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एक पहेली जो कभी हल नहीं हुई, वह ये है कि क्या संत कबीर दास (15वीं शताब्दी, भारत के महान कवि) एक हिन्दू थे या फिर एक मुसलमान? लेकिन जिन लोगों ने इस विषय में गहरी खोज की, उन्होंने अनिवार्य रूप से यह पाया कि कबीर का धर्म खोजना, स्वयं भगवान का धर्म खोजने के बराबर है। वे खुद को "हिंदू" या "मुस्लिम" की धार्मिक पहचान से परे मानते थे। लोगों द्वारा एक दूसरे को यह विश्वास दिलाने की परस्पर कोशिश रही कि कबीर एक मुसलमान या हिन्दू थे, लेकिन शायद ही कभी उन्होंने उनके संदेशों को समझने की कोशिश भी की हो।
हालांकि, उनका जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन वे धर्म की पारंपरिक परंपराओं से परे थे। उन्होंने हर जगह से अच्छी चीजों को लिया और सभी के समक्ष समान रूप से फैलाया। उनका विशेष कार्य यह बताना था कि हिन्दू मुस्लिम बनने से पहले एक इंसान कैसे बना जाता है। कबीर का मानना था कि ईश्वर उस व्यक्ति के साथ होता है जो धार्मिकता के पथ पर चलता है, पृथ्वी के सभी प्राणियों को अपना स्वयं का मानता है, और जो सांसारिक मामलों से अलग होता है।
कबीर ने अपने दोहों के ज़रिए हिंदू-मुस्लिम धर्म की रूढ़िवादिता पर भी कई कटाक्ष किए थे:
कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, इसलिए उनके सभी दोहों को उनके शिष्यों द्वारा ही लिखा गया था। उनकी साहित्य विरासत को उनके दो शिष्यों, भागोदास और धर्मदास ने बनाया था। कबीर के गीतों को क्षितिमोहन सेन ने भारत भर के भिक्षुकों से एकत्र किया था और उनके बाद रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ये अंग्रेज़ी में अनुवादित किए गए थे। कबीर के छंदों को सिख धर्म के ग्रंथ “आदि ग्रंथ” में भी शामिल किया गया था।
संत कबीर ने अपने दोहों के अन्दर इंसानियत के बारे में भी बताया है – कबीर के अनुसार हर इंसान को सिर्फ अपने सगे सम्बन्धियों ही नहीं अपितु दूसरों के दर्द को भी समझना और बांटना चाहिए। सिर्फ अपने लोगों का समर्थन न करके दूसरों के दर्द को समझने वाला ही सच्चा इंसान होता है।
कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़।
जो पर पीड़ न जानता, सो काफ़िर बे-पीर।।
संदर्भ:
1. https://www.navodayatimes.in/news/khabre/who-was-kabirdas/87387/
2. https://www.quora.com/Was-Kabir-Das-Hindu-or-Muslim
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Kabir