इटली से लेकर लखनऊ के घरों तक बिसलेरी की बोतलों का ज़बरदस्त सफ़रनामा!

नगरीकरण- शहर व शक्ति
01-05-2025 09:16 AM
इटली से लेकर लखनऊ के घरों तक बिसलेरी की बोतलों का ज़बरदस्त सफ़रनामा!

गर्मियां शुरू होते ही लखनऊ की आम गलियों से लेकर रिहायशी घरों तक, हर जगह ठंडे पानी की बोतलों की भरमार देखने को मिलती है। गौर से देखने पर हम पाते हैं कि आज के समय में बोतलबंद पानी सिर्फ़ एक सुविधा नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन चुका है। चाहे ऑफ़िस हो, स्कूल, रेस्टोरेंट या फिर सफ़र – हर जगह लोग साफ़ और सुरक्षित पानी के लिए बोतलबंद पानी पर ही भरोसा करते हैं। शुद्ध पानी को लेकर बढ़ती चिंताओं ने इस इंडस्ट्री को ज़बरदस्त रफ़्तार दी है। आज बाज़ार में मिनरल और प्यूरिफ़ाइड पानी (Purified water) के ढेरों ब्रांड मौजूद हैं, जो ग्राहकों को उनकी ज़रूरत के हिसाब से कई विकल्प देते हैं। लेकिन इस पूरी इंडस्ट्री में एक नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में रहता है, वह नाम है: बिसलेरी! पिछले 50 सालों में बिसलेरी भारत आई, बढ़ी, और पानी का दूसरा नाम बन गई। आपको जानकर हैरानी होगी कि पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर इंडस्ट्री (Packaged Drinking Water Industry) में इसकी 60% हिस्सेदारी है।  इसलिए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि भारत में बोतलबंद पानी का बाज़ार कैसे तेज़ी से बढ़ा, इसमें बिसलेरी की क्या भूमिका रही! आगे हम जानेंगे कि कैसे पारले (Parle) ने इसे एक सुपरहिट ब्रांड बना दिया। साथ ही, हम इसकी शुरुआत की दिलचस्प कहानी पर भी नज़र डालेंगे।

चित्र स्रोत : flickr 

आइए सबसे पहले भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर इंडस्ट्री (Packaged drinking water industry) की वर्तमान स्थति पर एक नज़र डालते हैं:

भारत में जब भी गर्मी बढ़ती है या सफ़र पर निकलते हैं, तो हम में से ज़्यादातर लोग सबसे पहले एक बोतल मिनरल वाटर ज़रूर खरीदते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये बोतलबंद पानी का कारोबार कितना बड़ा हो चुका है? संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक रिपोर्ट बताती है कि 2018 से 2021 के बीच भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर इंडस्ट्री, हर साल 27% की रफ़्तार से बढ़ रही है। ये ग्रोथ इतनी तेज़ है कि भारत इस मामले में दुनिया में सबसे बड़ा बाज़ार बन चुका है, जिसमें सिर्फ़ दक्षिण कोरिया ही आगे है।। अब आंकड़ों की बात करें, तो 2021 में भारत, बोतलबंद पानी के मूल्य के हिसाब से 12वां और मात्रा के हिसाब से चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता था। मतलब, हमारे देश में मिनरल वाटर की बोतलों का धंधा ज़बरदस्त तरीके से फल-फूल रहा है। हालांकि ये बढ़ता हुआ बाज़ार एक बड़े मौके की तरह दिखता है, लेकिन इसके पीछे की सच्चाई हमें सोचने पर भी मज़बूर कर देती है। 

रिपोर्ट बताती है कि बोतलबंद पानी का बढ़ता चलन हमें दो तथ्यों से परिचित कराता है—
1. सरकारें लोगों को साफ़ और मुफ़्त पीने का पानी मुहैया कराने में असफ़ल हो रही हैं। 
2. इससे प्लास्टिक वेस्ट (Plastic waster) बढ़ता जा रहा है, जो हमारे पर्यावरण के लिए नई चुनौती खड़ी कर रहा है।

आज अगर आप किसी से कहो "पानी खरीदना है?" तो जवाब मिलेगा – "बिसलेरी ले लो!" लेकिन ये सफ़र इतना आसान नहीं था। 

चित्र स्रोत : wikimedia

लेकिन क्या आपको पता है कि बिसलेरी की कहानी कहाँ से शुरू हुई थी?

बिसलेरी नाम की शुरुआत भारत में नहीं, बल्कि इटली में हुई थी। इसकी बुनियाद एक इटालियन वैज्ञानिक, व्यवसायी और रसायनज्ञ सिग्नोर फ़ेलिस बिसलेरी  (Signor Felice Bisleri) द्वारा रखी गई थी। 20 नवंबर 1851 को इटली के वेरोलानूवा (Verolanuova) में जन्मे बिसलेरी ने शुरुआत में इसका नाम पानी के लिए नहीं, बल्कि एक दवा के लिए रखा था! यह एक अल्कोहल-आधारित मेडिसिनल ड्रिंक (medicinal drink) थी, जिसमें सिनकोना (cinchona), जड़ी-बूटियाँ और लौह लवण होते थे। डॉ. सेसरे रॉसी (Dr. Cesare Rossi), फ़ेलिस बिसलेरी के पारिवारिक डॉक्टर और करीबी दोस्त थे। 17 सितंबर 1921 को जब फ़ेलिस बिसलेरी का निधन हुआ, तो कंपनी की कमान डॉ. रॉसी के हाथों में आ गई।
भारत में बिसलेरी कैसे आई?

डॉ. रॉसी और उनके मित्र ख़ुशरू सुंतुक ने भारत में बिसलेरी को सफ़ल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ख़ुशरू के पिता भी वकील थे। 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ, तब देश में नए व्यापार की संभावनाएं तलाशी जा रही थीं। उन्होंने देखा कि भले ही पानी आसानी से मिल जाता हो, लेकिन शुद्ध और मिनरल वॉटर के लिए लोगों को बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी। ख़ास तौर पर बड़े होटलों में ठहरने वाले विदेशी पर्यटकों और अमीर परिवारों को साफ़ पानी की भारी किल्लत झेलनी पड़ती थी।

चित्र स्रोत : wikimedia

यहीं से डॉ. रॉसी और ख़ुशरू सुंतुक के दिमाग़ में एक नया आइडिया आया—क्यों न भारत में बोतलबंद पानी बेचा जाए?

इस आइडिया को हक़ीक़त बनाने में पूरे 18 साल लगे! आख़िरकार, 1965 में मुंबई के ठाणे में भारत का पहला बिसलेरी वॉटर प्लांट स्थापित हुआ। उस समय भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में पीने के पानी की गुणवत्ता बेहद ख़राब हुआ करती थी। गरीब और मध्यम वर्ग किसी तरह उस पानी से काम चला लेते थे, लेकिन अमीरों और विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या थी। ऐसे में बिसलेरी का पानी उन्हें किसी अमृत से कम नहीं लगा! धीरे-धीरे बिसलेरी ने भारतीय बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली। आज यह सिर्फ़ एक ब्रांड नहीं, बल्कि शुद्धता और भरोसे का प्रतीक बन चुका है। 60% बाज़ार हिस्सेदारी के साथ बिसलेरी भारत के पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर सेगमेंट की बेताज बादशाह है।

चित्र स्रोत : wikimedia

भारत में बिसलेरी की लोकप्रियता बढ़ने की एक और दिलचस्प कहानी है:

“बिसलेरी बिक रही है!” यह ख़बर 1969 में भारत के व्यापार जगत में आग की तरह फैली। उस वक़्त बिसलेरी मिनरल वाटर और बिसलेरी सोडा भारतीय बाज़ार में क़दम रख चुके थे, लेकिन असली खेल तब शुरू हुआ जब ये ख़बर पारले कंपनी के मास्टरमाइंड ‘चौहान ब्रदर्स’ के कानों तक पहुंची।

उस समय ख़ुशरू सुंतोक बिसलेरी के मालिक थे। लेकिन शायद उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि उनकी कंपनी सिर्फ़ 4 लाख रुपये में एक नए मुक़ाम पर पहुंचने वाली है। 1969 में, पारले के रमेश चौहान ने बिसलेरी को ख़रीद लिया, और बस यहीं से कहानी बदल गई! पारले ने बिसलेरी का अधिग्रहण कर लिया और इसे पूरे भारत में फैलाने का प्लान बनाया। पानी और सोडा के अलावा, उन्होंने धीरे-धीरे सॉफ़्ट ड्रिंक्स की दुनिया में भी क़दम रख दिया। ब्रांड इतना बड़ा हुआ कि विदेशों तक इसे ले जाने की योजना बनने लगी।

बिसलेरी ने सोडा को दो श्रेणियों में बांटने का आइडिया निकाला -

  1. कार्बोनेटेड (Carbonated) (जिसमें गैस होती है)
  2. नॉन-कार्बोनेटेड मिनरल वाटर (Non Carbonated Mineral Water)

यह प्रयोग भारत में एक नई क्रांति साबित हुआ, जिसने मिनरल वाटर इंडस्ट्री को ज़बरदस्त बूस्ट दे दिया। अब पानी सिर्फ़ पानी नहीं रहा, बल्कि एक ब्रांड बन गया!

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/239a8qy3 

https://tinyurl.com/2bnoobvx 

https://tinyurl.com/239a8qy3 

https://tinyurl.com/24keh7ux

मुख्य चित्र स्रोत : flickr 

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