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लखनऊ शहर में होने वाली भव्य और महंगी शादियां देखकर यह समझ में आ जाता है कि, इस शहर को "नवाबों का शहर" आखिर क्यों कहा जाता है। विवाह को यादगार बनाने के लिए शादी की रस्मों से लेकर, घर की सजावट तक और लजीज व्यंजनों से लेकर, संगीत के धूम-धड़ाके तक कोई भी कसर नहीं छोड़ी जाती है। हालांकि इनमें से एक गतिविधि लखनऊ वासियों के स्वास्थ्य और प्रतिष्ठा दोनों को धूमिल कर रही है।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि विभिन्न अवसरों पर डीजे म्यूजिक (DJ Music) की तेज़ आवाज से जुड़ी शिकायतों के मामले में हमारा लखनऊ शहर, पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे खराब स्थिति में आता है। इससे भी गंभीर समस्या यह है कि, विभिन्न अवसरों पर इस तरह से शोर-शराबे के कारण हमारे सुनने की क्षमता काफी हद तक प्रभावित हो रही है। चलिए जानते हैं कैसे?
कभी न कभी आप भी ऐसी स्थिति में जरूर रहे होंगे, जब शादी-विवाह या अन्य जगहों से आने वाले तेज़ शोर के कारण आपको अपने कानों को अपने हाथों से ढकना पड़ा होगा। भारत में न केवल शादी-विवाह बल्कि सभी उत्सव, बहुत ही ज़ोर-शोर और शोर-शराबे के साथ तेज़ आवाज में, डीजे साउंड सिस्टम (Dj Sound System) बजाते और जुलूस निकालते हुए मनाए जाते हैं। जहां एक ओर ये चीज़ें उत्सव को यादगार और मज़ेदार बनाती हैं, वहीं दूसरी ओर यही हरकतें लोगों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर गंभीर और नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकती हैं।
इन दुष्प्रभावों में शामिल है:
१. सुनने की क्षमता को नुकसान: तेज आवाजें आपकी सुनने की क्षमता को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती हैं।
२. तनाव और चिंता: तेज़ आवाज़ या शोर, तनाव और चिंता का भी कारण बन सकती है। इससे आपके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
३. नींद में खलल: अधिकांश उत्सव, अक्सर देर रात तक चलते रहते हैं, जिससे आपकी नींद में खलल पड़ सकता है। इस खलल के कारण आप थके हुए और चिड़चिड़े हो सकते हैं, साथ ही आपके लिए ध्यान केंद्रित करना भी मुश्किल हो सकता है।
पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव:
१. वन्यजीवों में अशांति: तेज आवाजें वन्यजीवों को परेशान कर सकती हैं और उनमें भी तनाव पैदा कर सकती हैं। इससे हमारे पहले से कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
२. वायु और ध्वनि प्रदूषण: डीजे साउंड सिस्टम और जनरेटर (Generator) हवा को प्रदूषित कर सकते हैं, और ध्वनि प्रदूषण के स्तर को बदतर स्थिति तक पहुंचा सकते हैं।
ध्वनियों का तेज़ सुनाई देना, ध्वनि कितनी देर तक चलती है, ध्वनि की पिच (Pitch) या आवृत्ति क्या है, और आप इसे कहाँ सुनते हैं, इन सभी बातों पर निर्भर करता है। हम ध्वनि की तीव्रता को "डेसीबल" ("Decibel" (dB) नामक इकाइयों में मापते हैं। इसका नाम टेलीफोन का आविष्कार करने वाले अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (Alexander Graham Bell) के नाम पर रखा गया है। डेसिबल हमें यह पता लगाने में मदद करता है कि, कोई ध्वनि कितनी तेज है। डेसीबल में छोटे-छोटे बदलाव से भी ध्वनि की तीव्रता में बड़ा अंतर आ सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई ध्वनि 80 डेसिबल के बीच है, और आप इसे मात्र 10 डेसिबल और बड़ा देते हैं, तो यह आवाज आपके कानों को दस गुना अधिक तीव्र और लगभग दोगुनी तेज़ी से चुभेगी। सुनने के लिए सुरक्षित ध्वनि कितनी तेज़ होनी चाहिए, इसे जानने के लिए "डीबीए (dBa)" नामक एक विशेष प्रकार के डेसीबल का भी उपयोग किया जाता हैं। डीबीए स्तर (डेसीबल माप) में होने वाली थोड़ी सी वृद्धि भी आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। डीबीए जितना अधिक होगा, आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
किसी भी ध्वनि से आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचने की संभावना अधिक होती है, यदि वह:
85 डीबीए के आसपास है, और आप इसे कम से कम 8 घंटे तक सुनते हैं।
100 डीबीए के आसपास है, और आप इसे कम से कम 14 मिनट तक सुनते हैं।
110 डीबीए के आसपास है, और आप इसे कम से कम 2 मिनट तक सुनें।
इन स्तर की ध्वनियों से आपकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचने की संभावना बहुत अधिक होती है। इन ध्वनियों के कुछ उदाहरण आपके हेडफोन (Headphones) पर बजने वाले गाने भी हैं, जो 94-110 डीबीए के बीच हो सकते हैं, या आतिशबाजी जो 140-160 डीबीए के बीच हो सकती है।
जब डीजे या डॉल्बी सिस्टम (Dolby System) चालू किया जाता है, तो शोर का स्तर 100 डेसिबल से अधिक होता है। यह सामान्य स्तर या ध्वनि प्रदूषण नियम-2000 के तहत अनुमत उच्चतम स्तर से बहुत अधिक है। यही कारण है कि शादी विवाह में डीजे पर तेज आवाज में बजने वाले गाने न केवल शादी में आने वाले मेहमानों बल्कि आस पड़ोस में रहने वाले लोगों की सुनने की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है । जैसा कि हमारे अपने प्यारे लखनऊ शहर में हो रहा है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश की ग्राहक सेवा टीम, (यूपी 112) की सेवाएं शुरू होने के महज 40 घंटों में ही उन्हें 835 शिकायती कॉल प्राप्त हो गई थी। इनमें से अधिकांश शिकायतें, लाउडस्पीकर और डीजे की तेज आवाज से संबंधित थी, जिससे बोर्ड परीक्षा दे रहे छात्रों को परेशानी हो रही थी। इनमें से सबसे अधिक शिकायतें (106 कॉल) हमारे लखनऊ में दर्ज की गई। 15 फरवरी से यूपी 112 ने पहली बार छात्रों को अपने फेसबुक पेज या ट्विटर हैंडल (Facebook Page Or Twitter (X) Handle) पर ध्वनि प्रदूषण के बारे में शिकायत करने की सुविधा दी है। इस सुविधा का इस्तेमाल काफी लोगों ने किया। शोर की सबसे ज्यादा शिकायतें लखनऊ और गाजियाबाद जैसे शहरों से आईं। शोर के स्तर की जांच के लिए पुलिस के पास स्वचालित मीटर वाले वाहन और यंत्र उपलब्ध हैं।
ये वाहन 3-4 मिनट में उस स्थान पर पहुंच सकते हैं, जहां से शिकायत आई है। लखनऊ की 106 शिकायतों में से अधिकांश ट्रांस-गोमती क्षेत्र से की गई थीं। लखनऊ के बाद, ध्वनि प्रदूषण से जुड़ी सबसे अधिक 78 कॉलें गाजियाबाद से आईं, इसके बाद कानपुर नगर से 54, इलाहाबाद से 52 और आगरा से 38 कॉलें की गई थी।
शोर से उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार के पास ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 नामक एक कानून है। यह कानून इस बात की सीमा तय करता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में कितने शोर की अनुमति है। यह स्थानीय अधिकारियों को कानून लागू करने और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति भी देता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4tk5j5td
https://tinyurl.com/yc8but4v
https://tinyurl.com/mv5b9jke
https://tinyurl.com/mrxpymve
https://tinyurl.com/2vwb3w5x
चित्र संदर्भ
1. एक भारतीय शादी में नाचते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. बारात में नाचते लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक डीजे को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
4. ध्वनि स्तर मापने वाले मीटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. चांदनी चौक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक कॉल सेण्टर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)