दुनिया का सबसे पुराना मानचित्र;समय के साथ कैसे बदले विश्व को दर्शाने वाले मानचित्र?

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
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दुनिया का सबसे पुराना मानचित्र;समय के साथ कैसे बदले विश्व को दर्शाने वाले मानचित्र?

मानचित्रों को पूरे मानव इतिहास के सबसे प्रभावशाली उपकरणों में से एक माना जाता है, जिन्होंने विश्व के प्रति हमारी वर्तमान समझ को गहराई से प्रभावित किया है। अतीत में, मानचित्र विशेषज्ञ मानचित्र-निर्माताओं द्वारा बनाए जाते थे, जिनमें से कई मानचित्र-निर्माताओं ने उपनिवेशीकरण में भी बहुत बड़ा योगदान दिया था। देखा जाए तो मानचित्रण कोई नई अवधारणा नहीं है। वास्तव में, दुनियां के कुछ शुरुआती नक्शे गुफ़ा कला के रूप में पाए जा सकते हैं। यहाँ तक की आप मानचित्रों को पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों के माध्यम से सुन भी सकते हैं। इन कहानियों में यह बताया जाता है कि आज से हज़ारों साल पहले कौन सा प्रसिद्ध स्थान किस क्षेत्र में मौजूद था, और कैसा दिखाई देता था। पूरी दुनिया का पहला ज्ञात "विश्व" मानचित्र, जिसे अब ब्रिटिश संग्रहालय (British Museum) में रखा गया है, मेसोपोटामिया (Mesopotamian) की एक मिट्टी की एक टैबलेट या यूं कहें कि एक समतल प्लेट है। इस टैबलेट को विश्व के बेबीलोनियन मानचित्र (babylonian map) के रूप में जाना जाता है। यह 8वीं और 6ठीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच की बताई जाती है। इस मानचित्र में दो संकेंद्रित वृत्त हैं। बाहरी वृत्त को "कड़वी नदी (Bitter River)" का नाम दिया गया है, जबकि आंतरिक वृत्त में बेबीलोन शहर को दर्शाया गया है, जिसे फरात नदी विभाजित करती है। इस टैबलेट को मानवता द्वारा, रहने की जगह को दृश्य रूप से दर्शाने के पहले रिकॉर्ड किए गए प्रयास के रूप में देखा जाता है। पूरे इतिहास में विश्व मानचित्रों ने इस बेबीलोनियन टैबलेट के पैटर्न का ही अनुसरण किया है। ऐतिहासिक मानचित्र, मानचित्रकार के विश्व दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसमें अनिवार्य रूप से उनके सांस्कृतिक और राजनीतिक पूर्वाग्रह शामिल हैं। जैसे-जैसे मानचित्रकारों की दुनिया के प्रति समझ विकसित हुई, वैसे-वैसे उनके मानचित्र भी विकसित हुए।
प्रारंभिक मानचित्र निर्माताओं के पास खगोलीय उपकरणों तक भी पहुंच थी, जिनका उपयोग वे सूर्य और तारों की गतिविधियों को ट्रैक करने और पृथ्वी के आकार का अनुमान लगाने के लिए करते थे। चलिए अब क्रम से विश्व मानचित्रों के इतिहास को समझने की कोशिश करते हैं।
150 ई.: रोमन साम्राज्य के दिनों में, एक प्रख्यात ज्योतिर्विद क्लॉडियस टॉलेमी (Claudius Ptolemy) को अपने काम, भूगोल में अक्षांश और देशांतर का उपयोग करके देशों का नक्शा बनाने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है। उनके इस काम के बारे में उनके बाद की कई सदियों तक किसी को भी पता नहीं था, लेकिन 15वीं शताब्दी में इसे फिर से खोजा गया और पुनर्निर्मित किया गया। इसने पूरे मध्य युग में मानचित्रकला के लिए आधार तैयार किया। 1050: यह एक मध्ययुगीन मानचित्र है, जिसे बनाने का श्रेय एक स्पेनिश भिक्षु बीटस को दिया जाता है। मानचित्र अफ्रीका, एशिया और यूरोप जैसे विभिन्न महाद्वीपों को दर्शाता है। लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य बाइबल से स्थानों को दिखाना था। उदाहरण के लिए, चूँकि सूर्य पूर्व से उगता है, मानचित्र स्वर्ग (ईडन गार्डन (The Garden of Eden) को ऊपर और एशिया की ओर इंगित करता हुआ दिखाता है।
1154: 1154 में दुनिया को एक नए नज़रिये से देखा गया। मुहम्मद अल-इदरीसी नाम के एक अरबी भूगोलवेत्ता ने सिसिली के राजा रोजर द्वितीय के लिए एक बहुत विस्तृत पुराना विश्व मानचित्र बनाया। टेबुला रोजेरियाना (Tabula Rogeriana) नामक इस मानचित्र का अर्थ "दूरस्थ स्थानों की अच्छी यात्राओं की पुस्तक" होता है। यह उस समय के अन्य मानचित्रों की तुलना में अधिक उन्नत था क्योंकि इसको यात्रियों और व्यापारियों द्वारा कही गई कहानियों के आधार पर बनाया गया था। दिलचस्प बात यह है कि मूल नक्शा दक्षिण को सबसे ऊपर रखकर बनाया गया था, इसलिए अब जब हम इसे देखते हैं तो यह उल्टा दिखता है। 1375: एक यहूदी मानचित्रकार अब्राहम क्रेस्केस (abraham cresques) ने अपने बेटे के साथ मिलकर, आरागॉन (Aragon) के राजकुमार जॉन (Prince John) के लिए कैटलन एटलस (Catalan atlas) बनाया। मध्यकाल का यह महत्वपूर्ण मानचित्र पूर्व और पश्चिम दोनों को कवर करता है। खोजकर्ता मार्को पोलो और सर जॉन मैंडविल (Marco Polo and Sir John Mandeville) की यात्राओं की बदौलत बने इस मानचित्र में कई भारतीय और चीनी शहरों को भी देखा जा सकता है।
1489: खोज के बाद 15वीं शताब्दी, मानचित्र निर्माताओं के लिए एक परिवर्तनकारी अवधि साबित हुई। इस दौरान हेनरिकस मार्टेलस (Henricus Martellus) ने टॉलेमिक मानचित्रों (Ptolemaic maps) का निर्माण किया और पुरानी दुनिया को चित्रित करने के लिए मार्को पोलो (Marco Polo's) की यात्राओं से प्रेरणा ली।
1529: पुर्तगाली मानचित्रकार डिएगो रिबेरो (Portuguese cartographer Diego Ribeiro) को पहले वैज्ञानिक विश्व मानचित्र बनाने का श्रेय दिया जाता है। 1599: एडवर्ड राइट (Edward Wright), एक अंग्रेज़ी गणितज्ञ और मानचित्रकार, मर्केटर प्रक्षेपण को पूर्ण करने वाले पहले व्यक्ति थे, जो पृथ्वी की वक्रता का वर्णन करता है। पृथ्वी के बेलनाकार मानचित्र का यह रैखिक प्रतिनिधित्व, जिसे राइट-मोलिनेक्स (Wright-Molyneux) विश्व मानचित्र के रूप में भी जाना जाता है, शीघ्र ही नेविगेशन के लिए मानक बन गया।
1778-1832: आधुनिक मानचित्रकला का उदय: समुद्री क्रोनोमीटर के आविष्कार ने समुद्री नेविगेशन में क्रांति ला दी, जिसके बाद जहाज़ भी देशांतर और अक्षांश दोनों का पता लगाने में सक्षम हो गए। एक फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता जैक्स-निकोलस बेलिन ने 18वीं शताब्दी के अत्यधिक सटीक विश्व मानचित्रों और समुद्री चार्ट बनाये।
अंत में, एक जर्मन मानचित्रकार और वकील, एडॉल्फ स्टीलर (Adolf Stieler,) ने 20वीं सदी के मध्य में अग्रणी जर्मन विश्व मानचित्र, स्टीलर्स हैंडैटलस (Stieler's Handatlas) का निर्माण कर दिया था। उनके नक्शे अपनी विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे नए अन्वेषणों के आधार पर नियमित रूप से अपडेट किए जाते थे। टेबुला प्यूटिंगरियाना (Tabula Peutingeriana), चौथी शताब्दी के रोमन मानचित्र के 12वीं शताब्दी के रूपांतरण को भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने ज्ञात चित्रणों में से एक माना जाता है। इस मानचित्र में विशेष रूप से उस समय एक संपन्न भारतीय बंदरगाह मुज़िरिस को दर्शाया गया है।
उस दौर में, उपलब्ध तकनीक के साथ किसी की पूर्व-पश्चिम स्थिति या देशांतर का निर्धारण करना असंभव साबित होता था। इसलिए, खोजकर्ता हवा और समुद्री धाराओं से जुड़ी अपनी समझ पर भरोसा करते थे, और कभी-कभी केवल अनुमान लगाते थे। आरंभिक मानचित्र निर्माताओं के नक्शे, यात्रियों और व्यापारियों के वृत्तांतों के आधार पर तथ्य और कल्पना का मिश्रण होते थे। देशांतर और अक्षांश का विज्ञान विकसित होने से पहले, इन कल्पनाओं ने वस्तुतः दुनिया के बारे में लोगों की समझ को आकार दिया।
ऐसी ही एक कहानी एक झील से जुड़ी, जो 1500 के दशक के मध्य से भारत के मानचित्रों पर दिखाई देने लगी थी। इस झील को चियामे, कुनेबेटे, सिंगपामोर और जामाहे जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसे गंगा और ब्रह्मपुत्र सहित दक्षिण पूर्व एशिया की चार प्रमुख नदियों का स्रोत माना जाता था। हालाँकि, यह झील पूरी तरह से काल्पनिक भूगोल का उत्पाद थी। उस झील को 200 वर्षों तक असली माना गया, जब तक कि यह निश्चित रूप से सिद्ध नहीं हो गया कि ऐसी झील कभी अस्तित्व में नहीं थी। इसलिए समय के साथ यह झील भी धीरे-धीरे मानचित्रों से गायब हो गई। मुट्ठी भर यूरोपीय खोजकर्ताओं के भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा करने के बावजूद, 15वीं शताब्दी के अंत तक भी इस क्षेत्र के भूगोल को समझा नहीं जा सका था। लेकिन एक पुर्तगाली खोजकर्ता वास्को डि गामा (vasco da gama) के आगमन के साथ ही भारतीय मानचित्र का पूरा इतिहास बदल गया।
16वीं शताब्दी में भारत के साथ व्यापार पर पुर्तगाल का लगभग एकाधिकार जैसा था। उन्होंने उपमहाद्वीप की नौवहन और वाणिज्यिक खुफिया जानकारी के आधार पर अपने गढ़ की रक्षा करके इस एकाधिकार को बनाए रखा। हालांकि, डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Dutch East India Company (VOC), इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी (English East India Company (EIC) और फ्रेंच जैसी नई यूरोपीय शक्तियों के आगमन के साथ भारत के साथ व्यापार पर उनका एकाधिकार भी समाप्त हो गया। इस एकाधिकार को समाप्त करने में तथा व्यावहारिक और वैचारिक रूप से यूरोपीय राष्ट्रवादी और साम्राज्यवादी लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मानचित्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1733 में होमन वारिस (Homan Waris) द्वारा एक लैटिन मानचित्र जारी किया गया, जिसमें भारतीय प्रायद्वीप, सुमात्रा और कोरोमंडल की प्रसिद्ध तटरेखाएं और सीलोन का प्रसिद्ध द्वीप दिखाया गया है। इसे आज भी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक रिकॉर्ड माना जाता है। यह 1700 के दशक की शुरुआत में दक्कन में अंग्रेजी, डच, फ्रेंच, डेनिश और पुर्तगालियो के आगमन और स्थापना को दर्शाता है।
16वीं सदी के अंत से लेकर 17वीं सदी की शुरुआत के बीच के समय को अक्सर डच और फ्लेमिश मानचित्रकला का स्वर्ण युग कहा जाता है। इस दौरान डच लोग अपने प्रभुत्व का विस्तार कर रहे थे और अपने व्यापारिक साम्राज्य का निर्माण कर रहे थे। इस प्रारंभिक काल में, मानचित्रों में मुख्य रूप से बंदरगाहों को दर्शाया जाता था। लेकिन समय के साथ मानचित्रों का दायरा बढ़ने लगा। उदाहरण के तौर पर 1730 के आसपास, इस्साक तिरियन (Issac Tirian) द्वारा जारी किये गए एक डच मानचित्र, में मुगल को दर्शाया गया है। इसमें भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान और बांग्लादेश को दर्शाने का प्रयास किया गया है, जिस कारण इस मानचित्र को इस युग का एक और आकर्षक अवशेष माना जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4stprw8e
https://tinyurl.com/puwy3vkm
https://tinyurl.com/4taasp8p
https://tinyurl.com/28e6yrrr

चित्र संदर्भ
1. पूरी दुनिया का पहला ज्ञात "विश्व" मानचित्र, जिसे अब ब्रिटिश संग्रहालय रखा गया है, मेसोपोटामिया की एक मिट्टी की एक टैबलेट या यूं कहें कि एक समतल प्लेट है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 2. बेबीलोनियन मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 1050: यह एक मध्ययुगीन मानचित्र है, जिसे बनाने का श्रेय एक स्पेनिश भिक्षु बीटस को दिया जाता है। को संदर्भित करता एक चित्रण (visualcapitalist)
4. 1375: एक यहूदी मानचित्रकार अब्राहम क्रेस्केस ने अपने बेटे के साथ मिलकर, आरागॉन के राजकुमार जॉन के लिए कैटलन एटलस बनाया। को संदर्भित करता एक चित्रण (visualcapitalist)
5. 1599: एडवर्ड राइट (Edward Wright), एक अंग्रेज़ी गणितज्ञ और मानचित्रकार, मर्केटर प्रक्षेपण को पूर्ण करने वाले पहले व्यक्ति थे, जो पृथ्वी की वक्रता का वर्णन करता है। को संदर्भित करता एक चित्रण (visualcapitalist)
6. टेबुला प्यूटिंगरियाना (Tabula Peutingeriana), चौथी शताब्दी के रोमन मानचित्र के 12वीं शताब्दी के रूपांतरण को भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पुराने ज्ञात चित्रणों में से एक माना जाता है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 7. चियामे झील को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. 1733 में होमन वारिस (Homan Waris) द्वारा एक लैटिन मानचित्र जारी किया गया, जिसमें भारतीय प्रायद्वीप, सुमात्रा और कोरोमंडल की प्रसिद्ध तटरेखाएं और सीलोन का प्रसिद्ध द्वीप दिखाया गया है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)