जौनपुर - सिराज़-ए-हिन्द












आज जौनपुर जानेगा, भारत की मछली उत्पादन क्षमता और उससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों को
मछलियाँ व उभयचर
Fishes and Amphibian
29-04-2025 09:18 AM
Jaunpur District-Hindi

हमारा शहर जौनपुर, गोमती नदी से निकटता के साथ, अंतर्देशीय मत्स्य पालन के लिए अप्रयुक्त क्षमता रखता है। यह कहते हुए हम आपको बता दें कि, भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा मछली-उत्पादक देश है। देश में वित्त वर्ष 2022-23 में कुल 175.45 लाख टन मछली उत्पादन हुआ है, जिसमें अंतर्देशीय और समुद्री मछली क्षेत्र शामिल हैं। भारत वैश्विक मछली उत्पादन में लगभग 8% योगदान देता है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में, भारत ने 17,81,602 मेट्रिक टन समुद्री भोजन का निर्यात किया, जिसका मूल्य, 60,523.89 करोड़ रुपए है। इसलिए आज, हम भारत में मछली उत्पादन की वर्तमान स्थिति का पता लगाएंगे। उसके बाद, हम भारत के समुद्री भोजन निर्यात के बारे में विस्तार से बात करेंगे। इसके अलावा, हम अपने देश के मत्स्य पालन क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर भी चर्चा करेंगे। जबकि अंत में, हम देश में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, हालिया वर्षों में किए गए कुछ उपायों और पहलों के बारे में जानेंगे।
भारत में मछली उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
1.भारत, दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है, और चीन (China) के बाद दूसरा सबसे बड़ा जलीय कृषि उत्पाद उत्पादक है।
2.चीन का मछली उत्पादन में प्रथम स्थान है, और फिर इंडोनेशिया (Indonesia) दूसरे स्थान पर है।
3.भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में, 175.45 लाख टन का मछली उत्पादन किया है, जो वैश्विक उत्पादन का 8% है।
4.यह देश के सकल मूल्य वर्धित में लगभग 1.09% और कृषि सकल मूल्य वर्धित में 6.72% से अधिक का योगदान देता है।
5.यह क्षेत्र, देश में 28 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका का भी समर्थन करता है।
भारत के समुद्री भोजन निर्यात की खोज:
2023-24 के दौरान सबसे अधिक निर्यात, जमे हुए झींगों का था, जिसका कुल वज़न 7,16,004 मेट्रिक टन था। संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) इसका सबसे बड़ा बाज़ार है, और 2,97,571 मेट्रिक टन झींगों का आयात करता है। इसके बाद क्रमशः चीन (1,48,483 मेट्रिक टन), यूरोपीय संघ (89,697 मेट्रिक टन), दक्षिण पूर्व एशिया (52,254 मेट्रिक टन), जापान (35,906 मेट्रिक टन) और मध्य पूर्व (28,571 मेट्रिक टन), का स्थान आता है।
जमी हुई मछलियां, दूसरी सबसे अधिक निर्यात की गई जलीय खाद्य वस्तु है, जिसका मूल्य 5,509.69 करोड़ रुपए है। मात्रा में ये 21.42% योगदान देती है। 2024 में मछलियों की निर्यात मात्रा में 3.54% और मूल्य में 0.12% वृद्धि हुई थी। छठे स्थान पर, कटलफ़िश का निर्यात किया गया था, जिसकी मात्रा 54,316 मेट्रिक टन एवं मूल्य 2252.63 करोड़ रुपए था ।
भारत के लिए प्रमुख समुद्री भोजन निर्यात बाज़ार:
विदेशी बाज़ारों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, मूल्य के संदर्भ में भारतीय समुद्री भोजन का प्रमुख आयातक बना रहा, जिसमें 2,549.15 मिलियन डॉलर का आयात मूल्य शामिल है। चीन – हॉंगकॉंग (Hongkong) और ताइवान (Taiwan) को छोड़कर – भारत के लिए दूसरा सबसे बड़ा समुद्री भोजन निर्यात गंतव्य था, जिसकी आयात मात्रा, 4,51,363 मेट्रिक टन थी एवं मूल्य, 1,384.89 मिलियन अमेरिकी डॉलर था ।
जापान (Japan) हमारे लिए तीसरा सबसे बड़ा आयातक है, जिसकी वज़न मात्रा में 6.06% की हिस्सेदारी और यूएस डॉलर मूल्य में 5.42% हिस्सेदारी है। जमे हुए झींगे जापान को निर्यात की गई प्रमुख समुद्री भोजन वस्तु बनी रही, जिसकी मात्रा में 33.26% और मूल्य में 65.94% हिस्सेदारी थी। दूसरी ओर, वियतनाम (Vietnam) हमारे लिए चौथा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार था।
भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियां:
•वित्तीय पहुंच का अभाव: कई मछुआरे अपर्याप्त वित्तीय सहायता, सीमित उत्पादकता और आधुनिक मछली पकड़ने की प्रथाओं के कारण, उन्नत उपकरण प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करते हैं।
•जल प्रदूषण: नदियों, झीलों और तटीय क्षेत्रों जैसे जल निकायों में प्रदूषण, जलीय पारिस्थितिक तंत्र और मत्स्य पालन की स्थिरता को खतरे में डालता है।
•सिकुड़ते मछली फ़ार्मिंग क्षेत्र: शहरीकरण, औद्योगीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण, मछली पालन खेती के लिए पहले इस्तेमाल किए जाने वाले धान के खेतों में आई कमी के कारण, जलीय कृषि के लिए जगह कम कर दी।
•मानसून अप्रत्याशितता: अप्रत्याशित मानसून पानी के स्तर में उतार-चढ़ाव का कारण बनकर, अंतर्देशीय मत्स्य पालन को प्रभावित करता है, जिससे कुछ मौसमों के दौरान मछलियों की खराब पैदावार होती है।
•बुनियादी ढांचे की कमी: खराब विपणन, भंडारण और परिवहन सुविधाएं, मछलियों के कुशल वितरण और बिक्री को रोकती हैं, तथा इस क्षेत्र की वृद्धि और लाभप्रदता को सीमित करती हैं।
•अपर्याप्त अनुसंधान और विस्तार सेवाएं: सीमित अनुसंधान और कमज़ोर विस्तार सेवाएं, मत्स्य उद्योग के भीतर नई प्रौद्योगिकियों और स्थायी प्रथाओं को अपनाने में बाधा डालती हैं।
भारत में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए की गई पहलें:
•प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana (PMMSY)):
जलीय कृषि उत्पादकता को बढ़ाना, मत्स्य प्रबंधन में सुधार, एकीकृत एक्वापार्कों (Aquaparks) की स्थापना, आदि इस योजना के महत्वपूर्ण लक्ष्य है। इसकी उप-योजना – ‘प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजाना’ का उद्देश्य, वित्तीय और तकनीकी हस्तक्षेपों के माध्यम से, कमज़ोरियों को संबोधित करना है।
•नील क्रांति योजना (Blue Revolution Scheme):
इसमें समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन के विकास और प्रबंधन के लिए एकीकृत दृष्टिकोण शामिल है।
•मत्स्य पालन और जलीय कृषि ढांचा विकास निधि (Fisheries and Aquaculture Infrastructure Development Fund):
इस निधि से समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन में, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए धन प्रदान किया जाता है।
•राष्ट्रीय समुद्री मत्स्य नीति (National Marine Fisheries Policy, 2017):
यह योजना भारत के समुद्री मत्स्य संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन में मार्गदर्शन करती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
जौनपुर सल्तनत का इतिहास समझकर जानते हैं उस दौर में हमारे शहर के संचालन के बारे में
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
Early Medieval:1000 CE to 1450 CE
28-04-2025 09:32 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर के नागरिकों, क्या आप जानते हैं कि जौनपुर सल्तनत, जो 1394 से 1479 तक अस्तित्व में थी, की स्थापना 1394 में सुल्तान नसीरुद्दीन मुहम्मद शाह तुगलक (Sultan Nasiruddin Muhammad Shah IV Tughluq) के शासनकाल के दौरान, एक किन्नर और दिल्ली सल्तनत के पूर्व राज्यपाल मलिक सरवर (Malik Sarwar) द्वारा की गई थी। मलिक सरवर ने तैमूर के आक्रमण के बाद मची अराजकता के बीच स्वतंत्रता की घोषणा की और स्वयं को "ख्वाज़ा-ए-जहाँ मलिक-उस-शर्की" की उपाधि देकर शर्की राजवंश की शुरुआत की। जौनपुर उनकी नई सल्तनत की राजधानी बना। जौनपुर शहर में आज भी मौजूद कई उत्कृष्ट स्मारकों में अपने समृद्ध इतिहास के पर्याप्त संकेत मिलते हैं। एक समय में जौनपुर इस्लामी अध्ययन और गंगा-जमुनी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र एवं कई लोगों के लिए विस्मय का स्थान था। यह दिल्ली सल्तनत के पतन के दौरान उभरा, शर्की वंश के तहत एक स्वतंत्र राज्य के रूप में विकसित हुआ, और इसने दिल्ली सल्तनत में पुनः शामिल होने से पहले संस्कृति, वास्तुकला और प्रशासन में उल्लेखनीय योगदान दिया। तो आइए, आज जौनपुर सल्तनत की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में जानते हुए, जौनपुर साम्राज्य की सीमा पर प्रकाश डालते हैं और इसके क्षेत्रीय प्रभाव को समझते हैं। इसके साथ ही, हम शर्की शासकों के अधीन जौनपुर के प्रशासन और जौनपुर सल्तनत की सेना के बारे में जानेंगे। अंत में, हम जौनपुर सल्तनत के दौरान निर्मित कुछ सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों और शर्की शैली की वास्तुकला की विशेषताओं के बारे में जानेंगे।
जौनपुर सल्तनत की उत्पत्ति और इतिहास:
1394 ईसवी में, फ़िरोज़ शाह तुगलक (Firoz Shah Tughlaq) की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के युद्ध से उत्पन्न अराजकता का लाभ उठाते हुए, मलिक सरवर ने दिल्ली सल्तनत से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और ख्वाजा-ए-जहाँ मलिक-उस-शर्की अर्थात 'दुनिया का प्रमुख हिजड़ा, पूर्व का भगवान', की उपाधि ली। उसी वर्ष, उसने अपने दत्तक पुत्रों, मुबारक शाह और इब्राहिम शाह के साथ मिलकर शर्की राजवंश के साम्राज्य की स्थापना की। जौनपुर सल्तनत पश्चिम में इटवा से लेकर पूर्व में लखनौती (बंगाल) तक और दक्षिण में विंध्याचल से लेकर उत्तर में नेपाल तक फैली हुई थी। शर्की काल के दौरान, जौनपुर सल्तनत उत्तर भारत में एक मजबूत सैन्य शक्ति थी और कई मौकों पर उसने दिल्ली सल्तनत को भी चुनौती दी थी।
शर्की शासकों के अधीन जौनपुर का प्रशासन:
मलिक सरवर और उनके उत्तराधिकारियों, विशेष रूप से इब्राहिम शाह शर्की (1402-1440) ने सल्तनत का विस्तार करते हुए इसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों को शामिल किया। इब्राहिम शाह शर्की (Ibrahim Shah Sharqi) अपनी प्रशासनिक कुशलता के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे । सल्तनत ने एक कुशल राजस्व प्रणाली और स्थापित की और अपनी आबादी के साथ अपेक्षाकृत सामंजस्यपूर्ण संबंध बनाए रखा। शर्की शासकों ने शासन की एक ऐसी प्रणाली बनाई, जिसमें इस्लामी सिद्धांतों को दिल्ली सल्तनत से विरासत में मिली प्रशासनिक प्रथाओं के साथ मिश्रित किया गया। शर्की शासकों के अधीन शिक्षा और संस्कृति के केंद्र के रूप में अपनी स्थिति के कारण जौनपुर को "भारत का शिराज़" के नाम से जाना जाने लगा।
सैन्य शक्ति: शर्की शासकों ने दिल्ली और बंगाल से अपने क्षेत्रों की रक्षा के लिए एक दुर्जेय सेना तैयार की। उन्होंने दिल्ली सल्तनत द्वारा पुनः नियंत्रण स्थापित करने के कई प्रयासों का विरोध किया। जौनपुर में सुल्तानों के अधीन कई राजपूत जागीरदार थे। समकालीन राजपूत वंशों में, जो जौनपुर सुल्तानों के क्षेत्र या परिधि में स्थित थे, उनमें रीवा के बाघेल, उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर के बछगोती, भोजपुर के उज्जैनिया और साथ ही ग्वालियर के तोमर शामिल थे। एक समसामयिक स्रोत के अनुसार, राजपूतों के बचगोती कबीले के प्रमुख जुगा ने अंतिम सुल्तान हुसैन शाह का समर्थन करने के लिए, 200,000 पैदल और 15,000 घुड़सवार सैनिकों की एक विशाल सेना एकत्र की थी।
जौनपुर सल्तनत द्वारा निर्मित कुछ सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक:
- अटाला मस्जिद: अटाला मस्जिद का निर्माण 1408 ईसवी में शम्स-उद-दीन इब्राहिम (Shams-ud-Din Ibrahim) द्वारा किया गया था। हालांकि, इसकी नींव 30 वर्ष पूर्व फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा रखी गई थी। इस मस्जिद में 177′ का एक वर्गाकार प्रांगण था जिसके तीन तरफ़ मठ थे और चौथी (पश्चिमी) तरफ़ अभयारण्य था। पूरी मस्जिद 258′ का एक वर्गाकार है।
- खालिस मुखलिस मस्जिद: इस मस्जिद का निर्माण 1430 ईसवी में शहर के दो राज्यपालों, मलिक खालिस (Malik Khalis) और मलिक मुखलिस (Malik Mukhlis) के आदेश पर किया गया था। इसे अटाला मस्जिद के समान सिद्धांतों पर संरचित किया गया था।
- झांझरी मस्जिद: झांझरी मस्जिद का निर्माण भी 1430 ईसवी में किया गया था। हालांकि, इसका केवल सामने का मध्य भाग ही शेष है। इसे इसका नाम धनुषाकार तोरण जैसी आकृति के प्रवेश द्वार के कारण मिला है।
- लाल दरवाज़ा मस्जिद: इस मस्जिद को 1450 ईसवी में बीबी राजा द्वारा स्थापित किया गया था। इसका निर्माण लगभग अटाला मस्जिद के समान किया गया था, सिवाय इस तथ्य के कि यह आकार में अटाला मस्जिद की लगभग 2/3 थी और जनाना कक्ष केंद्रीय क्षेत्र में स्थित है। इसका प्रांगण 132′ का वर्गाकार है। छोटे आकार के कारण, अभयारण्य के सामने केवल केंद्रीय तोरण बनाया गया है, छोटे पार्श्व तोरण को छोड़ दिया गया है। इस मस्जिद का नाम लाल रंग के ऊँचे दरवाज़े के कारण पड़ा था।
- जामी मस्जिद: इसे हुसैन शाह (Hussain Shah) ने 1470 ईसवी में बनवाया था। यह मस्जिद भी बड़े पैमाने पर अटाला मस्जिद की कई उल्लेखनीय विशेषताओं से प्रभावित है। यह पूरी इमारत 16′-20′ ऊंचाई के एक चबूतरे पर खड़ी है और ऊपर तक खड़ी लेकिन भव्य सीढ़ियां जाती हैं।
जौनपुर की शर्की वास्तुकला शैली की विशेष विशेषताएं:
जौनपुर की शर्की वास्तुकला में तुगलक शैली का एक विशिष्ट प्रभाव है, जो बुर्ज़ों, मीनारों और मेहराब-बीम के संयोजन में दिखाई देता है। हालाँकि, जौनपुर शैली की सबसे खास विशेषता के अग्रभाग का डिज़ाइन है। यह अभयारण्य के केंद्र में उभरे हुए ढलान वाले मुख्यद्वार में दिखाई देता है। मुख्यद्वार में एक विशाल मेहराब होता है, जो असाधारण, विशाल और दृढ़ पतले वर्गाकार मीनारों से बना होता है। इसके सबसे अच्छे उदाहरण अटाला मस्जिद और जामी मस्जिद हैं। वास्तव में, मुख्यद्वार, जौनपुर वास्तुकला शैली की मुख्य विशेषता थी और यह भारतीय-इस्लामी वास्तुकला की किसी अन्य अभिव्यक्ति में नहीं पाई जाती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में गोमती नदी से जौनपुर किले का स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
चलिए आज, मंत्रमुग्ध कर देने वाली डॉल्फ़िनों की छलांग को धीमी गति में देखें
व्यवहारिक
By Behaviour
27-04-2025 09:14 AM
Jaunpur District-Hindi

वाराणसी में, गंगा के कुछ हिस्सों में जल की गति धीमी और वातावरण शांत रहता है — विशेष रूप से अस्सी घाट के नीचे की ओर। ऐसे स्थानों पर गंगा नदी डॉल्फ़िन (Ganges river dolphin) कभी-कभी दिखाई दे जाती हैं । पानी से बाहर उनकी सुंदर छलांग एक खूबसूरत नज़ारा होता है, जिसे अक्सर स्थानीय लोग और आगंतुक नाव की सवारी या घाटों पर शांत सुबह के समय देखते हैं। क्या आप जानते हैं कि डॉल्फ़िन कई कारणों से पानी से बाहर छलांग लगाती हैं, जिसमें संचार, नैविगेशन (navigation), शिकार और यहाँ तक कि मौज-मस्ती भी शामिल है। वे परजीवियों को दूर भगाने नाव की लहर का उपयोग करके ऊर्जा बचाने के लिए भी छलांग लगा सकती हैं। इसके अलावा, शिकारियों से बचने के लिए भी वे ऐसा करती हैं । इनके शिकारियों से बचने के लिए पानी से बाहर छलांग लगाने को “स्पाई-हॉपिंग”(spy-hopping) कहा जाता है। इस प्रतिक्रिया के दौरान, ये पानी की सतह पर अपना सिर छिपाते हुए पानी की ओर देखती हुई दिखाई देती हैं। इनमें सुनने और इकोलोकेशन (echolocation) की उत्कृष्ट क्षमता होती है, जिसका उपयोग ये आस-पास के क्षेत्रों में भोजन का पता लगाने के लिए करती हैं। इसके अलावा, डॉल्फ़िन अपने आस-पास के वातावरण को बेहतर ढंग से देखने के लिए भी हवा में ऊंची छलांग लगाती हैं। इनकी अधिकांश प्रजातियाँ अन्य समुद्री स्तनधारियों और की तुलना में बहुत छोटी होती हैं, इसलिए इन्हें शार्क और वेल जैसे बड़े शिकारियों से अधिक खतरा होता है। अपने आस-पास की चीज़ों पर नज़र रखने और अन्य डॉल्फ़िनों को खतरों के बारे में सूचित करने के लिए, वे अक्सर हवा में छलांग लगाती हैं। तो आइए, आज हम, कुछ धीमी गति के चलचित्रों के ज़रिए, डॉल्फ़िनों के व्यवहारों को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। इस संदर्भ में हम इन्हें पानी से बाहर छलांग लगाते हुए देखेंगे। हम हवा में उनके सुंदर घुमाव, गोता लगाते समय उनकी सहज छपाक और उनकी हरकतों से संबंदित कुछ सुंदर दृश्यों का आनंद भी लेंगे। ये मंत्रमुग्ध करने वाला दृश्य हैं जिनसे नज़र हटाना मुश्किल है।
संदर्भ:
क्या है जौनपुर में विस्कोस और लायोसेल जैसे टेक्सटाइल फ़ाइबरों के बढ़ते बाज़ार का कारण ?
स्पर्शः रचना व कपड़े
Touch - Textures/Textiles
26-04-2025 09:28 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर के लोग विस्कोस (Viscose) और लायोसेल (Lyocell) से बने कपड़ों को उनकी आरामदायकता, हवा को अंदर जाने की क्षमता और सस्ती कीमत के लिए पसंद करते हैं। सेलूलोज़िक फ़ाइबर पौधों से उत्पन्न हुए टेक्सटाइल फ़ाइबर होते हैं, जो सेलूलोज़ नामक जटिल कार्बोहाइड्रेट से बनते हैं। इनमें प्राकृतिक फ़ाइबर जैसे कि सूती, पटसन (flax) और भांग, और मानव निर्मित फ़ाइबर जैसे विस्कोस, लायोसेल और मोडल शामिल होते हैं।
लायोसेल और विस्कोस (जिसे विस्कोस रेयॉन भी कहा जाता है) के कपड़े, अपनी खासियतों जैसे मुलायमियत, सांस लेने की क्षमता और मज़बूती के कारण, कपड़े, घरेलू वस्त्रों और यहां तक कि औद्योगिक स्थानों में भी इस्तेमाल होते हैं। 2018 में भारत का विस्कोस फ़ाइबर उत्पादन 369.820 मिलियन किलोग्राम तक पहुँच गया, जो 1981 के बाद से सबसे ज़्यादा था और 2017 के मुकाबले इसमें काफी बढ़ोतरी हुई थी (364.990 मिलियन किलोग्राम)।
तो आज हम जानेंगे कि भारत में बनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कृत्रिम सेलूलोज़ फ़ाइबर कौन से हैं। उसके बाद, हम विस्कोस और लायोसेल की विशेषताओं और उपयोगों के बारे में बात करेंगे। फिर हम, अपने देश में विस्कोस के उत्पादन प्रक्रिया के बारे में जानेंगे। इसके बाद, इस फ़ैब्रिक के बाज़ार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े देखेंगे, इसमें इसके आयात और निर्यात पर ध्यान दिए जाएगा । अंत में, हम जानेंगे कि हमारे देश में विस्कोस रेयॉन के प्रमुख निर्माता कौन से हैं।
भारत में बनाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के कृत्रिम सेलूलोज़ कपड़े
- विस्कोस – यह एक प्रकार का उत्पादन प्रक्रिया है जिसमें कार्बन डाईसल्फ़ाइड (Carbon disulfide) , सोडियम हाइड्रॉक्साइड (Sodium hydroxide) और सल्फ़्यूरिक एसिड (Sulfuric acid) का इस्तेमाल होता है। ये सभी रसायन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं।
- मोडल – इस प्रक्रिया में भी वही रसायन इस्तेमाल होते हैं, लेकिन इन रसायनों के बदलते तरीके से मोडल फ़ाइबर की गीली मजबूती बढ़ती है।
- लायोसेल – यह भी विस्कोस जैसी ही प्रक्रिया है, लेकिन इसमें सोडियम हाइड्रॉक्साइड की जगह एक जैविक विलयन, जिसे एन-मिथाइलमॉर्फोलिन एन-ऑक्साइड (N-Methylmorpholine N-oxide) कहा जाता है, का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें उपयोग किए गए रसायनों और पानी का 100% पुनर्चक्रण किया जाता है। लायोसेल आमतौर पर दो ब्रांड नामों टेंसेल (TENCEL) और मोनोसिल (MONOCEL) के तहत बेचा जाता है।
- पुनर्नवीनीकरण फ़ाइबर आधारित मानव निर्मित फ़ाइबर – हाल के तकनीकी सुधारों की वजह से अब पुनर्नवीनीकरण सामग्री से बने मानव निर्मित फ़ाइबर का विकास किया गया है।
विस्कोस और लायोसेल की विशेषताएँ और उपयोग
विस्कोस: विस्कोस एक सेमी-सिंथेटिक कपड़ा है, जिसे शहद जैसी तरल से बनाया जाता है। इसे फ़ाइबर बनाने के लिए प्रोसेस किया जाता है। यह कपड़ा आरामदायक और सस्ता होता है, इसलिए यह बहुत से कपड़ों में इस्तेमाल होता है। विस्कोस में सांस लेने की क्षमता होती है, यानी यह शरीर की गर्मी को फंसाता नहीं है, जिससे यह गर्म और गीले मौसम के लिए अच्छा होता है। हालांकि, यह कपड़ा कुछ समय बाद फट सकता है और आसानी से सिकुड़ सकता है। इसका इस्तेमाल सांस लेने की क्षमता और सस्ती कीमत के कारण कई कपड़ों में किया जाता है।
लायोसेल: लायोसेल पर्यावरण के लिए अच्छा होता है। इसे बनाने की प्रक्रिया में रसायनों का 100% पुनर्चक्रण किया जाता है। लायोसेल के फ़ाइबर में सांस लेने की क्षमता और नमी को सोखने के गुण होते हैं, जो इसे संवेदनशील त्वचा वाले लोगों के लिए आदर्श बनाते हैं। यह कपड़ा बहुत मुलायम और चिकना होता है, जो अच्छे से लटकता है, जिससे यह कपड़ों और घर के कपड़े बनाने में बहुत अच्छा होता है। लायोसेल विस्कोस से ज़्यादा मज़बूत होता है, खासकर जब यह गीला होता है, और यह आसानी से सिकुड़ता नहीं है। इसका इस्तेमाल कपड़े और घर के कपड़े बनाने में किया जाता है।
भारत में विस्कोस का उत्पादन कैसे होता है ?
विस्कोस रेयॉन (Viscose Rayon) सबसे प्रसिद्ध और सबसे पुराना मानव निर्मित रेशमी फ़ाइबर है, जो मानव निर्मित सेलूलोज़ फ़ैब्रिक (Man Made Cellulose Fabric (MMCF)) का 80% हिस्सा बनाता है। इसकी शुरुआत सेल्युलोसिक सामग्री (ज़्यादातर पेड़ों) को तोड़कर पल्प बनाने से होती है। फिर इसे कैस्टिक सोडा (सोडियम हाइड्रॉक्साइड) में मिलाया जाता है। इसे कुछ समय तक घोलने के बाद, इसे काटकर रखा जाता है। फिर, इस पल्प को कार्बन डाईसल्फ़ाइड से ट्रीट किया जाता है, जिससे एक नारंगी रंग का पदार्थ बनता है। फिर इसे कम घनत्व वाले कैस्टिक सोडा में डाला जाता है। इसके बाद, यार्न की चमक बढ़ाने के लिए इसे एक खास रासायनिक मिश्रण मिलाया जाता है। फिर, शुद्ध सेलूलोज़ को एक घुलनशील यौगिक में बदला जाता है। इस घोल को एक स्पिनरेट के माध्यम से एक बाथ में डाला जाता है, जिसमें सल्फ़्यूरिक एसिड के यौगिक होते हैं, जो सेलूलोज़ को फिर से ठोस फ़ाइबर में बदल देते हैं।
भारत में विस्कोस बाज़ार से कुछ महत्वपूर्ण आंकड़े
विस्कोस फ़ाइबर का आयात-निर्यात: वित्तीय वर्ष 2012-2016 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से बढ़ती मांग के कारण विस्कोस फ़ाइबर के निर्यात में वृद्धि हुई। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2017 में विस्कोस रेयान का निर्यात घटा है। 2016 में 154 मिलियन किलोग्राम से घटकर 2017 में 107.83 मिलियन किलोग्राम हो गया। विस्कोस फ़ाइबर का आयात वित्तीय वर्ष 2012 से लेकर 2016 तक बढ़ा, फिर 2017 में यह घटकर 26.74 मिलियन किलोग्राम रह गया।
विस्कोस फ़िलामेंट यार्न (VFY) का आयात-निर्यात: विस्कोस फ़िलामेंट यार्न का आयात निर्यात से ज़्यादा है। वित्तीय वर्ष 2014 में VFY का आयात 16.8 मिलियन किलोग्राम था, जो 2017 में घटकर 5.3 मिलियन किलोग्राम रह गया। भारत में अच्छे गुणवत्ता वाली लकड़ी की पल्प उपलब्ध नहीं है, जबकि उत्पादन क्षमता अधिक है। उच्च गुणवत्ता वाले विस्कोस फ़िलामेंट यार्न के लिए, भारत अन्य देशों से आयात पर निर्भर है।
भारत में विस्कोस रेयान के प्रमुख निर्माता
ग्रासिम इंडस्ट्रीज़ भारत और वैश्विक स्तर पर विस्कोस फ़ाइबर के प्रमुख निर्माता हैं। भारत में विस्कोस फ़ाइबर की स्थापित क्षमता 416.68 मिलियन किलोग्राम है। 2017 में विस्कोस फ़िलामेंट यार्न के सात निर्माता थे, जिनकी स्थापित क्षमता 81.27 मिलियन किलोग्राम थी। इन कंपनियों में सेंचुरी रेयान, आदित्य बिड़ला न्यूवो (इंडियन रेयान कॉर्पोरेशन), केसराम रेयान, नेशनल रेयान कॉर्पोरेशन और अन्य शामिल हैं।
आदित्य बिड़ला न्यूवो (इंडियन रेयान) और सेंचुरी रेयान मिलकर 80 प्रतिशत से अधिक उत्पादन करते हैं। केसराम रेयान लगभग 18 प्रतिशत रेयान उत्पादन में योगदान करता है, और अन्य कंपनियाँ केवल 2 प्रतिशत विस्कोस रेयान का उत्पादन करती हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
फ़ीलपाँव से मुक्ति के लिए, जौनपुर के नदी-नालों की सफ़ाई अत्यंत ज़रूरी है
कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
Bacteria,Protozoa,Chromista, and Algae
25-04-2025 09:12 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर शहर में कई लोग गोमती नदी के किनारे रहते हैं! हालाँकि यह नदी जौनपुर के कई क्षेत्रों को पोषित करती है, लेकिन बरसात या बाढ़ के बाद, नदी-नालों के आसपास के इलाके गंभीर बीमारियों के प्रति बेहद संवेदनशील हो जाते हैं! जैसे कि इस तरह के इलाकों में मलेरिया होने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है! लेकिन क्या आप जानते हैं कि “मलेरिया की तरह फ़ीलपाँव (Elephantiasis) भी एक खतरनाक परजीवी संक्रमण होता है”! इसे “हाथीपांव” या लसीका फ़ाइलेरिया (Lymphatic filariasis) के नाम से भी जाना जाता है और यह संक्रमण भी मच्छरों के ज़रिए फैलता है! इससे संक्रमित व्यक्ति के शरीर के अंगों, ख़ासकर हाथ-पैर, स्तनों और जननांगों में असामान्य सूजन हो सकती है। भारत में इस रोग का बोझ दुनिया में सबसे अधिक है! चौंकाने वाली बात यह है कि दुनिया भर में फ़ाइलेरिया के कुल मामलों का लगभग 40% अकेले भारत में देखे गए हैं। देश में 31 मिलियन से अधिक लोग पहले से संक्रमित हैं, जबकि 450 मिलियन से ज़्यादा लोग इस बीमारी की ज़द में हैं। लेकिन क्या हम इस बीमारी को रोक सकते हैं? आज के इस लेख में हम जानेंगे कि लसीका फ़ाइलेरिया के लक्षण क्या होते हैं और यह हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करता है। इसके अलावा हम यह भी समझेंगे कि इसका इलाज कैसे किया जाता है। साथ ही, हम जानेंगे कि भारत सरकार इस बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कौन-कौन से कदम उठा रही है और आप ख़ुद को और अपने परिवार को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।
आइए सबसे पहले जानते हैं कि फ़ीलपाँव कैसे होता है ?
फ़ीलपाँव एक गंभीर बीमारी है, जो तब होती है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक संक्रमित मच्छरों के काटने का शिकार होता है। यह बीमारी उन क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है, जहाँ कुछ विशेष प्रकार के राउंडवॉर्म (Roundworm) मौजूद होते हैं। जब कोई संक्रमित मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है, तो ये सूक्ष्म परजीवी (लार्वा) उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। एक बार शरीर में पहुँचने के बाद, ये छोटे लार्वा रक्तप्रवाह में रहकर धीरे-धीरे विकसित होते हैं। फिर ये लसीका तंत्र (Lymphatic System) में जाकर परिपक्व हो जाते हैं और वहाँ कई वर्षों तक शरीर में मौजूद रह सकते हैं। समय के साथ, ये परजीवी लसीका तंत्र को नुक़सान पहुँचाने लगते हैं, जिससे शरीर में सूजन और अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
फ़ीलपाँव के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
इस बीमारी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण दिखाई नहीं देते। कई वर्षों तक व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह संक्रमण से प्रभावित हो चुका है।
लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, कुछ स्पष्ट लक्षण उभरने लगते हैं! जैसे कि:
अत्यधिक सूजन: शरीर के कुछ हिस्सों, ख़ासकर पैरों, हाथों, स्तनों या जननांगों में असामान्य रूप से सूजन आ जाती है।
त्वचा में बदलाव: प्रभावित क्षेत्र की त्वचा मोटी, सख़्त और गाँठदार हो सकती है, जिससे वह हाथी की त्वचा जैसी दिखने लगती है।
दर्द और असहजता: सूजन वाले हिस्सों में दर्द, भारीपन और असहजता महसूस हो सकती है।
अन्य लक्षण: कुछ मामलों में तेज़ बुखार, ठंड लगना, कमज़ोरी और सामान्य अस्वस्थता महसूस हो सकती है।
साल 2023 तक, भारत में 6.19 लाख लोग लिम्फेडेमा और 1.26 लाख लोग हाइड्रोसील से प्रभावित पाए गए हैं। देश के 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 339 जिलों में फ़ाइलेरिया के स्वदेशी मामले दर्ज किए गए हैं।

कुछ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश फ़ाइलेरिया मुक्त माने जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
उत्तर-पश्चिम भारत – जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, दिल्ली और उत्तराखंड।
पूर्वोत्तर भारत – सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, मिज़ोरम, मणिपुर और त्रिपुरा।
आइए अब फ़ाइलेरिया प्रभावित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर एक नज़र डालते हैं:
उत्तर, पश्चिम, दक्षिण और पूर्व भारत – आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
केंद्र शासित प्रदेश – पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, और लक्षद्वीप।
फ़ाइलेरिया के बढ़ते हुए प्रभाव से बचाव और इसके उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने और चिकित्सा उपायों को तेज़ करने की ज़रूरत है। समय पर पहचान, रोकथाम और उपचार से इस बीमारी पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सकता है।
फ़ीलपाँव से कैसे बचाव करें ?
मच्छरों से बचाव ही फ़ीलपाँव से बचने के लिए सबसे कारगर उपाय साबित होता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण उपाय दिए गए हैं:
मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और कीटनाशकों का छिड़काव करें।
रुके हुए पानी को हटाएँ, ताकि मच्छरों को पनपने का मौका न मिले।
शरीर को पूरी तरह ढकने वाले कपड़े पहनें, ख़ासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मच्छर अधिक होते हैं। अगर आप किसी ऐसे इलाके में रहते हैं जहाँ यह बीमारी आम है, तो डॉक्टर की सलाह पर दवा लें।
फ़ीलपाँव का इलाज कैसे किया जाता है?
फ़ीलपाँव एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसका इलाज संभव है। इसके इलाज के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
एंटीपैरासिटिक दवाएँ : इस बीमारी के इलाज में कुछ ख़ास दवाएँ (जैसे आइवरमेक्टिन (Stromectol®), डायथाइलकार्बामाज़िन (Hetrazan®) और एल्बेंडाज़ोल (Albenza®)) दी जाती हैं। ये दवाएँ शरीर में मौजूद वयस्क कृमियों को नष्ट करने या उनके प्रजनन को रोकने में मदद करती हैं। इससे संक्रमण फैलने की संभावना भी कम हो जाती है। चूँकि कृमि शरीर में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं, इसलिए इन दवाओं को साल में एक बार, कुछ हफ़्तों तक लेने की सलाह दी जाती है।
सर्जरी: कुछ मामलों में, सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है। यदि शरीर में मृत कृमि (dead worms) मौजूद हैं, तो उन्हें हटाने के लिए ऑपरेशन किया जाता है। इसके अलावा, अगर फ़ाइलेरिया के कारण अंडकोश (Scrotum) में तरल पदार्थ जमा हो गया है, तो उसे निकालने के लिए भी सर्जरी की जाती है।
सूजन का प्रबंधन: फ़ीलपाँव के कारण शरीर में सूजन हो सकती है, जिसे कम करने के लिए कुछ ख़ास उपाय किए जाते हैं। डॉक्टर, मरीज़ों को सूजन कम करने के लिए प्रभावित अंग को ऊँचा रखने या विशेष प्रकार के कपड़े – संपीड़न वस्त्र (Compression Garments) पहनने की सलाह देते हैं। इससे सूजन में राहत मिलती है और बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।

इलाज में सही दवाओं, समय पर सर्जरी और उचित देखभाल से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए, समय पर डॉक्टर से सलाह लेना बहुत ज़रूरी है। भारत में यह एक गंभीर बीमारी है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए सरकार और स्वास्थ्य संस्थाएँ लगातार प्रयास कर रही हैं। आइए समझते हैं कि इसके लिए कौन-कौन से उपाय अपनाए जा रहे हैं और इसमें आपकी क्या भूमिका हो सकती है।
सामूहिक औषधि प्रशासन (MDA): भारत में हाथीपांव को जड़ से खत्म करने के लिए सामूहिक औषधि प्रशासन (Mass Drug Administration (MDA)) को प्रमुख रणनीति के रूप में अपनाया गया है। इसका उद्देश्य सिर्फ दवा बाँटना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि लोग दवा का सही तरीक़े से सेवन भी करें। यह अभियान, फ़रवरी 2023 में शुरू हुआ था। पहले चरण की सफलता के बाद, दूसरा चरण 10 अगस्त 2023 को शुरू हुआ, जिसमें 82 ज़िलों और 8 राज्यों को शामिल किया गया। गर्भवती महिलाएँ, दो साल से छोटे बच्चे और गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर, सभी लोग दवा ले सकते हैं। यदि आप दो साल से अधिक उम्र के हैं, तो आपको एम डी ए अभियान में दी जाने वाली दवा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। इससे संक्रमण फैलने से रोका जा सकता है।
अगर किसी व्यक्ति को हाथीपांव हो जाता है, तो समय पर सही उपचार और देखभाल से उसकी स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है। हाथीपांव से पीड़ित व्यक्ति को प्रभावित अंग की नियमित साफ़-सफ़ाई करनी चाहिए। सूजन कम करने और चलने-फिरने में आसानी के लिए डॉक्टर फ़िजियोथेरेपी की सलाह देते हैं। हाथीपांव फैलाने वाला परजीवी मच्छरों के ज़रिए शरीर में प्रवेश करता है।
इसलिए, मच्छरों को पनपने से रोकना बेहद ज़रूरी है:
- जौनपुर की नदियों और नालों को साफ़ रखें!
- घर और आसपास पानी जमा न होने दें।
- मच्छरदानी का इस्तेमाल करें और मच्छर भगाने वाली क्रीम लगाएँ।
- सरकार द्वारा चलाए जा रहे फ़ॉगिंग और स्प्रे अभियानों में सहयोग करें।
भारत को हाथीपांव मुक्त बनाने का लक्ष्य तभी हासिल होगा जब हम सभी मिलकर इसमें सहयोग करें।
संदर्भ
मुख्य चित्र में फ़ीलपाँव से पीड़ित और जौनपुर के दृश्य का स्रोत : wikimedia, प्रारंग चित्र संग्रह
जौनपुर का शिल्प व निर्माण उद्योग, 3 डी प्रिंटिंग में देख रहा है अपना भविष्य
नगरीकरण- शहर व शक्ति
Urbanization - Towns/Energy
24-04-2025 09:26 AM
Jaunpur District-Hindi

हमारा शहर जौनपुर, शिल्प कौशल में अपने समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है और आज अपने औद्योगिक परिदृश्य को विकसित कर रहा है। गहने बनाने, स्थानीय विनिर्माण और यहां तक कि चिकित्सा अनुप्रयोगों में, यह 3 डी प्रिंटिंग (3D printing) का लाभ उठा सकता है, तथा नए आर्थिक और रोज़गार अवसरों की पेशकश कर सकता है। यह कहते हुए, हम आपको बता दे कि, 3 डी प्रिंटिंग, जिसे एडिटिव मैन्युफ़ैक्चरिंग (Additive manufacturing) के रूप में भी जाना जाता है, डिजिटल डिज़ाइन की मदद से प्लास्टिक या धातुओं की परतों से, तीन-आयामी (three-dimensional) वस्तुएं बनाने की प्रक्रिया है। यह स्वास्थ्य सेवा, मोटर वाहन और निर्माण जैसे उद्योगों में क्रांति लाती है। 2024 में 707 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य वाले भारतीय 3 डी प्रिंटिंग बाज़ार का मूल्य, 2033 तक 4,330 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। तो आज, आइए इस विनिर्माण प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बात करते हैं। इस संदर्भ में, हमें 3 डी प्रिंटर और उनके कार्य सिद्धांत के बारे में पता चलेगा। इसके अलावा, हम भारत में 3 डी प्रिंटिंग के औद्योगिक अनुप्रयोगों का पता लगाएंगे। उसके बाद, हम इस उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों के बारे में बात करेंगे।
3 डी प्रिंटर क्या हैं ?
3 डी प्रिंटर, पिघले हुए प्लास्टिक या पाउडर जैसी विभिन्न प्रकार की सामग्रियों का उपयोग करते हुए, तीन-आयामी वस्तुएं बनाने हेतु, कंप्यूटर एडेड डिज़ाइन (Computer Aided Design) का उपयोग करते हैं। ये प्रिंटर, एक आम टेबल पर रखे जा सकने वाले उपकरणों से लेकर, 3 डी-मुद्रित घरों के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले बड़े मॉडल जैसे विभिन्न प्रकार के आकार में आ सकते हैं। इनके तीन मुख्य प्रकार होते हैं, और प्रत्येक प्रकार थोड़ी अलग विधि का उपयोग करता है।
3 डी प्रिंटर वांछित वस्तु बनाने के लिए, एक लेयरिंग विधि (Layering method) अर्थात परतों का उपयोग करते हैं। वे नीचे से ऊपर की ओर काम करते हैं, और एक परत के बाद दूसरी परत का ढेर बनाते रहते हैं, जब तक कि वह वस्तु डिज़ाइन की तरह नहीं दिखती है।
भारत में 3 डी प्रिंटिंग के औद्योगिक अनुप्रयोग:
3 डी प्रिंटिंग तकनीक को भारत में कई क्षेत्रों में अपनाया जा रहा है, जो पारंपरिक विनिर्माण विधियों में क्रांति ला रही है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में, 3 डी प्रिंटिंग का उपयोग मरीज़-विशिष्ट प्रत्यारोपण, प्रोस्थेटिक्स (Prosthetics) और शारीरिक मॉडल बनाने के लिए किया जाता है। ये नवाचार चिकित्सा लागत को कम करते हुए, शल्य–चिकित्सा शुद्धता और परिणामों को बढ़ाते हैं। मोटर वाहन उद्योग, 3 डी प्रिंटिंग से तेज़ी से प्रोटोटाइप (Prototype), टूलिंग (Tooling) और हल्के घटकों को उत्पादित करके लाभान्वित होता है, जो उत्पादन चक्रों को कम करते है और वाहन दक्षता में सुधार करते है।
(a): प्लास्टिक सामग्री का फिलामेंट सिस्टम में फीड किया जाता है।
(b): फिलामेंट एक हीटेड मूविंग हेड से होकर गुजरता है, जहां यह पिघलता है और बाहर निकलता है।(c): पिघला हुआ फिलामेंट परत दर परत इच्छित आकार में जमा होता है।
(d): प्रिंटिंग प्रक्रिया के दौरान किसी भी ओवरहैंगिंग भाग को सहारा देने के लिए वर्टिकल सपोर्ट स्ट्रक्चर जोड़े जाते हैं।
(e): मूविंग प्लेटफ़ॉर्म प्रत्येक परत के जमा होने के बाद नीचे की ओर खिसकता है, जिससे ऑब्जेक्ट धीरे-धीरे आकार लेता है। | चित्र स्रोत : Wikimedia
विमानन उद्योग (Aviation Industry) में, एडिटिव मैन्युफ़ैक्चरिंग का उपयोग जटिल एवं हल्के भागों के निर्माण के लिए अनुमति देता है, जो उच्च प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हैं। इससे ईंधन दक्षता और उत्सर्जन में सुधार होता है। इसी तरह, गहने निर्माण उद्योग, उच्च परिशुद्धता के साथ जटिल डिज़ाइनों का उत्पादन करने हेतु 3 डी प्रिंटिंग का लाभ उठाता है। यह बड़े पैमाने पर अनुकूलन करता है तथा उत्पादन समय को कम करता है। इसके अलावा, भारत में निर्माण कंपनियां किफ़ायती आवास इकाइयों के निर्माण के लिए, 3 डी प्रिंटिंग के साथ प्रयोग कर रही हैं, जो टिकाऊ और लागत प्रभावी बुनियादी ढांचा समाधान की मांग को संबोधित करती है।
यह चित्र FFF तकनीक के माध्यम से 3D प्रिंटिंग की चरणबद्ध प्रक्रिया को दर्शाता है।
भारत के 3 डी प्रिंटिंग उद्योग के सामने चुनौतियां:
1.) मापनीयता-
पारंपरिक तकनीकों में, एक बार कोई डिज़ाइन सेट होने के बाद, इसकी कई प्रतियों को बहुत तेज़ी से बनाया जा सकता है। लेकिन 3 डी प्रिंटिंग इससे धीमी है।
2.) उच्च लागत-
स्वास्थ्य सेवा में, 3 डी प्रिंटिंग और उससे पहले व बाद की प्रक्रिया की प्रारंभिक स्थापना महंगी होती है ।
3.) नौकरी की हानि-
स्वचालन के कारण, इससे रोज़गार के अवसरों पर प्रभाव पड़ सकता है।
4.) सीमित सामग्री-
3 डी प्रिंटिंग के लिए कच्चा माल व्यापक नहीं है। और यह एक गंभीर चुनौती है।
5.) कुशल श्रम-
3 डी प्रिंटिंग के साथ काम करने के लिए, प्रतिभाशाली व्यक्तियों की ज़रूरत है, जिसकी भारत में कमी है।
3 डी प्रिंटिंग उद्योग को बढ़ावा देने के लिए, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई प्रमुख योजनाएं:
•समर्थ उद्योग:
भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित इस उद्योग पहल का उद्देश्य, 3 डी प्रिंटिंग को अपनाने सहित विनिर्माण प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है।
•वैश्विक संस्थानों के साथ साझेदारी:
सरकार ने अत्याधुनिक 3 डी प्रिंटिंग अनुसंधान केंद्रों की स्थापना के लिए, एप्लाइड मटीरियल्स (Applied Materials) जैसे संगठनों के साथ सहयोग किया है।
•रक्षा पहल:
रक्षा क्षेत्र ने, घटक उत्पादन के लिए 3 डी प्रिंटिंग के लाभों को मान्यता दी है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation (DRDO)) तथा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (Bharat Electronics Limited (BEL)), सक्रिय रूप से इस प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं।
•स्वास्थ्य सेवाओं में प्रगति:
बायोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्री रिसर्च असिस्टेंस काउंसिल (Biotechnology Industry Research Assistance Council (BIRAC)) ने स्थानीय स्वास्थ्य सेवा समाधान विकसित करने के लिए, एक 3 डी प्रिंटिंग ग्रैंड चैलेंज (3D printing grand challenge) की शुरुआत की।
•कुशलता विकास कार्यक्रम:
राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation (NSDC)) और केंद्रीय व राज्य सरकारों ने 3 डी प्रिंटिंग में युवाओं को प्रशिक्षित करने हेतु, कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। प्रधान मंत्री कौशल केंद्र भी युवाओं को प्रशिक्षण देते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में पर्यावरण-स्थायी 3D मुद्रित घर का स्रोत : Wikimedia
ऑफ़िस ही नहीं, खेत में भी प्रभावी प्रबंधन, कुशल संसाधन उपयोग व् बेहतर फ़सल पैदावार लाया एआई
संचार एवं संचार यन्त्र
Communication and IT Gadgets
23-04-2025 09:43 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर के नागरिकों, एआई-संचालित प्रौद्योगिकी के साथ, आज हमारे देश में कृषि करने का तरीका स्मार्ट और कुशल बन रहा है, जिससे किसानों को कई लाभ हो रहे हैं। एआई-संचालित उपकरणों से किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य की निगरानी करने, मौसम के पैटर्न की भविष्यवाणी करने और फ़सल रोगों का शीघ्र पता लगाने, नुकसान को कम करने और पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है। एआई को अपनाकर, किसान उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, लागत कम कर सकते हैं और कृषि को अधिक टिकाऊ बना सकते हैं, जिससे लाभदायक और कुशल कृषि का भविष्य सुनिश्चित हो सके। तो आइए, आज हम भारतीय कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात एआई की भूमिका और एआई अपनाने के लिए बढ़ावा देने वाली प्रमुख सरकारी पहलों के बारे में जानते हैं। इसके साथ ही, हम कृषि में एआई के साथ उपयोग की जा रही विभिन्न तकनीकों को समझेंगे। अंत में, हम कृषि क्षेत्र में एआई के फ़ायदों और चुनौतियों की जांच करेंगे।
भारत में कृषि में एआई:
वर्तमान में, भारतीय कृषि क्षेत्र में एआई-संचालित परिवर्तन देखे जा रहे हैं। एआई समाधान किसानों को वास्तविक समय डेटा और स्वचालन की सुविधा के साथ सशक्त बना रहे हैं, और मौसम की अप्रत्याशितता और श्रम की कमी जैसी चुनौतियों का समाधान करा रहे हैं। भारत में एआई के नेतृत्व वाली इस कृषि क्रांति को बढ़ावा देने में सरकारी पहल और निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्वपूर्ण है। भारत में कृषि परिदृश्य, जो देश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, एआई संचालित परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण दौर से गुज़र रहा है।कृषि बाज़ार में एआई बाज़ार का मूल्य 2023 में 1.7 बिलियन डॉलर से 23.1% की उल्लेखनीय चक्रवृद्धि वार्षिक दर की अनुमानित बाज़ार वृद्धि के साथ, 2028 तक 4.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की पहल और निजी क्षेत्र की प्रगति, कृषि नवाचार के लिए एआई का लाभ उठाने की भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं:
- परिशुद्ध कृषि: एक डेटा-संचालित दृष्टिकोण: एआई प्रौद्योगिकियों पर आधारित परिशुद्ध कृषि, किसानों को फ़सल प्रबंधन के बारे में सूचित निर्णय लेने की अनुमति देती है। एआई-संचालित उपकरण सिंचाई, उर्वरक और कीट नियंत्रण को अनुकूलित करने के लिए ड्रोन, सेंसर और उपग्रह इमेजरी से डेटा का विश्लेषण करते हैं।
- स्वस्थ फ़सल के लिए फ़सल रोग का निदान: भारत में फ़सल रोग उपज़ हानि का एक प्रमुख कारण रहा है, लेकिन एआई से इस स्थिति में परिवर्तन आ रहा है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करके गेहूं की फ़सलों में पीले रतुआ जैसी बीमारियों की समय पर पहचान करना आसान हो गया है। एआई-आधारित कीट निगरानी प्रणाली भारतीय किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान से निपटने में भी मदद कर रही है।
- स्वचालित खरपतवार नियंत्रण प्रणाली: एआई संचालित प्रणालियां फसलों से खरपतवारों को अलग करने के लिए कंप्यूटर विझन का उपयोग करती हैं और चुनिंदा रूप से जैविक उर्वरकों को लागू करती हैं, जिससे लागत और पर्यावरणीय क्षति दोनों कम हो जाती हैं।
- पशुधन स्वास्थ्य निगरानी: एआई के लाभ पशुधन प्रबंधन तक विस्तारित हैं, जो भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है। उन्नत सेंसर-आधारित प्रणालियाँ और छवि पहचान प्रौद्योगिकियाँ वास्तविक समय में पशुधन के व्यवहार और स्वास्थ्य की निगरानी करती हैं। ये प्रणालियाँ बीमारियों के शुरुआती लक्षणों का पता लगाती हैं, जिससे किसानों को त्वरित कार्रवाई करने और पशुधन उत्पादकता सुधारने में मदद मिलती है। में सुधार करने में मदद मिलती है।

एआई अपनाने के लिए बढ़ावा देने वाली सरकारी पहल:
भारत सरकार एआई को कृषि में एकीकृत करने में सक्रिय भूमिका निभा रही है। हाल ही में, केंद्रीय सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवा, कृषि और टिकाऊ शहरों पर केंद्रित तीन 'आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उत्कृष्टता केंद्रों' (Artificial Intelligence Centres of Excellence (CoEs) की स्थापना की घोषणा की गई।यह पहल, 'मेक एआई इन इंडिया और मेक एआई वर्क फॉर इंडिया' (Make AI in India and Make AI Work for India) दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसे वित्त वर्ष 2023-24 से वित्त वर्ष 2027-28 तक 990 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय द्वारा समर्थित किया जाएगा। इसके प्रमुख उद्देश्यों में किसानों को एआई-संचालित समाधानों के साथ सशक्त बनाना है। इसके अलावा,सरकार द्वारा निम्नलिखित परियोजनाएं भी चलाई जा रही हैं:
किसान ई-मित्र चैटबॉट: यह किसानों के लिए एक एआई-संचालित सहायक है, जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना और अन्य सरकारी पहलों से संबंधित प्रश्नों के लिए बहुभाषी सहायता प्रदान करता है।
एआई-आधारित फ़सल स्वास्थ्य निगरानी: यह व्यापक फ़सल स्वास्थ्य मूल्यांकन के लिए सैटेलाइट डेटा, मौसम की स्थिति और मिट्टी की नमी के स्तर की जानकारी प्रदान करती है।
राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली: यह कीट-संबंधी चुनौतियों का पता लगाने और उन्हें कम करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करती है।
कृषि में एआई आधारित प्रौद्योगिकियां:
मशीन लर्निंग और विश्लेषणात्मक पूर्वानुमान: मशीन लर्निंग एल्गोरिदम भविष्य के परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए मौसम पूर्वानुमान, मिट्टी के नमूने और फ़सल की स्वास्थ्य रिपोर्ट के जैसे विभिन्न स्रोतों से बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करते हैं। पूर्वानुमानित विश्लेषण किसानों को रोपण, उर्वरक और कटाई के बारे में सूचित निर्णय लेने में मदद करते हैं।
कंप्यूटर विझन और छवि पहचान: कृषि में, कंप्यूटर विझन तकनीक का उपयोग फ़सल के स्वास्थ्य की निगरानी करने, कीटों और बीमारियों का पता लगाने तथा छवि विश्लेषण के माध्यम से मिट्टी की स्थिति का आकलन करने के लिए किया जाता है।
रोबोटिक्स और स्वचालन: रोबोटिक प्रणाली से उच्च परिशुद्धता और दक्षता के साथ रोपण, निराई और कटाई जैसे श्रम-गहन कार्य किए जाते हैं। स्वचालन से शारीरिक श्रम पर निर्भरता कम होती है और उत्पादकता बढ़ती है।
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और सेंसर: आईओटी उपकरण और सेंसर मिट्टी की नमी, तापमान और आर्द्रता जैसे विभिन्न मापदंडों पर वास्तविक समय का डेटा एकत्र करते हैं। यह डेटा परिशुद्ध कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे किसानों को दूर से अपने खेतों की निगरानी और प्रबंधन करने की सुविधा मिलती है।
कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के फ़ायदे और नुकसान:
कृषि में एआई से होने वाले विभिन्न फायदों और नुकसान को निम्न तालिका के माध्यम से संक्षेप में समझा जा सकता है:
फ़ायदे | नुकसान | |
1 | परिशुद्ध कृषि और डेटा-संचालित निर्णय से कम संसाधनों के साथ अधिक उत्पादन | उच्च प्रारंभिक निवेश लागत |
2 | बेहतर फसल प्रबंधन और उपज की भविष्यवाणी | प्रौद्योगिकी पर निर्भरता
|
3 | संसाधनों का कुशल उपयोग | कृषि में संभावित नौकरी विस्थापन |
4 | कीट और रोगों का समय पर निदान और नियंत्रण | कृषि पद्धतियों के साथ एआई एकीकरण में चुनौतियां |
5 | श्रम प्रधान कार्यों का स्वचालन | छोटे पैमाने के किसानों के लिए सीमित पहुंच |
6 | उन्नत फ़सल निगरानी और रिमोट सेंसिंग | डेटा गोपनीयता और सुरक्षा जोखिम |
7 | जलवायु-अनुकूलित कृषि | एआई भविष्यवाणियों पर अत्यधिक निर्भरता |
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : WIkimedia
जौनपुर में जल प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों का समाधान संभव है, स्पंज शहरों की अवधारणा से
जलवायु व ऋतु
Climate and Weather
22-04-2025 09:26 AM
Jaunpur District-Hindi

हमारा शहर जौनपुर तेज़ी से शहरीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, लेकिन आज भी शहर को मॉनसून के मौसम में जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्पंज शहर के सिद्धांतों को समझकर, जलवायु परिवर्तन और जल प्रबंधन चुनौतियों के खिलाफ़ शहर में जलभराव की समस्या को सुधारने के लिए स्थायी समाधान किए जा सकते हैं। एक स्पंज शहर (Sponge City) एक शहरी नियोजन मॉडल है जिसमें बाढ़ और पानी की कमी को कम करने के लिए हरित बुनियादी ढांचे के संयोजन का उपयोग करके जल जमाव, रोक, भंडारण, उपचार और निकासी के माध्यम से तूफ़ानी जल (Stormwater) का प्रबंधन किया जाता है। ऑकलैंड (न्यूज़ीलैंड), वुहान और शेंज़ेन (चीन), और कोपेनहेगन (डेनमार्क) इस प्रकार के शहरों के कुछ लोकप्रिय उदाहरण हैं। तो आइए आज, स्पंज शहरों और इनके कार्य सिद्धांतों के बारे में विस्तार से जानते हैं और समझते हैं कि किसी शहर के झरझरेपन (Sponginess) को कैसे मापा जा सकता है। इसके साथ ही, हम देखेंगे कि ये शहर कैसे दिखते हैं। अंत में, हम जानेंगे कि स्पंज शहर की धारणा से भारत की बढ़ती बाढ़ समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है और नियमित भारतीय शहरों को स्पंज शहरों में कैसे बदला जा सकता है।
स्पंज शहर क्या है ?
स्पंज शहर, एक ऐसा शहरी क्षेत्र है, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक या 'हरित' विशेषताएं होती हैं, जो बाढ़ की स्थिति में पानी को अवशोषित कर सकती हैं। इन क्षेत्रों में पेड़ों और हरे स्थानों से लेकर पार्क, झीलें और यहां तक कि छतें भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन का यह प्रकृति-आधारित समाधान हरित बुनियादी ढांचे का एक हिस्सा है और टिकाऊ शहरी नियोजन में एक महत्वपूर्ण घटक है। हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रकृति का दोहन करने या "प्रकृति-आधारित समाधानों" का उपयोग करने में लोकप्रियता में बढ़ी है। शंघाई, न्यूयॉर्क और कार्डिफ़ जैसे विविध शहर, आंतरिक शहर के बगीचों, बेहतर नदी जल निकासी और पौधों के किनारों वाले फ़ुटपाथों के माध्यम से "स्पंजनेस" या झरझरापन को अपना रहे हैं।
किसी शहर की " स्पंजिनेस " को कैसे मापा जाता है ?
किसी शहर की " स्पंजिनेस " को मापने के लिए शहर के हरित बुनियादी ढांचे जैसे घास, पेड़, तालाब और झीलों सहित, ग्रे बुनियादी ढांचे जैसे कंक्रीट, फुटपाथ और इमारतों को मापा जाता है और देखा जाता है कि शहर का कितना हिस्सा हरे बुनियादी ढांचे से और कितना हिस्सा ग्रे बुनियादी ढांचे से ढका हुआ है। इसके साथ ही, शहरी मिट्टी के प्रकार और बनावट को भी जांचा जाता है ताकि यह आकलन किया जा सके कि इसमें कितना पानी हो सकता है, साथ ही पौधों का आवरण भी देखा जाता है, जो पानी को बनाए रखने और अपवाह को रोकने में मदद कर सकता है। इन सबकी गणना करने के लिए उपग्रह इमेजरी (Satellite Imagery) , कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (Machine Learning) का उपयोग किया जाता है।
एक स्पंज शहर कैसा दिखता है ?
स्पंज शहरों में छतें सीढ़ीदार चावल के खेतों की तरह होती हैं, जिन्हें शुष्क मौसम में बगीचे के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जबकि बरसात के मौसम में, छतों पर पानी जमा हो जाता है जो अन्यथा घातक बाढ़ का कारण बन सकता है। ऐसी छतों के लिए, कंक्रीट का उपयोग न्यूनतम किया जाता है। छतों पर उगने वाली वनस्पति भी पानी को साफ़ करती है। सीढ़ीदार आर्द्रभूमियों और हरित नदी तटों के अलावा, स्पंज शहरों में पारगम्य फ़ुटपाथ, हरित दीवारें, छतें और इमारतें भी होती हैं।
स्पंज शहर, भारत की बढ़ती बाढ़ की समस्या का समाधान कैसे हो सकते हैं ?
उत्तर भारत में भारी वर्षा के कारण बड़े पैमाने पर बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती हैं तथा घरों, संरचनाओं और खाद्य आपूर्ति को भारी मात्रा में नुकसान होता है। इसलिए बड़े पैमाने पर इन आपदाओं से निपटने के लिए शहरों की तैयारियों के बारे में चिंता पैदा होती है। वर्तमान में, इन आपदाओं को रोकने के लिए सक्रिय उपायों की आवश्यकता बढ़ रही है। यहीं पर इन समस्याओं के समाधान के रूप में स्पंज शहर की अवधारणा सामने आती है, जो बाढ़ से होने वाले नुकसान को नियंत्रित करने के लिए संभावित समाधान पेश करते हैं। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ को संबोधित करने के लिए, इस अवधारणा को पहली बार 2000 के दशक की शुरुआत में चीन में पेश किया गया था। 2014 में, कई चीनी शहरों में इसकी पायलट परियोजनाएँ शुरू की गईं, जिनका बजट प्रति शहर 400 से 600 मिलियन युआन तक था। स्पंज शहरों का प्राथमिक उद्देश्य, न केवल शहरी बाढ़ को रोकना है बल्कि पारिस्थितिकी और जैव विविधता में सुधार करना और जल संसाधन की कमी को दूर करना भी है।
भारतीय शहरों को स्पंज शहरों में कैसे बदला जा सकता है:
- शहरों को स्पंज शहरों में बदलने के लिए, अतिरिक्त हरित स्थानों जैसे पार्क, पेड़ और प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को एकीकृत करने की आवश्यकता है। पार्कों, हरियाली और जल निकासी प्रणालियों की उपस्थिति बढ़ाने से शहर की "अवशोषण क्षमता" और बाढ़ के प्रति लचीलापन बढ़ता है।
- इससे ज़मीन की सतहें, जो स्पंज के समान कार्य करती हैं, वर्षा जल को अवशोषित कर सकती हैं, जिसे बाद में मिट्टी द्वारा स्वाभाविक रूप से फ़िल्टर किया जाता है और शहरी जलभृतों को पुनः भरा जा सकता है।
- इस एकत्रित पानी को कुओं के माध्यम से निकाला जा सकता है, उपचारित किया जा सकता है और शहर की जल आपूर्ति के लिए पुन: उपयोग किया जा सकता है।
- डिजिटल मैपिंग (Digital Mapping) उपकरणों की सहायता से शहर में वर्षा जल संचयन, तालाबों और आंतरिक शहर के बगीचों के लिए उपयुक्त स्थानों की पहचान की जा सकती है, साथ ही इन उपायों को लागू न करने के संबंधित जोखिमों को भी समझा जा सकता है।
यद्यपि स्पंज शहर की अवधारणा अभी अपेक्षाकृत नई है, और प्रत्येक शहरी क्षेत्र को अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. जिसके लिए उस क्षेत्र की ज़रूरतों और जैव विविधता के आधार पर अनुरूप समाधान की आवश्यकता होती है। हालाँकि, कई शहरों द्वारा अपने बुनियादी ढांचे में हरित स्थानों को जोड़कर स्पंज शहरों की अवधारणा को अपनाया जा रहा है। शंघाई, न्यूयॉर्क और कार्डिफ़ जैसे शहरों ने नदी जल निकासी में सुधार किया है, पौधों के किनारों वाले फुटपाथ बनाए हैं, और अपने स्पंजीपन को बढ़ाने के लिए शहर के भीतरी उद्यान विकसित किए हैं। वास्तव में, अपने शहरों को स्पंज शहरों में परिवर्तित करके, हम अधिक लचीला शहरी वातावरण बना सकते हैं, बाढ़ के जोखिमों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं और अपने समुदायों को जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों से बचा सकते हैं।
संदर्भ
मुख्य चित्र में जौनपुर के शाही पुल का स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह
गधे के दूध की कीमत और खूबियाँ जानकर आप भी जौनपुर में इनके पालन के बारे में सोचने लगेंगे !
स्तनधारी
Mammals
21-04-2025 09:32 AM
Jaunpur District-Hindi

जौनपुर के अधिकांश दूध व्यापारी, गाय, भैंस और बकरी के बारे में तो जानते हैं, लेकिन गधे के दूध के अनोखे गुणों और इसकी ऊँची कीमत से अनजान हैं। आइए बहुत कम लोग हैं, जिन्हें इसकी पौष्टिकता और औषधीय लाभों की जानकारी है, जबकि यह दूध, कई मामलों में हमारे लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। आज के इस लेख में सबसे पहले हम जानेंगे कि क्या भारत में इसकी मांग सच में बढ़ रही है, और किसान इसके माध्यम से मुनाफ़ा कैसे कमा सकते हैं? फिर हम जानेंगे कि आखिर गधे के दूध को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है, इसके स्वास्थ्य लाभ क्या हैं, और किन विशिष्ट मापदंडों में यह बेहतर विकल्प साबित हो सकता है? इसके बाद, हम ग्लोबल स्किनकेयर (Skincare) और सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetics) उद्योग में इसकी प्रमुखता पर नज़र डालेंगे। फिर अंत में, हम जानेंगे कि जौनपुर में गधा फ़ार्म स्थापित करने की लागत कितनी होगी और यह किसानों के लिए एक नया, स्थायी व्यवसाय बन सकता है या नहीं।
आइए सबसे पहले जानते हैं कि भारत में गधे के दूध की कीमत कितनी है?
बेंगलुरु स्थित "तक्ष्वी एग्री प्रोडक्ट्स (Taksvi Agri Products)" नामक एक कंपनी आज गधे का दूध और दूध पाउडर बेच रही है। इसका फ़ार्म कोलार में स्थित है, जबकि प्रसंस्करण इकाई हैदराबाद में और मुख्य कार्यालय बेंगलुरु के नंदिनी लेआउट में है।
इनके द्वारा बेचे जा रहे गधे के दूध की कीमत नीचे दी गई हैं:
-250 मिलीलीटर – ₹1,000
-500 मिलीलीटर – ₹2,000
- 1 लीटर – ₹ 3,200
इस दूध को बर्फ से भरे थर्मोकोल के डिब्बों में पैक कर ग्राहकों तक पहुँचाया जाता है। इसके अलावा, गधे के दूध का पाउडर भी उपलब्ध है, जिसकी कीमत ₹30,000 प्रति आधा किलो है। फ़िलहाल, इस कंपनी ने अपनी सेवाएँ केवल दक्षिणी बेंगलुरु तक ही सीमित रख रही हैं ।
गधे का दूध इतना महंगा क्यों है, इसका अंदाज़ा आपको इसकी ख़ूबियों को जानने के बाद लगेगा! गधे का दूध सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद माना जाता है। यह कई आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जो शरीर को मज़बूत और स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं।
इसके प्रमुख लाभों में शामिल हैं—
- पोषण से भरपूर: गधे के दूध में विटामिन A (Vitamin A), विटामिन D (Vitamin D) , कैल्शियम (Calcium) और पोटैशियम (Potassium) जैसे आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। ये तत्व हड्डियों को मज़बूत बनाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और दृष्टि सुधारने में सहायक होते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, यह दूध समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।
- आसानी से पचने वाला: गधे के दूध की संरचना मानव दूध के समान होती है, जिससे इसे पचाना आसान होता है। ख़ासतौर पर लैक्टोज़ असहिष्णुता (Lactose Intolerance) से पीड़ित लोगों के लिए यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है। गाय के दूध की तुलना में यह हल्का होता है और कम एलर्जी उत्पन्न करता है।
- त्वचा के लिए फ़ायदेमंद: प्राचीन समय से ही गधे के दूध का उपयोग त्वचा की देखभाल में किया जाता रहा है। इसमें मौजूद प्रोटीन (Protein) और लिपिड (Lipid), त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने, उसकी लोच बढ़ाने और जलन कम करने में मदद करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, यह दूध त्वचा को निखारने और सूरज की हानिकारक किरणों से बचाने में भी प्रभावी होता है।
- सूजन को कम करने में सहायक: गधे के दूध में सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) गुण पाए जाते हैं, जो त्वचा संबंधी रोगों और पुरानी सूजन से जुड़ी बीमारियों में राहत प्रदान कर सकते हैं। एक शोध के मुताबिक, इसके नियमित सेवन से शरीर में सूजन को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
- कम वसा वाला स्वास्थ्यवर्धक विकल्प: भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के अनुसार, गधे के दूध में गाय के दूध की तुलना में वसा की मात्रा कम होती है। यह उन लोगों के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है, जो अपने आहार में पोषक तत्व बनाए रखते हुए संतृप्त वसा की मात्रा कम करना चाहते हैं।
गधे का दूध पोषण से भरपूर, आसानी से पचने वाला और त्वचा के लिए लाभकारी होता है। इसके सूजनरोधी गुण और कम वसा सामग्री, इसे स्वास्थ्य के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाते हैं। यदि आप एक प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक विकल्प की तलाश में हैं, तो गधे का दूध, एक अच्छा समाधान हो सकता है।
आइए अब आपको वैश्विक व्यक्तिगत देखभाल उद्योग में गधे के दूध की भूमिका से परिचित कराते हैं:
आज की तारीख में गधे का दूध, सौंदर्य और व्यक्तिगत देखभाल से संबंधित उत्पादों में एक प्रमुख घटक बन चुका है। इसका उपयोग विशेष रूप से साबुन, क्रीम, सौंदर्य प्रसाधन और मॉइस्चराइज़र जैसे स्किनकेयर उत्पादों में किया जाता है। ये उत्पाद प्रीमियम श्रेणी में आते हैं, क्योंकि इनकी कीमत अपेक्षाकृत अधिक होती है। उदाहरण के लिए, 100 ग्राम साबुन की कीमत ₹500 से ₹1000 तक हो सकती है।
यूरोपीय बाज़ार में गधे के दूध से बने उत्पादों की सबसे बड़ी रेंज उपलब्ध है, जहाँ फ्रांस इस उद्योग में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वहीं, एशियाई बाज़ार में भी इसकी मांग तेज़ी से बढ़ रही है। थाईलैंड, मलेशिया, दक्षिण कोरिया और चीन में इसे ख़ासतौर पर एंटी-एजिंग उत्पादों में खूब पसंद किया जा रहा है। इसके अलावा, रूस और पूरे यूरोप में भी इसकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है।
आइए, अब जानते हैं कि जौनपुर में गधा फार्म स्थापित करने की लागत कितनी आ सकती है ?
यदि आप जौनपुर में गधा फार्म शुरू करना चाहते हैं, तो सबसे पहले गधों के लिए एक सुरक्षित आश्रय और उनके चारे की उचित व्यवस्था करना आवश्यक होगा। गधा पालन, एक लाभदायक व्यवसाय बन सकता है, क्योंकि गधे के दूध की कीमत, बाज़ार में काफ़ी ऊँची है। एकगधे की औसत आयु, 20 से 25 वर्ष होती है और इसे गाय या बकरी की तुलना में कम खर्च में पाला जा सकता है। इसके अलावा, गधे की लीद और मूत्र भी अपने औषधीय गुणों के कारण महंगे दामों पर बेचे जाते हैं।
गधे से मिलने वाले उत्पादों की कीमतें इस प्रकार हैं:
- गधे के दूध की कीमत – ₹5,000 - ₹7,000 प्रति लीटर
- गधे के मूत्र की कीमत – ₹500 - ₹600 प्रति लीटर
- गधे की लीद (जैविक खाद) की कीमत – ₹600 - ₹700 प्रति किलो
गधा पालन के लिए 30 फ़ीट चौड़ा और 70 फ़ीट लंबा शेड पर्याप्त होता है, जिसकी निर्माण लागत, लगभग ₹50,000 पड़ती है।इस व्यवसाय को शुरू करने में लगभग ₹2.5 लाख का खर्चा आ सकता है। अच्छी बात यह है कि गधे पहले दिन से ही मुनाफ़ा देना शुरू कर सकते हैं। कुल मिलाकर, गधे के दूध की बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति, इसे एक आकर्षक और लाभदायक व्यवसाय बना रही है। यदि सही तरीके से निवेश किया जाए और अच्छी रणनीति अपनाई जाए, तो गधा पालन, जौनपुर के किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर साबित हो सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2brscehf
https://tinyurl.com/26uclwwn
https://tinyurl.com/2765mehl
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
चलिए, कुछ चलचित्रों के माध्यम से समझें कि कवर ड्राइव पर कैसे महारत हासिल की जा सकती है
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला
Locomotion and Exercise/Gyms
20-04-2025 09:09 AM
Jaunpur District-Hindi

यह जानना बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं है कि जौनपुर के कई क्रिकेट प्रेमी हर आई पी एल (IPL) सीज़न का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं । चाहे स्टेडियम में हो या स्क्रीन पर, हर खूबसूरत शॉट, लोगों को खुश कर देता है। कवर ड्राइव (cover drive) प्रशंसकों के पसंदीदा शॉटों में से एक है, जो अपनी सुंदरता और सही टाइमिंग के लिए जाना जाता है। कवर ड्राइव एक स्ट्रोक है जिसे बल्लेबाज़ आगे के पैर से खेलता है, जिसमें वह गेंद को ऑफ़ साइड (off side) के उस क्षेत्र की ओर ड्राइव करता है जिसे 'कवर' फ़ील्डिंग पोज़िशन (cover fielding position) कहा जाता है। कई क्रिकेटर अपने असाधारण कवर ड्राइव के लिए प्रसिद्ध हैं जैसे कि सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली, बाबर आज़म और कुमार संगकारा । अन्य उल्लेखनीय नामों में इयान बेल (Ian Bell), राहुल द्रविड़, ब्रायन लारा (Brian Lara) और केन विलियमसन (Kane Williamson) शामिल हैं। कवर ड्राइव को क्रिकेट के सबसे सुंदर शॉट्स में से एक माना जाता है। इसमें महारत हासिल करने वाले बल्लेबाज़ों की अत्यधिक प्रशंसा की जाती है, क्यों कि इस शॉट को खेलना बहुत कठिन है तथा इसके लिए बेहतरीन टाइमिंग की आवश्यकता होती है। यह स्ट्रोक, ऐतिहासिक रूप से क्रिकेट से जुड़ा हुआ है । तो आइए, आज हम कुछ चलचित्रों के माध्यम से देखें कि इस शॉट को सही तकनीक, संतुलन और लय के साथ कैसे खेला जाए। इन वीडियो क्लिप की मदद से हम कवर ड्राइव खेलने की सटीक तकनीक को चरण-दर-चरण समझेंगे आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने से लेकर ऑफ़-साइड में संतुलित ढंग से बल्ला चलाने तक। साथ ही, हम शरीर के संतुलन (body alignment), भार के स्थानांतरण (weight transfer) और शॉट के बाद की गति (follow-through) जैसी जैसी ज़रूरी बातों पर नज़र डालेंगे जो अनुभवी खिलाड़ियों और कोचों द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं। ये दृश्य, हमें न केवल यह समझने में मदद करेंगे कि यह शॉट कैसे खेला जाता है, बल्कि यह भी कि क्रिकेट खेलते समय निरंतरता और सही टाइमिंग कैसे विकसित की जाती है।
संदर्भ:
कैसे किसी ब्रांड की पोज़िशनिंग, जौनपुर के ग्राहकों के दिलों में उसकी जगह बनाती है ?
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
Modern State: 1947 to Now
17-04-2025 09:28 AM
Jaunpur District-Hindi

हमारे जौनपुर के कई दुकानदार, इस बात से सहमत होंगे कि, ग्राहक उन उत्पादों या ब्रांडों का चयन करते हैं, जो ‘अद्वितीय’ लगते हैं या दूसरों से अलग होते हैं। यह ब्रांड पोज़िशनिंग (Positioning) की शक्ति है। ये, उपभोक्ताओं के दिमाग में किसी ब्रांड की अनूठी जगह स्थापित करने की प्रक्रिया है, जो अक्सर बेहतर गुणवत्ता, नवाचार, या ग्राहक सेवा जैसे अद्वितीय विक्रय बिंदुओं को उजागर करते हुए, अंततः उसकी बिक्री बढ़ाती है। यह किसी ब्रांड को उसके प्रतियोगियों से अलग करने में मदद करता है, उसके मूल्य को संप्रेषित करता है, और एक अद्वितीय पहचान बनाता है। तो आज चलिए, ब्रांड पोज़िशनिंग और इसके महत्व को समझते हैं। उसके बाद, हम ब्रांड पोज़िशनिंग की कुछ लोकप्रिय रणनीतियों के बारे में बात करेंगे। अंत में, हम जानेंगे कि विश्व के कुछ सबसे बड़े ब्रांड, खुदको, अपने अपने ग्राहकों के सामने, कैसे प्रस्तुत करते हैं।
ब्रांड पोज़िशनिंग क्या है?
ब्रांड पोज़िशनिंग को, “लक्षित बाज़ार ग्राहकों के दिमाग पर विशिष्ट तरह से प्रभाव डालने हेतु, कंपनी की पेशकश और छवि को डिज़ाइन करने के कार्य” के रूप में परिभाषित किया गया है।
दूसरे शब्दों में, यह बताती है कि, कोई ब्रांड, अपने प्रतिद्वंद्वियों से अलग है, और यह ग्राहकों के दिमाग में कहां या कैसे बैठता है। इसलिए, एक ब्रांड पोज़िशनिंग रणनीति में, ग्राहकों के दिमाग में ब्रांड प्रभाव का निर्माण करना शामिल है, ताकि वे हमेशा ही ब्रांड को याद रख सके।
ब्रांड पोज़िशनिंग का महत्व:
•विभेदन:
प्रभावी ब्रांड पोज़िशनिंग, आपके ब्रांड पर लोगों का ध्यान बढ़ाती है और प्रतियोगियों के बाज़ार में उसे याद रखने में मदद करती है।
•स्पष्ट मूल्य:
स्पष्ट मूल्य, आपके ब्रांड के मूल्य प्रस्ताव और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को स्पष्ट करता है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए यह समझना आसान हो जाता है कि, उन्हें आपके ब्रांड को दूसरों पर क्यों चुनना चाहिए।
•संयोजकता:
मज़बूत ब्रांड पोज़िशनिंग, लंबे समय तक ब्रांड के प्रति ग्राहकों की वफ़ादारी बनाने के लिए, उनके साथ एक भावनात्मक संबंध स्थापित करती है।
•विपणन रणनीति:
अपने ब्रांड की स्थिति को जानने से, सभी संदेश, अभियान और कंटेंट को लगातार संरेखित करने के लिए, आपकी मार्केटिंग ब्रांड रणनीति को निर्देशित करने में मदद मिलती है।
•अनुभूति:
अनुभूति प्रभावित करती है कि, आपके लक्षित दर्शक आपके ब्रांड को कैसे मानते हैं, और यह सीधे उनके क्रय निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
•मूल्य निर्धारण:
एक अच्छी तरह से प्रसिद्ध ब्रांड, अक्सर उच्च कीमतों का उपयोग कर सकता है, क्योंकि ग्राहक, ऐसे ब्रांड के वादे और अनुभव में अतिरिक्त मूल्य का अनुभव करते हैं।
•विस्तार:
ब्रांड की एक स्पष्ट स्थिति, नए उत्पादों को पेश करने या एक सामंजस्यपूर्ण ब्रांड पहचान को बनाए रखते हुए, नए बाज़ारों में प्रवेश करना आसान बनाती है।
विश्व स्तर पर प्रसिद्ध ब्रांडों द्वारा नियोजित, ब्रांड पोज़िशनिंग की कुछ लोकप्रिय रणनीतियां:
1.) गुणवत्ता-आधारित पोज़िशनिंग रणनीति:
यह रणनीति, किसी ब्रांड को उच्च गुणवत्ता और उत्कृष्टता के प्रतीक के रूप में, पोज़िशनिंग पर केंद्रित करती है। बेहतर शिल्प कौशल, उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री और असाधारण प्रदर्शन पर ज़ोर देते हुए, ब्रांड का उद्देश्य उन ग्राहकों को आकर्षित करना है, जो शीर्ष उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे ग्राहक अतिरिक्त मूल्य और संतुष्टि के लिए एक उच्च कीमत का भुगतान करने के लिए भी तैयार होते हैं।
2.) मूल्य-आधारित स्थिति रणनीति:
इस दृष्टिकोण के साथ, ब्रांड खुद को बाज़ार में सबसे सस्ते विकल्प के रूप में रखता है। यह रणनीति, मूल्य-संवेदनशील ग्राहकों को लक्षित करती है, जो अच्छे सौदों और लागत-प्रभावशीलता की तलाश में होते हैं।
3.) ग्राहक सेवा रणनीति:
इस रणनीति में, कोई ब्रांड, उत्कृष्ट ग्राहक सेवा और समर्थन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका लक्ष्य, असाधारण देखभाल और सहायता के लिए एक प्रतिष्ठा पैदा करना, मज़बूत ग्राहक संबंधों का निर्माण करना और ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा करना है।
4.) सुविधा-आधारित स्थिति रणनीति:
एक सुविधा-आधारित रणनीति के साथ, कोई ब्रांड, खुद को ग्राहकों के लिए सबसे सुविधाजनक विकल्प के रूप में रखता है। इसका मतलब – परेशानी मुक्त क्रय विकल्प, तेज़ वितरण, आसान वापसी या उपयोगकर्ता के अनुकूल इंटरफ़ेस की पेशकश है।
5.) सोशल मीडिया पोज़िशनिंग रणनीति:
यह रणनीति सोशल मीडिया चैनलों पर एक मज़बूत उपस्थिति बनाने, लक्षित दर्शकों के साथ संलग्न होने और ब्रांड छवि को तैयार करने पर केंद्रित है, जो ग्राहकों के मूल्यों और हितों के साथ संरेखित करती है।
प्रभावी ब्रांड पोज़िशनिंग के कुछ उदाहरण:
1. एविस (AVIS) – “हम कठिन प्रयास करते हैं (We try harder)”
एविस ने 50 वर्षों के लिए ‘हम कठिन प्रयास करते हैं’, यह टैगलाइन आयोजित की थी। वे सबसे अच्छा बनना चाहते थे, इसलिए जब उपभोक्ता जो भुगतान करते हैं, उसके बदले में उन्हें एक बेहतर अनुभव प्राप्त होगा। तब उनकी प्रतिस्पर्धा हर्ट्ज़ (Hertz) के साथ थी, और उन्हें ग्राहकों को अपनी तरफ़ खींचना था। इस स्थिति ने, दूसरी सबसे बड़ी ‘कार किराया’ कंपनी होने के बावजूद भी, एविस को ऊंचा स्थान दिलाने में मदद की।
2. मैकडॉनल्ड्स (McDonalds) बनाम बर्गर किंग (Burger King):
बर्गर किंग के संचार व संवाद ने दुनिया भर में प्रशंसकों, पुरस्कारों और इस प्रकार ग्राहकों को जीता है। दूसरी ओर, मैकडॉनल्ड्स, अपनी श्रेणी में एक नेता के रूप में प्रसिद्ध हैं, और बर्गर किंग से प्रतिस्पर्धा करने से इनकार करता है। क्योंकि जैसे ही वे उन्हें स्वीकार करते हैं, अपनी श्रेणी के राजा के रूप में, उनकी स्थिति विवादित हो सकती है।
3. ऐप्पल (Apple) – “मैं एक मैक हूं (I’m a Mac)”
ऐप्पल ने अपने उत्पाद की पेशकश को, एक विज्ञापन अभियान में, “मैं एक मैक हूं” कहा। अपने लोकप्रिय उत्पाद – मैक को नए, उत्कृष्ट और आम टच पी सी (Touch PC) की तुलना में अधिक सामयिक उत्पाद के रूप में पोज़िशनिंग देते हुए, ऐप्पल ने माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) की तुलना में अधिक आधुनिक और सुविधाजनक उत्पाद के रूप में पेश किया।
संदर्भ
मुख्य चित्र में स्टारबक्स साइनबोर्ड का स्रोत : Pexels
क्यों जौनपुर के लोग, आज रीचार्जेबल बैटरियों के बिना, अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते?
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली
Architecture II - Office/Work-Tools
14-04-2025 09:15 AM
Jaunpur District-Hindi

हम जौनपुर के लोग, अपने फ़ोन, लैपटॉप, कैमरे, और अन्य इलेक्ट्रिक उपकरणों में मौजूद रीचार्जेबल बैटरियों को, उनके ऊर्जा प्रभावी फ़ायदे के लिए लिए धन्यवाद देते हैं। इन विद्युत बैटरियों (इलेक्ट्रिकल Batteries) को स्टोरेज बैटरी या सेकेंडरी सेल भी कहा जाता है। इन्हें कई बार चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है । एक तरफ़, डिस्पोज़ेबल या प्राथमिक बैटरी को पूरी तरह से बिजली आपूर्ति की जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि, बैटरी कैसे काम करती है। तो आज, इसके बारे में विस्तार से जानकारी पाए। फिर, हमें भारत में मौजूद कुछ लोकप्रिय प्रकार की रीचार्जेबल बैटरी के बारे में पता चलेगा। इसके अलावा, हम रीचार्जेबल बैटरी के कुछ नुकसानों पर प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम रीचार्जेबल बैटरी उत्पादन की वर्तमान वैश्विक स्थिति का पता लगाएंगे।
बैटरी कैसे काम करती है ?
बैटरी काम कर सके, इसलिए बिजली को आसानी से संग्रहीत किए जाने से पहले, एक रासायनिक पोटेंशियल (Chemical potential) रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए। एक बैटरी, दो विद्युत टर्मिनलों (Electrical terminals) से मिलकर बनती है, जिन्हें कैथोड (Cathode) और एनोड (Anode) कहा जाता है। इन्हें एक रासायनिक सामग्री द्वारा अलग किया जाता है, जिसे इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte) कहा जाता है। ऊर्जा को स्वीकार करने और जारी करने के लिए, एक बैटरी को बाहरी सर्किट (Circuit) में जोड़ा जाता है। इलेक्ट्रॉनों (Electrons) को सर्किट के माध्यम से स्थानांतरित किया जाता है, जबकि आयंस (Ions) (एक विद्युत आवेश के साथ परमाणु या अणु) इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से चलते हैं।
एक रीचार्जेबल बैटरी में इलेक्ट्रॉन और आयन, सर्किट और इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से किसी भी दिशा में स्थानांतरित हो सकते हैं। जब इलेक्ट्रॉन कैथोड से एनोड तक जाते हैं, तो वे रासायनिक पोटेंशियल ऊर्जा को बढ़ाते हैं, इस प्रकार बैटरी को चार्ज करते हैं। जबकि, जब वे दूसरी दिशा में स्थानांतरित होते हैं, तो वे इस रासायनिक पोटेंशियल ऊर्जा को सर्किट में, बिजली में परिवर्तित करते हैं और बैटरी को डिस्चार्ज करते हैं।
चार्जिंग या डिस्चार्जिंग के दौरान, विपरीत रूप से चार्ज किए गए आयन, इलेक्ट्रोलाइट के माध्यम से बैटरी के अंदर, बाहरी सर्किट के माध्यम से जाने वाले इलेक्ट्रॉनों के आवेश को संतुलित करने तथा एक स्थायी व रीचार्जेबल सिस्टम का उत्पादन करने के लिए चलते हैं। एक बार चार्ज होने के बाद, बैटरी को बाद में बिजली के रूप में उपयोग के लिए, रासायनिक पोटेंशियल ऊर्जा को करने हेतु सर्किट से वियोजित किया जा सकता है।
भारत में लोकप्रिय रीचार्जेबल बैटरियों के प्रकार:
1.) निकेल कैडमियम बैटरी (Nickel-cadmium Batteries):
इस बैटरी को इसके स्थायित्व और लागत-प्रभावशीलता के लिए जाना जाता है। उन्हें कई औद्योगिक क्षेत्रों में प्रयुक्त किया जाता हैं। हालांकि, वे नए बैटरी विकल्पों की तुलना में थोड़े पुराने हैं। निकेल कैडमियम (Ni-Cd) बैटरी, उच्च ऊर्जा भंडारण की पेशकश करती है, और आंशिक डिस्चार्ज को संभाल सकती है। वे कई उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए भी उपयुक्त हैं।
2.) लिथियम आयन बैटरी (Lithiumion Batteries):
ये बैटरियां, दक्षता और भंडारण क्षमता में नेतृत्व करती हैं। वे 97% ग्रिड एनर्जी स्टोरेज (Grid energy storage) मार्केट को कवर करती हैं। उनके लिए विशेष चार्जर्स का उपयोग करना महत्वपूर्ण है। यह उनकी उच्च वोल्टेज ज़रूरतों और संवेदनशीलता के कारण है।
3.) हाइब्रिड बैटरी (Hybrid Batteries):
ज़ेबरा (ZEBRA) या सोडियम मेटल हैलाइड (Sodium metal halide) जैसी हाइब्रिड बैटरियों में आज हितधारकों की रुचि बढ़ रही है। ये बैटरियां, स्थिर और लागत प्रभावी ग्रिड अनुप्रयोगों के लिए अच्छी हैं। कार्बनिक जलीय प्रवाह बैटरी (Organic aqueous flow batteries) में भी अद्वितीय गुण होते हैं। वे बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा को स्टोर कर सकती हैं।
4.) लेड एसिड बैटरी (Lead-Acid Batteries):
आज सुरक्षित एवं इको-फ्रेंडली बैटरियों पर विचार किया जा रहा है। लेड एसिड बैटरी पुनर्नवीनीकरण योग्य हैं। वे कई उपयोगों के लिए, अच्छा ऊर्जा भंडारण प्रदान करते हैं।
रीचार्जेबल बैटरी के नुकसान:
1.) अधिक अप-फ़्रंट लागत:
रीचार्जेबल बैटरियां, डिस्पोज़ेबल बैटरियों की तुलना में अधिक महंगी है। हालांकि, जब आप किसी डिवाइस या विद्युत प्रणाली के जीवन पर दीर्घकालिक उपयोग की लागत पर विचार करते हैं, तो रीचार्जेबल बैटरियों की समग्र लागत कम होती है।
2.) स्टोरेज में चार्ज भंडारण की सीमित क्षमता:
जब रीचार्जेबल बैटरी उपयोग में नहीं होती है, तो यह डिस्पोज़ेबल बैटरी की तुलना में अधिक तेज़ी से बिजली खो देती है। हालांकि, इस बैटरी के उपयोग में होने पर, यह नुकसान व्यावहारिक रूप से काफ़ी कम हो जाता है।
3.) समाप्त होने पर सूचना का अभाव:
रीचार्जेबल बैटरी, समय के साथ डिस्पोज़ेबल बैटरी के विपरीत लगातार प्रदर्शन करती है। उदाहरण के तौर पर, आपका फ़ोन तब तक पूरी तरह कार्यात्मक रहेगा, जब तक कि बैटरी डिस्चार्ज नहीं हो जाती।
रीचार्जेबल बैटरी उत्पादन की वर्तमान वैश्विक स्थिति:
2023 में एडमास इंटेलिजेंस (Adamas Intelligence) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों एवं दुनिया के आधे से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों का उत्पादन, चीन (China) द्वारा किया गया था। इस संदर्भ में दूसरे और तीसरे उत्पादक, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (United States of America) और जर्मनी (Germany) थे। फिर यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) एवं फ़्रांस(France), क्रमशः चौथे तरह पांचवें स्थान पर थे।
हालांकि चीन-निर्मित ई वी बैटरियों का उत्पादन, दिसंबर 2022 में 58% वैश्विक ई वी बैटरी खपत से घटकर दिसंबर 2023 में 54% हो गया था।
संदर्भ:
मुख्य चित्र: रीचार्जेबल AA और AAA बैटरियों के लिए एक सामान्य उपभोक्ता बैटरी चार्जर और आईफ़ोन 3GS में प्रयोग होने वाली लिथियम-आयन पॉलीमर बैटरी (Wikimedia)
संस्कृति 1987
प्रकृति 743