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पिथौरागढ़ का इतिहास सिर्फ़ पहाड़ों और नदियों का नहीं, बल्कि गहरी आस्था और प्राचीन संस्कृति का भी है। यह कोई नई बात नहीं है। हमारे सबसे पवित्र और प्राचीन ग्रंथों, जैसे ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी इस क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कबीलों और यहाँ की दिव्यता का उल्लेख मिलता है। यह इस बात का प्रमाण है कि जब भारत की मुख्य भूमि पर इतिहास की बड़ी-बड़ी घटनाएँ घट रही थीं, तब हमारा यह पहाड़ी आँगन भी उन वैचारिक तरंगों को महसूस कर रहा था।
आज हम इतिहास के एक ऐसे ही निर्णायक दौर, 600 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी के बीच के समय की यात्रा करेंगे। यह वह युग था जब भारत में एक महान धार्मिक और आध्यात्मिक क्रांति हुई। इस दौर में न सिर्फ़ दो नए महान धर्मों, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय हुआ, बल्कि सदियों पुरानी वैदिक परंपरा ने भी खुद को बदलकर एक नया और ज़्यादा समावेशी रूप लिया, जिसे आज हम हिंदू धर्म के नाम से जानते हैं। यह कहानी है विचारों के उस महा-मंथन की, जिसने भारत की आत्मा को गढ़ा।
यह समझने के लिए कि नए धर्मों का उदय क्यों हुआ, हमें पहले उस समय के समाज को समझना होगा। 600 ईसा पूर्व से पहले का भारत उत्तर वैदिक काल के प्रभाव में था। इस समय समाज और धर्म की रूपरेखा कुछ इस प्रकार थी:
इस जटिलता, खर्चे और सामाजिक भेदभाव के माहौल में आम लोगों के मन में एक बेचैनी थी। वे एक ऐसे सरल, सस्ते और समतावादी रास्ते की तलाश में थे, जो उन्हें बिना किसी भेदभाव के मोक्ष का मार्ग दिखा सके। इसी सामाजिक और आध्यात्मिक प्यास ने उस ज़मीन को तैयार किया, जिस पर जैन और बौद्ध धर्म के विचार अंकुरित हुए।
इसी दौर में, वर्धमान महावीर ने जैन परंपरा को एक नया और सशक्त रूप दिया। वे जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने किसी नए धर्म की स्थापना नहीं की, बल्कि पहले से चली आ रही तीर्थंकरों की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। उनके उपदेशों का सार था:
जैन धर्म इसलिए लोकप्रिय हुआ क्योंकि इसने आम लोगों की भाषा प्राकृत में उपदेश दिए, यज्ञों और कर्मकांडों का विरोध किया और जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था को पूरी तरह से नकार दिया।
जिस समय महावीर अपने उपदेश दे रहे थे, उसी समय एक और राजकुमार, सिद्धार्थ गौतम, इंसान के दुखों का हल खोजने के लिए अपना महल छोड़कर निकल पड़े थे। ज्ञान की प्राप्ति के बाद वे बुद्ध ('जिसे ज्ञान हो गया हो') कहलाए। बुद्ध ने एक ऐसा रास्ता दिखाया जो सरल, तार्किक और मानवीय था। उनकी शिक्षाओं का आधार थे:
बौद्ध धर्म के तेजी से फैलने के पीछे भी वही कारण थे:
जब जैन और बौद्ध धर्म जैसी नई धाराएँ समाज में लोकप्रिय हो रही थीं, तब पुरानी वैदिक परंपरा भी खामोश नहीं थी। वह इन नई चुनौतियों के जवाब में खुद को बदल रही थी और एक नया, ज़्यादा उदार और भक्तिपूर्ण रूप ले रही थी। यह परिवर्तन कई स्तरों पर हुआ:
600 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी का यह 900 वर्षों का कालखंड भारतीय इतिहास का एक वैचारिक संगम था। यह वह दौर था जब पुराने और नए विचार आपस में टकराए, एक-दूसरे को चुनौती दी और एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा। इस मंथन से जो अमृत निकला, उसने भारत की आध्यात्मिक भूमि को हमेशा के लिए सींच दिया।
यह वह युग था जिसने हमें महावीर की अहिंसा, बुद्ध की करुणा और गीता का कर्मयोग दिया। आज पिथौरागढ़ और पूरे भारत में जो धार्मिक विविधता और दार्शनिक गहराई है, जिसमें मंदिर, मठ और विभिन्न आस्थाएँ एक साथ मौजूद हैं, वह इसी महान युग की देन है। यह हमारी उस विरासत का प्रमाण है, जो सवाल करने, सुधार करने और સત્ય के नए रास्तों को खोजने से कभी नहीं डरती।
संदर्भ
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https://tinyurl.com/2a324lp6
https://tinyurl.com/28gw99k9
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