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भूमि के उपयोग में वैश्विक परिवर्तन के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर मानव जीवन खतरे के कगार पर है वहीं दूसरी ओर वन्य जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ भी शनै-शनै लुप्त होती जा रही हैं। हर साल जंगल कटने से भोजन और पानी के अभाव में न जाने कितने जानवर मारे जाते हैं। जल-स्त्रोत सूखने और उपलब्ध जल के प्रदूषित होने से जलीय जीव-जंतु भी धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। पृथ्वी का 70% भाग जल से घिरा हुआ है और इतने बड़े भाग का मात्र 2% जल ही पीने योग्य है। इस बात से भविष्य में होने वाली जल की कमी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कई क्षेत्र वर्तमान में भी जल संकट का सामना कर रहे हैं।
केंद्रीय मृदा जल संरक्षण अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून के अनुसार, भारत में मिट्टी के कटाव, उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण हर साल 5,334 मिलियन टन मिट्टी की हानि हो रही है। जिससे औसतन 16.4 टन उपजाऊ मिट्टी प्रति हेक्टेयर अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जा रही है। परिणामस्वरूप खेती पर आश्रित लोगों को गरीबी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मृदा स्वास्थ्य में सुधार की अवधारणा को लागू करते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) (SHC) आरम्भ किया है। कृषि और सहकारिता मंत्रालय, भारत सरकार का देश भर में 14 करोड़ SHC जारी करने का लक्ष्य है। जिसके लिए उन्होंने राज्यों को 568 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट सौंपा है। इस योजना के तहत लगभग 14 करोड़ SHC उत्पन्न करने के लिए हर तीन साल में 253 लाख मिट्टी के नमूनों का परीक्षण किया जाएगा।
आने वाले समय में मानव खाद्य आपूर्ति के लिए जितनी भूमी की आवश्यकता होगी हमारे पास उससे कम भूमि उपलब्ध है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization of the United Nations) के अनुसार, 2050 तक वैश्विक खाद्य मांग को पूरा करने के लिए 500 से अधिक नई कृषि भूमि की आवश्यकता पड़ सकती है। एक अध्ययन के अनुसार, जो जानवर मनुष्यों के निकट रहते हैं, वे रोगों के संक्रमण के लिए और लोगों को बीमार करने के लिए अधिक उत्तरदायी होते हैं। इसका स्पष्ट परिमाण कोविड-19 है। विश्वव्यापी कोरोना रोग की उत्पत्ति भी ऐसे जानवरों से हुई है जो मनुष्यों के आस-पास रहते हैं। कोविड-19 को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे खराब आर्थिक संकट माना जाता है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से मंदी की ओर बढ़ रही है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि आज यदि पूरा विश्व कोरोनासंकट से जूझ रहा है तो इसका कारण मानव गतिविधियाँ ही हैं। इसीलिए मनुष्यों द्वारा किए गए भूमि के उपयोग में वैश्विक परिवर्तन को शीघ्र रोकने की आवश्यकता है।