चंद राजवंश के शासनकाल में कैसी थी, पिथौरागढ़ की स्तिथि?

प्रारंभिक मध्यकाल : 1000 ई. से 1450 ई.
24-10-2025 09:10 AM
चंद राजवंश के शासनकाल में कैसी थी, पिथौरागढ़ की स्तिथि?

1000 ईस्वी के बाद का भारत एक बड़े बदलाव का गवाह बन रहा था। मध्य एशिया से आए तुर्क आक्रमणकारियों ने भारत के विशाल मैदानी इलाकों पर अपना परचम लहरा दिया था और 1206 ईस्वी तक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हो चुकी थी। गुलाम, खिलजी और तुगलक वंश के सुल्तानों ने एक-एक करके लगभग पूरे उत्तर भारत पर अपना दबदबा कायम कर लिया था। उनके शक्तिशाली घोड़ों और सेनाओं के सामने बड़े-बड़े राज्य टिक नहीं पा रहे थे।

लेकिन एक सवाल उठता है। जब दिल्ली के सुल्तान पूरे हिंदुस्तान पर राज करने का सपना देख रहे थे, तब हमारे पिथौरागढ़ और कुमाऊँ की इन वादियों में क्या हो रहा था? क्या हम भी दिल्ली के अधीन थे? इतिहास इसका जवाब 'नहीं' में देता है। यह वह दौर था जब हमारे पहाड़ों ने एक प्राकृतिक किले (Natural Fortress) की भूमिका निभाई और अपनी स्वतंत्रता और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखा।

1000 ईस्वी के आसपास शक्तिशाली कत्यूरी साम्राज्य का पतन हो गया था। उनकी केंद्रीय सत्ता के टूटने से पूरा कुमाऊँ क्षेत्र राजनीतिक रूप से विखंडित हो गया। हर घाटी और हर इलाके में छोटे-छोटे स्थानीय सरदारों का राज हो गया, जिनमें से अधिकतर खस (Khas) समुदाय के थे। यह राजनीतिक अस्थिरता का दौर था, जिसमें कोई एक बड़ी शक्ति नहीं थी।

इसी माहौल में, कुमाऊँ के राजनीतिक मंच पर एक नए राजवंश का उदय हुआ, जिसने अगले कई सौ सालों तक इस क्षेत्र की किस्मत लिखी। यह था चंद राजवंश (Chand Dynasty)। माना जाता है कि इस वंश के संस्थापक, सोम चंद, कन्नौज या प्रयागराज के पास झूसी से आए एक महत्वाकांक्षी राजपूत राजकुमार थे। उन्होंने यहाँ के एक स्थानीय शासक की बेटी से विवाह किया और अपनी राजधानी चंपावत में स्थापित की।

चंदों का उदय कोई रातों-रात हुई क्रांति नहीं थी। सोम चंद और उनके उत्तराधिकारियों ने धीरे-धीरे, लेकिन मजबूती से अपनी शक्ति का विस्तार किया। उन्होंने अपनी सैन्य ताकत और राजनीतिक सूझ-बूझ से एक-एक करके स्थानीय खस सरदारों को या तो हराया या उन्हें अपने अधीन कर लिया। यह एक लंबी और सतत प्रक्रिया थी, जिसने बिखरे हुए कुमाऊँ को एक बार फिर से एक संगठित राज्य में बदल दिया।

जिस समय चंद राजा चंपावत से अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे, उस समय आज के पिथौरागढ़ शहर का इलाका भी अपनी एक पहचान बना रहा था। स्थानीय इतिहास और किंवदंतियों के अनुसार, इस दौर में यहाँ पीरू गोसाईं (जिन्हें पृथ्वी गोस्वामी भी कहा जाता है) नामक एक स्थानीय सामंत का शासन था।

माना जाता है कि उन्होंने ही इस क्षेत्र में एक किला (Fort) बनवाया और उसके चारों ओर एक बस्ती बसाई। इसी किले के नाम पर इस जगह का नाम पिथौरागढ़ पड़ा। यह किला उस समय स्थानीय सत्ता का केंद्र था। यह दिखाता है कि चंदों के पूरी तरह से स्थापित होने से पहले, पिथौरागढ़ जैसे क्षेत्रों की अपनी एक स्थानीय शासन व्यवस्था थी, जो इन छोटे-छोटे किलों से चलती थी।
 

चंद राजवंश में कई राजा हुए, लेकिन इस युग के सबसे शक्तिशाली और दूरदर्शी राजा थे गरुड़ ज्ञान चंद (Garud Gyan Chand), जिनका शासनकाल लगभग 1365 से 1420 ईस्वी तक रहा। उनके समय तक, चंदों ने पहाड़ों में तो अपना राज स्थापित कर लिया था, लेकिन पहाड़ों के नीचे का उपजाऊ और बेशकीमती तराई-भाबर का क्षेत्र अभी भी दिल्ली के सुल्तान के नियंत्रण में था।

ज्ञान चंद एक महत्वाकांक्षी राजा थे। वे जानते थे कि अगर अपने राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है, तो तराई का नियंत्रण हासिल करना ही होगा। इसके लिए उन्होंने एक साहसिक कदम उठाया। वे अपनी अर्जी लेकर सीधे दिल्ली के शक्तिशाली सुल्तान, फिरोज शाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq) के दरबार में जा पहुँचे।

दिल्ली के दरबार में जो हुआ, वह आज भी कुमाऊँ की लोककथाओं का हिस्सा है। कहानी कुछ इस प्रकार है: जब ज्ञान चंद सुल्तान के दरबार में थे, तभी आसमान में एक ऊँची उड़ान भरते हुए गरुड़ (चील) पर सुल्तान की नज़र पड़ी। सुल्तान ने शायद मज़ाक में या राजा की परीक्षा लेने के लिए कहा कि क्या कोई इस उड़ते पंछी को गिरा सकता है। ज्ञान चंद एक माहिर धनुर्धर थे। उन्होंने तुरंत अपना धनुष उठाया और एक ही बाण में उस ऊँची उड़ान भर रहे गरुड़ को नीचे गिरा दिया।

सुल्तान फिरोज शाह तुगलक उनकी इस अद्भुत तीरंदाजी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने न सिर्फ ज्ञान चंद को 'गरुड़' की उपाधि दी, बल्कि उनसे खुश होकर तराई-भाबर का पूरा क्षेत्र भी उन्हें जागीर के रूप में सौंप दिया।

यह घटना सिर्फ एक राजा की व्यक्तिगत जीत नहीं थी। इसके दूरगामी परिणाम हुए:

  • आर्थिक मजबूती: तराई के उपजाऊ क्षेत्र से मिलने वाले राजस्व ने कुमाऊँ के पहाड़ी राज्य को बहुत ज़्यादा आर्थिक मजबूती दी।
  • राजनीतिक मान्यता: यह दिल्ली सल्तनत द्वारा चंद राजवंश की संप्रभुता और शक्ति की एक औपचारिक स्वीकृति थी। इसने उन्हें उत्तर भारत की एक प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया।

1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी का यह दौर पिथौरागढ़ और कुमाऊँ के लिए आत्म-पहचान गढ़ने का दौर था। एक तरफ जहाँ भारत के मैदान दिल्ली सल्तनत के अधीन उथल-पुथल देख रहे थे, वहीं हमारे पहाड़ अपनी भौगोलिक सुरक्षा और अपने स्थानीय शासकों की वीरता के कारण काफी हद तक स्वतंत्र बने रहे।

चंद राजवंश ने इस क्षेत्र को कत्यूरियों के बाद एक नई राजनीतिक एकता दी और गरुड़ ज्ञान चंद जैसे राजाओं ने अपने शौर्य और सूझ-बूझ से इस राज्य को न सिर्फ आर्थिक रूप से संपन्न बनाया, बल्कि दिल्ली के सुल्तान से भी इसका लोहा मनवाया। यह वही दौर था जिसने कुमाऊँ के उस स्वाभिमानी और स्वतंत्र चरित्र की नींव रखी, जो आज भी यहाँ के लोगों की पहचान है।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/29fgxbzv 
https://tinyurl.com/297vjbdd 
https://tinyurl.com/2a846ufu 
https://tinyurl.com/2cmnhcju 
https://tinyurl.com/29fkfax2 
https://tinyurl.com/2czlepuf 
https://tinyurl.com/2cxhob7w 
https://tinyurl.com/2ckyeymy 



Recent Posts