| Post Viewership from Post Date to 17- Feb-2021 (5th day) | ||||
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| City Readerships (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2885 | 143 | 0 | 3028 | |
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नदी के किनारे बसे लोगों के लिए ही सई नदी का महत्व नहीं है, बल्कि उन कई हिंदुओं के लिए भी है जो इसके किनारे स्थित बाबा घुइसरनाथ (Baba Ghuisarnath) को नदी के जल में स्नान कर पूजा अर्पित करते हैं। सई हिन्दू पुराणों में और तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस में भी उल्लिखित है। परंतु आज यह नदी जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही है अपने उद्गम स्थल परसई गांव में भी अब यह सूख रही है जो बेहद चिंताजनक है। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय में (2005-6) वे नदी का पानी पीने के लिए इस्तेमाल करते थे जो आज सिंचाई के लिए भी प्रयोग करने के लायक नहीं है। सई नदी कई शहरों को छूते हुए निकलती है जहां नदी के जलागम क्षेत्र पर कई जगह अतिक्रमण हो चुका है और इसके भूमिगत जल स्रोत अवरुद्ध हो गए हैं तथा औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू कूड़े ने इसकी स्थिति और खराब कर दी है। अतिक्रमण से शहरों के नाले जो नदी के पानी में इज़ाफा करते थे, भी अवरुद्ध हो गए और नदी का एक और जलस्रोत समाप्त हो गया।
नदी पर अतिक्रमण, औद्योगिक अपशिष्ट एवं घरेलू कूड़े-कचरे के अलावा सई पर जलवायु परिवर्तन की भी मार पड़ रही है। यदि अब भी इसे बचाने की पहल नहीं की गई तो यह नदी भी समाप्त हो जाएगी और यह मृत्यु पूर्ण रूप से मानव-जन्य होगी।
जौनपुर शहर के लिए इस नदी का एक खास महत्व है। सिर्फ इस शहर के लिए ही नहीं बल्कि हर शहर के लिए नदियों का एक बड़ा महत्व होता है। दुनिया की हर बड़ी सभ्यता जैसे मिश्र की सभ्यता (Egyptian Civilization), सिंधु-घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) आदि सभी नदियों को केंद्र में रखकर ही विकसित हुई हैं। आज भी कई पुराने शहर जैसे काशी (वाराणसी), प्रयागराज, दिल्ली और लखनऊ आदि नदियों के किनारे ही बसे हैं और उन पर निर्भर भी हैं। नदियों का जल कई प्राकृतिक क्रियाओं में मदद करता है। नदियों के जल से संचित उनके किनारों पर स्थित वन बाढ़ रोकने और शीतलन प्रभाव (cooling effect) उत्पन्न करने में मदद करते हैं। ये वन बाढ़ के बहाव को कम कर देते हैं जिससे भवनों और लोगों को कम क्षति पहुंचती है। इसके साथ ही वे काफी जल अवशोषित भी कर लेते हैं। वन पशु-पक्षियों को आवास प्रदान करके जैव-विविधता (biodiversity) लाने में भी मदद करते हैं।
नदियों का सिर्फ पर्यावरणीय महत्व ही नहीं है बल्कि वे सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। भारत में तो इनका खास ही महत्व है। यहां नदियों को ‘माँ’ कहकर पुकारा जाता है और प्राचीन ग्रंथों जैसे, वेद पुराणों में इन्हें देवी का दर्जा दिया गया है। आज भी कई धार्मिक त्यौहार (खास कर हिंदू धर्म के) और मेले नदियों के किनारे ही होते हैं, जैसे- छठ पूजा, कुंभ का मेला आदि। हिंदू धर्म में तो किसी मृत व्यक्ति की अस्थियों का गंगा नदी में विसर्जन करने से स्वर्ग प्राप्त होने की मान्यता भी है। हालांकि ऐसा बहुत अधिक होने से गंगा के प्रदूषण में वृद्धि भी हुई है।
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