पिथौरागढ़ के इतिहास का पहला पन्ना हैं, कसानी की गुफा में मिली ये गेरुई लकीरें!

मानव : 40000 ई.पू. से 10000 ई.पू.
24-10-2025 09:10 AM
पिथौरागढ़ के इतिहास का पहला पन्ना हैं, कसानी की गुफा में मिली ये गेरुई लकीरें!

धरती पर जीवन के उभरने और महाद्वीपों के बनने की अरबों साल लंबी कहानी के बाद, पृथ्वी एक ऐसे युग में पहुँची जहाँ एक नए और अनोखे जीव का विकास हुआ, जिसे इंसान कहा गया। यह वह दौर था जिसे हम पाषाण युग (Stone Age) कहते हैं, एक ऐसा समय जब हमारे पूर्वज आज के आधुनिक इंसानों से बहुत अलग थे। वे एक शिकारी-संग्राहक (Hunter-gatherer) का जीवन जीते थे। उनका कोई स्थायी घर नहीं होता था; वे गुफाओं और चट्टानों की ओट में रहते थे। उनका पूरा दिन भोजन की तलाश, जंगली जानवरों के शिकार और खुद को प्रकृति के कठोर तत्वों से बचाने के संघर्ष में बीतता था।

हम अक्सर यह सोचते हैं कि ऐसे आदिमानव शायद गर्म, मैदानी इलाकों या बड़ी नदियों की घाटियों में ही रहते होंगे। हिमालय की ऊँची, ठंडी और दुर्गम वादियाँ उनके रहने के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती थीं। लेकिन हाल ही में पिथौरागढ़ में हुई एक असाधारण खोज ने इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस खोज ने साबित कर दिया है कि आज से हज़ारों साल पहले, जब दुनिया का एक बड़ा हिस्सा बर्फ़ की चादर से ढका था, तब भी हमारे साहसी पूर्वज हिमालय के इस आँगन में न सिर्फ़ जी रहे थे, बल्कि अपनी एक समृद्ध संस्कृति को भी जन्म दे रहे थे। यह कहानी है उन्हीं के द्वारा पत्थरों पर छोड़ी गई अनमोल निशानियों की।

इतिहास की बड़ी-बड़ी खोजें अक्सर बड़े-बड़े अभियानों का नतीजा होती हैं, लेकिन यह कहानी एक स्थानीय नायक की जिज्ञासा से शुरू होती है। पिथौरागढ़ के एक जाने-माने ट्रेकर (Trekker), लेखक और संस्कृति प्रेमी, श्री शेर सिंह पांगती, अपनी एक यात्रा के दौरान कसानी गाँव के पास के जंगलों में घूम रहे थे। तभी उनकी नज़र एक अनजानी सी गुफा पर पड़ी। एक स्वाभाविक कौतूहल ने उन्हें गुफा के अँधेरे मुँह की ओर खींच लिया।

जब वे अंदर पहुँचे और उनकी आँखें गुफा के अँधेरे की आदी हुईं, तो उन्होंने जो देखा वह किसी खज़ाने से कम नहीं था। गुफा की खुरदरी चट्टानी दीवारों पर, गेरुए रंग (Ochre colour) से बनी लगभग 15 प्रागैतिहासिक (Prehistoric) चित्रकारियाँ मौजूद थीं। ये कोई आधुनिक कला नहीं थी, बल्कि यह सीधे पाषाण युग से एक संदेश था। पुरातत्वविदों का अनुमान है कि ये चित्र आज से 40,000 से 10,000 वर्ष ईसा पूर्व के बीच बनाए गए होंगे। इन धुँधली पड़ चुकी लकीरों में, हमारे पूर्वजों ने अपनी पूरी दुनिया को समेट दिया था:

  • सामूहिक जीवन के दृश्य: कुछ चित्रों में कई इंसानी आकृतियों को एक-दूसरे का हाथ थामे हुए दिखाया गया है। यह दृश्य किसी सामूहिक नृत्य, किसी अनुष्ठान या समाज की एकता का प्रतीक हो सकता है। यह दिखाता है कि वे अकेले नहीं, बल्कि एक संगठित समाज में रहते थे।
  • शिकार और प्रकृति: चित्रों में हिरण और लोमड़ी जैसे जानवरों को भी उकेरा गया है। ये जानवर महज़ चित्र नहीं थे, ये उनकी ज़िंदगी का केंद्र थे। हिरण उनके भोजन का मुख्य स्रोत रहा होगा, तो वहीं लोमड़ी जैसा चालाक जानवर या तो उनका प्रतिस्पर्धी रहा होगा या उनकी लोककथाओं का कोई पात्र।

इस खोज की खबर मिलते ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम हरकत में आई और इन अनमोल चित्रों के अध्ययन और संरक्षण का काम शुरू कर दिया है। यह खोज पिथौरागढ़ को उत्तराखंड के उन विश्व-प्रसिद्ध प्रागैतिहासिक स्थलों की सूची में खड़ा कर देती है, जो हमें सीधे हमारे आदिम अतीत से जोड़ते हैं।

यह सोचना स्वाभाविक है कि वह इंसान, जिसके लिए हर पल अस्तित्व का संघर्ष था, वह चट्टानों पर चित्रकारी जैसी 'फ़ालतू' चीज़ में अपना समय क्यों बर्बाद करेगा? लेकिन उनके लिए, यह चित्रकारी हमारे लिए फेसबुक (Facebook) या इंस्टाग्राम पोस्ट (Instagram post) से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण थी। यह उनके जीवन का एक अभिन्न अंग थी, जिसके कई गहरे उद्देश्य थे:

1. संवाद और शिक्षा का माध्यम: उस युग में जब कोई भाषा या लिपि नहीं थी, तब चित्र ही ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का एकमात्र ज़रिया थे। एक शिकार का दृश्य बनाकर कोई अनुभवी शिकारी अपने बच्चों को सिखा सकता था कि किस जानवर का शिकार कैसे करना है, किस दिशा से वार करना है या किस जानवर से दूर रहना है। यह उनका 'विज़ुअल टेक्स्टबुक' (Visual Textbook) था।

2. अनुष्ठान और आध्यात्मिक विश्वास: कई मानवविज्ञानी मानते हैं कि यह कला 'सहयोगी जादू' (Sympathetic Magic) का एक रूप थी। आदिमानव का यह विश्वास था कि अगर वे किसी जानवर का चित्र बनाकर उस पर नियंत्रण पा लेते हैं, तो असली शिकार में भी उन्हें सफलता मिलेगी। गुफा की दीवार पर हिरण का चित्र बनाकर वे प्रतीकात्मक रूप से उसकी आत्मा को क़ैद कर लेते थे, जिससे असली शिकार आसान हो जाता था। नाचते हुए इंसानों के चित्र शायद किसी शमन (Shaman) द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठान का हिस्सा रहे होंगे, जिसका उद्देश्य आत्माओं की दुनिया से संपर्क साधना या अच्छी फसल और शिकार के लिए प्रार्थना करना होता था।

3. इतिहास और कहानी का दस्तावेज़: यह उनकी 'डायरी' (dairy) या ‘इतिहास की किताब’ थी। वे अपने जीवन की खास घटनाओं को इन चित्रों के माध्यम से दर्ज करते थे - शायद किसी बड़े जानवर का सफल शिकार, किसी पड़ोसी कबीले से मुलाकात, या कोई प्राकृतिक आपदा। यह उनका दुनिया को यह बताने का तरीका था कि "हम यहाँ थे, हमने यह जीवन जिया।"

4. रचनात्मकता की सहज अभिव्यक्ति: इन सभी व्यावहारिक कारणों के अलावा, एक मानवीय कारण भी था - बनाने की, रचने की और खुद को व्यक्त करने की सहज इच्छा। अपनी दुनिया, अपने डर और अपनी खुशियों को एक रूप देना इंसान की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। यह कला उस आदिम रचनात्मकता का सबसे शुद्ध रूप थी।

पिथौरागढ़ के कसानी गाँव की यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक बड़ी और पुरानी कहानी में एक नया अध्याय जोड़ती है। उत्तराखंड का कुमाऊँ क्षेत्र प्रागैतिहासिक रॉक आर्ट (Rock Art) का एक गढ़ रहा है। कसानी की खोज इस बात की पुष्टि करती है कि आदिमानव का जीवन इस पूरे क्षेत्र में फैला हुआ था।

  • लाखुडियार (Lakhudiyar): अल्मोड़ा के नज़दीक सुयाल नदी के किनारे स्थित 'लाखुडियार' (जिसका अर्थ है एक लाख गुफाएँ) इस क्षेत्र की सबसे प्रसिद्ध साइट है। यहाँ पाए गए चित्रों में भी इंसानों को लहरदार रेखाओं में नाचते हुए और जानवरों की अनेक आकृतियों को दिखाया गया है। कसानी और लाखुडियार की कला में समानता यह दर्शाती है कि इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिमानव शायद एक ही सांस्कृतिक समूह का हिस्सा थे।
  • अन्य स्थल: इनके अलावा ल्वेथाप, पेटशाल और फलसीमा जैसी जगहों ने भी इस प्रागैतिहासिक पहेली के टुकड़ों को जोड़ने में मदद की है।

यह सभी स्थल मिलकर एक ‘प्रागैतिहासिक सांस्कृतिक नेटवर्क’ (Network) का नक्शा तैयार करते हैं। ऐसा लगता है कि हमारे पूर्वज मौसमी बदलावों के साथ इन विभिन्न गुफाओं और आश्रयों के बीच घूमते रहते थे। वे एक ही तरह की कला और विश्वासों को साझा करते थे। कसानी की खोज इस नेटवर्क में एक और महत्वपूर्ण बिंदु जोड़ती है, जो हमें उनके विस्तार और जीवनशैली को बेहतर ढंग से समझने में मदद करती है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/23b8tohb 

https://tinyurl.com/2detqbkm 

https://tinyurl.com/yqvc4tet 

https://tinyurl.com/272fnuga 

https://tinyurl.com/2annvzka 

https://tinyurl.com/28of2hlg 



Recent Posts