
समयसीमा 244
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 998
मानव व उसके आविष्कार 789
भूगोल 220
जीव - जन्तु 283
हमारा शहर लखनऊ, जो अपनी नवाबी तहज़ीब और बौद्धिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है, हमेशा से ही ज्ञान और शिक्षा का केंद्र रहा है। इसी ऐतिहासिक शहर की गलियों में ज्ञान की परंपराएँ पनपी हैं! और वैदिक गणित इसी परंपरा का एक हिस्सा मानी जाती है। क्या आप जानते हैं कि वैदिक गणित की मदद से जटिल गणितीय समस्याओं को तेज़ी और आसानी से हल किया जा सकता है? यह प्राचीन भारतीय विधि, गणनाओं को सरल और प्रभावी बनाती है। वेदों से उत्पन्न यह तकनीक कुछ विशेष सूत्रों पर आधारित है, जिनकी मदद से बड़े से बड़े और कठिन से कठिन सवाल भी चुटकियों में हल किए जा सकते हैं। लखनऊ के विद्यार्थी और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थी इस विधि से ख़ासा लाभ उठा सकते हैं। यह न केवल गणनाओं को आसान बनाती है, बल्कि मानसिक क्षमता और तार्किक सोच को भी विकसित करती है। दिलचस्प बात यह है कि जिस तरह लखनऊ अपनी तहज़ीब और ऐतिहासिक धरोहरों को संजोकर रखता है, उसी तरह वैदिक गणित भी हमारी प्राचीन बौद्धिक संपदा का एक अनमोल हिस्सा है, जिसे अब आधुनिक शिक्षा प्रणाली में फिर से महत्व मिल रहा है।
आज के इस लेख में हम जानने का प्रयास करेंगे कि किस तरह से वैदिक गणित, गणनाओं को सरल बनाने में कैसे मदद करती है। साथ ही हम इसके ऐतिहासिक पहलुओं पर भी चर्चा करेंगे और जानेंगे कि यह प्राचीन भारतीय ग्रंथों से कैसे विकसित हुई। इसके अलावा हम इसकी गति और सटीकता जैसी अनूठी विशेषताओं पर भी नज़र डालेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि आधुनिक शिक्षा में यह किस तरह छात्रों की सीखने और समस्या-समाधान की क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
वैदिक गणित क्या है?
वैदिक गणित एक अनोखी और प्राचीन गणितीय प्रणाली है, जो 16 मुख्य सूत्रों और 13 उप-सूत्रों पर आधारित है। यह प्रणाली अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति और कलन जैसे विषयों को आसान और तेज़ गणना को सरल बनाती है। इस गणितीय प्रणाली की खोज प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ "जगद्गुरु भारती कृष्ण तीर्थजी" द्वारा 1911 से 1918 के बीच की गई थी।
वे संस्कृत, गणित, इतिहास और दर्शन के महान विद्वान थे। 1925 से 1960 तक वे पुरी के शंकराचार्य भी रहे। वर्षों के गहन अध्ययन के बाद, उन्होंने दावा किया कि वैदिक ग्रंथों में गणित की एक संगठित प्रणाली छिपी हुई है, जो आधुनिक गणना को आसान बना सकती है।
वैदिक गणित की जानकारी सुल्ब सूत्रों में भी मिलती है, जो कल्प सूत्र (वैदिक अनुष्ठान ग्रंथ) का एक हिस्सा हैं। इन सूत्रों में यज्ञ वेदियों के निर्माण, ज्यामितीय आकृतियों, बीजीय समीकरणों और पाइथागोरस प्रमेय जैसी गणितीय अवधारणाओं का वर्णन किया गया है। यही नहीं, इन सूत्रों में अपरिमेय संख्याओं, वर्गमूल और π (पाई) के शुरुआती प्रमाण भी दिए गए हैं। 1965 में, इस प्रणाली को "वैदिक गणित" नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया। इसके 16 सूत्र और 13 उपसूत्र गणनाओं को तेज़ और आसान बनाने में मदद करते हैं, जिससे गणितीय समस्याओं तेज़ी से और सरलता से हल किया जा सकता है। वैदिक गणित सिर्फ़ गणनाओं की विधि नहीं, बल्कि एक संपूर्ण प्रणाली है, जो गणित को तेज़, आसान और दिलचस्प बनाती है। इसकी कई अनूठी विशेषताएँ हैं, जो इसे ख़ास बनाती हैं।
आइए, इसकी विशेषताओं को सरल भाषा में समझते हैं।
वैदिक गणित न केवल गणनाओं को आसान बनाती है, बल्कि दिमागी कौशल को भी बढ़ाती है। यह छात्रों को तेज़, सटीक और आत्मविश्वास से भरी गणना करने में मदद करती है। यही कारण है कि यह आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक गणित में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए है।
आइए अब जानते हैं कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में वैदिक गणित बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है:
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : Wikimedia
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.