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भारत एक ऐसा देश है जिसे अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। इसलिए यह विश्व के 12 वृहद जैव विविधता वाले देशों में भी शामिल है। इस जैव विविधता को आश्रय देने में महासागरों की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत का भौगोलिक क्षेत्र मध्य हिंद महासागर क्षेत्र का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसमें तीन अलग-अलग समुद्री पारिस्थितिक तंत्र क्षेत्र, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर शामिल हैं। भारत 20.2 लाख वर्ग किलोमीटर के एक विशेष आर्थिक क्षेत्र, 8,000 किलोमीटर से अधिक समुद्र तट और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की विविधता से सम्पन्न है तथा यहां ज्ञात समुद्री मछली प्रजातियों की अनुमानित संख्या 2,443 आंकी गयी हैं, जिन्हें 230 परिवारों में वितरित किया गया है। इसके अलावा लगभग 13,000 समुद्री प्रजातियां भारत में दर्ज की गयी हैं। जहां भारत की तटरेखा लगभग 2,500 लाख लोगों की सहायता करती हैं, वहीं भारत की समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की पारिस्थितिक सेवाएं भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
यदि समुद्री वनस्पतियों (Marine floral) की विविधता की बात कि जाये तो इसमें समुद्री शैवाल की 844 प्रजातियाँ (समुद्री खरपतवार) जो 217 वंश (Genera) से सम्बंधित हैं, समुद्री घास की 14 प्रजातियाँ और मैंग्रोव (Mangroves) की 69 प्रजातियाँ शामिल हैं। भारतीय तटीय जल, स्पंज (Sponges) की 451 प्रजातियों, मूंगा (कोरल-Corals) की 200 से अधिक प्रजातियों, क्रस्टेशियन (Crustacean) की 2,900 से अधिक प्रजातियों, समुद्री मोलस्क (Molluscs) की 3,370 प्रजातियों, ब्रियोज़ोआंस (Bryozoans) की 200 से अधिक प्रजातियों, इचिनोडर्म (Echinoderm) की 765 प्रजातियों, ट्यूनिकेट्स (Tunicates) की 47 प्रजातियों, 1,300 से अधिक समुद्री मछलियों, समुद्री सांपों की 26 प्रजातियों, समुद्री कछुओं की 5 प्रजातियों, और समुद्री स्तनधारियों की 30 प्रजातियों जिनमें डुगोंग (Dugong), डॉल्फ़िन (Dolphins), व्हेल (Whales) आदि शामिल हैं, को आश्रय प्रदान करता है। इसके अलावा, समुद्र के चारों ओर समुद्री पक्षियों की एक विस्तृत विविधता देखी जा सकती है।
प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for the Conservation of Nature- IUCN) 2014 के अनुसार मछलियों की 50 प्रजातियां (इनमें से 6 गंभीर रूप से संकटग्रस्त, 7 संकटग्रस्त और 37 असुरक्षित या अतिसंवेदनशील हैं) खतरे में हैं जबकि 45 प्रजातियां ऐसी हैं, जो भविष्य में संकटग्रस्त स्थिति को प्राप्त कर सकती हैं। मछलियों तथा अन्य समुद्री जीवों के संवेदनशील तथा संकट में होने के अनेक कारण हैं, जिनमें मुख्य रूप से मानव गतिविधियां शामिल हैं। समुद्री भोज्य पदार्थों पर अत्यधिक निर्भरता, ठोस, तरल, जैविक और अजैविक कचरे सहित सभी प्रकार के प्रदूषकों का समुद्र में निस्तारण आदि ऐसे कारक हैं, जो समुद्री जीवों और वनस्पतियों के लिए संकट का कारण बनते हैं। इन प्रदूषकों का मुख्य स्रोत उद्योग, कृषि में इस्तेमाल किये जाने वाले रसायन, अनुपचारित नगरपालिका या सार्वजनिक मल प्रवाह आदि हैं। इसके अलावा तैलीय प्रदूषण भी एक अन्य कारक है जो समुद्री प्रदूषण का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
कच्चे तेल के परिवहन के दौरान टैंकरों की टक्कर, पाइपलाइन रिसाव (Pipeline leaks), टैंकरों की धुलाई आदि समुद्र में तेल रिसाव के मुख्य स्रोत हैं। तेल फैलने से जलीय जीवों के आवास नष्ट हो जाते हैं तथा समुद्री जल की पारिस्थितिक स्थितियों में परिवर्तन होता है जिसके कारण अनेक समुद्री जीवों की मृत्यु हो जाती है। जलवायु परिवर्तन भी समुद्री प्रदूषण का एक मुख्य कारण हैं। ईंधन के जलने, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण आदि विभिन्न हानिकारक गैसों जैसे कार्बन-डाईऑक्साइड (Carbon dioxide), मीथेन (Methane), क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Chloro-Fluoro Carbon) आदि के प्रमुख स्रोत हैं जिनके कारण ग्रीनहाउस (Greenhouse) प्रभाव उत्पन्न हुआ है। पृथ्वी की सतह का ताप निरंतर बढने से हिम-खंडों और ध्रुवों में बर्फ पिघलती जा रही है तथा वर्ष 2070 तक समुद्र स्तर के 21–71 सेंटीमीटर तक बढने की उम्मीद है। समुद्री जीवों के नुकसान को कम करने के लिए स्टॉक संवर्धन (Stock enhancement) को एक प्रभावी उपाय के रूप में देखा गया है। इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर प्रजातियों के स्टॉक का आकार बढ़ाने हेतु संवर्धन अभ्यास के बुनियादी लक्ष्य के साथ स्टॉकिंग के अधिकांश रूपों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। समुद्री स्टॉक संवर्धन मछली पालन प्रबंधन का एक अभिन्न अंग है जिसमें घटते समुद्री मछली स्टॉक को बढ़ाने या पुनर्स्थापित करने के लिए सुसंस्कृत (Cultured) मछलियों को समुद्र में निस्तारित किया जाता है। विभिन्न देश बड़ी संख्या में समुद्री मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए सुसंस्कृत किशोर (Juveniles) को निस्तारित करने की प्रमुख संभावनाओं की जांच कर रहे हैं।
कुछ तटीय अकशेरुकी मत्स्य पालन के लिए, स्टॉक संवर्धन प्रभावी होने की अत्यधिक संभावना है क्योंकि प्रक्रिया में उपयोग की गयी प्रजातियों का गतिहीन व्यवहार और छिछले समुद्र तटों में वितरण, अपेक्षाकृत छोटे स्थानिक पैमाने पर पुनः अपने आप ही निर्मित होने वाली आबादी बना सकते हैं। यह उपाय जहां 'स्वस्थ' मत्स्य पालन की उत्पादकता में वृद्धि कर सकता है वहीं अधिक उत्पादक स्तर पर मत्स्य पालन के पुनर्निर्माण के लिए आवश्यक समय को भी कम कर सकता है। स्टॉक संवर्धन कार्यक्रम को मत्स्य प्रबंधन के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए जिसमें निवास संरक्षण और मछली पकड़ने के प्रयास के उचित नियंत्रण के साथ छोटी या किशोर मछलियों का समुद्र में निस्तारण शामिल है। भारत में, प्राकृतिक स्टॉक बढ़ाने की गतिविधियां राजीव गांधी सेंटर फॉर एक्वाकल्चर (Rajiv Gandhi Centre for Aquaculture - RGCA) द्वारा की जा रही हैं।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में महासागरों में पायी जाने वाली विभिन्न जैव विविधितायें प्रस्तुत की गयी हैं। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में मूंगा की विभिन्न प्रजातियां है। (Prarang)
3. तीसरे चित्र में जलीय जैव विविधता का उदाहरण है। (publicdomainppictures)
4. चौथे चित्र में मछलियों की विभिन्न प्रजाति का चित्रण है। (Wikimedia)
5. पांचवे चित्र में जलीय जीव और जलीय पक्षी दिखाए गए हैं। (Wallpaperflare)
संदर्भ:
1. https://bit.ly/3cMCKPj
2. https://bit.ly/2UycuSG