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भारत में ऐसी कई नदियां हैं, जिनका अपना-अपना सांस्कृतिक महत्व है। इसी महत्व के कारण इनके उल्लेख हमें विभिन्न हिंदू ग्रंथों में भी देखने को मिलते हैं। सई नदी (सई सेतु) भी हिंदू धर्म की सबसे पवित्र नदियों में से एक है जिसका उल्लेख पुराणों और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस में भी किया गया है। यह नदी भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में गोमती नदी की एक सहायक नदी है, जोकि हरदोई जिले के एक गांव पारसोई में पहाड़ी पर बने विशाल तालाब से निकलती है। आदि गंगा के नाम से सुशोभित यह नदी लखनऊ के क्षेत्र को उन्नाव से अलग करती है, जोकि रायबरेली से दक्षिण की ओर बहती हुई पश्चिम में प्रतापगढ़ के क्षेत्र में आती है। इसके बाद पूर्व की ओर मुड़ते हुए यह नदी घुइसरनाथ धाम को स्पर्श करती है। यहां से नदी एक और धाम, चंडिका धाम को स्पर्श करती है। उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिले सई नदी के तट पर स्थित हैं। प्रसिद्ध शनि देव धाम परसदेपुर में सई नदी के तट पर ही स्थित है। भक्त सई नदी में स्नान करते हैं और इसके जल से बाबा घुइसरनाथ की पूजा करते हैं।
आदि गंगा (प्राचीन गंगा) के रूप में उल्लिखित यह नदी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। नदी निरंतर सूखती जा रही है, यहां तक कि अपने स्रोत पर भी। पहले नदी के जल का उपयोग पीने के लिये किया जाता था, किंतु पिछले कुछ वर्षों से नदी के सूखने के कारण नदी का जल उपयोग करने योग्य नहीं रह गया है। पहले इस पानी का उपयोग खेतों की सिंचाई के लिए भी किया जाता था किंतु अब नदी का जल इस आवश्यकता को भी पूरा नहीं कर सकता। अत्यधिक खेती और निर्माण कार्यों ने जलग्रहण क्षेत्र का अतिक्रमण किया है जिससे भूजल स्रोत भी अवरूद्ध हो गये हैं। औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू अपशिष्ट ने नदी की अवस्था को और भी बदतर कर दिया है। 2005-06 तक, नदी का पानी 500 मीटर से अधिक क्षेत्र की फसलों की सिंचाई मानव निर्मित ट्रेंचों (Trenches) और पंपों (Pumps) से करता था, किंतु आज, नदी के पास के खेतों की सिंचाई करने के लिए भी डीज़ल (Diesel) पंपों का उपयोग करना पड़ता है। मानसून के दौरान नदी में जल की मात्रा अत्यधिक हुआ करती थी जिसे उपयोग भी अधिक किया जा सकता था, लेकिन अब यह और अधिक उपयोग करने हेतु नहीं बची है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में बारिश भी अपर्याप्त हुई है। अपर्याप्त वर्षा के कारण जल स्तर घट गया है, तथा नाले भी अवरुद्ध हो गए हैं। पिछले कुछ वर्षों में किसी भी राज्य की तुलना में उत्तर प्रदेश में वर्षा की सबसे ज्यादा कमी देखी गई है।
हरदोई, उन्नाव और लखनऊ के बाद, सई नदी रायबरेली, प्रतापगढ़ और जौनपुर से होकर बहती है और 715 किलोमीटर की दूरी पर लगभग 500 गाँवों को आवरित करती है, अंततः यह जौनपुर में गोमती नदी में मिल जाती है। जैसे-जैसे यह उत्तर प्रदेश के छह जिलों से होकर गुज़रती है, 200 नालों से प्राप्त घरेलू एवं औद्योगिक कचरे से प्रदूषित होती जाती है। हालांकि कई नदियों का पुनरुत्थान राजनीतिक दलों के मुख्य एजेंडों (Agendas) में से एक होता है, किंतु सई नदी के मामले में ऐसा नहीं है। नदी को पुनर्जीवित करना राजनीतिक दलों की प्राथमिकता नहीं है। नदी को पुनर्जीवित करने के लिए आखिरी प्रयास 2008 में किया गया था जब शारदा नहर से पानी लखनऊ के बाहरी इलाके बानी में सई में छोड़ा गया था। सई नदी 6 जिलों की जीवन रेखा है, किंतु दुर्भाग्य से यह केंद्र की सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है। यदि नदी को पुनर्जीवित करने हेतु सरकार द्वारा प्रयास किये जाते हैं, अतिक्रमण हटा दिए जाते हैं, वर्षा उपयुक्त मात्रा में होती है और पारंपरिक भूजल स्रोत इसे रिचार्ज (Recharge) करना शुरू कर देते हैं, तो सई फिर से लाखों लोगों के लिए जीवन रेखा बन सकती है।

संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sai_River_(Uttar_Pradesh)
2. https://www.hindustantimes.com/static/river-sutra/sai-river-uttar-pradesh/