार घेरा बनाते हैं। यह घेरा ही इस नृत्य का सार है: एक ऐसा वृत्त जिसमें कोई पहला या आखिरी नहीं होता, सब बराबर होते हैं।

  • हुड़किया: इस घेरे के केंद्र में एक व्यक्ति खड़ा होता है जो इस पूरे प्रदर्शन का सूत्रधार होता है—'हुड़किया'। उसके हाथ में एक छोटा सा वाद्य यंत्र 'हुड़का' होता है, जिसे बजाते हुए वह गाता है। हुड़किया सिर्फ एक संगीतकार नहीं, बल्कि एक कहानीकार, एक इतिहासकार और एक नेता होता है। वह अपने गीतों के माध्यम से पौराणिक कथाएँ, ऐतिहासिक गाथाएँ, देवी-देवताओं की स्तुति या सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य प्रस्तुत करता है।
  • सवाल-जवाब की गायन शैली: झोड़ा की सबसे आकर्षक विशेषता इसकी 'कॉल-एंड-रिस्पॉन्स' (Call-and-response) गायन शैली है। हुड़किया गीत की पहली पंक्ति (कॉल) गाता है, और घेरे में नृत्य कर रहे सभी लोग एक साथ उस पंक्ति को दोहराते (रिस्पॉन्स) हैं। इस सवाल-जवाब की प्रक्रिया में, जैसे-जैसे हुड़के की थाप तेज होती है, नर्तकों के कदम भी तेज और अधिक ऊर्जावान होते जाते हैं। यह नृत्य घंटों तक चल सकता है, और इसमें शामिल हर व्यक्ति कहानी और संगीत के प्रवाह में खो जाता है।

झोड़ा सिर्फ एक नृत्य नहीं है; यह एक सामाजिक संवाद है, एक सामुदायिक ध्यान है जहाँ व्यक्ति अपनी चिंताओं को भूलकर एक बड़ी इकाई का हिस्सा बन जाता है। यह वह कला है जो समुदाय को एक साथ बुनती है।

यह सोचना गलत होगा कि ये परंपराएँ केवल इतिहास की किताबों में दर्ज हैं। ये आज भी कुमाऊँ के जीवन का एक धड़कता हुआ हिस्सा हैं, और इन्हें जीवित रखने के लिए समुदाय द्वारा सक्रिय प्रयास किए जाते हैं। इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है 'बोगड़ झोड़ा चांचरी महोत्सव'। यह महोत्सव विशेष रूप से झोड़ा नृत्य की परंपरा को मनाने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए आयोजित किया जाता है। इस जैसे आयोजन यह सुनिश्चित करते हैं कि ये लोक कलाएं केवल प्रदर्शन की वस्तु न बनकर, समुदाय के दैनिक और उत्सव जीवन का अभिन्न अंग बनी रहें।

इन लोकनृत्यों की सांस्कृतिक शक्ति और कलात्मक सौंदर्य को अब केवल स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी पहचान मिल रही है। हाल ही में, यह कुमाऊँ के लिए एक बहुत बड़ा गर्व का क्षण था जब दिल्ली में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में उत्तराखंड के छोलिया और झोड़ा नृत्य के प्रदर्शन को 'वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में स्थान मिला।

यह उपलब्धि सिर्फ एक प्रमाण पत्र नहीं है; यह उन अनगिनत कलाकारों और समुदाय के सदस्यों के दशकों के समर्पण का सम्मान है जिन्होंने इन परंपराओं को जीवित रखा है। इस वैश्विक पहचान ने पिथौरागढ़ और पूरे कुमाऊँ की सांस्कृतिक धरोहर को दुनिया के नक्शे पर स्थापित कर दिया है, जिससे इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए नई ऊर्जा और प्रेरणा मिली है।

अंत में, पिथौरागढ़ की असली सुंदरता और कला केवल उसके परिदृश्यों में नहीं है, बल्कि उसके लोगों के कदमों की लय और गीतों की गूंज में है। छोलिया का शौर्य और झोड़ा की एकता, ये दोनों मिलकर कुमाऊँ की एक पूरी तस्वीर बनाते हैं—एक ऐसा क्षेत्र जो अपनी जड़ों का सम्मान करता है, अपनी एकता का जश्न मनाता है, और अब अपनी सांस्कृतिक शक्ति का परचम पूरी दुनिया में फहरा रहा है।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/286uf9cn 
https://tinyurl.com/22d3besx 
https://tinyurl.com/232um8br  
https://tinyurl.com/29tbkkpl 
https://tinyurl.com/28quo2qj 
https://tinyurl.com/2y4mcwr5 
https://tinyurl.com/2dbxbeg6 
https://tinyurl.com/2deh5po5 



Recent Posts