
मेरठ के हर घर में, जब सुबह कोई टूथपेस्ट लगाकर दाँत साफ करता है, खेतों में किसान कीटनाशक छिड़कते हैं, महिलाएँ चेहरे पर पाउडर लगाती हैं या कोई व्यक्ति डिओडरन्ट लगाकर दिन की शुरुआत करता है — वहाँ कहीं न कहीं डायटोमाइट (Diatomite) चुपचाप अपना काम कर रहा होता है। यह सफेद, बेहद महीन और हल्का खनिज दिखने में साधारण लगता है, लेकिन इसके उपयोग असाधारण हैं। सौंदर्य प्रसाधन हों या दंत-स्वास्थ्य, कृषि हो या मंदिर की सफाई, शरीर की दुर्गंध हो या ज़मीन की उपज — डायटोमाइट का योगदान हर जगह है। यही वह अनदेखा साथी है जो मेरठ के शहरी और ग्रामीण जीवन दोनों में गहराई से शामिल है।
शहर के बाहर बसे किसान आज रासायनिक कीटनाशकों से बचते हुए प्राकृतिक विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जिनमें डायटोमाइट का अहम स्थान है। वहीं, शहरी घरों में यह खनिज बाथरूम की अलमारी में रखे टूथपेस्ट और डिओडरन्ट से लेकर ड्रेसिंग टेबल के पाउडर तक अपनी भूमिका निभा रहा है। यह सब बिना किसी दिखावे के, बिना किसी चर्चा के — बस चुपचाप। मेरठ, जो शिक्षा, विज्ञान और समझदारी के लिए जाना जाता है, अब समय है कि वह डायटोमाइट जैसे खनिजों की छिपी हुई ताकत को पहचाने। यह सिर्फ खनिज नहीं, बल्कि जीवन को स्वच्छ, सुरक्षित और संतुलित बनाने वाला एक अदृश्य सहयोगी है।
इस लेख में हम जानेंगे कि डायटोमाइट क्या है, यह कैसे बनता है और कहाँ पाया जाता है। हम जानेंगे कि यह कैसे त्वचा और शरीर की देखभाल, जैविक कृषि, और उद्योगों में उपयोग किया जा रहा है। विशेष रूप से इसके निर्माण की प्रक्रिया, भारत में इसकी दुर्लभता और डायनामाइट में इसकी औद्योगिक भूमिका पर गहराई से चर्चा करेंगे।
डायटोमाइट की भूवैज्ञानिक उत्पत्ति और जैविक स्रोत
डायटोमाइट, जिसे डायटोमेशस अर्थ (diatomaceous earth) भी कहते हैं, प्राकृतिक सिलिका युक्त तलछटी चट्टान है जो प्राचीन सूक्ष्म जलीय पौधों — डायटॉम्स के जीवाश्मों से बनती है। डायटॉम्स एककोशकीय शैवाल होते हैं, जो पानी में पाए जाते हैं और सूक्ष्मदर्शी से ही दिखाई देते हैं। उनके मृत कोशिकाएं तल में जमकर सिलिका युक्त परतें बनाती हैं, जो समय के साथ डायटोमाइट बन जाती हैं। इस खनिज के कण अत्यंत सूक्ष्म (10–200 माइक्रोन) और छिद्रयुक्त होते हैं, जिससे यह अत्यधिक अवशोषक बन जाता है। यह गुण इसे फिल्ट्रेशन, स्क्रबिंग, और संरक्षित भंडारण जैसे उपयोगों के लिए आदर्श बनाता है। इसकी रासायनिक संरचना में 80-90% सिलिका होती है, जिससे यह औद्योगिक उपयोग में भी विशेष स्थान रखता है।
डायटॉम्स का जीवन समुद्र, झीलों और नदियों के सतही जल में होता है, और ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन भी उत्पन्न करते हैं। जब ये मरते हैं, तो उनका सिलिका-युक्त बाह्यकवच तल में जमा होता जाता है, जो लाखों वर्षों में दबाव और समय के प्रभाव से डायटोमाइट की परतें बनाता है। यह प्रक्रिया जैव-तलछटी (biogenic sedimentation) कहलाती है। डायटोमाइट की ऊँची सतह क्षेत्र (surface area) और कम घनत्व इसे एक उत्कृष्ट अधिशोषक (adsorbent) बनाते हैं। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, यह खनिज रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन, जल शोध और औषधीय उद्योग में भी संभावनाएं रखता है। कुछ प्रकार के डायटोमाइट में विशिष्ट संरचनात्मक पैटर्न पाए जाते हैं, जो माइक्रोस्कोप के अंतर्गत देखने पर अत्यंत सुंदर होते हैं। यह खनिज उन दुर्लभ शृंखला का हिस्सा है जो जैविक और भूवैज्ञानिक सीमाओं के मध्य एक सेतु का कार्य करता है।
डायटोमाइट की भौगोलिक उपलब्धता और भारत में सीमित खनन
डायटोमाइट का भंडार मुख्यतः अमेरिका, चीन, डेनमार्क, जापान और पेरू जैसे देशों में पाया जाता है। भारत में इसकी उपस्थिति बहुत सीमित है और इसका खनन कुछ ही क्षेत्रों में किया जाता है। इसकी भूगर्भीय संरचना विशेष परिस्थितियों में ही बनती है, इसलिए यह खनिज सामान्य रूप से हर जगह उपलब्ध नहीं है। इसकी दुर्लभता इसे और भी कीमती बनाती है, विशेष रूप से औद्योगिक और पर्यावरणीय अनुप्रयोगों में। इसके जल और रसायन अवशोषण गुण इसे फिल्टरिंग, क्लीनिंग और डिटॉक्सिफिकेशन के लिए उपयुक्त बनाते हैं।
डायटोमाइट का निर्माण शांत और ठंडे जलवायु वाले जल निकायों में अधिक प्रभावी होता है, जहां डायटॉम्स लंबे समय तक बिना विघटन के जमा हो सकते हैं। अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया और नेवाडा राज्यों में इसका सर्वाधिक उत्पादन होता है। चीन और पेरू में इसका व्यावसायिक खनन बड़े पैमाने पर होता है, जहां यह निर्माण और कृषि उद्योगों के लिए निर्यात किया जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञ इसे ‘ईको-फ्रेंडली मिनरल’ मानते हैं क्योंकि इसका खनन तुलनात्मक रूप से कम नुकसानदायक होता है। भारत में इसे अभी भी एक "कम पहचान वाला खनिज" माना जाता है, हालांकि इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर हर वर्ष लाखों टन डायटोमाइट का उत्पादन होता है, जो एयर फिल्टर, बियर फिल्टर, और औद्योगिक ड्रायरों में उपयोग होता है। यह खनिज जल संरक्षण, दूषित मिट्टी की सफाई और कार्बन उत्सर्जन कम करने जैसे प्रयोजनों में भी प्रयोग किया जा रहा है।
त्वचा, दाँत और शरीर की देखभाल में डायटोमाइट का प्राकृतिक उपयोग
डायटोमाइट का प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों में व्यापक रूप से हो रहा है। फेस मास्क, स्क्रब, एक्सफोलिएटर आदि में यह मृत त्वचा हटाने, छिद्र साफ करने और त्वचा को मुलायम बनाने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त, दंत-मंजन में यह माइक्रो-अब्रेसिव की तरह कार्य करता है, जिससे दांत साफ और चमकदार बनते हैं। इसमें पाए जाने वाले प्राकृतिक खनिज तत्व कीटाणुनाशक गुण भी प्रदान करते हैं। एल्यूमिनियम रहित डिओडरन्ट्स में डायटोमाइट का प्रयोग प्राकृतिक अवशोषक के रूप में किया जाता है, जो पसीने की दुर्गंध को कम करता है और श्वसन प्रणाली को सुरक्षित रखता है।
कई प्रमुख ब्यूटी ब्रांड्स ने हाल के वर्षों में डायटोमाइट को अपने स्किनकेयर उत्पादों में शामिल किया है, विशेष रूप से "नैचुरल एक्सफोलिएशन" के रूप में। यह त्वचा से अतिरिक्त तेल, धूल और मृत कोशिकाएं हटाने में अत्यधिक प्रभावी होता है। इसके एंटी-बैक्टीरियल गुण मुहाँसों और ब्लैकहेड्स को भी नियंत्रित करते हैं। होममेड फेस मास्क में इसकी एक चुटकी मिलाकर त्वचा को दमकता रूप दिया जा सकता है। दंतमंजन में यह ना केवल सफेदी देता है, बल्कि बैक्टीरिया और मसूड़ों की सूजन को भी घटाता है। एलर्जी या संवेदनशील त्वचा वाले लोगों के लिए डायटोमाइट-आधारित डिओडरन्ट्स एक सुरक्षित विकल्प बनते जा रहे हैं। कई आयुर्वेदिक उत्पादों में भी इसे माइक्रो-सक्रिय तत्व के रूप में शामिल किया गया है। यह त्वचा की पीएच संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है और शरीर को डिटॉक्स करने में योगदान देता है।
कृषि और उद्यानों में जैविक कीटनाशक के रूप में डायटोमाइट
डायटोमाइट की छिद्रयुक्त संरचना इसे प्राकृतिक कीटनाशक बनाती है। यह कीटों के शरीर की बाहरी परत से नमी सोख लेता है, जिससे कीट निर्जलित होकर मर जाते हैं। इसका यह गुण पूरी तरह रासायनिक-मुक्त होता है, जो इसे जैविक खेती और उद्यानों के लिए सुरक्षित विकल्प बनाता है। यह न केवल तत्काल कीटों को समाप्त करता है, बल्कि भविष्य में उनके वापस आने की संभावना को भी कम करता है। कई ऑर्गेनिक फार्मिंग प्रैक्टिसेज़ में डायटोमाइट को मिट्टी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है, जिससे यह मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखने में भी सहायक होता है।
डायटोमाइट का उपयोग गार्डनिंग में विशेष रूप से स्लग, एफिड्स, बीटल्स और पिस्सुओं के नियंत्रण में किया जाता है। इसकी महीन पाउडर को पौधों के चारों ओर छिड़कने पर यह एक सूखा अवरोध बनाता है जो कीटों के लिए प्राणघातक होता है। यह विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए आदर्श है जहाँ पालतू जानवर या छोटे बच्चे रहते हैं क्योंकि इसमें कोई विषैला रसायन नहीं होता। मिट्टी में मिलाने पर यह नमी बनाए रखने में भी सहायक होता है, जिससे पौधों की वृद्धि में सुधार आता है। कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि यह मिट्टी में उपस्थित भारी धातुओं को बाँधने की क्षमता रखता है। जैविक कृषि की ओर बढ़ते रुझान ने डायटोमाइट को एक पुनः खोजा गया ‘प्राकृतिक समाधान’ बना दिया है। इसके उपयोग से फसलें अधिक सुरक्षित, कीट-मुक्त और पर्यावरण-अनुकूल बनती हैं।
डायनामाइट निर्माण में डायटोमाइट की औद्योगिक भूमिका
डायटोमाइट की अवशोषण क्षमता इसे डायनामाइट जैसे विस्फोटक में महत्वपूर्ण बनाती है। डायनामाइट में प्रयुक्त नाइट्रोग्लिसरीन अत्यधिक अस्थिर होता है। डायटोमाइट इसे सोखकर स्थिर बनाता है, जिससे विस्फोटक सुरक्षित रूप में स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सके। इसका यह उपयोग खनन, निर्माण और विध्वंस उद्योगों में अत्यधिक महत्व रखता है। बिना डायटोमाइट के, डायनामाइट का सुरक्षित उपयोग करना लगभग असंभव होता है। इसके सोर्बेंट गुणों के कारण डायटोमाइट को इन उद्योगों में एक रणनीतिक संसाधन के रूप में देखा जाता है।
डायनामाइट के इतिहास में डायटोमाइट का प्रयोग स्वीडिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल द्वारा किया गया था, जिन्होंने नाइट्रोग्लिसरीन को सुरक्षित बनाने के लिए इसका प्रयोग किया। डायटोमाइट की अद्वितीय संरचना विस्फोटक तरल को एक ठोस, नियंत्रित रूप में बदल देती है, जिससे अनचाहे विस्फोट से बचा जा सकता है। इसकी अवशोषण क्षमता इसे तेल रिसाव नियंत्रण और अन्य खतरनाक रसायनों के प्रबंधन में भी उपयोगी बनाती है। निर्माण कार्यों में बर्फीले क्षेत्रों में सड़क ब्लास्टिंग के लिए यह अत्यधिक महत्वपूर्ण है। रक्षा उद्योग में भी डायटोमाइट आधारित विस्फोटकों को बेहतर माना जाता है क्योंकि वे अधिक स्थायित्व प्रदान करते हैं। डायटोमाइट के बिना, विस्फोटकों का वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग न केवल जोखिमपूर्ण होता, बल्कि महँगा और अस्थिर भी।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/22z6e3e4
https://tinyurl.com/228vd2hx
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