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समुद्र की गहराइयों में विचरने वाली नीली व्हेल (Blue Whale) न केवल पृथ्वी का सबसे बड़ा जीव है, बल्कि यह विकास, विज्ञान और रहस्यों का जीवित प्रतीक भी है। इसका विशाल आकार, अद्भुत जैविक संरचना और हज़ारों वर्षों का विकासक्रम वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को आज भी हैरान करता है। व्हेल का सफर भूमि से समुद्र तक, इसके डीएनए में छुपे रहस्य, कैंसर (cancer) प्रतिरोध क्षमता और यहां तक कि इसके द्वारा उत्पन्न एम्बरग्रीस (ambergris) जैसे पदार्थ - सब कुछ इसे एक अद्वितीय प्राणी बनाते हैं। व्हेल केवल एक जीव नहीं, बल्कि प्रकृति का एक ऐसा चमत्कार है जिसने इंसानों की कल्पना और विज्ञान दोनों को सदियों से आकर्षित किया है। इसकी कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन किस तरह परिस्थितियों के अनुसार बदलता और नए रूप ग्रहण करता है। लगभग पाँच करोड़ वर्ष पहले भूमि पर रहने वाले एक छोटे से स्तनधारी से शुरू होकर यह आज धरती के सबसे बड़े जीव, ब्लू व्हेल, के रूप में विकसित हुई है। इसके विशाल आकार की रहस्यमय वजहें हों, अरबों कोशिकाओं के बावजूद कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने की अद्भुत क्षमता हो, या फिर अलग-अलग प्रजातियों से जन्म लेने वाली हाइब्रिड व्हेल (Hybrid Whale) - हर पहलू हमें हैरान कर देता है। इतना ही नहीं, इसकी आँतों से उत्पन्न होने वाला एम्बरग्रीस सदियों से इत्र-निर्माण की दुनिया में बेशकीमती माना जाता है। व्हेल की यह यात्रा हमें केवल जीव-जगत के बारे में नहीं बताती, बल्कि यह भी दिखाती है कि विज्ञान और प्रकृति मिलकर जीवन की कितनी गहरी और अनकही कहानियाँ छुपाए हुए हैं।
इस लेख में हम व्हेल से जुड़े कुछ प्रमुख पहलुओं पर चर्चा करेंगे। सबसे पहले, इसके विकासक्रम पर नज़र डालेंगे कि किस तरह यह भूमि पर रहने वाले जीव से समुद्र की गहराइयों की सबसे बड़ी प्रजाति बनी। इसके बाद, ब्लू व्हेल के विशाल आकार और इसके पीछे के आनुवंशिक कारणों को समझेंगे। आगे, इसकी कैंसर प्रतिरोध क्षमता पर विचार करेंगे, जिसे पेटोज़ पैराडॉक्स (Peto’s Paradox) कहा जाता है और जो इंसानों के लिए भी शोध का विषय है। हम हाइब्रिड व्हेल और “इंट्रोग्रेशन” (Introgression) की घटना को भी देखेंगे, जहाँ अलग-अलग प्रजातियाँ मिलकर नई प्रजाति बनाती हैं। अंत में, हम एम्बरग्रीस जैसे बहुमूल्य पदार्थ की चर्चा करेंगे, जो इत्र निर्माण में सदियों से महत्वपूर्ण माना जाता है।
व्हेल का विकासक्रम और भूमि से समुद्र तक का सफर
व्हेल का विकासक्रम पृथ्वी के सबसे अद्भुत प्राकृतिक बदलावों में से एक माना जाता है। इसका इतिहास लगभग 5 करोड़ वर्ष पुराना है, जब पाकीसेटस (Pakicetus) नामक चार पैरों वाला स्तनधारी जीव भूमि पर विचरण करता था। धीरे-धीरे इसने अपना जीवन जल से जोड़ना शुरू किया, क्योंकि समुद्र भोजन और सुरक्षा का बड़ा स्रोत था। इसके बाद एम्बुलोसेटस (Ambulocetus) और कुचिसेटस (Kuchisetus) जैसी प्रजातियाँ सामने आईं, जिनके शरीर ने पानी में तैरने और शिकार करने के लिए विशेष क्षमताएँ विकसित कर लीं। उनके पैरों का आकार धीरे-धीरे बदलकर फ़्लिपर (flipper) जैसा हो गया और उनकी नाक ऊपर की ओर खिसक गई ताकि वे आसानी से साँस ले सकें। लाखों वर्षों की इस विकास यात्रा ने उन्हें पूरी तरह समुद्री जीवन के अनुकूल बना दिया, और अंततः आज की विशाल ब्लू व्हेल जैसी प्रजातियाँ अस्तित्व में आईं। यह सफर हमें बताता है कि जीव-जंतु किस प्रकार पर्यावरण की माँग के अनुसार स्वयं को बदलते हुए पूरी तरह नए रूप ले सकते हैं।
ब्लू व्हेल का विशाल आकार और उसके आनुवंशिक कारण
ब्लू व्हेल का शरीर धरती पर मौजूद किसी भी प्राणी से कहीं बड़ा है। इसका औसत वजन 120–150 टन तक पहुँच सकता है और कुछ व्हेल्स 200 टन तक भी पाई गई हैं। लंबाई की बात करें तो यह लगभग 100 फीट यानी 10 मंज़िला इमारत जितनी ऊँची हो सकती है। इतने बड़े आकार को सहारा देना केवल समुद्र जैसा वातावरण ही संभव बना सकता है, क्योंकि पानी का उछाल (buoyancy) इनके वजन को संतुलित रखता है। इसके अलावा, समुद्र में उपलब्ध सूक्ष्म झींगा जैसे जीव क्रिल (Krill) इसका मुख्य भोजन हैं, जिन्हें यह रोज़ाना कई टन तक निगल लेती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इसके असामान्य विकास के पीछे विशेष ग्रोथ हार्मोन (growth hormone) और इंसुलिन पाथवे (insulin pathway) से जुड़े जीन (gene) जिम्मेदार हैं। इन आनुवंशिक परिवर्तनों ने इसके शरीर को इतना बड़ा बनने दिया, जबकि अन्य जीव इतने विशालकाय नहीं हो सके। यही कारण है कि ब्लू व्हेल न केवल समुद्र का राजा कहलाती है, बल्कि यह धरती के विकासक्रम की सबसे अनोखी रचना भी है।
व्हेल और कैंसर प्रतिरोध क्षमता पेटोज़ पैराडॉक्स
इतने विशाल शरीर और अरबों - खरबों कोशिकाओं के बावजूद व्हेल्स में कैंसर की घटनाएँ आश्चर्यजनक रूप से कम पाई जाती हैं। सामान्यतः यह माना जाता है कि जितनी अधिक कोशिकाएँ होंगी, उतना ही कैंसर का खतरा भी बढ़ेगा। लेकिन व्हेल इस नियम का अपवाद हैं। इस रहस्य को वैज्ञानिक पेटोज़ पैराडॉक्स कहते हैं। शोध से पता चला है कि व्हेल के डीएनए में विशेष प्रकार के ट्यूमर-सप्रेसर जीन (tumor-suppressor gene) मौजूद होते हैं, जो क्षतिग्रस्त या असामान्य कोशिकाओं को तुरंत पहचानकर नष्ट कर देते हैं। इसके अतिरिक्त, इनके शरीर में कोशिका विभाजन की गति भी अपेक्षाकृत धीमी होती है, जिससे डीएनए (DNA) त्रुटियों की संभावना कम हो जाती है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि हम व्हेल के इस जैविक रहस्य को पूरी तरह समझ लें, तो यह मानव समाज के लिए कैंसर रोकथाम और उपचार की दिशा में क्रांतिकारी खोज साबित हो सकती है। इस दृष्टि से व्हेल न केवल समुद्र का चमत्कार है, बल्कि चिकित्सा विज्ञान के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
हाइब्रिड व्हेल और इंट्रोग्रेशन की घटना
समुद्र विज्ञानियों ने कई बार यह पाया है कि ब्लू व्हेल और फिन व्हेल (Fin Whale) आपस में प्रजनन कर सकती हैं। इनके मिलन से एक नई संकर (हाइब्रिड) प्रजाति जन्म लेती है, जिसे आमतौर पर “फ्लू व्हेल” (Flu Whale) कहा जाता है। यह घटना जैविक विज्ञान में “इंट्रोग्रेशन” के नाम से जानी जाती है, जिसमें दो अलग-अलग प्रजातियों का आनुवंशिक पदार्थ आपस में मिलकर नई विशेषताओं वाले जीव को जन्म देता है। हाइब्रिड व्हेल्स का अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि समुद्री जीवन पूरी तरह स्थिर नहीं है, बल्कि उसमें निरंतर बदलाव और विकास होता रहता है। यह वैज्ञानिकों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रजातियाँ लुप्त होने के बाद भी उनका डीएनए किसी न किसी रूप में आगे की पीढ़ियों में जीवित रह सकता है। इन हाइब्रिड प्रजातियों का अध्ययन भविष्य में हमें समुद्र की जैव विविधता और उसके संतुलन को गहराई से समझने का अवसर देता है।
एम्बरग्रीस: व्हेल से मिलने वाला बहुमूल्य पदार्थ
ब्लू व्हेल और स्पर्म व्हेल (Sperm Whale) से जुड़ा एक और रहस्यमय पहलू है एम्बरग्रीस, जिसे “समुद्र का तैरता सोना” भी कहा जाता है। यह एक मोम जैसी ठोस और दुर्लभ वस्तु है, जो व्हेल की आँतों से उत्पन्न होती है और समुद्र की सतह पर तैरती हुई मिल सकती है। इसकी विशेषता इसकी अद्भुत और स्थायी सुगंध है, जिसके कारण यह प्राचीन काल से ही इत्र निर्माण उद्योग में अत्यंत मूल्यवान मानी जाती रही है। इतिहास में इसे राजघरानों और अमीरों द्वारा विलासिता के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया। आधुनिक समय में भी उच्च-गुणवत्ता वाले परफ़्यूम्स (perfume) में एम्बरग्रीस की माँग बनी हुई है। हालांकि, इसके व्यापार और उपयोग को लेकर नैतिक और कानूनी बहस जारी है, क्योंकि यह सीधे जीवित प्राणियों से जुड़ा है। कुछ देशों में इसका संग्रह और बिक्री प्रतिबंधित है, जबकि अन्य जगहों पर यह अब भी काले बाज़ार में लाखों रुपये में बिकता है। एम्बरग्रीस हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के पास ऐसे कई अनमोल रहस्य छुपे हुए हैं, जिन्हें हम अभी पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं।
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