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लखनऊ के कुछ लोगों को अपने अंतर्राष्ट्रीय पार्सल, समय पर न मिलने का अनुभव हुआ होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कस्टम प्रक्रिया अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग में बहुत अहम भूमिका निभाती है। यह तय करती है कि सामान कितनी जल्दी एक देश से दूसरे देश तक पहुंचेगा। कई बार देरी का कारण दस्तावेज़ों में गलती, जांच, टैक्स से जुड़े आकलन या नियमों का पालन न करना होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे सामान को कस्टम अधिकारी कैसे जांचते और मंज़ूरी देते हैं?
आज हम इसी बारे में विस्तार से जानेंगे। हम समझेंगे कि कस्टम क्लियरेंस (Custom Clearance) या सीमा शुल्क निकासी की प्रक्रिया में कौन-कौन से मुख्य चरण होते हैं, जैसे – कार्गो का आना, कस्टम घोषणा, निरीक्षण, टैक्स आकलन और आखिरी मंज़ूरी। इसके बाद, हम भारत में समुद्री और हवाई माल परिवहन की कस्टम क्लियरेंस से जुड़ी चुनौतियों पर भी नज़र डालेंगे। फिर, हम यह जानेंगे कि भारत में कस्टम प्रक्रियाओं को डिजिटलाइज़ करने के क्या फ़ायदे हैं। इनमें पेपरलेस ट्रेडिंग, कम समय में क्लियरेंस और आसान प्रक्रिया शामिल हैं। अंत में, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि भारत में कस्टम संचालन को अधिक प्रभावी बनाने में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस यानी ए आई कैसे मदद कर रहा है।
बंदरगाहों पर सामान की सीमा शुल्क निकासी कैसे होती है?
भारत में समुद्री और वायु मालवाहन के कस्टम क्लियरेंस में आने वाली चुनौतियाँ
1. नियामक चुनौतियाँ (Regulatory Challenges):
भारत में कस्टम नियम काफ़ी सख़्त होते हैं, और अगर दस्तावेज़ों में कोई गलती हो जाए, तो जुर्माना या देरी हो सकती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी सामान का गलत टैरिफ़ वर्गीकरण (Tariff Classification) किया जाता है या उसकी कीमत जानबूझकर कम बताई जाती है, तो उस पर भारी जुर्माना लग सकता है या माल ज़ब्त भी किया जा सकता है। भारत में कस्टम क्लियरेंस के दौरान, कंपनियों को विभिन्न दस्तावेजों की आवश्यकताओं का पालन करना पड़ता है, जैसे उत्पाद प्रमाणपत्र (Product Certificates) या विशेष परमिट्स (Special Permits)। यह चुनौती खासतौर पर उन वस्तुओं के लिए अधिक होती है जो प्रतिबंधित श्रेणी में आती हैं, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स या फ़ार्मार्मास्युटिकल्स ।
2. देरी की समस्या (Delays):
कस्टम क्लियरेंस में देरी होना बहुत आम समस्या है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह गलत या अधूरे दस्तावेज़ होते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कमर्शियल इनवॉयस (Commercial Invoice) गायब हो या बिल ऑफ लैडिंग (Bill of Lading) में कोई गलत जानकारी हो, तो पूरी प्रक्रिया अटक सकती है। इसके अलावा, भारत के प्रमुख बंदरगाहों और हवाई अड्डों पर भीड़भाड़ भी एक बड़ी समस्या है। खासकर पीक सीज़न में, जब मालवाहन की संख्या बहुत अधिक हो जाती है, तो कस्टम प्रक्रिया में और भी अधिक समय लग सकता है।
3. कर प्रणाली और बदलती नीतियाँ (Taxation and Changing Policies):
भारत में कस्टम नियम और व्यापार नीतियाँ लगातार बदलती रहती हैं, जिससे कारोबारियों को अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। टैरिफ़, आयात/निर्यात प्रतिबंध या अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में बदलाव का सीधा असर व्यापार पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, जब भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू हुआ, तो कई व्यवसायों को नए कर नियमों को समझने में कठिनाई हुई और इसके कारण कस्टम प्रक्रिया में देरी भी हुई।
भारत में कस्टम क्लियरेंस प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण के
1. पेपरलेस ट्रेडिंग (Paperless Trading (बिना कागज़ी दस्तावेज़ों का व्यापार)) - अब व्यापारी ऑनलाइन माध्यम से कस्टम क्लियरेंस से जुड़े दस्तावेज़ जमा कर सकते हैं, जिससे कागज़ी कार्यवाही की ज़रुरत नहीं रह जाती। यह न केवल प्रक्रिया को तेज़ और सुगम बनाता है, बल्कि लेन-देन की लागत भी कम करता है।
2. कम क्लियरेंस समय - केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes and Customs (CBIC)) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में 15 सर्वेक्षण किए गए बंदरगाहों में से 9 में आयातित सामान की औसत रिलीज़ टाइम में कमी आई है। यह सुधार खासतौर पर उन व्यापारियों के लिए फायदेमंद है जो इनलैंड कंटेनर डिपो (Inland Container Depot (ICD)) और एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स से निर्यात करते हैं।
3. सुगम और प्रभावी प्रक्रिया - स्विफ़्ट (SWIFT) यानी सोसाइटी फ़ॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फ़ाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन, तुरंत कस्टम्स, ई-संचित, और यूलिप - यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP) जैसे मौजूदा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पहले से ही कस्टम प्रक्रियाओं को आसान बना रहे हैं। जल्द ही एक सिंगल पोर्टल लॉन्च किया जाएगा, जो इन सभी सिस्टम को एकीकृत करेगा और प्रक्रिया को और भी सरल बना देगा।
भारत की कस्टम प्रणाली में ए आई का प्रभाव
1. तेज़ और सुविधाजनक डिलीवरी - ए आई ने कस्टम प्रक्रियाओं को आसान और तेज़ बना दिया है, जिससे व्यापारियों को एक सरलता अनुभव मिलता है। अब कस्टम डेक्लेरेशन (Custom Declaration) की प्रक्रियाएँ अधिक व्यवस्थित हो गई हैं, जिससे व्यापार और आसान हुआ है।
2. जोखिम मूल्यांकन (Risk Assessment) - मशीन लर्निंग एल्गोरिदम व्यापार डेटा का विश्लेषण कर ज़ोख़िम संकेतों और अनियमितताओं की पहचान करते हैं। इससे कस्टम अधिकारी, हाई-रिस्क सामान की जांच को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे संचालन अधिक प्रभावी बनता है और लो-रिस्क शिपमेंट में देरी नहीं होती।
3. दस्तावेज़ों का स्वचालन (Documentation Automation)
ए आई सेवाओं के माध्यम से व्यापार दस्तावेज़ों की जांच और नियामक अनुपालन (Regulatory Compliance) स्वचालित रूप से किया जा सकता है। मशीन लर्निंग और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (Natural Language Processing (NLP)) की मदद से ए आई सिस्टम चालान, कस्टम डेक्लेरेशन और अन्य दस्तावेज़ों में होने वाली त्रुटियों को तुरंत पहचान सकता है।
4. कार्गो स्कैनिंग (Cargo Scanning):ए आई ने कार्गो स्क्रीनिंग और निरीक्षण को अधिक सुरक्षित और कुशल बना दिया है। कंप्यूटर विज़न एल्गोरिदम्स एक्स-रे (X-ray) और स्कैनिंग इमेज में ख़तरों और अवैध वस्तुओं की पहचान कर सकते हैं, जिससे कस्टम सुरक्षा प्रणाली अधिक प्रभावी हो गई है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में एक बड़े जहाज और इंडोनेशियाई कस्टम घोषणा फॉर्म का स्रोत : Pexels, Wikimedia
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