प्रसव में कैसे मददगार है जननी सुरक्षा योजना

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
26-06-2019 12:30 PM
प्रसव में कैसे मददगार है जननी सुरक्षा योजना

अस्पतालों का होना एक राष्ट्र के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है परन्तु अस्पतालों में सुचारू रूप से इलाज होना एक अलग ही बिंदु है। सम्पूर्ण भारत में यदि देखा जाए तो यह कहना कदाचित गलत नहीं होगा कि शहरों की अपेक्षा गांवों और देहात में अस्पतालों की स्थिति खस्ता हाल में है। आये दिन बच्चों के प्रसव काल के दौरान ही हो जाने वाली मृत्यु की खबर हम सुनते हैं। ऐसी स्थिति कैसे बनती है, वह सत्य भयावह है।

मेरठ एक ऐसा शहर है जहाँ पर विश्वस्तरीय अस्पताल उपलब्ध हैं परन्तु यहीं के आस-पास के जिलों जैसे कि बिजनौर आदि जिलों में मेरठ जैसी सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसका परिणाम यह आता है कि उन जिलों में स्वास्थ्य व्यवस्था के अभाव से कई दुखद घटनाएं हो जाती हैं। वैसे तो प्रत्येक जिले में सरकारी अस्पताल हैं परन्तु जो आंकड़े सामने आते हैं उनसे यही कहा जा सकता है कि वे काफी नहीं हैं। हाल ही में कई घटनाएँ सामने आई हैं जिनमें सरकारी अस्पतालों की कई बातें पता चलीं। जिनमें से कुछ ऐसी हैं जहाँ पर इलाज के बिना ही कितने बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। राष्ट्रिय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण 4 के सर्वेक्षण से यह पता चला है कि आज भी भारत की एक बड़ी आबादी घर पर ही बच्चों की डिलीवरी (Delivery) करती है। अगर प्रतिशत में देखा जाए तो इनमें अनुसूचित जनजाति 31.7%, दलित 21.3% और सबसे गरीब तबके से ताल्लुख रखने वाले 40% हैं। यह आंकड़ा पढ़ने के बाद यह साफ़ हो जाता है कि गरीब तबका आज भी सरकारी या गैर सरकारी स्वास्स्थ्य सम्बन्धी सेवाएं लेने में असफल है जिसका मूल कारण है रुपये की कमी।

हाल ही मेरठ के पास के जिले बिजनोर से एक खबर आई जिसमें एक गर्भवती महिला को मेरठ मेडिकल कॉलेज (Meerut Medical College) में बिजनोर के डॉक्टरों द्वारा भेजा गया था क्यूंकि उस महिला के पास अस्पताल में काम करने वाले लोगों को घूस देने के लिए 4,000 रूपए नहीं थे। जिसका परिणाम यह आया कि बस अड्डे पर ही उस महिला का गर्भपात हो गया और नवजात के सर पर चोट की वजह से उसकी मृत्यु हो गयी। ऐसी तमाम घटनाएं आये दिन सुर्ख़ियों में रहती हैं परन्तु सरकारी अस्पतालों की दशा जस की तस बनी हुयी है। ऐसे भी हालात सामने आते हैं जब बच्चा सामान्य रूप से पैदा होता है तब भी उनको सही पोषण नहीं मिल पाता जिसके कारण से भी जच्चा और बच्चा दोनों पर प्रभाव पड़ता है। देश भर में करीब 56,000 से अधिक महिलाओं का और 13 लाख से अधिक नवजात शिशुओं का देहांत डिलीवरी के बाद हो जाता है। ये सभी बिंदु एक तरफ से सोचनीय हैं।

जैसा कि मेरठ एक महानगर है तो यहाँ पर विभिन्न प्रकार के निजी चिकित्सालय उपलब्ध हैं परन्तु उनमें इलाज कराने ऐसे परिवार नहीं आते जिनकी आय अत्यधिक कम हो, कारण कि वे अत्यंत महंगे हैं। जननी सुरक्षा योजना, जो कि भारत सरकार की एक पहल है, इस क्षेत्र में कुछ सुधार करने में सक्षम प्रतीत होती है। इस योजना के अंतर्गत सरकार सालाना करीब 1 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को प्रसव के काल में मदद देती है और करीब 1600 करोड़ रूपए सालाना खर्च कर रही है। इस योजना में प्रत्येक महिला को डिलीवरी पर 6,000 रूपए की नकद राशि सरकार देती है। यह योजना जच्चा और बच्चा को प्रसव काल के बाद होने वाली समस्याओं से निजात दिलाने के उद्देश्य से शुरू की गयी है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए प्रसव काल के दौरान महिला को पास के सरकारी अस्पताल में अपना नामांकन करवाना होता है। यह योजना निजी अस्पतालों में भी काम करती है। निजी अस्पतालों में यदि ऑपरेशन (Operation) से बी. पी. एल. कार्ड धारकों का प्रसव होता है तो चिकित्सालय को 10,000 रूपए की मदद मिलती है। यह योजना मुख्यतः जच्चा और बच्चा के प्रसव के दौरान होने वाले मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रचारित की गयी है।

संदर्भ:
1. https://bit.ly/2XawhL9
2. https://bit.ly/2YccOWU
3. https://bit.ly/2ZI3s5A

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.