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जब हम पिथौरागढ़ के पहाड़ों को देखते हैं, तो हम उनकी ऊँचाई और सुंदरता पर मोहित हो जाते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जिस ज़मीन पर हम खड़े हैं, उसकी उम्र कितनी है? यह कहानी आज की नहीं, बल्कि अरबों साल पुरानी है। यह इतनी पुरानी है कि इसकी थाह पाना इंसान के लिए लगभग नामुमकिन है। लेकिन विज्ञान और हमारी प्राचीन भारतीय मनीषा, दोनों ने इस समय के महासागर को समझने की कोशिश की है।
सबसे हैरान करने वाली बात देखिए। आधुनिक विज्ञान के अनुसार, हमारी पृथ्वी की आयु लगभग 4.5 अरब (450 करोड़) वर्ष है। वहीं, हमारी हिंदू ब्रह्मांडिकी (Hindu Cosmology) में समय की एक इकाई है 'कल्प', जिसे ब्रह्मा का एक दिन माना जाता है। एक कल्प की अवधि 4.32 अरब (432 करोड़) वर्ष होती है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि हज़ारों साल पहले हमारे ऋषियों द्वारा की गई समय की गणना और आज के विज्ञान के निष्कर्षों में इतनी अद्भुत समानता है?
तो चलिए, हम भी समय के इसी 'कल्प' में एक यात्रा पर निकलते हैं और जानते हैं कि उस दौर में क्या हुआ था, जब पिथौरागढ़ का कोई अस्तित्व नहीं था, लेकिन उसके बनने की नींव रखी जा रही थी।
यह कहानी शुरू होती है आज से लगभग 4.6 अरब साल पहले। उस समय न तो सूरज था, न पृथ्वी और न ही कोई और ग्रह। अंतरिक्ष में बस धूल और गैस का एक विशाल, घूमता हुआ बादल था, जिसे वैज्ञानिक 'सौर निहारिका' (Solar Nebula) कहते हैं। गुरुत्वाकर्षण (Gravity) की शक्ति के कारण इस बादल का केंद्र सिकुड़ने लगा। वह सघन, गर्म और चमकदार होता गया, और आख़िरकार उसने आग पकड़ ली। हमारे सूर्य का जन्म हो चुका था।
सूर्य के बनने के बाद जो धूल और चट्टान के कण बचे, वे भी गुरुत्वाकर्षण के कारण आपस में जुड़ने लगे। जैसे कमरे के कोने में धूल के छोटे-छोटे कण मिलकर एक बड़ा गोला बन जाते हैं, वैसे ही ये कण आपस में टकराकर और जुड़कर बड़े-बड़े पिंडों में बदलने लगे। लाखों सालों की इस प्रक्रिया के बाद इन्हीं पिंडों से बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल जैसे चट्टानी ग्रहों का निर्माण हुआ। हमारी पृथ्वी का जन्म हो चुका था, लेकिन यह वैसी बिलकुल नहीं थी जैसी आज है।
शुरुआती पृथ्वी एक शांत ग्रह नहीं, बल्कि आग का एक दहकता हुआ गोला थी। इसकी सतह पर ठोस ज़मीन नहीं, बल्कि खौलता हुआ लावा का महासागर था। वैज्ञानिक इस दौर को 'हेडियन युग' (Hadean Eon) कहते हैं, यानी 'नर्क जैसा समय'। उस समय लगातार उल्कापिंडों और छोटे ग्रहों की बारिश हो रही थी।
और फिर हुई हमारे सौर मंडल की सबसे बड़ी और हिंसक घटनाओं में से एक। आज से लगभग 4.5 अरब साल पहले, मंगल ग्रह के आकार का एक विशाल प्रोटो-प्लेनेट (proto-planet), जिसका नाम वैज्ञानिकों ने 'थिया' (Theia) रखा है, तेज़ रफ़्तार से हमारी युवा पृथ्वी से टकराया। यह टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा और पूरा का पूरा थिया अंतरिक्ष में बिखर गए। लावा और चट्टानों का मलबा पृथ्वी के चारों ओर एक छल्ले की तरह घूमने लगा।
पहले माना जाता था कि इस मलबे से चंद्रमा को बनने में लाखों साल लगे। लेकिन नासा (NASA) द्वारा किए गए हाल के सुपर कंप्यूटर सिमुलेशन (supercomputer simulation) एक नई और चौंकाने वाली कहानी बताते हैं। उनके अनुसार, यह पूरी प्रक्रिया शायद कुछ घंटों में ही पूरी हो गई थी! गुरुत्वाकर्षण ने उस गर्म मलबे को तेज़ी से एक साथ खींचा और हमारे चंद्रमा का जन्म हुआ। यह घटना सिर्फ़ चंद्रमा के निर्माण के लिए ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के भविष्य को आकार देने के लिए भी निर्णायक थी।
उस महा-टक्कर के बाद भी पृथ्वी लाखों सालों तक गर्म और उथल-पुथल से भरी रही। लेकिन धीरे-धीरे, बहुत धीरे-धीरे, यह ठंडी होने लगी। ज्वालामुखियों से निकली भाप और गैसों ने पृथ्वी के चारों ओर एक घना वायुमंडल बना दिया। जब पृथ्वी की सतह का तापमान थोड़ा कम हुआ, तो वायुमंडल में मौजूद भाप ने संघनित होकर बरसना शुरू किया।
यह कोई आम बारिश नहीं थी। यह लाखों सालों तक न रुकने वाली एक मूसलाधार बारिश थी, जिसने पूरी पृथ्वी को जलमग्न कर दिया। आग का गोला अब एक पानी का गोला बन चुका था। एक वैश्विक महासागर, जिसके नीचे अभी भी लावा उबल रहा था।
इन्हीं गर्म, रासायनिक रूप से भरपूर महासागरों में इतिहास की सबसे चमत्कारी घटना घटी। लगभग 4 अरब साल पहले, पानी की गहराइयों में जीवन की पहली चिंगारी उभरी। यह कोई बड़ा जीव नहीं, बल्कि एक-कोशिकीय (single-celled) बैक्टीरिया जैसा सूक्ष्म जीवन था। यह एक छोटी सी शुरुआत थी, लेकिन इसी ने भविष्य के हर पेड़, जानवर और इंसान की कहानी की नींव रखी।
इसी दौरान, पृथ्वी की सतह पर एक और क्रांतिकारी प्रक्रिया चल रही थी। पृथ्वी की ऊपरी परत, जिसे हम 'क्रस्ट' (crust) कहते हैं, एक ठोस टुकड़े में नहीं थी, बल्कि कई बड़ी-बड़ी प्लेटों में टूटी हुई थी। इन्हें 'टेक्टोनिक प्लेट्स' (Tectonic Plates) कहते हैं। ये प्लेटें नीचे मौजूद गर्म, पिघली हुई चट्टानों (मैग्मा) पर तैर रही थीं और लगातार हिल रही थीं।
जब ये प्लेटें टकरातीं, तो एक-दूसरे के नीचे धँस जातीं या ऊपर चढ़ जातीं, जिससे पृथ्वी पर पहले महाद्वीपों (Continents) का निर्माण हुआ। यह एक धीमी प्रक्रिया थी, जो आज भी जारी है। जिन चट्टानों से आज हमारा पिथौरागढ़ और पूरा हिमालय बना है, वे इन्हीं शुरुआती महाद्वीपों का हिस्सा थीं। वे अरबों साल पहले बनीं और पृथ्वी के गर्भ में दबी रहीं, सही समय का इंतज़ार करती रहीं, जब एक और महा-टक्कर (भारतीय और यूरेशियन प्लेट की) उन्हें आसमान की ऊँचाइयों तक पहुँचाएगी।
इस 4 अरब से 2 लाख वर्ष ईसा पूर्व के लंबे कालखंड ने वह मंच तैयार किया, जिस पर जीवन का नाटक खेला जाना था। ज़मीन बन चुकी थी, पानी आ चुका था और जीवन की शुरुआत हो चुकी थी। पिथौरागढ़ के बनने की कहानी का पहला, सबसे लंबा और सबसे महत्वपूर्ण अध्याय लिखा जा चुका था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ph2rddw
https://tinyurl.com/295wveg5
https://tinyurl.com/ycl46nu7
https://tinyurl.com/yqbjx2ad
https://tinyurl.com/26a52ajk
https://tinyurl.com/26vvuzmt