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जौनपुर शहर की नींव 1360 ईस्वी में फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा रखी गई थी। यह दिल्ली सल्तनत के शुरुआती वर्षों की बात है। बाद में, यह महत्वपूर्ण शहर मलिक सवार खान जहान को सौंपा गया। उन्हें अपने कार्यकाल में कई प्रतिष्ठित उपाधियाँ मिलीं। तुगलक शासन के दौरान वे ख्वाजा सरा (मुख्य किन्नर) कहलाए। इसके साथ ही, उन्होंने शाही आभूषणों के संरक्षक का दायित्व भी निभाया। उन्हें शाहनब-ए-शहर (दिल्ली का राज्यपाल) भी नियुक्त किया गया। अंततः, उन्हें सुल्तान-उशर शर्क (पूर्वी प्रांत का राज्यपाल) की महत्वपूर्ण उपाधि प्राप्त हुई। इन्हीं सवार खान जहान ने आगे चलकर 1394 ईस्वी में शर्की सल्तनत की स्थापना की।
अब ज़रा उस मध्ययुगीन जौनपुर शहर की कल्पना कीजिए, जो गोमती नदी के किनारे आबाद था। उस समय इसे दार-उर-सुरूर यानी आनंद का निवास कहा जाता था। बाद में, मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे शिराज-ए-हिंद का गौरवशाली नाम दिया। यह शहर भारतीय विरासत की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक राजधानी बन गया। इसकी नींव शर्की शासन के समय में ही पड़ चुकी थी। यहाँ शर्की वास्तुकला के अद्भुत नमूने मौजूद हैं, जिनमें कई सूफ़ी दरगाहें शामिल हैं। इसके अलावा, यहाँ खूबसूरत मस्जिदें, मज़बूत किले, ऐतिहासिक पुल और शानदार महल भी देखे जा सकते हैं। इन इमारतों के मेहराबों की घुमावदार सुंदरता देखते ही बनती है! मिस्र के ऊँचे प्रोपिलॉन शर्की वास्तुकला की एक खास पहचान थे। निर्माण में स्तंभों, बीमों और ट्रेबेटेड शैली का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था। यह शैली हिंदू राजमिस्त्री और कारीगरों के लिए ज्यादा परिचित थी।
आज हम कुछ दुर्लभ चलचित्रों के माध्यम से शर्की सल्तनत काल की जौनपुर की ऐतिहासिक वास्तुकला को देखेंगे। आइए, इस पहले वीडियो में हम जौनपुर की ऐतिहासिक वास्तुकला और शर्की सल्तनत के संक्षिप्त इतिहास को देखते हैं।
आइए अब शहर की ऐतिहासिक स्मारकों को करीब से देखते हैं:
यह अगला चलचित्र आपको जौनपुर की अटाला मस्जिद की शानदार वास्तुकला से रूबरू कराएगा:
आइए अब जौनपुर के शाही किले के दृश्य स्वरूप इतिहास को देखते हैं:
आइए अब चलते-चलते जौनपुर के उस शाही पुल के इतिहास को देखते हैं जो आज कई दशकों के बाद भी ज्यों का त्यों अटल खड़ा है:
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