वर्तमान समय में भारत सहित पूरी दुनिया, खाद्य मुद्रास्फीति में फिर से वृद्धि देख रही है। सितंबर
2021 से अप्रैल 2022 तक, भारत में उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति 0.68% से बढ़कर 8.38%
हो गई है, जिसने संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) (Food
and Agriculture Organization’s FAO) के खाद्य मूल्य सूचकांक के सर्वकालिक उच्च स्तर
पर पहुंचने के साथ साथ पिछली महान वस्तु मुद्रास्फीति की यादों को भी ताजा कर दिया है, जिसका
प्रभाव प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की तुलना में कैलोरी में अधिक देखा जा सकता है।
गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग के परिवारों सहित वास्तविक आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप दूध,
दालें, अंडा, मछली और मांस जैसे प्रोटीन प्रदान करने वाले और फल तथा सब्जियों जैसे सूक्ष्म पोषक
तत्वों को शामिल करने वाले खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग के साथ-साथ मूल रूप से कैलोरी प्रदान
करने वाले अनाज और चीनी की प्रति व्यक्ति खपत में गिरावट आई है। इस आहार विविधीकरण का
मुद्रास्फीति पर भी असर पड़ा है, यह एक संरचनात्मक, मांग-आधारित मुद्रास्फीति थी, जो बढ़ती
आय से प्रेरित थी।
2004-05 और 2012-13 के बीच, चीनी के लिए थोक मूल्य सूचकांक में संचयी
वृद्धि 93.1%, अनाज के लिए 99.9% और खाद्य तेलों के लिए केवल 48.1% थी, जबकि दूध के
लिए 108.1%, सब्जियों के लिए 110.1%, दालों के लिए 141.3% और अंडे, मांस तथा मछली के
लिए 144.5% थी।
कोविड-19 (Covid-19) लॉकडाउन के धीरे-धीरे उठने के साथ, अगस्त 2020 के बाद से, वैश्विक
मांग भी वापस आने लगी, एफएओ (FAO) के वनस्पति तेल, अनाज और चीनी के मूल्य सूचकांक
(price index) क्रमशः 141%, 71% और 50% बढ़े हैं, जो अप्रैल 2020 तक इसी अवधि में मांस
के मूल्य सूचकांक में 32% और डेयरी के लिए 44% संचयी वृद्धि से अधिक है। अधिकांश
मुद्रास्फीति यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी (Russian) आक्रमण के कारण भी प्रभावित थी। यूक्रेन में
युद्ध से पहले 2020-21 में सूखा पड़ा था और रूस ने घरेलू मुद्रास्फीति को कम करने के लिए
दिसंबर 2020 में गेहूं, मक्का, जौ, राई और सूरजमुखी पर निर्यात प्रतिबंधों की घोषणा की थी।
यूक्रेनी सूखा और रूसी निर्यात नियंत्रण के साथ मलेशिया (Malaysia) के पाम तेल बागानों में
प्रवासी श्रमिकों की महामारी से प्रेरित कमियों ने खाद्य तेलों और अनाज की वैश्विक कीमतों को बढ़ा
दिया। इस युद्ध ने, दुनिया के गेहूं, मक्का, जौ और सूरजमुखी के तेल निर्यात का एक बड़ा हिस्सा
रखने वाले दोनों देशों से आपूर्ति को निचोड़कर हालातों को और खराब कर दिया।
भारत में कीमतों में उच्च वैश्विक कैलोरी मुद्रास्फीति का संचरण मुख्य रूप से वनस्पति वसा तक ही
सीमित रहा। देश की 60% से अधिक खाद्य तेल खपत की आवश्यकता आयात से पूरी होती है।
जनवरी से समग्र उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक में उछाल से बहुत पहले, खुदरा खाद्य तेल
मुद्रास्फीति पूरे 2021 के दौरान 20-35% के स्तर पर रही। दिलचस्प बात यह है कि अन्य दो
कैलोरी खाद्य पदार्थों अनाज और चीनी की वैश्विक कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई लेकिन
मुद्रास्फीति अपेक्षाकृत कम ही रही। अनाज और चीनी में कोई आयातित मुद्रास्फीति नहीं होने का
मुख्य कारण यह है कि देश दोनों का अधिशेष उत्पादक है।
2021-22 में भारत का अनाज और चीनी
का निर्यात क्रमशः 12.9 बिलियन डॉलर और 4.6 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड मूल्य पर था। इसके
अलावा, 21.2 मिलियन टन चावल, 7.2 मिलियन टन गेहूं और 3.6 मिलियन टन मक्का सहित
लगभग कुछ 32.3 मिलियन टन अनाज बाहर भेजे जाने के बावजूद, सरकारी गोदामों में अतिप्रवाह
स्टॉक ने अभी भी एक अभूतपूर्व 105.6 मिलियन टन अनाज, जिसमें 55.1 मिलियन टन चावल
और 50.5 मिलियन टन गेहूं शामिल हैं, को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बेचे जाने के
लिए सक्षम बनाया है। पिछले कुछ समय से अनाज की मुद्रास्फीति में तेजी आई है, जो मार्च के
मध्य से अचानक गर्मी की लहरों से फसल की उपज में कमी के कारण आई है, मूल रूप से गेहूं में।
युद्ध, सूखा, बेमौसम बारिश और गर्मी की लहरों से उत्पन्न खाद्य मुद्रास्फीति, संरचनात्मक मांग-
प्रेरित कारकों से अलग है। मुद्रास्फीति अब पहले की तुलना में अधिक होने के साथ प्रोटीन, विटामिन
और खनिजों के बजाय मुख्य रूप से कैलोरी देने वाले खाद्य पदार्थों में भी है।
यूक्रेन में युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा झटके में भी योगदान दिया है, क्योंकि यूक्रेन वैश्विक खाद्य-आपूर्ति
श्रृंखला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस युद्ध के कारण कई कृषि वस्तुओं की कीमतों में ऐतिहासिक
वृद्धि हुई है। टॉम लॉक (Tom Lock’s) की ब्रिटिश स्नैक कंपनी (British Snack Co.), पिछले
साल इस समय अपने आलू के चिप्स का 40 ग्राम का बैग होटल, कैफे और रेस्तरां को लगभग
1.50 डॉलर में बेच रही थी, इस साल उस बैग की कीमत 1.80 डॉलर है। वह जो आलू इस्तेमाल
करते हैं वह अब 20% अधिक महंगा हो गया है और उनके खाना पकाने के तेल की कीमत 300%
ऊपर है। आलू की बढ़ती लागत में एक बड़ा योगदान उर्वरक की बढ़ती लागत है, जो बदले में उच्च
ऊर्जा लागत के कारण उत्पन्न हुई है। अमेरिकी प्राकृतिक गैस की कीमतें भी, इस महीने की शुरुआत
में अगस्त 2008 के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों के लिए गैस
एक फीडस्टॉक है और चिप्स को पकाने में भी ज्यादातर मामलों में यही गैस इस्तेमाल की जाती है।
आलू के चिप्स के किसी भी बैग में, आलू कुल लागत का लगभग 60% से 70% होता है और खाना
पकाने के तेल की हिस्सेदारी 20% से 25% तक होती है, शेष लागत स्वाद, खाना पकाने और
पैकेजिंग के लिए कम होती है।
ऊर्जा लागत के कारण, आलू को तलने के लिए ताजा रखने की
लागत भी बढ़ रही है। आलू को कटाई के बाद महीनों तक गोदामों में रखा जाता है, जिससे किसान
लागत का बोझ भी उठाते हैं। एक खाद्य-केंद्रित वस्तु-मूल्य निर्धारण एजेंसी, मिंटेक (Mintec) के
वरिष्ठ मूल्य निर्धारण विश्लेषक, एडन राइट (Aidan Wright) कहते हैं कि, "यह सिर्फ एक आलू
की फसल को जमीन से बाहर निकालने की बात नहीं है, वे इसे संग्रहीत भी करते हैं। जिसके लिए
तापमान को नियंत्रित करने में बहुत बिजली लगती है जबकि बिजली की लागत कितनी बढ़ गई है।
तो यह सिर्फ एक उर्वरक मुद्दा नहीं है।" उत्तर अमेरिकी आलू बाजार समाचार (North American
Potato Market News) को प्रकाशित करने वाले, एक आलू-बाजार विशेषज्ञ, बेन एबोर्न (Ben
Eborn) ने बताया कि "आमतौर पर आलू की ऊंची कीमतें किसानों को और अधिक पौधे लगाने के
लिए प्रोत्साहित करती हैं। लेकिन लागत अधिक होने के कारण इस बार ऐसा नहीं है।" उन्होंने कहा
"यह साल अलग है, क्योंकि 20% मूल्य वृद्धि एक उत्पादक की उत्पादन लागत में वृद्धि को पूरी
तरह से कवर नहीं कर सकती है।"
भारत में इस साल खाद्य कीमतों का प्रदर्शन वैश्विक मुद्रास्फीति और स्थानीय बारिश पर निर्भर
होगा। भारत में मार्च 2021 से, थोक बाजारों में कीमतें, खुदरा बाजारों की तुलना में बहुत तेजी से
बढ़ रही हैं। कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति धीरे-धीरे थोक
मुद्रास्फीति के बराबर हो जाएगी, ऐसा अप्रैल 2022 में, भोजन के मामले में देखा जा सकता है, जहां
यह गति पकड़ी गई प्रतीत होती है। हाल ही में जारी थोक मूल्य सूचकांक (wholesale price
index WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (consumer price index CPI) के आंकड़ों के
अनुसार, अप्रैल 2022 में, थोक और खुदरा स्तर पर खाद्य मुद्रास्फीति औसतन लगभग 8.8 और
8.4 प्रतिशत रही है। लगभग 0.4 प्रतिशत का यह अंतर जनवरी 2022 में देखे गए 4.2 प्रतिशत के
अंतर से बहुत कम है, जब मुद्रास्फीति की दर क्रमशः 9.6 प्रतिशत और 5.4 प्रतिशत थी। फरवरी
2022 से डब्ल्यूपीआई (WPI) खाद्य या डब्ल्यूपीआईएफ (WPIF) मुद्रास्फीति दर थोड़ी धीमी हो
गई जबकि अक्टूबर 2021 से सीपीआई (CPI) खाद्य या सीपीआईएफ (CPIF) मुद्रास्फीति दर बहुत
तेजी से बढ़ी थी। लेकिन समग्र सीपीआई और डब्ल्यूपीआई स्तरों पर, मुद्रास्फीति की दरें अभी भी
बहुत अलग हैं।
भारतीय कृषि-मूल्यों के लिए आने वाले महीनों में, अन्य बातों के साथ-साथ दो जोखिम कारक सामने
आते हैं, जिसमें उच्च और बढ़ती वैश्विक मुद्रास्फीति से निरंतर संक्रमण और मानसूनी वर्षा शामिल
हैं। अप्रैल 2022 में खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) (Food and Agriculture
Organization, FAO) का अनाज मूल्य सूचकांक 2008 के खाद्य संकट की तुलना में अधिक था।
इसका वनस्पति तेल सूचकांक अद्वितीय शिखर पर पहुंच गया है। उच्च वैश्विक कीमतों के आने
वाले महीनों में, आयात और निर्यात के अधिक अवसरों के माध्यम से, घरेलू कीमतों में वृद्धि जारी
रहने की संभावना है। मानसून, घरेलू स्तर पर अगला महत्वपूर्ण कारक है। मार्च 2022 में उत्तर-
पश्चिमी राज्यों की अभूतपूर्व गर्मी का स्तर और शुष्क तथा अनिश्चित मानसूनी बारिश का पैटर्न,
आज भारत में चल रहे जलवायु संकट के कुछ स्पष्ट परिणाम हैं।
देश का लगभग 48 प्रतिशत सकल
फसल क्षेत्र (जीसीए) (Gross Cropped Area (GCA)) अभी भी सिंचाई के लिए बारिश पर
निर्भर करता है। देश में मानसून की केंद्रीयता जारी है, आईएमडी (IMD) के पहले पूर्वानुमान के
अनुसार, इस साल मानसून सामान्य रहने की संभावना है। लेकिन लंबे समय तक शुष्क रहने तथा
अनिश्चित मासिक और भौगोलिक विस्तार के खतरे बहुत बड़े हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3tiOdl5
https://on.wsj.com/3yXb6Oh
https://bit.ly/3lEqCab
https://bit.ly/3yZf09w
चित्र संदर्भ
1 थोक में सामान लेते दुकानदार को दर्शाता एक चित्रण (Pledge Times)
2. एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक 1961–2021 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत - कोयम्बेडु मार्केट में प्याज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. भारत की मुद्रास्फीति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक भारतीय खाद्य बाजार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)