समय - सीमा 282
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1046
मानव और उनके आविष्कार 821
भूगोल 257
जीव-जंतु 309
गंध की भावना एक ऐसी चीज है जिसका उपयोग हम अपने जीवन के लगभग हर दूसरे सेकेंड (Second) में करते हैं। यह अब तक की सभी पाँच इंद्रियों में सबसे शक्तिशाली और विशिष्ट है। हमारी गंध की भावना का इतनी शक्तिशाली होने का एक यह भी कारण है कि यह सीधे हमारे मस्तिष्क में जाती है। हालांकि इतने वर्षों से हो रहे विकास ने मुश्किल से इसे छुआ है लेकिन फिर भी यह आज भी स्पर्श और धारणा के बीच सबसे कुशल स्थानिक तंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। गंध हमें हमारे आस-पास के वातावरण को समझने में मदद करती है, लेकिन सोचिए यदि हमारी गंध को महसूस करने की शक्ति धीरे धीरे कम होने लग जाए तो हमारा जीवन कैसा हो जाएगा? दरअसल दिन प्रतिदिन बढ़ रहा यह प्रदूषण मनुष्य की गंध को महसूस करने की क्षमता को घटा रहा है।
आज विश्व काफी तेजी से शहरी, तेजी से औद्योगिक और तेजी से प्रदूषित होता जा रहा है, जिस वजह से वर्तमान समय में हमारी गंध को महसूस करने की शक्ति हमारे दादा-दादी की उम्र से भी बदतर होती जा रही है। दूसरी ओर विकासशील शहरी क्षेत्र ऊष्मा द्वीप में परिवर्तित हो रहे हैं, जो हमारी गंध को महसूस करने की क्षमता को बढ़ा रहे हैं। जैसे-जैसे हम अधिक गर्म जलवायु की ओर बढ़ते हैं, हम अपनी गंध को महसूस करने की क्षमता में सुधार होते हुए देखते हैं। गर्मी अणुओं को तेज गति से बढ़ने में मदद करती है, और इसलिए एक ठंडी जगह की तुलना में एक गर्म स्थान में गंध को आसानी से महसूस किया जा सकता है, यही वजह है कि इकट्ठी हुई गंदगी की दुर्गंध हमारे लिए सर दर्द बन जाती है, साथ ही दुर्गंध हमारे स्वास्थ्य में काफी हानिकारक प्रभावों को उत्पन्न करती है।
भारत में कचरा प्रबंधन एक कोई ठोस समाधान मौजूद नहीं है, खासकर विकसित हो रहे शहरी क्षेत्रों में, जिनमें से एक मेरठ भी है। ठोस कचरा प्रबंधन मेरठ शहर में बनिया पारा, केसरगंज, आदि जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के सामने प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। खाली ज़मीनों को डंपिंग ग्राउंड (Dumping Ground) के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और वे एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक (Plastic) और अन्य खतरनाक कचरे से भरे हुए हैं। स्वच्छता के संदर्भ में यहाँ मल तंत्र नहीं है, जिस वजह से यहां कचरा सड़कों को भी दूषित कर रहा है। जहां कुछ वर्ष पहले तक यहाँ नाली में पानी बहता था, अब यह सभी प्रकार के मल-मूत्र से भरा हुआ है और बीमारी के लिए एक स्रोत बना हुआ है। कई लोगों ने समस्या का हल खोजने के लिए नगर निगम को लिखा, लेकिन उनके द्वारा नाले के चारों ओर एक दीवार बना दी गई, जो समय के साथ टूट गई और सारा कचरा सड़कों पर इकट्ठा होने लग गया। कचरे के इन ढेरों से निकलने वाली दुर्गंध कई बीमारियों को उत्पन्न करके न केवल शहरवासियों बल्कि आसपास रहने वाले ग्रामीणों को भी प्रभावित कर रही है।
मेरठ, प्रतिदिन, 1,000 टन ठोस अपशिष्ट का उत्पादन करता है, जिसे शहर की सीमा के बाहर तीन जगहों पर ढेर किया जाता है, जिससे आस-पास के ग्रामीणों के लिए जीवन मुश्किल हो रहा है। इलाके में कचरे के ढेरों को लेकर हाल ही में कई हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। खराब स्वच्छता प्रबंधन के साथ अन्य कई कारणों ने इस मुद्दे को बढ़ा दिया है। जैसे मेरठ गाजियाबाद को प्रतिदिन 200 टन कचरा फेंकने की अनुमति देता है। एनजीटी (NGT) समिति के आदेश पर गाज़ियाबाद मैनेजमेंट कमीटी (Ghaziabad Management Committee - GMC) ने प्रताप विहार लैंडफिल (Landfill) में कचरा फेंकने से मना कर दिया, जिस वजह से गाजियाबाद में ठोस मल प्रबंधन संकट में पड़ गया।
जहां सरकार की नीतियों और स्थानीय प्रशासन द्वारा कचरे के निपटान का प्रयास करने के बावजूद, पिछले कुछ वर्षों में बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिला है। वहीं उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में एक 25 वर्षीय युवा द्वारा अपने क्षेत्र में वैज्ञानिक रूप से कचरे को इकट्ठा करने, प्रबंधन करने और नष्ट करने का एक अनूठा प्रयास किया गया है। 'स्वच्छ मेरठ' के नाम से जाना जाने वाला यह प्रयास आज 17 आवासीय क्षेत्रों के 10,000 घरों में उत्पन्न लगभग 8,000 किलोग्राम ठोस कचरे का प्रबंधन करने के लिए 118 से अधिक कचरा बीनने वालों को सफलतापूर्वक अपने साथ जोड़ कर यह कार्य कर रहा है। स्वच्छ मेरठ प्रतिरूप एक साधारण घर-घर में जाकर कचरा इकट्ठा करने वाली प्रणाली पर आधारित है। कचरो को वहीं से अलग-अलग किया जाता है, जहां से वह उत्पन्न होता है, इसलिए गीले कचरे को सीधे खाद बनाने वाले स्थान में ले जाया जाता है, जहां इसे वायुजीवी खाद गड्ढे और वर्मीकम्पोस्टिंग बेड (Vermicomposting Bed) का उपयोग करके खाद में बदल दिया जाता है। दूसरी ओर, सूखा कचरा, पुनर्चक्रण इकाइयों को आगे की प्रक्रिया के लिए भेज दिया जाता है। यदि इस प्रतिरूप को अन्य सभी आवासीय क्षेत्रों में दोहराया जाए, तो वह दिन दूर नहीं होगा जब लोगों को कचरा मुक्त देश देखने को मिल सकता है।
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.