रामपुर - गंगा जमुना तहज़ीब की राजधानी












क्या रामपुर के लोग, सजावटी मत्स्य पालन उद्योग का लाभ उठा सकते हैं, और यदि हाँ, तो कैसे ?
मछलियाँ व उभयचर
Fishes and Amphibian
29-04-2025 09:26 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के कई घरों, कार्यालयों और दुकानों में एक्वेरियम (Aquarium) या मछलीघर होते हैं, जो उन स्थानों में आकर्षण और शांति जोड़ते हैं। इन टैंकों में गोल्डफ़िश (Goldfish), बार्ब (Barb), क्लाउनफ़िश (Clownfish), आदि मछलियां होती हैं, जो वास्तव में सजावटी मछली (Ornamental Fish) प्रजातियां हैं। इन्हें विशेष रूप से, उनकी सुंदरता के लिए पाला जाता है। सजावटी मछली पालन (Ornamental Fish Farming) , मछलीघरों और तालाबों के लिए सजावटी मछली प्रजातियों का प्रजनन कराना और पालन है। इसमें वाणिज्यिक व्यापार और पालतू पशु उद्योगों के लिए मछलियों का चयनात्मक प्रजनन, जल गुणवत्ता प्रबंधन और विपणन शामिल है। भारत का सजावटी मछली बाज़ार, 2025 से 2032 के दौरान, 10.12% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर पर बढ़ने का अनुमान है। यह 2024 में 160.12 मिलियन डॉलर से बढ़कर, 2032 में 346.24 मिलियन डॉलर तक बढ़ रहा है। तो आज, चलिए भारत में सजावटी मछली पालन के महत्व को समझें। इसके बाद, हम अपने देश में इस मछली पालन खेती की वर्तमान स्थिति का पता लगाएंगे। इसके अलावा, हम भारत में उच्चतम सजावटी मछली उत्पादक राज्यों पर चर्चा करेंगे। हम अपने देश में उत्पादित, विभिन्न सजावटी मछली प्रजातियों की भी जांच करेंगे। फिर हम, इस व्यवसाय की मुनाफ़ा क्षमता की खोज करेंगे। अंत में, हम भारत में सजावटी इस उद्योगके लिए मौजूद सब्सिडी और क्रेडिट सुविधाओं पर कुछ प्रकाश डालेंगे।
भारत में सजावटी मछली पालन खेती का महत्व:
सजावटी मत्स्य पालन, मीठे और समुद्री पानी की रंगीन मछलियों के प्रजनन और पालन से संबंधित है। हालांकि सजावटी मत्स्य पालन, सीधे भोजन और पोषण सुरक्षा में योगदान नहीं देता है, लेकिन यह ग्रामीण और उप-शहरी आबादी के लिए आजीविका और आय का स्त्रोत प्रदान करता है। विशेष रूप से महिलाओं और बेरोज़गार युवाओं को अंशकालिक गतिविधियों के रूप में, यह उद्योग महत्वपूर्ण आजीविका स्त्रोत प्रदान करता है। भारत में ये उद्योग छोटा, लेकिन जीवंत है, जिसमें काफ़ी वृद्धि की संभावना है। कम उत्पादन लागत और कम समय के भीतर उच्च उत्पादन, तथा स्वदेशी और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बढ़ती मांग, इस उद्योग के प्रमुख लाभ हैं। हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में सजावटी मछलियों की 400 समुद्री प्रजातियां और 375 मीठे पानी वाली प्रजातियां उपलब्ध हैं।
भारत में सजावटी मछली पालन की वर्तमान स्थिति:
भारत की सजावटी मछली पालन खेती, कुल सजावटी मछली व्यापार में लगभग 1% योगदान दे रही हैं। इन मछलियों का 54 टन की मात्रा पर निर्यात किया जाता है, 2020-21 में जिसका मूल्य 13.08 करोड़ रुपए था। ये आंकड़े मात्रा के संदर्भ में 66.55% और मूल्य के संदर्भ में, 20.59% की वृद्धि दर्ज करते हैं।
कौन से भारतीय राज्य, सजावटी मछली पालन में शामिल हैं ?
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल, भारत में सजावटी मछली पालन का मुख्य रूप से अभ्यास करते हैं। सजावटी प्रजातियों को, स्वदेशी और विदेशी प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। उत्तर-पूर्वी राज्यों, पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में संभावित तौर पर इन प्रजातियों का उपयोग किया जाता है। भारत का 90% निर्यात कोलकाता से होता है, और उसके बाद क्रमशः मुंबई (8%) और चेन्नई (2%) का स्थान आता है।
भारत में उत्पादित विभिन्न सजावटी मछली प्रजातियां:
उत्तर-पूर्व और दक्षिणी राज्यों में प्रमुख सजावटी मछली प्रजातियां – लोच (Loach), ईल, बार्ब, कैटफ़िश (Catfish) और गोबी (Goby) हैं।
खारे पानी की सजावटी मछली प्रजातियां – मोनोडैक्टाइलस अर्जेंटस (Monodactylus argentus), मोनोडैक्टाइलस सेबा (M. sebae) और स्कैटोफ़ैगस आर्गस (Scatophagus argus), भारतीय खारे जल में आम हैं और उन्हें एकत्र किया जा सकता है। पर्ल-स्पॉट, नारंगी क्रोमिड और भारतीय ग्लासफ़िश एम्बेसिस एस पी. जैसी मछलियों का भी कम खारे पानी में सफ़लतापूर्वक पालन किया गया है। Pearl-spot (Etroplus suratensis) Orange Chromid (E. maculatus) and Indian Glassfish Ambassis sp.
संभावित समुद्री सजावटी मछली प्रजातियां – क्लाउन फ़िश (Clownfish), डैमसेल फ़िश (Damselfish), मूरिश आइडल (Moorish Idol), लायन फ़िश (Lionfish), पैरट फ़िश (Parrotfish), बॉक्स फ़िश (Boxfish) या ट्रंक फ़िश (Trunkfish), मरीन एंजेल्स (Marine Angels), बटरफ्लाई फ़िश (Butterflyfish), क्लीनर व्रास (Cleaner wrasse), कार्डिनल फ़िश, (Cardinalfish) यूनिकॉन फ़िश (Unicornfish), रैबिट फ़िश (Rabbitfish), स्क्विरल फ़िश (Squirrelfish), स्कॉर्पियन फ़िश (Scorpionfish), ब्लेनीस (Blennies), सैंड–स्मेल्ट (Sand smelt) और सीहॉर्स (Seahorse), आदि हैं। भारतीय सजावटी मछली व्यापार, ज़्यादातर, मीठे पानी की मछलियों (90%) से संबंधित है, जिसमें से 98% का पालन किया जाता हैं, और 2% को प्राकृतिक आवासों से पकड़ा जाता है। शेष 10% समुद्री मछलियां हैं, जिनमें से 98% प्रजातियों को प्राकृतिक आवासों से पकड़ा जाता है, और 2% प्रजातियों का पालन किया जाता है। गोल्डफ़िश सबसे अधिक पसंदीदा सजावटी मछली है, और इसलिए इनका पालन भारतीय सजावटी मछली क्षेत्र में व्यापक है।
भारत में सजावटी मत्स्य पालन खेती में मुनाफ़े की क्षमता:
किसान अपनी क्षमता के अनुसार, छोटे से बड़े अलग-अलग पैमाने पर सजावटी मछलियों का उत्पादन शुरू कर सकते हैं। यदि कोई किसान एक छोटी इकाई स्थापित करना चाहता है, तो उसे शेड, मछली फ़ीड और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर 50,000–70,000 रुपए खर्च करना होगा। वह इससे 3,000-5,000 रुपए कमा सकता हैं। लगभग 1.25 लाख रुपए के निवेश से, 8,000–9,000 रुपए मासिक आय हो सकती है। यदि कोई 25 लाख रुपए निवेश के साथ, बड़े पैमाने पर ये व्यापार करता है, तो उसकी मासिक आय, 1.25–1.5 लाख रुपए हो सकती है।
सजावटी मत्स्य पालन खेती के लिए भारत में मौजूद सब्सिडी और क्रेडिट सुविधाएं:
हमारी सरकार रंगीन मछली पालन खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी दे रही है। महिलाओं के लिए, 60% सब्सिडी और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana (PMMSY)) के तहत, पुरुषों के लिए 40% सब्सिडी उपलब्ध है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में मीठे पानी की एक्वेरियम मछली का स्रोत : wikimedia
चलिए चलते हैं रामपुर के एक ऐतिहासिक सफ़र पर और समझते हैं यहाँ की वास्तुकला को और गहराई से
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
Colonization And World Wars : 1780 CE to 1947 CE
28-04-2025 09:31 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, हमारा शहर, ऐतिहासिक वास्तुकला और स्मारकों की समृद्ध विरासत का घर है, जो इसके शाही अतीत और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। क्या आप जानते हैं कि मध्ययुगीन इतिहास के अनुसार, रामपुर दिल्ली क्षेत्र का हिस्सा था, और बदायूँ और संभल ज़िलों के बीच विभाजित था। बाद में, मुगल काल की शुरुआत में, रोहिलखंड की राजधानी बदायूँ से बदलकर बरेली कर दी गई जिससे रामपुर का महत्व और बढ़ गया। रामपुर राज्य (Rampur State), ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य था। रामपुर राज्य, 15 तोपों की सलामी वाला राज्य था और इसकी स्थापना 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर अलेक्ज़ेंडर चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान (Faizullah Khan) ने की थी। फैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। उसके बाद ब्रिटिश संरक्षण के तहत यह एक समृद्ध राज्य बना रहा। तो आइए आज, रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में जानते हैं और नवाबों के अधीन, विशेष रूप से सैय्यद मुहम्मद सईद खान (Muhammad Said Khan) के संदर्भ में, रियासत के प्रशासन पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम नवाबी युग के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इस संदर्भ में, हम दुर्लभ पांडुलिपियों और ऐतिहासिक ग्रंथों के खजाने रामपुर रज़ा पुस्तकालय के महत्व पर चर्चा करेंगे और रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला का पता लगाएंगे।
रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास:
रोहिल्ला पठानों के 1772 में मराठों के खिलाफ़ सैन्य सहायता के लिए अवध के नवाब से लिये कर्ज़ को वापस देने से मुकरने पर, 1774-75 का रोहिल्ला युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने नवाबों की सहायता की और जिससे नवाबों ने रोहिल्लाओं को पराजित कर दिया और उनकी पूर्व राजधानी बरेली से खदेड़ दिया। इसके बाद 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर कर्नल चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान द्वारा रामपुर में रोहिल्ला राज्य की स्थापना की गई। फ़ैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। पहले नवाब ने शहर का नाम बदलकर अपने नाम पर 'फ़ैज़ाबाद' करने का प्रस्ताव रखा। लेकिन फ़ैज़ाबाद के नाम से जानी जाने वाली कई अन्य जगहें पहले से ही मौजूद थीं, इसलिए नाम बदलकर मुस्तफ़ाबाद उर्फ़ रामपुर कर दिया गया। नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने रामपुर पर 20 वर्षों तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान (Muhammad Ali Khan) ने सत्ता संभाली, लेकिन 24 दिनों के बाद रोहिल्ला नेताओं ने उनकी हत्या कर दी और गुलाम मुहम्मद खान (Ghulam Muhammad Khan) को नवाब घोषित किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस पर आपत्ति जताई और केवल 3 महीने और 22 दिनों के शासनकाल के बाद गुलाम मुहम्मद खान को हरा दिया। इसके बाद, मुहम्मद अली खान के बेटे अहमद अली खान को नया नवाब बनाया गया। उन्होंने 44 वर्षों तक शासन किया। उनके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए गुलाम मुहम्मद खान के पुत्र मुहम्मद सईद खान ने नए नवाब के रूप में पदभार संभाला। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ़ अली खान (Muhammad Yusef Ali Khan) ने सत्ता संभाली। उनका बेटा कल्ब अली खान 1865 में नया नवाब बना। रज़ा अली खान 1930 में आखिरी शासक नवाब बने। 1 जुलाई 1949 को रामपुर राज्य का भारत गणराज्य में विलय कर दिया गया।
नवाबों के अधीन रामपुर रियासत का प्रशासन:
नवाब मोहम्मद सईद खान के शासन के दौरान राज्य के प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार हुआ। उन्होंने न्याय की दीवानी और फ़ौजदारी अदालतों का आयोजन किया और राज्य में सरकार की एक ऐसी प्रणाली शुरू की जो पहले अज्ञात थी। इस शासन प्रणाली से भू-राजस्व संग्रह में सुधार के साथ-साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके शासनकाल में एक चौकी और सोलह थानों की स्थापित की गई, अस्तबल, बुग्घी-खाना और मोती मस्जिद जैसी कुछ नई इमारतें बनाई गईं, और अफ़गानपुर के पास और बाग बेनज़ीर के पास जैसी कुछ नई सड़कों का निर्माण किया गया। वह एक उत्कृष्ट विद्वान थे और तिब (यूनानी चिकित्सा) से अच्छी तरह परिचित थे। वह एक कवि और अच्छे गद्यकार थे। नवाब मोहम्मद सईद खान शिया संप्रदाय के अनुयायी थे। उन्होंने कोठी खुर्शीद मंज़िल के पास एक इमाम बाड़ा बनवाया, और सोने और चांदी के अलम और जरीह इमाम बाड़े को भेंट किए।
नवाबों के शासनकाल के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताएं:
रामपुर के शासकों का क्षेत्र की वास्तुकला पर विशिष्ट प्रभाव रहा है। यहां की इमारतें और स्मारक मुगल शैली की वास्तुकला की उपस्थिति का संकेत देते हैं। कुछ इमारतें बहुत पुरानी हैं और समय के साथ इनका बार-बार निर्माण किया गया है। रामपुर का किला यहां की उत्कृष्ट वास्तु कला का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें रज़ा पुस्तकालय या हामिद मंज़िल भी है, जो शासकों का पूर्व महल था। इसमें एशिया में प्राच्य पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है। इस किले में इमामबाड़ा भी है। इसके अलावा, यहां की जामा मस्जिद, रामपुर में पाई जाने वाली वास्तुकला के बेहतरीन नमूनों में से एक है। यह कुछ हद तक दिल्ली की जामा मस्जिद से मिलती-जुलती है। इसका निर्माण नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने करवाया था। इसकी वास्तुकला में मुगल वास्तुकला की छाप स्पष्ट है। मस्जिद में कई प्रवेश-निकास द्वार हैं। इसमें तीन बड़े गुंबद और चार ऊंची मीनारें हैं जिनमें सोने के शिखर हैं। इसमें एक मुख्य ऊंचा प्रवेश द्वार है जिसमें एक अंतर्निर्मित घंटाघर है जिसके ऊपर एक बड़ी घड़ी लगी हुई है जिसे ब्रिटेन से आयात किया गया था। यहां नवाब द्वारा बनवाए गए कई प्रवेश-निकास द्वार हैं, उदाहरण के लिए शाहबाद गेट, नवाब गेट, बिलासपुर गेट आदि।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय का महत्व:
रामपुर रज़ा पुस्तकालय में 17,000 पांडुलिपियों का एक विशाल संग्रह है, जिसमें 4413 चित्रों के साथ 150 सचित्र पांडुलिपियां और लगभग 83,000 मुद्रित पुस्तकें, एल्बम में 5,000 लघु चित्र, सुलेख के 3000 नमूने और 205 ताड़ के पत्ते शामिल हैं। कई दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथ अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अन्य भाषाओं में हैं। इस संग्रह में इतिहास, दर्शन, विज्ञान, साहित्य और धर्म सहित कई विषयों पर काम शामिल हैं। इस पुस्तकालय में कई दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह भी है, जिनमें लघु चित्र, सिक्के और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की अन्य वस्तुएँ शामिल हैं। इसमें एक संरक्षण प्रयोगशाला है जो इन कलाकृतियों को संरक्षित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए काम करती है कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहें।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला:
शानदार हामिद मंज़िल की आठ मीनारों में स्थित विश्वप्रसिद्ध रामपुर रज़ा पुस्तकालय भारत में बहुलवाद का एक महान प्रतीक है। पुस्तकालय की मीनार का निचला हिस्सा एक मस्जिद के आकार में बना है; इसके ठीक ऊपर का हिस्सा एक चर्च जैसा दिखता है, जबकि तीसरा हिस्सा एक सिख गुरुद्वारे के वास्तुशिल्प डिज़ाइन को दर्शाता है, और सबसे ऊपरी हिस्सा एक हिंदू मंदिर के आकार में बनाया गया है। समावेशिता की यह भावना लोगों को सद्भाव से रहने के लिए प्रेरित करती रही है। इस इमारत की आंतरिक वास्तुकला, यूरोपीय वास्तुकला से प्रेरित है। इसकी अनूठी वास्तुकला, पूर्ववर्ती रामपुर रियासत की प्रकृति और राजनीति के बारे में एक लंबी कहानी बताती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में रामपुर रज़ा पुस्तकालय से जामा मस्जिद का नज़ारा: स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
आइए, आनंद लें, धीमी गति में मोर की खूबसूरत प्राकृतिक क्रियाओं और मनमोहक नृत्य का
व्यवहारिक
By Behaviour
27-04-2025 09:10 AM
Rampur-Hindi

मोर, प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। अनेक धार्मिक कथाओं में इन्हें उच्च कोटी का दर्जा दिया गया है। इन्हें मुख्य रूप से अपने पंखों और सुंदर नृत्य लिए जाना जाता है। जब यह अपने जीवंत पंख फैलाते हैं और धीमे, सुंदर कदमों से चलते हैं, तो ऐसा लगता है, मानो जैसे कोई जीवित पेंटिंग सामने हो। इनके रंग प्रकाश में झिलमिलाते हैं और क्षण भर में आस-पास की बाकी सभी चीज़ें फीकी पड़ जाती हैं। रामपुर, जहां प्रकृति चुपचाप अपना विस्तार करती है, में कई लोगों ने खेतों में या पुराने बागों के पास मोर को नाचते देखा है। रंगों भरा यह सुंदर दृश्य, लोगों को लंबे समय तक याद रहता है, जब वे यह दृश्य देख चुके होते हैं। क्या आप जानते हैं कि हमारी पृथ्वी पर मोर की केवल तीन प्रजातियाँ हैं, जिनमें भारतीय मोर (जिसे नीला मोर भी कहा जाता है), हरा मोर (Green peafowl) और कांगो मोर (Congo peafowl) शामिल हैं। नीला मोर, भारतीय उपमहाद्वीप और श्रीलंका (Sri Lanka) के मूल निवासी हैं, जबकि हरा मोर, जिसे जावानीज़ मोर (Javanese peafowl) भी कहा जाता है, दक्षिण-पूर्व एशिया (southeast Asia) में इंडोनेशियाई के जावा द्वीप का मूल निवासी है। दूसरी ओर, कांगो मोर, अफ़्रीका (Africa) के कांगो बेसिन (Congo Basin) का मूल निवासी है। तो आइए, आज हम, कुछ धीमी गति के चलचित्रों के माध्यम से मोरों की खूबसूरत प्राकृतिक क्रियाओं को देखेंगे। साथ ही, हम कुछ ऐसे दृश्यों का आनंद लेंगे, जिनमें इन पक्षियों के पंखों के खुलने, इनके सुंदर नृत्य और इनकी छोटी उड़ानों को दिखाया गया है। इन क्लिप्स के ज़रिए, हम इस पक्षी की चाल, प्रतिक्रिया और इसके अद्भुत रंगों से रूबरू होंगे।
संदर्भ:
आखिर क्यों, आजकल रामपुर के कारीगरों में मोडल फ़ैब्रिक को लेकर बढ़ रही है दिलचस्पी?
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
26-04-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi

यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि पिछले कुछ सालों में रामपुर में मोडल फ़ैब्रिक (Modal Fabric) के प्रति रुचि बढ़ी है। यहां के स्थानीय कारीगर और व्यवसाय इसे मुलायम, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल साड़ियों और कपड़ों को बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। ये एक टेक्सटाइल फ़ाइबर है, जिसे बीच (Beech) के पेड़ की लकड़ी से निकाले गए सेल्यूलोज़ (Cellulose) से बनाया जाता है। इस कपड़े को बनाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव होते हैं, जिससे लंबे सेल्यूलोज़ अणु बनते हैं, जिनकी गुणता बेहतर होती है। यह भारत के कई क्षेत्रों में बनता है, जैसे एरोड (तमिलनाडु), सूरत (गुजरात), तिरुप्पुर (तमिलनाडु) और भीलवाड़ा (राजस्थान)। इसे 1950 के दशक में जापान में विस्कोस रेयान (Viscose Rayon) के बेहतर विकल्प के रूप में बनाया गया था। हाल के सालों में, इसकी नर्मी, टिकाऊपन और पर्यावरण के अनुकूल गुणों के कारण यह भारतीय कपड़ा उद्योग में लोकप्रिय हो गया है। अब कई भारतीय फ़ैशन डिज़ाइनर और कपड़ा निर्माता मोडल फ़ैब्रिक का उपयोग करके अनोखी और टिकाऊ साड़ियां बना रहे हैं, जो आधुनिक उपभोक्ताओं को पसंद आती हैं।
तो आज हम इस टेक्सटाइल फ़ाइबर के बारे में और जानेंगे। हम इसकी विशेषताओं और फायदों से शुरुआत करेंगे। फिर, हम यह जानेंगे कि भारत में ये फ़ैब्रिक कैसे बनाया जाता है। इसके बाद, हम इसके विभिन्न उपयोगों जैसे स्पोर्ट्सवेयर, अंतर्वस्त्र, तौलिये, बिस्तर चादरें, तकिए के खोल आदि के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम मोडल फ़ैब्रिक से बने कपड़ों की देखभाल और रखरखाव से संबंधित कुछ टिप्स भी देंगे।
मोडल फ़ैब्रिक के क्या फायदे हैं?
- खिंचाव वाला: इसका लचीलापन इसे बहुत ही आरामदायक बनाता है। इस फ़ैब्रिक का इस्तेमाल उन कपड़ों में किया जाता है जिन्हें आसानी से खिंचाव और ढ़ीला किया जा सके, जैसे टी-शर्ट और खेलकूद के कपड़े। इसकी यह विशेषता पहनने के अनुभव को और भी आरामदायक बनाती है।
- सांस लेने योग्य: इस फ़ैब्रिक के कपड़े बहुत सांस लेने योग्य होते हैं, यानी इनसे हवा अच्छी तरह से गुजरती है। इस कारण से यह खेलकूद के कपड़े और रोज़मर्रा के कपड़े पहनने के लिए आदर्श है, क्योंकि ये शरीर से पसीना अवशोषित कर उसे सूखा रखते हैं, और शरीर को ठंडा रखते हैं।
- पानी को सोखने वाला: यह सूती कपड़े से 50% ज़्यादा पानी सोखता है। इसके माइक्रो-पोर्स कपड़े के अंदर पानी और पसीने को अच्छी तरह से सोख लेते हैं। इससे यह आरामदायक होता है और विशेष रूप से गर्मियों में पसीने को जल्दी सूखा देता है।
- टिकाऊ और मजबूत: यह फ़ैब्रिक बहुत मज़बूत होता है, क्योंकि यह लंबी और सघन रेशों से बना होता है। इनकी मज़बूत बुनाई के कारण यह रोज़मर्रा के उपयोग के लिए सही होता है, जैसे कि घर के कपड़े, बेडशीट, और अन्य घरेलू सामान। इसके मजबूत होने की वजह से यह बार-बार धोने के बाद भी अपनी गुणवत्ता बनाए रखता है।
- पर्यावरण के अनुकूल: इसे उन पौधों से तैयार किया जाता है जो आसानी से उगते हैं और पुनः उत्पन्न होते हैं। इसके उत्पादन में अन्य रेज़िन की तुलना में कम रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे यह पर्यावरण के लिए कम हानिकारक है। इसके उत्पादन की प्रक्रिया में कम पानी और ऊर्जा की खपत होती है, जिससे यह टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प है।
- पिलिंग नहीं करता: यह फ़ैब्रिक पर पिलिंग (यानि कपड़े के रेशे का उठकर इकट्ठा होना) नहीं होता, इसलिए यह लंबे समय तक नया सा दिखता है। यह विशेषता इसे रोज़मर्रा के पहनने के लिए आदर्श बनाती है, क्योंकि इसके कपड़े में कोई उभरे हुए बुरे धब्बे नहीं होते हैं, और इसका चिकना फिनिश उसे आकर्षक बनाए रखता है।
- सिकुड़ता नहीं है: मोडल फ़ैब्रिक, अन्य रेज़िन की तुलना में धुलाई के दौरान कम सिकुड़ता है। यह फ़ैब्रिक बहुत ही टिकाऊ होता है और अपने आकार और आकार को बनाए रखने के लिए बहुत कम जोखिम होता है, जिससे यह धोने के बाद भी पहले जैसा रहता है।
भारत में मोडल फ़ैब्रिक कैसे बनाया जाता है?
मोडल फ़ैब्रिक के निर्माण की प्रक्रिया पेड़ों की कटाई से शुरू होती है, जिनसे सेलूलोज़ (cellulose) निकाला जाता है। इन पेड़ों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है, जो आकार में लगभग डाक टिकट जितने होते हैं। इन टुकड़ों को फिर कारखाने में ले जाया जाता है, जहाँ इन्हें शुद्ध किया जाता है ताकि इनमें से केवल सेलूलोज़ निकाला जा सके। शुद्धिकरण के बाद बची हुई लकड़ी को हटा दिया जाता है।
इसके बाद, निकाले गए सेलूलोज़ को चादरों (sheets) के रूप में ढाला जाता है। इन चादरों को सोडियम हाइड्रॉक्साइड (Sodium hydroxide (जिसे कास्टिक सोडा भी कहते हैं)) के घोल में डुबोया जाता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मोडल रेज़िन बनाने में बहुत कम मात्रा में सोडियम हाइड्रॉक्साइड का उपयोग किया जाता है, जबकि विस्कोस रेज़न के निर्माण में इसकी मात्रा अधिक होती है। इस कारण मोडल फ़ैब्रिक के निर्माण में कम ज़हरीले कचरे (toxic waste) का उत्पादन होता है, जिससे यह पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प बनता है।
मोडल फ़ैब्रिक का उपयोग कहाँ होता है?
1. फ़ैशन इंडस्ट्री में:
- लॉन्जरी और अंतर्वस्त्र: इसकी मुलायम और नमी सोखने वाली खासियत इसे इनरवियर के लिए बेहतरीन विकल्प बनाती है।
- स्पोर्ट्सवेयर: यह सांस लेने योग्य (breathable) होता है, जिससे यह जिम और खेलकूद के कपड़ों के लिए आदर्श बनता है।
- कैज़ुअल वियर: टी-शर्ट, ड्रेसेस और लाउंजवियर में इसका इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह हल्का और लग्ज़री अहसास देता है।
2. होम टेक्सटाइल्स में:
- बेड लिनेन और पिलो कवर: इसकी चिकनी और मुलायम बनावट के कारण इसे प्रीमियम बिस्तर के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- तौलिये: इसकी उच्च अवशोषण क्षमता इसे तौलियों के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाती है।
मोडल फ़ैब्रिक से बने कपड़ों की देखभाल कैसे करें?
मोडल फ़ैब्रिक बहुत ही मुलायम होता है, लेकिन इसे मशीन में धोया और सुखाया जा सकता है। हालांकि, हमेशा कपड़े के लेबल पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़ें। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इसे किसी भी तापमान के पानी में धोया जा सकता है, लेकिन ठंडे पानी में हल्के मोड पर धोना सबसे अच्छा होता है।
- हमेशा हल्के डिटर्जेंट का उपयोग करें और ऑक्सीजन-बेस्ड ब्लीच ही लें, क्योंकि क्लोरीन-बेस्ड ब्लीच कपड़े के लिए बहुत कठोर हो सकता है।
- नाज़ुक कपड़ों को मेश बैग में डालकर धोना बेहतर होता है, ताकि वे सुरक्षित रहें।
- सुखाने के लिए मध्यम या कम तापमान का उपयोग करें और कपड़ों को हल्का गीला रहने पर ही ड्रायर से निकाल लें। इससे कपड़ों में सिलवटें नहीं पड़ेंगी और वे लंबे समय तक नए जैसे बने रहेंगे।
संदर्भ
बीच (Beech) के पेड़ की जड़ों और सेल्यूलोज़ आधारित टेक्सटाइल फ़ाइबर का स्रोत : wikimedia
रामपुर में मलेरिया का प्रकोप कम करने के लिए क्या किया जा सकता है ?
कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
Bacteria,Protozoa,Chromista, and Algae
25-04-2025 09:10 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के कई निवासियों ने या तो खुद मलेरिया (Malaria) का दंश झेला होगा या फिर अपनी जान-पहचान में किसी व्यक्ति को इस घातक बिमारी से जूझते ज़रूर देखा होगा! यक़ीनन, मलेरिया एक गंभीर और संभावित जानलेवा बीमारी है। यह बीमारी, संक्रमित मादा एनोफ़िलीज़ (Female Anopheles) मच्छर के काटने से फैलती है! 2023 में, दुनियाभर में 263 मिलियन मलेरिया के मामले और 597,000 मौतें दर्ज की गईं। इसमें सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र अफ़्रीकी क्षेत्र था, जो 94% मामलों और 95% मौतों के लिए ज़िम्मेदार था। इस संबंध में अच्छी ख़बर यह है कि साल 2024 में भारत में मलेरिया के मामलों और मौतों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। भारत में 2017 की तुलना में मलेरिया के मामलों में 69% और मौतों में 68% की गिरावट देखी गई। आज के इस लेख में हम भारत में मलेरिया की वर्तमान स्थिति को देखेंगे। इसके बाद, हम मलेरिया के विभिन्न चरणों में विकसित लक्षणों पर चर्चा करेंगे। साथ ही हम मलेरिया के इलाज को भी समझेंगे। अंत में, हम मलेरिया से बचाव के लिए ज़रूरी सावधानियों को भी जानेंगे।
मलेरिया एक जानलेवा बीमारी होती है, जो प्लास्मोडियम (Plasmodium) नामक परजीवी के कारण होती है। यह परजीवी कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से कुछ बेहद घातक साबित हो सकते हैं।
आइए अब आपको मलेरिया के चार प्रमुख परजीवियों से रूबरू कराते हैं:
- प्लास्मोडियम फ़ाल्सीपेरम (Plasmodium Falciparum) – यह सबसे अधिक घातक और दुनिया में सबसे व्यापक रूप से फैलने वाला मलेरिया परजीवी है। यह ख़ासतौर पर उप-सहारा अफ़्रीका में बीमारी का मुख्य कारण बनता है। यह मस्तिष्क और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुँचा सकता है! मलेरिया से होने वाली अधिकतर मौतों के लिए यही परजीवी ज़िम्मेदार होता है।
- प्लास्मोडियम विवैक्स (Plasmodium Vivax) – यह पी. फ़ाल्सीपेरम (P. falciparum) जितना घातक नहीं होता, लेकिन इसे इन सभी में सबसे तेज़ी से फैलने वाला परजीवी माना जाता है। एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ़्रीका के कुछ हिस्सों में यह सबसे अधिक पाया जाता है। इसकी ख़ासियत यह है कि यह लीवर में निष्क्रिय तौर पर भी रह सकता है, इसकी वजह से संक्रमण, महीनों या वर्षों बाद दोबारा भी हो सकता है।
- प्लास्मोडियम मलेरिया (Plasmodium Malariae) – यह परजीवी, आमतौर पर हल्के मलेरिया का कारण बनता है। यह मुख्य रूप से अफ़्रीका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है। यह परजीवी शरीर में लंबे समय तक रह सकता है और कभी-कभी बिना किसी स्पष्ट लक्षण के भी मौजूद रहता है।
- प्लास्मोडियम ओवेल (Plasmodium Ovale) – यह परजीवी, पी. विवैक्स (P. vivax) के समान ही काम करता है और लीवर में निष्क्रिय रह सकता है। यह एक बार संक्रमण ख़त्म होने के बाद भी दोबारा उभर सकता है। यह मुख्य रूप से पश्चिमी अफ़्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में पाया जाता है।
1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब मलेरिया देश की सबसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में से एक था। हर साल लगभग 7.5 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में आते थे, और क़रीब 8 लाख लोगों की जान चली जाती थी। लेकिन समय के साथ हालात बदल गए। 2023 तक मलेरिया के मामलों में 97% की कमी दर्ज की गई है। आज देश में हर साल मलेरिया के सिर्फ़ 20 लाख मामले दर्ज किए जाते हैं! साथ ही मौतों की संख्या भी घटकर मात्र 83 रह गई है। इतना ही नहीं, साल 2023 में देश के 122 ज़िलों में मलेरिया का एक भी मामला नहीं देखा गया था। यह वाक़ई में भारत की एक बड़ी उपलब्धि है!
आइए अब मलेरिया के विभिन्न लक्षणों और चरणों को समझने की कोशिश करते हैं! मलेरिया के लक्षण अलग-अलग चरणों में विकसित होते हैं।
इसके तीन प्रमुख चरण होते हैं:
- शीत अवस्था (पहला चरण): यह चरण 15 से 60 मिनट तक रहता है। इस दौरान मलेरिया परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें नष्ट कर देता है। इसके तहत निम्नलिखित दिक्क़तें हो सकती हैं:–
– बुखार और ठंड लगना।
– कंपकंपी और दाँत किटकिटाना।
– साँस लेने में दिक़्क़त।
– उच्च रक्तचाप और नाड़ी का तेज़ हो जाना।
– शरीर ठंडा पड़ जाना।
– मतली, उल्टी और बार-बार पेशाब आना। - गर्म अवस्था (दूसरा चरण): पहले चरण के 2 घंटे बाद यह अवस्था शुरू होती है। इसके तहत निम्नलिखित दिक़्क़तें हो सकती हैं:–
– तेज़ बुखार और शरीर गर्म हो जाना।
– साँस फूलना और मुँह पीला पड़ना।
– त्वचा और चेहरा लाल होना।
– आँखों में दर्द और तेज़ सिरदर्द।
– मतली, उल्टी और दस्त।
– बेचैनी और तेज़ प्यास लगना। - पसीना आने वाला मलेरिया (तीसरा चरण): दूसरे चरण के 1 घंटे बाद यह अवस्था शुरू होती है। इसके तहत निम्नलिखित दिक़्क़तें हो सकती हैं:–
– शरीर से पसीना आना शुरू होता है, पहले माथे पर, फिर पूरे शरीर में।
– बुखार तेज़ी से कम होने लगता है।
– रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
– शरीर में अत्यधिक थकान महसूस होती है और नींद आ जाती है।
यदि मलेरिया का समय पर इलाज न किया गया, तो यह हमारे लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर सकता है। इसकी वजह से शरीर के अंगों को नुक़सान पहुँचने का ख़तरा रहता है और कुछ मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसलिए, जैसे ही मलेरिया के लक्षण दिखें, तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेना ज़रूरी है।
मलेरिया का इलाज कैसे किया जाता है ?
डॉक्टर, मरीज़ की स्थिति के अनुसार उचित मलेरिया रोधी दवाएँ लिखते हैं। ये दवाएँ, उस प्लास्मोडियम परजीवी को नष्ट करने में मदद करती हैं, जो मलेरिया फैलाने के लिए ज़िम्मेदार होता है। हालाँकि, कुछ परजीवी, दवाओं के प्रति प्रतिरोधी ( Resistant) भी हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर सही दवा का चयन करते हैं।
मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्रमुख दवाएँ हैं:
✔ एटोवाक्वोन (Atovaquone)
✔ आर्टेमिसिनिन आधारित दवाएँ (Artemisinin-based drugs) (जैसे आर्टेमीथर (Artemether) और आर्टेसुनेट (Artesunate))
✔ क्लोरोक्वीन (Chloroquine)
✔ डॉक्सीसाइक्लिन (Doxycycline)
✔ मेफ़्लोक्वीन (Mefloquine)
✔ क्विनीन (Quinine)
✔ प्राइमाक्वीन (Primaquine)
मलेरिया से बचने के लिए आप भी निम्नलिखित सावधानियाँ भी अपना सकते हैं:
- मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाएँ – शरीर के खुले हिस्सों पर डी ई ई टी (N,N-diethyl-meta-toluamide ) युक्त क्रीम लगाएँ।
- मच्छरदानी का इस्तेमाल करें – सोते समय बिस्तर पर मच्छरदानी लगाएँ, खासकर उन इलाक़ों में जहाँ मलेरिया का खतरा अधिक है।
- खिड़कियों और दरवाज़ों पर जाली लगाएँ, ताकि मच्छर घर के अंदर न आ सकें।
- कीट विकर्षक ( Insect Repellent ) का प्रयोग करें – कपड़ों, मच्छरदानियों, टेंट और स्लीपिंग बैग पर पर्मेथ्रिन नामक कीटनाशक लगाएँ।
- शरीर को ढककर रखें – लंबी पैंट और पूरी बाज़ू के कपड़े पहनें ताकि मच्छर काट न सकें।
मलेरिया एक गंभीर बीमारी है, लेकिन सही दवाओं और सावधानियों से इसे रोका और ठीक किया जा सकता है। यदि आप मलेरिया प्रभावित क्षेत्र में रहते हैं या यात्रा कर रहे हैं, तो बचाव के उपायों को अपनाना बेहद ज़रूरी है। याद रखें: सही समय पर इलाज और सतर्कता ही मलेरिया से बचाव का सबसे कारगर तरीक़ा है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : wikimedia
जानिए, रामपुर का औद्योगिक कार्यबल, भविष्य में रोबोट्स की मदद कैसे ले सकता है ?
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
24-04-2025 09:24 AM
Rampur-Hindi

भारत में आज रोबोटिक्स (Robotics) उद्योग, तेज़ विकास का अनुभव कर रहा है। 2025 में 485.21 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित बाज़ार मूल्य और 8.18% (Compound annual growth rate (CAGR) 2025-2029) की अनुमानित वार्षिक वृद्धि दर के साथ, यह देश के मुख्य उद्योगों के साथ होड़ में है। इंटरनेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ रोबोटिक्स (International Federation of Robotics (IFR)) द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट – वर्ल्ड रोबोटिक्स 2024 (World Robotics 2024) के निष्कर्षों के अनुसार, सेवा रोबोट्स, भारतीय बाज़ार पर हावी है, और अब भारत वार्षिक रोबोट प्रतिष्ठानों में विश्व स्तर पर सातवें स्थान पर है। जबकि देश के प्रमुख शहर, औद्योगिक रोबोट्स को अपना रहें हैं, हमारे रामपुर जैसे छोटे क्षेत्र, इस परिवर्तन से काफ़ी हद तक दूर हैं। हालांकि, रामपुर का औद्योगिक कार्यबल, भविष्य के स्वचालन और कौशल विकास की पहल से लाभान्वित हो सकता है। इसलिए आज, हम भारत के रोबोटिक्स उद्योग की वर्तमान स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा, हम अपने देश में औद्योगिक रोबोटिक्स के विकास को चलाने वाले प्रमुख उद्योगों का पता लगाएंगे। उसके बाद, हम भारतीय रोबोटिक्स उद्योग के सामने आने वालीं कुछ प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे। आगे बढ़ते हुए, हम इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक, कुछ कदमों और उपायों के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम भारत की कुछ सबसे महत्वपूर्ण रोबोटिक्स कंपनियों की खोज करेंगे।

भारत के रोबोटिक्स उद्योग की वर्तमान स्थिति:
भारत में औद्योगिक रोबोट्स की बिक्री, 2023 में स्थापित 8,510 इकाइयों के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गई थी। यह 2022 में 5,353 इकाइयों की तुलना में 59% की वृद्धि है। 2018 के बाद से औद्योगिक रोबोट्स का परिचालन स्टॉक, लगभग दोगुना हो गया है, जो 2023 में 44,958 इकाइयों तक पहुंच गया है। यह 2018 के बाद से 14% की औसत वार्षिक वृद्धि दर का प्रतिनिधित्व कर रहा है।
2023 में ऑटोमोटिव उद्योग में 3,551 रोबोट इकाइयों की स्थापना थी। कार निर्माताओं और कार खंड आपूर्तिकर्ताओं ने इस विकास में योगदान दिया। यह क्षेत्र, 42% की बाज़ार हिस्सेदारी के लिए ज़िम्मेदार है। 408 इकाइयों के साथ, भारत में सामान्य रोबोट उद्योग का नेतृत्व, रबर और प्लास्टिक उद्योग द्वारा किया जाता है। जबकि, धातु उद्योग में 2023 में 329 इकाइयों पर, रोबोट्स की स्थापना स्थिर रही।
भारत में औद्योगिक रोबोटिक्स के विकास के लिए ज़िम्मेदार प्रमुख उद्योग:
मोटर संबंधी उद्योग, स्वास्थ्य देखभाल, औषधिनिर्माण, प्लास्टिक, धातु, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, भारत में औद्योगिक रोबोटिक्स के प्रमुख अंतिम उपयोगकर्ता हैं। मोटर वाहन उद्योग, औद्योगिक रोबोट्स का प्रमुख उपयोगकर्ता रहा है। मोटर वाहन निर्माता, उत्पादकता में सुधार के लिए अपने उत्पादन संयंत्रों में, स्वचालन समाधान अपनाने के लिए उत्सुक हैं। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और स्वदेशी मोटर वाहन निर्माताओं की मज़बूत उपस्थिति ने, देश में औद्योगिक रोबोटिक्स की मांग को बढ़ावा दिया है। टाटा मोटर्स लिमिटेड, महिंद्रा और महिंद्रा लिमिटेड, और मारुति सुज़ुकी लिमिटेड जैसे विभिन्न मोटर वाहन निर्माताओं ने, रोबोट्स के स्वदेशी उत्पादन को मज़बूत किया है।
प्लास्टिक, धातु, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, भोजन और दवा सहित सामान्य विनिर्माण उद्योगों से भी, आज औद्योगिक रोबोटिक्स की मांग बढ़ रही है। स्वास्थ्य देखभाल उद्योग भी रोबोटिक्स के प्रमुख उपयोगकर्ताओं में से एक के रूप में उभरा है। विशेष रूप से अस्पताल के अनुप्रयोगों, शल्य-चिकित्सा, रोग निदान और पुनर्वास स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में, काफ़ी रोबोट्स की उपस्थिति हैं।

भारतीय रोबोटिक्स पारिस्थितिकी तंत्र में प्रमुख चुनौतियां:
•तकनीकी सीमाएं:
वर्तमान में, मुख्य रोबोटिक प्रौद्योगिकियों में सफ़लताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले मूलभूत अनुसंधान, भारत में प्रारंभिक चरणों में है।
•निवेश:
आयातित हार्डवेयर घटकों और प्रशिक्षण कर्मियों की खरीद की लागत के कारण, आधुनिक रोबोटिक्स तकनीकों को अपनाने की लागत अधिक है।
•कुशल कार्यबल:
कुशल संसाधनों और तकनीकी विशेषज्ञता की कमी, भारत में रोबोटिक्स उद्योग की वृद्धि को बाधित करती है, क्योंकि रोबोटिक्स एक बहु-विषयक क्षेत्र है।
•मानकों की कमी:
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी रोबोटिक्स या संबद्ध प्रौद्योगिकियों के लिए, समर्पित कानून की अनुपस्थिति “गोपनीयता और सुरक्षा जोखिमों” को जोड़ती है, जो रोबोटिक्स को व्यापक रूप से अपनाने में बाधा डालती है।
भारत में रोबोटिक्स उद्योग को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए, आवश्यक कदम और उपाय:
1.) रोबोटिक ऑटोमेशन (Robotic Automation) को मज़बूत करना:
भारत को आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के साथ, संमिलन के माध्यम से, मिशन मोड ‘मूनशॉट परियोजनाओं (Moonshot projects)’ के माध्यम से महत्वाकांक्षी अनुसंधान करना चाहिए।
2.) कुशलता को बढ़ाना:
रोबोटिक्स में समर्पित इंजीनियरिंग डिग्री, भारत के सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट कार्यक्रमों के लिए आवश्यक है।
3.) वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
निजी हितधारकों के सहयोग से, सरकार को भारतीय रोबोटिक्स पारिस्थितिकी तंत्र की नींव बनाने के लिए, एक मज़बूत अनुसंधान और विकास का पोषण करना चाहिए।
4.) संस्थागत ढांचा:
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and IT) के तहत आने वाली संस्थागत स्वतंत्र एजेंसियों को पूरे रोबोटिक्स उद्योग के साथ मिलकर रोबोटिक्स पर राष्ट्रीय रणनीति के कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करना चाहिए।

भारत की कुछ सबसे बड़ी रोबोटिक्स कंपनियां:
1.) डिफ़ैक्टो रोबोटिक्स और स्वचालन (DiFACTO Robotics and Automation):
बैंगलोर में अपने मुख्यालय के साथ, डिफ़ैक्टो रोबोटिक्स और ऑटोमेशन, टर्नकी इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन समाधान (Turnkey industrial automation solutions) का निर्माण करते हैं। इसमें बॉडी-इन-वाइट वेल्डिंग, मशीन टेंडिंग, सीलिंग, फाउंड्री और प्लास्टिक कटिंग के साथ-साथ, ऑन-साइट सेवाएं शामिल हैं।
2.) ग्रे ऑरेंज (Grey Orange):
ग्रे ऑरेंज खुदरा विक्रेताओं, गोदाम ऑपरेटरों और तृतीय-पक्ष लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं के लिए, रोबोटिक्स-आधारित स्वचालन प्रणाली बनाता है। अपने विक्रेता-एग्नोस्टिक ऑर्केस्ट्रेशन प्लेटफ़ॉर्म (Vendor-agnostic orchestration platform) के माध्यम से, या कंपनी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस-चालित क्लाउड सॉफ़्टवेयर (Cloud software) का उपयोग करती है।
3.) Tata Automation Limited (TAL):
टाटा ऑटोमेशन लिमिटेड विनिर्माण समाधान, टाटा समूह का रोबोटिक भाग है। इसने 2016 में देश का पहला औद्योगिक-आर्टिकुलेटेड रोबोट (Industrial-articulated robot) – टाल ब्रेबो (TAL Brabo) लॉन्च किया। तब से इन्होंने रोबोट वेल्डिंग, लेज़र-कटिंग, हैंडलिंग और पिक-एंड-प्लेस सॉल्यूशंस तथा बॉडी-इन-वाइट इंटीग्रेटेड वेल्डिंग इकाइयों को तैनात किया है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Flickr
एआई व आईओटी आधारित स्मार्ट सिंचाई प्रणाली से दक्षता में सुधार ला सकते हैं रामपुर के किसान
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
23-04-2025 09:39 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही कृषि आजीविका का प्रमुख माध्यम रही है, लेकिन वर्तमान में बढ़ती पर्यावरणीय चिंताओं के कारण, सतत कृषि की ओर एक लाभदायक बदलाव देखा जा रहा है। सतत कृषि मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने और प्रदूषण को कम करने के लिए फ़सल चक्र, जैविक उर्वरक और जल संरक्षण जैसी पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं का उपयोग करने पर केंद्रित है। इससे जैव विविधता की रक्षा करने, रासायनिक उपयोग को कम करने और दीर्घकालिक उत्पादकता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। सतत कृषि की प्रौद्योगिकी-आधारित विधियों को अपनाकर, किसान पर्यावरण की रक्षा करते हुए स्वस्थ फ़सलें उगा सकते हैं, संसाधनों की बचत कर सकते हैं और अपनी कमाई में सुधार कर सकते हैं। तो आइए, आज प्रौद्योगिकी के माध्यम से सतत कृषि पद्धतियों और नवाचारों को अपनाकर, कैसे अपनी दक्षता में सुधार कर सकते हैं, इस बात पर चर्चा करते हैं। इसके साथ ही, हम कृषि में स्मार्ट सिंचाई के बारे में जानेंगे जिसमें पानी के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए IoT (Internet of Things) का उपयोग किया जाता है। इसके बाद, हम फ़सल वृद्धि को बढ़ाने के लिए स्मार्ट ग्रीनहाउस में IoT के प्रयोग के बारे में जानेंगे। अंत में, हम कृषि अपशिष्ट को कम करने, खेती को अधिक टिकाऊ बनाने में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और IoT की भूमिका देखेंगे।
कैसे प्रौद्योगिकी कृषि में स्थिरता को बढ़ावा दे रही है:
- सटीक संसाधन प्रबंधन: एआई और IoT प्रौद्योगिकियां पानी, उर्वरक और कीटनाशकों के सटीक अनुप्रयोग को सुनिश्चित करती हैं, जिससे अपशिष्ट और पर्यावरणीय प्रभाव कम होता है।
- कार्बन पदचिन्ह में कमी: स्मार्ट कृषि पद्धतियों से ईंधन के उपयोग को अनुकूलित करके और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करके, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने में मदद मिलती है।
- जैव विविधता संरक्षण: उन्नत निगरानी प्रणालियों से किसानों को उनकी भूमि पर जैव विविधता की रक्षा करने और उनके विकास में मदद मिलती है।
- जल संरक्षण: एआई-सहायक स्मार्ट सिंचाई प्रणाली और सूखा प्रतिरोधी फसल किस्में, जल संसाधनों के संरक्षण में मदद करती हैं।
कुशल कृषि के लिए IoT आधारित स्मार्ट सिंचाई प्रणाली:
'इंटरनेट ऑफ थिंग्स' (IoT) का उपयोग करने वाली स्मार्ट सिंचाई प्रणाली ने अभूतपूर्व नियंत्रण और दक्षता प्रदान करके कृषि में क्रांति ला दी है। इन प्रणालियों में पानी के अनुकूलित उपयोग के लिए वास्तविक समय डेटा और स्वचालित पारंपरिक सिंचाई विधियों की दक्षता को बढ़ाने के लिए IoT तकनीक का उपयोग किया जाता है।
IoT आधारित स्मार्ट सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता:
ऐसे युग में जहां पानी की कमी एक बढ़ती हुई चिंता का विषय है, IoT आधारित स्मार्ट सिंचाई प्रणालियां जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये प्रणालियां किसानों को मिट्टी की नमी के स्तर और मौसम की स्थिति की निगरानी करने में सक्षम बनाती हैं, जिससे पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित होता है। आज की दुनिया में जहां पर्यावरणीय स्थिरता महत्वपूर्ण है, कुशल जल प्रबंधन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है। पारंपरिक सिंचाई पद्धतियों से अक्सर अत्यधिक पानी भर जाता है, जिससे अनावश्यक पानी की बर्बादी होती है।
स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों म मिट्टी की नमी पर वास्तविक समय डेटा प्रदान किया जाता है, जिससे केवल अनुकूलित सिंचाई होती है। पारंपरिक प्रणालियों में असमान जल वितरण एक आम समस्या है। स्मार्ट सिंचाई प्रणालियां यह सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हैं कि पानी खेत या बगीचे के हर हिस्से तक समान रूप से पहुंचे, जिससे पौधों के इष्टतम विकास को बढ़ावा मिले। बाढ़ जैसी आपदा स्थितियों में अत्यधिक जल प्रवाह उपजाऊ ऊपरी मिट्टी को बहा सकता है, जिससे कृषि भूमि का दीर्घकालिक क्षरण हो सकता है। स्मार्ट सिंचाई प्रणाली बेहतर जल प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से मिट्टी के कटाव को कम करने में योगदान दे सकती है। इसके अलावा, सिंचाई की मैन्युअल रूप से निगरानी करने का कार्य समय लेने वाला हो सकता है जिसमें त्रुटियों की संभावना भी बढ़ जाती है। स्मार्ट प्रणाली से यह प्रक्रिया स्वचालित हो जाती है, जिससे उपयोगकर्ता दूर से सिंचाई कार्यक्रम की निगरानी और नियंत्रण कर सकते हैं, और किसानों और बागवानों पर बोझ कम हो जाता है।
स्मार्ट ग्रीनहाउस बाज़ार में IoT की भूमिका:
ग्रीनहाउस बाज़ार में, IoT प्रौद्योगिकियां कृषि में क्रांति ला रही हैं। पर्यावरणीय स्थितियों पर वास्तविक समय के डेटा से सटीक कृषि को लाभ होता है, जिससे समय पर सूचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है। स्वचालित जलवायु नियंत्रण से इष्टतम विकास स्थितियों को बढ़ावा मिलता है। संसाधन प्रबंधन से सटीक सिंचाई और उर्वरक के माध्यम से दक्षता में सुधार होता है। डेटा विश्लेषण, ऊर्जा-कुशल स्मार्ट लाइटिंग और व्यापक प्रणालियों के एकीकरण से संचालन परिष्कृत होता है। स्मार्ट ग्रीनहाउस वातावरण में पौधों की वृद्धि के लिए परिस्थितियों को अनुकूलित करने के लिए सेंसर और स्वचालन का उपयोग किया जाता है, जो जलवायु, सिंचाई और निषेचन जैसे कारकों को सटीक रूप से नियंत्रित करते हैं। दूर से निगरानी और डेटा विश्लेषण के एकीकरण के माध्यम से वास्तविक समय में निर्णय लेने में सहायता मिलती है, जिससे समग्र दक्षता बढ़ती है। स्वचालित रोग निवारण उपाय फ़सलों के स्वास्थ्य में सुधार में योगदान करते हैं। स्मार्ट ग्रीनहाउस संसाधनों की बर्बादी को कम करके और सटीक कृषि को सक्षम करके कृषि को आधुनिक बनाने, उत्पादकता बढ़ाने और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल मिलाकर, IoT आधारित ग्रीनहाउस लागत में कमी लाता है, उत्पादकता बढ़ाता है और टिकाऊ कृषि का समर्थन करता है।
कृषि अपशिष्ट को कम करने में AI और IoT की भूमिका:
- सतत कृषि: एआई-संचालित उपकरण मिट्टी के स्वास्थ्य, फ़सल की वृद्धि और मौसम की स्थिति की निगरानी के लिए सेंसर, उपग्रह और ड्रोन से डेटा का उपयोग करते हैं। इससे किसानों को पानी, उर्वरक और कीटनाशकों को ठीक स्थान पर वितरित करने में सहायता मिलती है, जिससे बर्बादी कम होती है।
- फ़सल पर निगरानी: एआई एल्गोरिदम फ़सल के तनाव, कीट संक्रमण या बीमारियों के संकेतों का शीघ्र पता लगाने के लिए ड्रोन या उपग्रहों द्वारा ली गई छवियों का विश्लेषण करते हैं। इससे समय पर समस्या का समाधान किया जाता है और नुकसान कम होता है।
- स्मार्ट सिंचाई प्रणाली: एआई-संचालित सिंचाई प्रणाली मौसम की स्थिति की भविष्यवाणी और मिट्टी की नमी के स्तर का आकलन करके पानी के उपयोग को अनुकूलित करती है। ये प्रणालियाँ पानी की बर्बादी को काफ़ी हद तक कम करती हैं, खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों में।
- खाद्य आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन: एआई ग्राहक मांग की भविष्यवाणी करके, भंडारण को अनुकूलित करके और परिवहन के दौरान क्षति को कम करके आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित करता है। जो यह सुनिश्चित करता है कि भोजन उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुंचे, जिससे बर्बादी कम हो।
संदर्भ
एक चलता-फिरता स्प्रिंकलर का स्रोत : Wikimedia
इन प्राचीन शीतलन विधियों को जानकार, गर्मियों में अपने घरों को ठंडा रख सकते हैं रामपुरवासी
जलवायु व ऋतु
Climate and Weather
22-04-2025 09:23 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, आप इस बात से सहमत होंगे कि बढ़ती ऊर्जा लागत, पर्यावरणीय चिंताओं और स्वस्थ इनडोर वातावरण की क्षमता के कारण, घर को ठंडा करने के प्राकृतिक तरीके एयर कंडीशनिंग के लिए टिकाऊ और लागत प्रभावी विकल्प के रूप में तेज़ी से महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि प्राचीन सभ्यताओं में अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए जल वाष्पीकरण, रणनीतिक वास्तुशिल्प डिज़ाइन और भूमिगत आवास जैसी नवीन शीतलन तकनीकों का उपयोग किया जाता था। इसके अलावा, भारत में सदियों से प्राकृतिक शीतलन प्रणाली के रूप में खस का उपयोग भी किया जाता रहा है, जो तापमान नियंत्रण और ताज़ा खुशबू दोनों प्रदान करता है। तो आइए आज, इन प्राचीन शीतलन विधियों पर प्रकाश डालते हैं और गर्मियों के दौरान अपने घरों को ठंडा रखने के कुछ सरल और प्राकृतिक तरीकों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
प्राचीन सभ्यताओं में प्रयोग की जाने वाली शीतलन विधियां:
जल वाष्पीकरण : जल वाष्पीकरण (Water Evaporation) एक सरल लेकिन प्रभावी शीतलन तकनीक है जिसे विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं में पूरे इतिहास में नियोजित किया गया है। इस तकनीक की सहायता से, पानी के शीतलन गुणों का उपयोग करके, सरल शीतलन प्रणालियाँ बनाई गईं। उदाहरण के लिए, प्राचीन मिस्र में लोग, चटाई या पर्दों को पानी से गीला कर, उन्हें दरवाज़े या खिड़कियों पर लटका देते थे। जैसे ही हवा इन गीली सतहों से गुजरती थी, यह काफ़ी हद तक ठंडी हो जाती थी, जिससे गर्मी से राहत मिलती थी। इसी तरह, प्राचीन फ़ारसियों ने "क़नात" नामक भूमिगत चैनल विकसित किए, जिनमें वाष्पीकरण के माध्यम से घरों को ठंडा करने के लिए दूरस्थ स्रोतों से पानी का उपयोग किया जाता था।
वायु प्रवाह को अधिकतम करने वाली वास्तुकला: प्राचीन काल में प्राकृतिक वेंटिलेशन को अधिकतम करने वाली संरचनाओं को डिज़ाइन किया जाता। ग्रीको-रोमन काल में, जो अपने वास्तुशिल्प नवाचारों के लिए प्रसिद्ध है, खुली स्तंभावली के साथ आंगन और अलिंद बनाए गए, जिनमें क्रॉस-वेंटिलेशन (Cross Ventilation) के साथ ठंडी हवा खींचते समय गर्म हवा को बाहर निकलने की सुविधा थी। इसके अतिरिक्त, पारंपरिक भारतीय वास्तुकला में, जैसा कि जयपुर में हवा महल जैसी इमारतों में देखा जाता है, वायु प्रवाह को बढ़ाने के लिए जटिल जाली और छिद्रित स्क्रीन का उपयोग किया गया है, जिससे प्राकृतिक शीतलन प्रभाव उत्पन्न होता है।
भूमिगत आवास: मध्य तुर्की में कप्पाडोसिया (Cappadocia) जैसे शुष्क क्षेत्रों में, प्राचीन सभ्यताओं में भूमिगत आवासों (Underground Dwellings) का निर्माण करके पृथ्वी की प्राकृतिक शीतलन क्षमता का उपयोग किया गया था। ये भूमिगत स्थान चिलचिलाती धूप से प्रतिरोध प्रदान करते थे और पूरे वर्ष अधिक स्थिर और आरामदायक तापमान बनाए रखते थे।
खस रीड: एक प्राचीन प्राकृतिक शीतलन प्रणाली
खस एक प्राकृतिक शीतलक है और इसका उपयोग भारत में सदियों से घरों के अंदरूनी हिस्सों को ठंडा करने के लिए किया जाता रहा है। खस की चटाई का उपयोग अक्सर छत, दरवाज़े और खिड़कियों को धूप से बचाने और हवा को ठंडा करने के लिए किया जाता है। खस के पत्तों से बने परदे, अपने विशेष प्राकृतिक इत्र के साथ हवा को सुगंधित और ठंडा बनाते हैं। पानी से भीगने पर, खस से ठंडी मीठी सुगंध निकलती है, जो वायु के साथ पूरे वातावरण में फैल जाती है और एक आनंददायक वातावरण बनाती है।
गर्मियों के दौरान घर को ठंडा रखने के प्राकृतिक तरीके:
- वायु संचार बनाए रखें: वायु संचार बनाए रखने के लिए खिड़कियां खुली रखें। खिड़कियां खुली रखने का सबसे अच्छा समय, सुबह 5 बजे से 8 बजे तक और शाम 8 बजे से 10 बजे तक है। इन समयों के दौरान, हवा सुखद होती है, जिससे उचित वायु संचार के साथ, घर के भीतर फंसी ऊष्मा बाहर निकल सकती है। गर्मियों में रात में तापमान काफी गिर जाता है इसलिए ठंडी हवा का अधिकतम लाभ उठाने के लिए, खिड़कियाँ खुली रखें। मच्छरों और कीड़ों को दूर रखने के लिए दरवाज़ों और खिड़कियों पर कीट जाल लगाएं।
- पर्दे लगाएं: खिड़कियाँ बाहर से गर्मी को अवशोषित कर, अंदरूनी हिस्से को अत्यधिक गर्म बना सकती हैं। अवांछित गर्मी को दूर रखने के लिए, परदे लगाकर सूर्य की किरणों को रोकना महत्वपूर्ण है। सुबह 11 बजे से शाम 4 बजे तक पर्दे बंद रखें।
- प्राकृतिक कपड़ों का उपयोग करें: गर्मी के दौरान चमड़े, रेशम, साटन, और पॉलिएस्टर वाले फ़र्नीचर उत्पाद, ऊष्मा को आसानी से अवशोषित कर लेते हैं। इसलिए, इस मौसम में विशेष रूप से फ़र्नीचर के लिए लिनन और सूती कपड़े का चयन करें। सूती कपड़ा हल्का होता है जो वायु प्रवाह को बढ़ावा देता है।
- हल्के रंगों को शामिल करें: शुष्क गर्मी के मौसम में हल्के रंग जैसे पेस्टल पीला, आसमानी, मिलेनियल गुलाबी और सफ़ेद रंग अच्छे लगते हैं।
- हरित वातावरण बनाएं: एरेका पाम (Areca palm), एलोवेरा (Aloevera) और फ़र्न (Fern) जैसे पौधे, न केवल देखने में मनभावन लगते हैं, बल्कि ये घर के अंदर के वातावरण को ठंडा रख सकते हैं क्योंकि उनमें हवा में विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही, घर के पूर्व और पश्चिम दिशा में रणनीतिक रूप से लगाए गए छायादार पेड़ और पौधे सूर्य की किरणों को रोक देंगे। बालकनी की ग्रिल पर लताएं और बेलें उगाने से भी घर को ठंडा रखने में मदद मिल सकती है।
- जल वाष्पीकरण का प्रयोग करें: प्राचीन सभ्यताओं के समान, घरों को ठंडा रखने के लिए जल वाष्पीकरण एक महत्वपूर्ण विकल्प है। अपने पर्दों के निचले किनारों को एक बाल्टी पानी में डुबोएं और पंखा चालू रखें। पानी धीरे-धीरे कपड़े के माध्यम से ऊपर की ओर रिसता है और हवा के माध्यम से कमरे में ठंडक हो जाएगी।
- बाथरूम का दरवाज़ा खुला रखें: अपने बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा खुला रखें, फ़र्श पर कुछ लीटर पानी डालें और हवा को अपना काम करने दें।
- फ्रिज़ को बार-बार न खोलें: बार-बार ठंडा पानी और बर्फ़ के टुकड़े लेने के लिए रेफ्रिज़रेटर को कई बार खोलने और बंद करने से इसकी मोटर पर भार पढ़ने के साथ उसका तापमान बढ़ जाता है। और इसके बदले में घर में परिवेश का तापमान बढ़ जाता है।
- अच्छे प्रकाश विकल्पों का उपयोग करें: जैसा कि अब एल ई डी (LED) लाइटों से लेकर फ़्लोरोसेंट (Fluorescent) रोशनी तक, कई शानदार प्रकाश विकल्प उपलब्ध हैं, इसलिए गर्म तापदीप्त बल्बों का उपयोग न करें। इसी तरह, जब उपयोग में न हो, तो सभी विद्युत उपकरण, विशेषकर टीवी, बंद कर दें। यहां तक कि मोबाइल चार्जर से भी ऊष्मा निकलती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में दिखाई गई मध्यकालीन समय में अर्मेनिया के गोरिस के निवासी पिरामिड के आकार की चट्टानों के नीचे गुफाओं में रहते थे। आज कई गुफाओं का उपयोग जानवरों को रखने या भंडारण के लिए किया जाता है। का स्रोत : Wikimedia
ऊँट का ऊन और दूध, कैसे रामपुर के लोगों की जेब को गर्म और सेहत को दुरुस्त कर सकता है ?
स्तनधारी
Mammals
21-04-2025 09:28 AM
Rampur-Hindi

रामपुर में समय-समय पर विभिन्न स्थानों पर छोटे-बड़े मेलों का आयोजन होता रहता है। इन मेलों में भाग लेते समय आपने भी ऊँट की सवारी की होगी, या फ़िर किसी और को ऊँट पर सवार होते ज़रूर देखा होगा। वास्तव में, ऊँट हमारे देश की सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत का प्रतीक हैं। भारत के शुष्क क्षेत्रों में ऊँट पालन केवल एक परंपरा भर नहीं, बल्कि आजीविका का एक मज़बूत आधार माना जाता है। ऊँट पालन से न केवल कई समुदायों को दूध उपलब्ध हो रहा है, बल्कि ऊँट, रेगिस्तानी क्षेत्रों में परिवहन का एक विश्वसनीय साधन भी हैं । यही कारण है कि ऊँट आज भी स्थानीय अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा के लिए एक अनमोल संसाधन बने हुए हैं। आज के इस लेख में, हम ऊँट के ऊन पर आधारित आजीविका की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को समझेंगे। इसके बाद, हम भारत में ऊँट पालन के आर्थिक पहलुओं पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि यह व्यवसाय कितना लाभप्रद हो सकता है और इसकी आय क्षमता कितनी है। फ़िर हम, ऊँट के दूध के स्वास्थ्य लाभों पर नज़र डालेंगे। अंत में, इस उद्योग के विकास के लिए आवश्यक कदमों और उपायों पर चर्चा करेंगे, जिससे ऊँट पालन न केवल एक परंपरा, बल्कि एक समृद्ध आर्थिक अवसर बन सके।
आइए लेख की शुरुआत भारत में ऊँट के ऊन से होने वाली आजीविका की स्थिति और संभावनाओं को समझने के साथ करते हैं:
भारत में ऊँट के ऊन को आमतौर पर ऊन मूंडने के मौसम में कतरकर, कंघी और इकट्ठा करके प्राप्त किया जाता है। एक वयस्क मादा ऊँट, सालाना लगभग 3.5 किलोग्राम ऊन देती है, जबकि नर ऊँट से करीब 7 किलोग्राम ऊन निकाला जा सकता है। गुजरात के कच्छ जिले के नमक दलदल में पाए जाने वाले खराई ऊँट साल में एक बार ऊन कटाई के दौरान 300 ग्राम से 5 किलोग्राम तक ऊन उत्पन्न कर सकते हैं।
ऊँट के ऊन में बैक्ट्रियन (Bactrian) ऊँटों से प्राप्त ऊन सबसे महंगा माना जाता है। इसे एक लक्ज़री टेक्सटाइल के रूप में देखा जाता है और कीमत के मामले में इसे मोहायर और कश्मीरी ऊन के बराबर रखा जाता है। सेंटेक्सबेल की रिपोर्ट के अनुसार, ऊँट के ऊन की अंतरराष्ट्रीय कीमत 9 से 24 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक होती है। इसकी दरें ऊन की गुणवत्ता पर निर्भर करती हैं। भारत में, यह कीमत लगभग 1000 रुपये प्रति किलोग्राम होती है। ऊँट के ऊन का उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े बनाने में किया जाता है, जिससे यह एक मूल्यवान व्यापारिक संपत्ति बन जाता है। यदि इसके उत्पादन और व्यापार को सही दिशा में बढ़ावा दिया जाए, तो यह स्थानीय समुदायों के लिए एक मजबूत आजीविका का साधन बन सकता है।
कैसे शुरू करें ऊंट पालन का व्यवसाय ?
यदि आप ऊंट पालन या ऊंटनी के दूध का डेयरी व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी। सरकार की मुद्रा लोन जैसी योजनाओं का लाभ उठाकर इस प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है। व्यवसाय शुरू करने से पहले, एक ठोस बिज़नेस मॉडल तैयार करना आवश्यक है। इसमें बाजार की स्थिति, संभावित लाभ, वित्तीय अनुमान और जोखिमों का सही आकलन करना ज़रूरी होता है। इसके अलावा, ऊंट के दूध को इकट्ठा करने और बेचने के लिए आवश्यक उपकरण, कंटेनर और मशीनों में भी निवेश करना पड़ेगा। राजस्थान जैसे राज्यों में ऊंटनी के दूध की कीमत 3,500 रुपये प्रति लीटर तक होती है, जो इसे एक उच्च-लाभ वाला व्यवसाय बनाता है। यदि सही योजना और समझदारी के साथ इस व्यवसाय को आगे बढ़ाया जाए, तो यह बेहद लाभदायक साबित हो सकता है।
ऊंट का दूध स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। इसमें कई आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर को संपूर्ण पोषण प्रदान करते हैं।
आइए इसके प्रमुख स्वास्थ्य लाभों के बारे में जानते हैं:
1. पोषक तत्वों से भरपूर: ऊंट का दूध, पोषण से भरपूर होता है। इसमें कैलोरी, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा, लगभग गाय के दूध के समान होती है। खास बात यह है कि इसमें वसा कम होती है और विटामिन C (Vitamin C), विटामिन B (Vitamin B), कैल्शियम (Calcium), आयरन (Iron) और (Potassium) पोटैशियम अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। ये सभी पोषक तत्व शरीर के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।
2. कम लैक्टोज़ सामग्री: लैक्टोज़ असहिष्णुता (Lactose Intolerance) एक सामान्य समस्या है, जिसमें शरीर में लैक्टेज एंजाइम की कमी के कारण दूध में मौजूद लैक्टोज़ को पचाने में कठिनाई होती है। इससे पेट दर्द, सूजन और दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ऊंट के दूध में गाय के दूध की तुलना में लैक्टोज़ की मात्रा कम होती है, जिससे यह उन लोगों के लिए एक बेहतर विकल्प बन सकता है जो सामान्य दूध को पचाने में असमर्थ होते हैं।
3. रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में सहायक: ऊंट का दूध, रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह (Type 1 and Type 2 Diabetes) के के लिए लाभकारी हो सकता है। इसमें विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं, जो शरीर में इंसुलिन (Insulin) के कार्य को बढ़ावा देते हैं। इंसुलिन एक महत्वपूर्ण हार्मोन है, जो रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करता है। इसलिए, ऊंट का दूध, मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए एक प्राकृतिक और प्रभावी विकल्प हो सकता है।
4. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है: ऊंट के दूध में कुछ विशेष तत्व होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाते हैं। इसमें लैक्टोफ़ेरिन (Lactoferrin) और इम्युनोग्लोबुलिन (Immunoglobulin) जैसे प्रोटीन पाए जाते हैं, जो शरीर को विभिन्न बैक्टीरिया, वायरस और फ़ंगल संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं। लैक्टोफ़ेरिन में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीफ़ंगल, एंटीवायरल और एंटी- गुण होते हैं। यह ई. कोली (E. coli) , एच. पाइलोरी (H. pylori), एस. ऑरियस (S. aureus) और सी. एल्बिकेंस (C. albicans) जैसे हानिकारक बैक्टीरिया और फ़ंगस के विकास को रोक सकता है, जो गंभीर संक्रमण का कारण बन सकते हैं।
भारत में ऊँट के दूध का बाज़ार अभी भी सीमित है, लेकिन सही रणनीतियों को अपनाकर इसे बहुत बड़ा बनाया जा सकता है। इससे न केवल किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी, बल्कि ऊँट पालन भी एक लाभदायक व्यवसाय बन सकता है।
आइए जानते हैं, इस दिशा में क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
1. सामूहिक संगठन और मजबूत नेटवर्क: ऊँट के दूध के उत्पादकों को संगठित करना बेहद ज़रूरी है। अगर वे मिलकर एक समूह या सहकारी समिति बनाते हैं, तो उन्हें अपने उत्पाद की सही कीमत मिल सकती है। सामूहिक रूप से काम करने से व्यापारियों की मनमानी कम होगी और किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही, इससे ऊँट के दूध को एक विशेष पहचान मिलेगी, जिससे यह बाज़ार में अधिक स्वीकार्य बन सकेगा।
2. उत्पाद विविधता और नवाचार: सिर्फ कच्चा दूध बेचने के बजाय, इससे विविध उत्पाद बनाकर बेचना अधिक फ़ायदेमंद हो सकता है। उदाहरण के लिए, ऊँट के दूध से पनीर, घी, छाछ, आइसक्रीम और अन्य डेयरी उत्पाद बनाए जाएं, तो इसका बाज़ार और व्यापक हो सकता है। गाय और भैंस के दूध उद्योग में यह मॉडल पहले ही सफल साबित हुआ है। अगर ऊँट के दूध को भी इसी तरह से प्रोसेस कर बेचा जाए, तो यह किसानों के लिए अधिक मुनाफ़े का ज़रिया बन सकता है।
3. सरकारी योजनाओं और स्कूल पोषण कार्यक्रमों में शामिल करना: राजस्थान और अन्य ऊँट-पालन वाले राज्यों की सरकारों को मिड-डे मील योजना और अन्य पोषण कार्यक्रमों में ऊँट के दूध को शामिल करने पर विचार करना चाहिए। ऊँटनी के दूध में विटामिन सी और आयरन भरपूर मात्रा में होते हैं, जिससे यह कुपोषण दूर करने में मदद कर सकता है। खासकर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए यह बहुत फ़ायदेमंद है। अगर सरकार इसे पोषण योजनाओं से जोड़ती है, तो इससे ऊँट संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा और किसानों को एक स्थायी बाज़ार भी मिल सकेगा। ऊँट के दूध के बाज़ार को विकसित करने के लिए सामूहिक संगठन, उत्पाद विविधता और सरकारी सहयोग बेहद ज़रूरी हैं। अगर सही कदम उठाए जाएं, तो यह उद्योग किसानों के लिए एक लाभदायक व्यवसाय बन सकता है और ऊँटों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2yku4pby
https://tinyurl.com/2xvzo5lp
https://tinyurl.com/27arrfjj
मुख्य चित्र में गुजरात के कच्छ में ऊंटनी का दूध पीते व्यक्ति का स्रोत : flickr
आइए नज़र डालें, क्रिकेट में कैसे खेली जाती है एक खूबसूरत स्ट्रेट ड्राइव
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
20-04-2025 09:08 AM
Rampur-Hindi

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि रामपुर के कई नागरिकों को क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है, तथा वे क्रिकेट खेलते हुए बड़े हुए हैं। इस खेल के के शॉट बहुत खूबसूरत होते हैं क्योंकि उनमें तकनीकी कौशल, फ़ुर्ती और कलात्मकता जैसे तत्व शामिल होते हैं। शॉट की टाइमिंग, बल्ले की गेंद से टक्कर, और गेंद की दिशा — ये तीनों मिलकर किसी शॉट को प्रभावी और आकर्षक बनाते हैं।। ऐसे ही एक शॉट को स्ट्रेट ड्राइव (straight drive) कहा जाता है। इस शॉट को खेलते समय, बल्लेबाज़ गेंद को सीधे गेंदबाज़ की तरफ़ जमीन पर मारता है। सचिन तेंदुलकर को क्रिकेट में स्ट्रेट ड्राइव का मास्टर माना जाता है। अपने शक्तिशाली और सुंदर स्ट्रेट ड्राइव के लिए जाने जाने वाले अन्य प्रसिद्ध बल्लेबाज़ों में विराट कोहली, केन विलियमसन (Kane Williamson), जो रूट (Joe Root), स्टीव स्मिथ (Steve Smith) और अजिंक्य रहाणे शामिल हैं। इस शॉट को खेलते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है । जैसे पैरों को कंधे के जितनी चौड़ाई और बल्लेबाज़ी क्रीज़ के समानांतर रखें। घुटनों को थोड़ा मोड़ें और वज़न को समान रूप से वितरित रखें। हाथ और बल्ले के ऊपरी हिस्से को धीरे से अपने सामने वाले पैर की अंदरूनी जांघ और बल्ले को 45 डिग्री के कोण पर फ़र्श पर टिकाएं। अपने सिर को सामने वाले पैर के ठीक ऊपर रखें और गेंदबाज़ का सामना करें। जैसे ही गेंदबाज़ पास आए, बल्ला शरीर के करीब रहना चाहिए लेकिन फिर दोनों कोहनियों को मोड़ते हुए बल्ले को ऊपर की ओर लाया जाना चाहिए, जब तक कि बल्ला कंधों के समानांतर न हो जाए। तो आइए, आज हम कुछ चलचित्रों के माध्यम से देखें कि सही रुख, पकड़ और सिर की स्थिति के साथ स्ट्रेट ड्राइव कैसे खेली जाती है । साथ ही हम जानेंगे कि सही फ़्रंट-फ़ुट मूवमेंट (front-foot movement) और एक सहज बैट स्विंग (bat swing) कैसे किया जाता है। ये वीडियो हमें सिखाएंगे कि इस शॉट के ज़रिए, गेंद को ज़मीन पर कैसे रखना है, शरीर के वज़न को सही तरीके से कैसे स्थानांतरित करना है और स्ट्रोक के बाद संतुलन कैसे बनाए रखना है। हम इस शॉट को खेलने के दौरान होने वालीं कुछ सामान्य गलतियों पर भी नज़र डालेंगे , जैसे कि जल्दी से आगे का पैर हिलाना या बल्ले और ज़मीन के बीच गलत कोण बनाना आदि । साथ ही, हम उन विशेषज्ञ युक्तियों के बारे में जानेंगे, जिनकी मदद से हम इस शॉट को खेलने के लिए समय, शक्ति और स्थिरता का सही सामंजस्य बिठा पाएंगे।
संदर्भ:
कैसे किसी ब्रांड का पोज़िशनिंग स्टेटमेंट, रामपुर के लोगों को उसकी ओर आकर्षित करता है ?
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
17-04-2025 09:24 AM
Rampur-Hindi

रामपुर के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि, कोई ब्रांड स्थिति विवरण या पोज़िशनिंग स्टेटमेंट (Positioning statement), एक संक्षिप्त और प्रभावशाली घोषणा होती है। यह किसी कंपनी के अनूठे विक्रय प्रस्ताव (USP) और उसके लक्षित दर्शकों के दिमाग में, वांछित ब्रांड धारणा को सारांशित करता है। यह घोषणा, सभी विपणन और संचार प्रयासों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करती है, तथा सभी चैनलों में उस ब्रांड की पोज़िशनिंग और सुसंगतता सुनिश्चित करती है। तो आज चलिए, एक ब्रांड स्थिति विवरण के प्रमुख तत्वों को विस्तार से देखें। इसके बाद, हम कोका कोला, अमेज़ॉन और नाइकी जैसे वैश्विक लोकप्रिय ब्रांडों के स्थिति विवरण का पता लगाएंगे। आगे बढ़ते हुए हम सीखेंगे कि, अपने ब्रांड के लिए एक शानदार स्थिति विवरण कैसे लिखें। अंत में, हम इस बात पर कुछ प्रकाश डालेंगे कि, कुछ प्रमुख भारतीय कंपनियों ने खुद को बाज़ार में कैसे स्थापित किया।
एक ब्रांड स्थिति विवरण के प्रमुख तत्व:
•लक्षित दर्शक:
उन उपभोक्ताओं के विशिष्ट समूह की पहचान करें, जिन्हें आप अपने ब्रांड के साथ लक्षित करना चाहते हैं।
•श्रेणी या उद्योग:
उस उद्योग या श्रेणी को परिभाषित करें, जिसमें आपका ब्रांड प्रतिस्पर्धा करता है।
•कुंजी विभेदक:
उस अनूठे पहलू या सुविधा पर ध्यान केंद्रित करें, जो आपके ब्रांड को प्रतियोगियों से अलग करता है।
•मूल्य प्रस्ताव:
ठोस लाभों और भावनात्मक संयोजकता को स्पष्ट करें, जो आपका ब्रांड ग्राहकों को प्रदान करता है।
कुछ वैश्विक लोकप्रिय ब्रांडों के ब्रांड स्थिति विवरण:
1.) कोका कोला (Coca cola):
गुणवत्ता वाले शीत पेय चाहने वाले लोगों के लिए, कोका-कोला, सबसे ताज़े विकल्पों की एक श्रृंखला प्रदान करता है। अन्य पेय विकल्पों के विपरीत, कोका-कोला के उत्पाद, खुशी को प्रेरित करते हैं, और ग्राहकों के जीवन में सकारात्मक अंतर बनाते हैं। वे ब्रांड उपभोक्ताओं और ग्राहकों की ज़रूरतों पर भी केंद्रित है।
2.) अमेज़ॅन (Amazon):
उन उपभोक्ताओं के लिए जो त्वरित डिलीवरी के साथ नए–नए ऑनलाइन उत्पाद खरीदना चाहते हैं, अमेज़ॅन, एक उत्तम ऑनलाइन खरीदारी साइट है। अमेज़ॅन अपने ग्राहक व नवाचार के लिए जुनून और परिचालन उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्धता के साथ, अन्य ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं से अलग है।
3.) नाइकी (Nike):
उच्च गुणवत्ता वाले, फैशनेबल एथलेटिक उत्पाद चाहने वाले एथलीटों के लिए, नाइके, शीर्ष प्रदर्शन करने वाले खेल परिधान और उच्चतम गुणवत्ता वाले जूते प्रदान करता है। इसके उत्पाद एथलेटिक परिधान उद्योग में सबसे अधिक उन्नत हैं, क्योंकि नवीनतम प्रौद्योगिकियों में नवाचार और निवेश के लिए नाइके की प्रतिबद्धता है।
एक उचित ब्रांड स्थिति विवरण कैसे लिखें?
•अन्य कंपनियों को एक शुरुआती बिंदु के रूप में देखें:
आपकी कंपनी, अन्य ब्रांडों के संचार की नकल करने से लाभान्वित नहीं होगी। लेकिन, जब आप पहली बार अपना संदेश तैयार कर रहे हैं, तो अन्य कंपनियों से प्रेरणा लें। अन्य ब्रांडों से प्रेरित होकर रणनीतियां अपनाए कि, आप अपने स्वयं के ब्रांड स्थिति विवरण को कैसे बनाना चाहते हैं।
•सहानुभूति के साथ नेतृत्व करें:
कई ग्राहक चाहते हैं कि, जिन ब्रांडों पर वे विश्वास करते है, वे उनसे सहानुभूति से संवाद करें। अतः ग्राहकों के बारे में सोचें।
•अपने ग्राहक कौन हैं, इसकी स्पष्ट समझ हासिल करें:
आपके ग्राहकों को समझे बिना, एक प्रभावी स्थिति विवरण लिखना असंभव है। पहले निश्चित करें कि, आपके ग्राहकों को क्या चाहिए।
•विवरण को संक्षिप्त रखें:
सबसे अच्छा स्थिति विवरण, कुछ ही शब्दों में स्पष्ट रूप से बहुत सारी जानकारी देता है। वे संक्षिप्त, लेकिन व्यापक होने चाहिए।
•पारदर्शी बनें:
एक पारदर्शी स्थिति विवरण, सत्यवादी होता है। इस कारण, प्रामाणिक एवं सच्चा विवरण ही लिखें।
कुछ भारतीय ब्रांडों के मज़बूत ब्रांड स्थिति उदाहरण:
1.) डाबर (Dabur):
डाबर ने एक भारतीय कंपनी के रूप में अपनी ब्रांड स्थिति का निर्माण किया है, जिसके उत्पाद, प्राचीन आयुर्वेदिक और प्राकृतिक जड़ी-बूटियों जैसे प्राकृतिक एवं विदेशी स्रोतों से प्राप्त होते हैं। इस ब्रांड ने एक आधुनिक और समकालीन अनुभव के साथ, हमारी आयुर्वेदिक विरासत को अपने उपभोक्ताओं तक लाने की कोशिश की है।
2.) स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI):
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपने आप को एक आधुनिक और प्रगतिशील बैंक के रूप में डिज़ाइन किया है, जो तकनीक-प्रेमी भारतीयों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए तैयार और सबसे भरोसेमंद बैंक है। उन सभी व्यापारियों, उद्योगपतियों एवं आम आदमियों का समय बचाकर, एक प्रौद्योगिकी दिग्गज के रूप एस बी आई को काफ़ी मान्यता मिली है।
3.) एयरटेल (Airtel):
एयरटेल ने अपने ग्राहकों के साथ बहुत अच्छी तरह से भावनात्मक जुड़ाव किया है, जहां ये कंपनी, उनके साथ रचनात्मक रूप से संवाद करती है। इसने अपने ग्राहकों की विभिन्न आवश्यकताओं के अनुरूप, लगातार बदलाव किया है। इसने ‘हर एक दोस्त ज़रूरी होता है’, इस नारे के साथ युवाओं का भी ध्यान आकर्षित किया है।
4.) पतंजलि (Patanjali):
पतंजलि का ब्रांड नारा “प्रकृति का आशीर्वाद” है। पतंजलि ने, “सस्ती कीमतों पर उपलब्ध प्राकृतिक उत्पादों” के रूप में, खुद को बाज़ार में खड़ा किया है। इसका दूसरा स्थिति विवरण, “स्वदेशी मेक” (भारत में निर्मित) है। पतंजलि की विपणन कार्यनीति, ग्राहकों के विश्वास और संतुष्टि की भावना को स्थापित करने हेतु, उत्पाद और मूल्य-आधारित स्थिति रणनीतियों का उपयोग करती है।
5.) हल्दीराम (Haldirams):
यह ब्रांड, पारंपरिक भारतीय भोजन की ओर उपभोक्ताओं का झुकाव चाहता है। यह अद्वितीय पैकेजिंग भी प्रदान करता है, जो उत्पादों को अधिक टिकाऊ बनाता है। इनके भोजन की गुणवत्ता और इनके रेस्तरां, हमेशा ही एक पारिवारिक स्थान के रूप में सेवा प्रदान करते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में काठमांडू में एक दुकान का स्रोत : Wikimedia
कैसे रामपुर के इलेक्ट्रिक वाहन, भारत की बढ़ती लिथियम बैटरियों की मांग में हिस्सेदार हैं ?
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
14-04-2025 09:17 AM
Rampur-Hindi

2024 तक, भारत में 5.6 मिलियन से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicles) थे। हमारे शहर रामपुर का भी, इस आंकड़े में योगदान है। इस कारण, वित्त वर्ष 2024 में भारत में इलेक्ट्रिक वाहन एवं उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स से, लिथियम आयन बैटरी (Lithium-ion battery) हेतु 15 गीगा वॉट आर (GWh) भंडारण की मांग थी। यह मांग, 2027 तक 54 गीगा वॉट आर(घंटा) तक पहुंचने की उम्मीद है। वर्तमान में, भारत, लिथियम आयन बैटरियों की अपनी पूरी आवश्यकता का आयात करता है। तो आज, आइए यह समझने की कोशिश करें कि, भारत कहां से एवं कितना लिथियम आयात करता है। उसके बाद, हम दुनिया के सबसे अधिक लिथियम समृद्ध देशों की खोज करेंगे। इसके अलावा, हम भारत में बैटरी सेल निर्माण में आने वाली कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों पर प्रकाश डालेंगे। हम अपने देश में लिथियम बैटरी उत्पादन को बढ़ाने के लिए उठाए जा रहे महत्वपूर्ण कदमों के बारे में भी बात करेंगे। अंत में, हम भारत की अर्थव्यवस्था और स्थिरता लक्ष्यों पर लिथियम आयन बैटरी पुनर्चक्रण के प्रभाव का पता लगाएंगे।
भारत कहां से एवं कितना लिथियम आयात करता है ?
भारत की लिथियम आवश्यकताओं को मुख्य रूप से आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा संसाधित लिथियम आयातक है, जिसमें से अधिकांश धातु हांगकांग (Hong Kong) और चीन(China) से आ रहा है। भारत ने 2020-2021 के दौरान 722.5 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक लिथियम का आयात किया था। हमारा देश, दुनिया के सबसे बड़े लिथियम आयन बैटरी आयातकों में से भी एक है। भारत उन्हें चीन, जापान (Japan) और दक्षिण कोरिया (South Korea) से आयात करता है। 2022 में, इसने 1.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के मूल्य की, लिथियम आयन बैटरी की 617 मिलियन यूनिट्स आयात की थीं।
किन देशों में, दुनिया में सबसे बड़ा लिथियम भंडार है?
ऑस्ट्रेलिया (Australia) में 6.2 मिलियन टन लिथियम और 61 हज़ार मेट्रिक टन उत्पादन क्षमता के साथ, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है। दक्षिण-पश्चिम दक्षिण अमेरिका (South America) में दुनिया के सबसे बड़े लिथियम भंडार हैं, जो चिली (Chile), अर्जेंटीना (Argentina) और बोलीविया (Bolivia) देशों के बीच वितरित हैं। चिली में 9.3 मिलियन मेट्रिक टन के साथ, दूसरा सबसे बड़ा लिथियम भंडार है। दूसरी तरफ़, विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण, बोलीविया, 23 मिलियन मेट्रिक टन लिथियम भंडार के साथ, दुनिया के सबसे बड़े भंडार का लाभ नहीं उठा सका। साथ ही, अर्जेंटीना 6,200 मेट्रिक टन लिथियम का उत्पादन करता है, और इसमें 2.7 मिलियन टन धातु के साथ चौथा सबसे बड़ा भंडार है।
भारत में बैटरी सेल निर्माण में चुनौतियां:
1.) आपूर्ति श्रृंखला की अड़चनें:
भारत में बैटरी उत्पादन के लिए आवश्यक लिथियम, कोबाल्ट (Cobalt) और निकेल (Nickel) जैसे प्रमुख खनिजों के पर्याप्त भंडार का अभाव है। हालांकि हमने हाल ही में जम्मू और कश्मीर में लिथियम भंडार की खोज की है, लेकिन इसके खनन में समय लगेगा।
2.) तकनीकी अंतराल:
भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे वैश्विक लिथियम संसाधकों की तुलना में, अनुसंधान और विकास में एक महत्वपूर्ण अंतराल का सामना करता है।
3.) बुनियादी ढांचे की कमी:
बड़े पैमाने पर बैटरी निर्माण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा, जिसमें स्थिर बिजली की आपूर्ति, उन्नत उत्पादन सुविधाएं और कुशल लॉजिस्टिक्स नेटवर्क शामिल हैं, अभी भी भारत में विकसित हो रहा है।
4.) आर्थिक बाधाएं:
बड़े पैमाने पर बैटरी निर्माण परियोजनाओं के लिए, पर्याप्त धन प्राप्त करना भी एक महत्वपूर्ण बाधा बनी हुई है। अनिश्चित मुनाफ़े के साथ, उच्च पूंजीगत व्यय, संभावित निवेशकों को रोकते हैं। सरकारी प्रोत्साहन, सब्सिडी, और सार्वजनिक-निजी भागीदारी, वित्तीय बाधाओं को कम करने और इस उद्योग के विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
भारत में लिथियम आयन बैटरी उत्पादन बढ़ाने के लिए कौन से कदम उठाए जा रहे हैं?
2023 में झारखंड, राजस्थान एवं जम्मू और कश्मीर में हुई नए लिथियम भंडार की खोज ने, सरकारी और निजी हितधारकों का ध्यान आकर्षित किया है। इन भंडारों का लाभ उठाने के लिए, सरकार ने खनन प्रक्रिया को आसान बनाकर, लिथियम खानों की नीलामी की अनुमति दी है।
सरकार ने हाल ही में, खनिजों की खोज का समर्थन करने हेतु, सार्वजनिक और निजी कंपनियों के लिए अनुमोदित परियोजना लागत में 25% प्रोत्साहन की घोषणा की। सरकार लिथियम सहित, चार महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने पर भी विचार कर रही है।
भारत ने उन्नत रसायन विज्ञान कोशिकाओं को विकसित करने के लिए, 18,000 करोड़ रुपये के साथ एक उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI (Production Linked Incentive)) का विस्तार किया है। इस निर्णय ने ओला इलेक्ट्रिक (Ola Electric) और रिलायंस न्यू एनर्जी (Reliance New Energy) जैसे कई घरेलू निजी हितधारकों को आकर्षित किया है।
भारत की अर्थव्यवस्था और स्थिरता लक्ष्यों पर, लिथियम आयन बैटरी पुनर्चक्रण के प्रभावों की खोज:
2030 तक, भारत का लक्ष्य 30% निजी और 70% वाणिज्यिक वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलना है, जिससे लिथियम आयन बैटरी पुनर्चक्रण में वृद्धि हुई है।
पर्यावरणीय लाभों से परे, लिथियम आयन बैटरी पुनर्चक्रण, भारत की हरित अर्थव्यवस्था के लिए पर्याप्त आर्थिक लाभ रखता है। यह प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण ; ई-कचरे के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव को कम और व्यापक खनन तथा कच्चे माल के शोषण को भी कम करता है। इन बैटरियों का पुनर्चक्रण, नए नौकरी के अवसर तथा नवाचार और आर्थिक विकास को बढ़ावा भी देता है।
एक सामान्य अनुमान के अनुसार, भारत में 2022-30 तक सभी खंडों में, लिथियम आयन बैटरी की संचयी क्षमता लगभग 600 गीगा वॉट आर है।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: स्विगी के डिलीवरी राइडर द्वारा ई-बाइक के लिए बैटरी बदलने का दृश्य (Wikimedia)
संस्कृति 2013
प्रकृति 727