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भारत विश्व का सबसे बड़ा पीतल के बर्तन बनाने वाला देश है। इस कला का भारत में हज़ारों वर्षों से अभ्यास किया जा रहा है। पुरातत्व अभिलेखों के अनुसार, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से भारत में पीतल लोकप्रिय था और अधिकांश देवी-देवताओं की मूर्तियाँ इसी धातु से बनाई जाती थी। उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद पीतल के काम के लिए काफी प्रसिद्ध है और विश्व भर में हस्तशिल्प उद्योग में खुद के लिए एक जगह बना चुका है।
19वीं सदी की शुरुआत में मुरादाबाद में पीतल के उद्योग की पेशकश हुई और इस कला को ब्रिटिश द्वारा विदेशी बाज़ारों में ले जाया गया। बनारस, लखनऊ, आगरा और कई अन्य स्थानों से आए अन्य आप्रवासी कारीगरों ने मुरादाबाद में पीतल उद्योग के मौजूदा समूह का गठन किया। 1980 में पीतल जैसे विभिन्न अन्य धातु जैसे लोहे, एल्यूमीनियम (Aluminium) आदि को भी मुरादाबाद के कला उद्योग में पेश किया गया। नई तकनीकों जैसे इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating), लैक्विरिंग (Lacquering), पाउडर कोटिंग (Powder Coating) आदि का भी उद्योग में उपयोग शुरू होने लगा।
ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में पीतल की उत्पत्ति वर्तमान के सीरिया या पूर्वी तुर्की में हुई थी। वहाँ के प्राचीन धातुकर्मियों द्वारा 3000 ईसा पूर्व में टिन (Tin) के साथ तांबे को पिघलाकर कांस्य नामक धातु को बनाया गया था और ऐसा माना जाता है कि कांस्य को बनाने की प्रक्रिया में कभी उनसे पीतल का भी निर्माण हो गया होगा क्योंकि टिन और जस्ता अयस्क भंडार कभी-कभी एक साथ पाए जाते हैं, और दोनों ही सामग्रियों का समान रंग और गुण होता है।
भूमध्य सागर के आसपास के धातुकर्मी टिन से जस्ता अयस्क को अलग करने में सक्षम हो गए थे और इसका उपयोग पीतल के सिक्के और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए किया गया था। अधिकांश जस्ता को कैलामाइन (Calamine) नामक एक खनिज को गर्म करके निकाला जाता था, जिसमें विभिन्न जस्ता यौगिक होते हैं। लगभग 300 ईस्वी में शुरू होकर, पीतल धातु का उद्योग जर्मनी और नीदरलैंड में विकसित हो गया था। आग्नेय शस्त्र के लिए पहले धातु कारतूस आवरण को 1852 में पेश किया गया था तथा इस कार्य के लिए पीतल ही सबसे सफल रहा था।
पीतल का उत्पादन करने के लिए उपयोग की जाने वाली निर्माण प्रक्रिया में उपयुक्त कच्चे माल को पिघले हुए धातु में मिलाया जाता है, जिसे बाद में जमने के लिए रख दिया जाता है। ठोस धातु के आकार और गुणों को वांछित पीतल का उत्पादन करने के लिए सावधानीपूर्वक नियंत्रित संचालन की एक श्रृंखला के माध्यम से बनाया जाता है।
वहीं मुरादाबाद के कुछ दुकानदारों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से मुरादाबाद बाज़ार में निश्चित रूप से विस्तार हुआ है और अधिक खरीददार भी आए हैं, लेकिन वे अब पीतल या चांदी के बने बेहतर या पारंपरिक उत्पादों को नहीं खरीदते हैं। मुरादाबाद में, 50% से अधिक शिल्पकार अब एल्यूमीनियम, तांबा या स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) जैसी सस्ती धातुओं का उपयोग कर रहे हैं। इस कारण से लोगों ने पीतल या चांदी के उत्पाद को काफी कम कर दिया है।
संदर्भ:
1. http://www.dsource.in/resource/brass-work-moradabad/introduction
2. http://www.iitk.ac.in/designbank/Moradabad/History.html
3. https://bit.ly/2martnJ
4. http://www.madehow.com/Volume-6/Brass.html