जब पिथौरागढ़ की भूमि ने देखे धर्मों का उदय और परिवर्तन

धर्म का युग : 600 ई.पू. से 300 ई.
24-10-2025 09:10 AM
जब पिथौरागढ़ की भूमि ने देखे धर्मों का उदय और परिवर्तन

पिथौरागढ़ का इतिहास सिर्फ़ पहाड़ों और नदियों का नहीं, बल्कि गहरी आस्था और प्राचीन संस्कृति का भी है। यह कोई नई बात नहीं है। हमारे सबसे पवित्र और प्राचीन ग्रंथों, जैसे ऋग्वेद और स्कंद पुराण में भी इस क्षेत्र में रहने वाले विभिन्न कबीलों और यहाँ की दिव्यता का उल्लेख मिलता है। यह इस बात का प्रमाण है कि जब भारत की मुख्य भूमि पर इतिहास की बड़ी-बड़ी घटनाएँ घट रही थीं, तब हमारा यह पहाड़ी आँगन भी उन वैचारिक तरंगों को महसूस कर रहा था।

आज हम इतिहास के एक ऐसे ही निर्णायक दौर, 600 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी के बीच के समय की यात्रा करेंगे। यह वह युग था जब भारत में एक महान धार्मिक और आध्यात्मिक क्रांति हुई। इस दौर में न सिर्फ़ दो नए महान धर्मों, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय हुआ, बल्कि सदियों पुरानी वैदिक परंपरा ने भी खुद को बदलकर एक नया और ज़्यादा समावेशी रूप लिया, जिसे आज हम हिंदू धर्म के नाम से जानते हैं। यह कहानी है विचारों के उस महा-मंथन की, जिसने भारत की आत्मा को गढ़ा।

यह समझने के लिए कि नए धर्मों का उदय क्यों हुआ, हमें पहले उस समय के समाज को समझना होगा। 600 ईसा पूर्व से पहले का भारत उत्तर वैदिक काल के प्रभाव में था। इस समय समाज और धर्म की रूपरेखा कुछ इस प्रकार थी:

  • जटिल यज्ञ और कर्मकांड: धर्म का केंद्र बड़े-बड़े और खर्चीले यज्ञ हुआ करते थे, जिन्हें केवल विशेषज्ञ ब्राह्मण पुरोहित ही करवा सकते थे। आम आदमी के लिए ये रस्में बहुत जटिल और महंगी थीं।
  • कठोर वर्ण-व्यवस्था: समाज चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में सख्ती से बंटा हुआ था। व्यक्ति की पहचान और उसका भविष्य उसके जन्म से तय होता था, योग्यता से नहीं। इस व्यवस्था ने समाज में एक गहरी खाई पैदा कर दी थी।
  • संस्कृत का प्रभुत्व: सभी धार्मिक ग्रंथ और कर्मकांड संस्कृत भाषा में होते थे, जो केवल पुरोहितों और अभिजात वर्ग की भाषा थी। आम जनता इस भाषा को समझ नहीं पाती थी, जिससे वे धर्म के असली ज्ञान से दूर रह जाते थे।

इस जटिलता, खर्चे और सामाजिक भेदभाव के माहौल में आम लोगों के मन में एक बेचैनी थी। वे एक ऐसे सरल, सस्ते और समतावादी रास्ते की तलाश में थे, जो उन्हें बिना किसी भेदभाव के मोक्ष का मार्ग दिखा सके। इसी सामाजिक और आध्यात्मिक प्यास ने उस ज़मीन को तैयार किया, जिस पर जैन और बौद्ध धर्म के विचार अंकुरित हुए।

इसी दौर में, वर्धमान महावीर ने जैन परंपरा को एक नया और सशक्त रूप दिया। वे जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उन्होंने किसी नए धर्म की स्थापना नहीं की, बल्कि पहले से चली आ रही तीर्थंकरों की परंपरा को ही आगे बढ़ाया। उनके उपदेशों का सार था:

  • अहिंसा परमो धर्मः: महावीर की शिक्षा का केंद्र बिंदु अहिंसा थी, जिसका उन्होंने कठोरता से पालन करने का उपदेश दिया। उनका मानना था कि सिर्फ़ इंसानों या जानवरों में ही नहीं, बल्कि पेड़-पौधों, पत्थरों और पानी की बूँदों में भी जीवन होता है, और हमें किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
  • अनेकांतवाद: इसका अर्थ है कि सत्य एक नहीं, बल्कि अनेक पहलुओं वाला होता है। किसी भी चीज़ को सिर्फ़ एक नज़रिए से देखना अज्ञानता है।
  • कर्म के बंधन से मुक्ति: उन्होंने सिखाया कि इंसान अपने कर्मों के बंधन में फँसा है, और कठोर तपस्या तथा अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

जैन धर्म इसलिए लोकप्रिय हुआ क्योंकि इसने आम लोगों की भाषा प्राकृत में उपदेश दिए, यज्ञों और कर्मकांडों का विरोध किया और जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था को पूरी तरह से नकार दिया।

जिस समय महावीर अपने उपदेश दे रहे थे, उसी समय एक और राजकुमार, सिद्धार्थ गौतम, इंसान के दुखों का हल खोजने के लिए अपना महल छोड़कर निकल पड़े थे। ज्ञान की प्राप्ति के बाद वे बुद्ध ('जिसे ज्ञान हो गया हो') कहलाए। बुद्ध ने एक ऐसा रास्ता दिखाया जो सरल, तार्किक और मानवीय था। उनकी शिक्षाओं का आधार थे:

  • चार आर्य सत्य: 1. संसार में दुःख है। 2. दुःख का कारण इच्छा और तृष्णा है। 3. इच्छाओं का त्याग करके दुःख का अंत संभव है। 4. इसका उपाय अष्टांगिक मार्ग (आठ सूत्रों का रास्ता) है।
  • मध्यम मार्ग (The Middle Path): बुद्ध ने दोनों अतियों का विरोध किया। उन्होंने कहा कि न तो महलों में रहकर भोग-विलास में डूबना सही है, और न ही शरीर को अत्यधिक कष्ट देकर कठोर तपस्या करना। मोक्ष का रास्ता इन दोनों के बीच से होकर जाता है, जिसे उन्होंने 'मध्यम मार्ग' कहा।

बौद्ध धर्म के तेजी से फैलने के पीछे भी वही कारण थे:

  • जनभाषा का प्रयोग: बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा में दिए, जिसे उस समय की आम जनता आसानी से समझती थी।
  • जाति-प्रथा का खंडन: उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जन्म से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से महान या नीच होता है। निर्वाण का मार्ग हर किसी के लिए खुला है।
  • तर्क और नैतिकता पर ज़ोर: उन्होंने ईश्वर या आत्मा जैसी जटिल बहसों में उलझने की बजाय, इंसान के नैतिक आचरण और दुःखों को दूर करने के व्यावहारिक तरीकों पर ज़ोर दिया।

जब जैन और बौद्ध धर्म जैसी नई धाराएँ समाज में लोकप्रिय हो रही थीं, तब पुरानी वैदिक परंपरा भी खामोश नहीं थी। वह इन नई चुनौतियों के जवाब में खुद को बदल रही थी और एक नया, ज़्यादा उदार और भक्तिपूर्ण रूप ले रही थी। यह परिवर्तन कई स्तरों पर हुआ:

  • उपनिषदों का ज्ञान: यज्ञों और कर्मकांडों से हटकर, उपनिषदों ने ज्ञान मार्ग पर ज़ोर दिया। आत्मा क्या है? ब्रह्म क्या है? जीवन का अंतिम सत्य क्या है? - इन दार्शनिक सवालों ने धर्म को एक नई बौद्धिक गहराई दी।
  • भक्ति आंदोलन का सूत्रपात: धर्म अब सिर्फ़ पुरोहितों तक सीमित नहीं रहा। भक्ति आंदोलन ने यह विचार दिया कि कोई भी व्यक्ति अपने आराध्य देव, जैसे विष्णु या शिव, की सच्ची भक्ति करके मोक्ष पा सकता है। इसने धर्म को व्यक्तिगत और भावनात्मक बना दिया।
  • महाकाव्यों की रचना: रामायण और महाभारत (जिसका एक हिस्सा पवित्र भगवद्गीता है) जैसे महाकाव्यों की रचना हुई। इन ग्रंथों ने धर्म और दर्शन के गूढ़ संदेशों को राम और कृष्ण जैसे नायकों की रोचक कहानियों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया। इन महाकाव्यों ने ही आधुनिक हिंदू धर्म की नींव रखी।

600 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी का यह 900 वर्षों का कालखंड भारतीय इतिहास का एक वैचारिक संगम था। यह वह दौर था जब पुराने और नए विचार आपस में टकराए, एक-दूसरे को चुनौती दी और एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखा। इस मंथन से जो अमृत निकला, उसने भारत की आध्यात्मिक भूमि को हमेशा के लिए सींच दिया।

यह वह युग था जिसने हमें महावीर की अहिंसा, बुद्ध की करुणा और गीता का कर्मयोग दिया। आज पिथौरागढ़ और पूरे भारत में जो धार्मिक विविधता और दार्शनिक गहराई है, जिसमें मंदिर, मठ और विभिन्न आस्थाएँ एक साथ मौजूद हैं, वह इसी महान युग की देन है। यह हमारी उस विरासत का प्रमाण है, जो सवाल करने, सुधार करने और સત્ય के नए रास्तों को खोजने से कभी नहीं डरती।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/bwdokk8 
https://tinyurl.com/2a324lp6 
https://tinyurl.com/28gw99k9 
https://tinyurl.com/282lmzdj 
https://tinyurl.com/hx79nqt 
https://tinyurl.com/282lmzdj 

https://tinyurl.com/2bpm8vjj 



Recent Posts