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रामपुरवासियों, आज हम एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं, जो सीधे हमारे बच्चों के स्वास्थ्य, विकास और भविष्य से जुड़ा हुआ है। हमारे शहर रामपुर और इसके आसपास के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में आज भी कई बच्चे अपने शुरुआती वर्षों में पर्याप्त देखभाल, पोषण और चिकित्सीय सहायता से वंचित रह जाते हैं। यह केवल व्यक्तिगत स्तर की समस्या नहीं है, बल्कि समाज और आने वाली पीढ़ियों के विकास पर भी गहरा प्रभाव डालती है। शिशु और बच्चों के स्वास्थ्य में इस कमी के कई कारण हैं - जन्म के समय चिकित्सीय सुविधाओं की कमी, सही समय पर टीकाकरण का अभाव, अल्पपोषण और माता-पिता में स्वास्थ्य जागरूकता की कमी। परिणामस्वरूप, बच्चों की प्रतिरक्षा कमजोर होती है, उन्हें संक्रमण और बीमारियों का सामना करना पड़ता है, और कई बार यह जीवन के लिए गंभीर खतरा बन जाता है। देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है और विकास के कई संकेत दिखाई दे रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद बच्चों की शुरुआती मौतों की संख्या उच्च बनी हुई है। यह स्थिति यह भी बताती है कि केवल आर्थिक विकास पर्याप्त नहीं है; इसके साथ ही सही स्वास्थ्य नीतियाँ, बाल पोषण कार्यक्रम, टीकाकरण और शिक्षा जैसी पहलें भी अत्यंत आवश्यक हैं। रामपुरवासियों के लिए यह समझना जरूरी है कि बच्चों का स्वस्थ विकास और जीवन की सुरक्षा केवल सरकारी प्रयासों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि समाज और परिवार की जागरूक भागीदारी भी आवश्यक है। इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि बाल मृत्यु दर के मुख्य कारण क्या हैं, स्वास्थ्य सेवाओं और विशेषज्ञों की कमी बच्चों के जीवन पर कैसे असर डालती है, टीकाकरण और पोषण कितने अहम हैं, और सरकारी व सामुदायिक प्रयास कैसे बच्चों के उज्जवल और स्वस्थ भविष्य की दिशा में योगदान दे सकते हैं।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि बाल मृत्यु दर के मुख्य कारण क्या हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपलब्धता बच्चों के जीवन पर कैसे असर डालती है, टीकाकरण और पोषण की अहमियत क्या है, और सरकारी और सामुदायिक प्रयास किस तरह बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। इस जानकारी से हम यह समझ पाएंगे कि रामपुर के बच्चों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए हमें किन सरल और व्यावहारिक कदमों की जरूरत है।
भारत में बाल मृत्यु दर की वास्तविकता
भारत में बाल मृत्यु दर आज भी एक गंभीर और चिंताजनक सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। हर मिनट लगभग एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है, और यह केवल व्यक्तिगत दुख ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। मातृ मृत्यु में लगभग 46 प्रतिशत और नवजात मृत्यु का 40 प्रतिशत जन्म या जन्म के पहले 24 घंटों के दौरान होती है। इसका मतलब यह है कि कई बच्चे जीवन की शुरुआत में ही गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में होने वाली प्रत्येक पांच मौतों में से एक भारत में होती है। यह स्थिति पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश और नेपाल की तुलना में कहीं अधिक गंभीर है। बाल मृत्यु दर की इतनी उच्च दर न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का संकेत देती है, बल्कि यह गरीबी, कुपोषण और शिक्षा की कमी जैसी सामाजिक समस्याओं को भी उजागर करती है।
अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य बजट का प्रभाव
भारत की अर्थव्यवस्था पिछले दो दशकों में काफी प्रगति कर चुकी है और यह G20 देशों में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। इसके बावजूद, स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटित बजट बेहद सीमित है। वर्तमान में केवल 1.1 प्रतिशत जीडीपी (GDP) स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खर्च होता है, जबकि सैन्य क्षेत्र पर 2.7 प्रतिशत खर्च किया जाता है। इस असमानता के कारण अधिकांश भारतीय निजी स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च नहीं उठा पाते, और केवल लगभग 5 प्रतिशत परिवारों के पास स्वास्थ्य बीमा है। स्वास्थ्य बजट की कमी के कारण प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में उपकरण, दवाइयाँ और विशेषज्ञों की कमी आम समस्या है। परिणामस्वरूप, बच्चों को समय पर सही चिकित्सा, टीकाकरण और स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती, जिससे उनकी जीवन सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता और विशेषज्ञों की कमी
स्वास्थ्य सेवाओं में असमान वितरण और बाल रोग विशेषज्ञों की कमी बाल मृत्यु दर को सीधे प्रभावित करती है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में बच्चों की आबादी अत्यधिक है, लेकिन अधिकांश बाल रोग विशेषज्ञ केवल बड़े शहरों में केंद्रित हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में 51 मिलियन (million) बच्चों के लिए केवल 2,200 बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं, जबकि ग्रामीण आबादी 77 प्रतिशत से अधिक है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञों की 82 प्रतिशत कमी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 63 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है। इस असमान वितरण के कारण ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में बच्चों को समय पर विशेषज्ञ देखभाल और इलाज नहीं मिल पाता। इससे छोटे बच्चों में गंभीर बीमारियाँ बढ़ती हैं और मृत्यु दर अधिक होती है।
टीकाकरण और वैक्सीन से संबंधित चुनौतियाँ
टीकाकरण की कमी भी भारत में बाल मृत्यु दर बढ़ने का एक बड़ा कारण है। डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टिटनेस (Diphtheria, Pertussis, and Tetanus - DPT) वैक्सीन (vaccine) का केवल 18 प्रतिशत बच्चों को पूरा कोर्स मिलता है। वहीं, केवल एक तिहाई बच्चों को एमएमआर (MMR - खसरा, कण्ठमाला और रूबेला) वैक्सीन का पूरा कोर्स मिल पाता है। पिछले आठ वर्षों में 2.9 मिलियन भारतीय बच्चे खसरे के टीके से चूक गए हैं। टीकाकरण में पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों की संख्या अधिक है, जिससे बीमारियों के प्रकोप और मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है। वैक्सीन की कमी न केवल बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है, बल्कि यह पूरे समुदाय में संक्रामक रोगों के फैलाव का खतरा भी बढ़ाती है।
कुपोषण और शुरुआती विकास पर प्रभाव
पहले 1,000 दिन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। गर्भावस्था के पहले चरण से लेकर बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक का यह समय उसकी मस्तिष्क क्षमता और शारीरिक वृद्धि के लिए निर्णायक होता है। यदि इस दौरान बच्चे को पर्याप्त पोषण और देखभाल नहीं मिलती, तो जीवन भर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ सकता है। भारत में कई बच्चे पोषण संबंधी आवश्यकताओं से वंचित हैं, जिससे उनकी शारीरिक वृद्धि, मानसिक विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित होती है। कुपोषण के समाधान के लिए मिनी आंगनवाड़ी केंद्र और कृषि कार्यकर्ताओं का योगदान महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, ताकि बच्चों और माताओं को पोषण संबंधी सहायता आसानी से मिल सके।
सरकारी और सामुदायिक प्रयास
भारत में बाल दिवस (14 नवंबर) बच्चों के अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। आंगनवाड़ी केंद्र और अन्य सरकारी पहलें बच्चों के पोषण और शिक्षा में योगदान करती हैं। एनजीओ (NGO) जैसे ‘सेव द चिल्ड्रन’ (Save the Children) भारत के 18 राज्यों और 120 देशों में बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। ये संगठन बच्चों की देखभाल सुनिश्चित करते हैं, समाज में जागरूकता फैलाते हैं और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर सुरक्षित और समर्थ वातावरण प्रदान करते हैं। इसके अलावा, 3एन दृष्टिकोण (3N - नीति, नियति और नेतृत्व) के माध्यम से बाल मृत्यु दर और कुपोषण को कम करने के लिए रणनीतियाँ बनाई जा रही हैं। इन प्रयासों से बच्चों को सुरक्षित, स्वस्थ और उज्जवल भविष्य देने में मदद मिलती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/s8pbdfkd
https://tinyurl.com/yvc6xtuk
https://tinyurl.com/2cym6wsu
https://tinyurl.com/yxz9p6yn
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