
लखनऊ—जिसे लोग सिर्फ़ नवाबी अंदाज़, अदब और तहज़ीब के लिए जानते हैं, वहाँ एक और चीज़ है जो चुपचाप दिलों में जगह बना चुकी है—फुटबॉल। इस शहर की गलियों में जब शाम की रौशनी फीकी पड़ती है, तब कहीं अमीनाबाद के मैदान में बच्चे जर्जर जूतों में गेंद का पीछा करते हैं, तो कहीं राजाजीपुरम या चौक की बस्ती में कोई नौजवान खाली प्लास्टिक की बोतल को फुटबॉल मानकर गोल की ओर बढ़ता है। यह खेल यहाँ सिर्फ़ मैदान पर नहीं खेला जाता, यह यहां के दिलों में बसता है। दुनिया में कई खेल हैं जिन्हें लोग पसंद करते हैं, लेकिन फुटबॉल एक ऐसा नाम है जो लोगों के जीवन में कुछ और ही गहराई से उतरता है। यह खेल सिर्फ़ 11 बनाम 11 खिलाड़ियों की लड़ाई नहीं है—यह संघर्ष है, जुनून है, उम्मीद है, और कभी-कभी ज़िंदगी की सबसे बड़ी प्रेरणा। लखनऊ जैसे शहर में, जहाँ हर गली अपनी एक कहानी कहती है, वहाँ फुटबॉल कई कहानियों को जन्म देता है—कभी मोहल्ले के छोटे टूर्नामेंट में मिली जीत, तो कभी फटी टी-शर्ट में भी पूरे दमखम से खेलते एक बच्चे की आँखों में पलते सपने।
आज हम जिस खेल को टीवी पर बड़े स्टेडियमों में लाखों की भीड़ के साथ देखते हैं, उसकी शुरुआत कोई तामझाम से नहीं हुई थी। फुटबॉल की जड़ें प्राचीन सभ्यताओं में छिपी हैं, जब इंसान ने पहली बार किसी गेंद को अपने पैरों से मार कर उसे किसी लक्ष्य तक पहुँचाने का आनंद महसूस किया था। वही आनंद धीरे-धीरे सभ्यता दर सभ्यता फैलता गया—सड़कों से स्टेडियमों तक, धूल से हरियाली तक, और खेल से भावना तक। फीफा वर्ल्ड कप जैसा महोत्सव आज जिस खेल को विश्व मंच पर ले गया है, उसकी यात्रा लंबी, संघर्षपूर्ण और गहराई से भरी रही है। और लखनऊ जैसे शहरों की मिट्टी, जहाँ खेल का जज़्बा संसाधनों की कमी के बावजूद जिन्दा है, वहाँ यह सवाल और भी खास हो जाता है—आख़िर फुटबॉल ने यह मुकाम कैसे हासिल किया?
इस लेख में हम फुटबॉल के पूरे सफ़र को समझेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि चीन, जापान और यूनान जैसी प्राचीन सभ्यताओं में इस खेल की क्या रूपरेखा थी। फिर, हम देखेंगे कि किस तरह 1863 में इंग्लैंड में आधुनिक फुटबॉल की नींव रखी गई और क्लबों की शुरुआत हुई। इसके बाद, हम जानेंगे कि इस खेल का नाम "फुटबॉल" कैसे पड़ा और इसके शुरुआती नियम कैसे बने। फिर हम पहुँचेंगे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खेल के विस्तार और फीफा की स्थापना की ओर। अंत में, हम देखेंगे कि कैसे वर्ल्ड कप ने इस खेल को लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचाया और आज यह एक वैश्विक त्योहार बन चुका है।
फुटबॉल की उत्पत्ति: चीन, जापान और यूनान की प्राचीन परंपराएं
फुटबॉल का इतिहास वास्तव में अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है, जिसकी जड़ें चीन, जापान और यूनान की प्राचीन सभ्यताओं में गहराई से जुड़ी हुई हैं। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व चीन में खेले जाने वाले ‘त्सू चू’ को फुटबॉल का सबसे पुराना रूप माना जाता है। यह खेल मुख्यतः सैनिकों के शारीरिक और मानसिक अभ्यास का साधन था। चमड़े की बनी गेंद में पंख और बाल भरे होते थे और खिलाड़ी उसे केवल पैरों, छाती, पीठ या कंधों से नियंत्रित करते हुए एक ऊँचाई पर लगे जाल में डालने की कोशिश करते थे। इस खेल में हाथों का प्रयोग वर्जित था, जिससे यह आधुनिक फुटबॉल से बेहद मिलता-जुलता था। सैनिक इस खेल के माध्यम से अपनी चुस्ती, फुर्ती, संतुलन और टीम वर्क का अभ्यास करते थे, जो युद्ध के मैदान में काम आने वाले महत्वपूर्ण कौशल थे। चीन के इस खेल का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी था क्योंकि इसे युद्ध कौशल के साथ-साथ मनोरंजन के लिए भी खेला जाता था। जापान में 'केमारी' नामक खेल 7वीं शताब्दी में प्रचलित हुआ, जो शुद्ध रूप से सांस्कृतिक और शालीन था। इसमें खिलाड़ी पारंपरिक पोशाकों में गोल घेरे में खड़े होकर गेंद को ज़मीन पर गिरने से रोकते थे, और यह खेल आज भी त्योहारों और धार्मिक आयोजनों में प्रदर्शित किया जाता है। यह खेल सामूहिकता और संयम का परिचायक माना जाता था, और इसे सामाजिक समरसता के रूप में भी देखा जाता था। वहीं यूनान में 'हार्पास्तम' एक उग्र लेकिन रणनीतिक खेल था, जिसमें छोटी गेंद और ताकतवर खिलाड़ियों की भूमिका होती थी। इस खेल में जोरदार शारीरिक टक्कर होती थी, और खिलाड़ी अपनी ताकत के साथ-साथ चालाकी और टीम रणनीति का प्रयोग करते थे। रोमनों ने इस खेल को अपनाकर और अधिक आक्रामक बना दिया। यह खेल केवल शारीरिक क्षमता ही नहीं बल्कि मस्तिष्क की तीव्रता और रणनीति के लिए भी मशहूर था। इन तीनों सभ्यताओं के खेलों में सहयोग, संतुलन और गेंद पर नियंत्रण की जो प्रवृत्ति थी, वही आगे चलकर आधुनिक फुटबॉल का आधार बनी। इस प्रकार, फुटबॉल का प्राचीन इतिहास केवल खेल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह युद्ध, सामाजिक संस्कृति और सामूहिक जीवन के विविध पहलुओं से जुड़ा रहा।
आधुनिक फुटबॉल की शुरुआत: इंग्लैंड में 1863 से लेकर क्लब गठन तक
19वीं शताब्दी के इंग्लैंड में फुटबॉल ने अपने आधुनिक स्वरूप की शुरुआत की। 1863 में फुटबॉल एसोसिएशन (FA) की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने पहली बार इस खेल के लिए एक समान और व्यवस्थित नियम बनाए। इससे पहले, फुटबॉल अलग-अलग स्कूलों, गांवों और क्षेत्रों में अपनी-अपनी शर्तों पर खेला जाता था, जिससे कई बार विवाद और हिंसा तक की नौबत आ जाती थी। 19वीं शताब्दी के मध्य तक क्लब फुटबॉल भी विकसित होने लगा था। यद्यपि 15वीं शताब्दी में कुछ अनौपचारिक क्लब अस्तित्व में आए थे, लेकिन उनका दस्तावेजी प्रमाण उपलब्ध नहीं है। 1824 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में पहला संगठित क्लब बना, जिसे फुटबॉल के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस क्लब ने स्थानीय युवाओं और खिलाड़ियों को संगठित खेल का अवसर प्रदान किया और फुटबॉल को सामाजिक खेल के रूप में स्थापित किया। 1855 में शेफील्ड क्लब अस्तित्व में आया, जो कि शौकिया स्तर पर फुटबॉल खेलने वाला सबसे पुराना क्लब माना जाता है। इस क्लब ने नए नियमों के साथ खेल को और अधिक व्यवस्थित किया, और यह इंग्लैंड में फुटबॉल के प्रचार-प्रसार में अग्रणी रहा। 1862 में स्थापित ‘नॉट्स काउंटी’ क्लब, जो आज भी सक्रिय है, दुनिया का सबसे पुराना पेशेवर फुटबॉल क्लब है। इन क्लबों ने स्थानीय समुदायों में खेल को संगठित रूप में प्रस्तुत किया, जिससे फुटबॉल सामाजिक जुड़ाव और प्रतिस्पर्धा का माध्यम बना। यह युग फुटबॉल के स्थानीय खेल से वैश्विक आंदोलन बनने की नींव का काल था। क्लबों के गठन से फुटबॉल ने धीरे-धीरे स्कूलों, विश्वविद्यालयों और औद्योगिक क्षेत्रों में भी अपनी पैठ बनाई, जिससे यह एक जनप्रिय खेल बन गया। इसके साथ ही, क्लब फुटबॉल ने खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा और कौशल विकास को बढ़ावा दिया, जिससे खेल का स्तर लगातार उन्नत होता गया।
फुटबॉल के नियमों और नाम की उत्पत्ति की कहानी
फुटबॉल शब्द की उत्पत्ति बहुत सरल और व्यावहारिक है — 'फुट' यानी पैर और 'बॉल' यानी गेंद। यह नाम इस खेल की सबसे बुनियादी विशेषता को दर्शाता है: गेंद को पैरों से चलाना। यद्यपि इस नाम के ऐतिहासिक साक्ष्य सीमित हैं, फिर भी व्युत्पत्तिशास्त्रीय विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि नामकरण की प्रक्रिया पूर्णतः तार्किक थी। 1863 में जब फुटबॉल एसोसिएशन ने अपने नियम बनाए, तब पहली बार इस खेल को एक व्यवस्थित स्वरूप मिला। इन नियमों में गेंद का आकार (27–28 इंच), वजन, मैदान की माप, गोलपोस्ट की चौड़ाई, और खेल की अवधि (दो हाफ, प्रत्येक 45 मिनट) जैसे महत्वपूर्ण मापदंड तय किए गए। इससे पहले हर क्षेत्र में नियम अलग थे—कहीं गेंद को हाथ से पकड़ने की अनुमति थी, कहीं गोलपोस्ट ही नहीं होता था। धीरे-धीरे फाउल, पेनल्टी, हैंडबॉल और ऑफसाइड जैसे नियम भी परिभाषित किए गए। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य था खेल को निष्पक्ष, सुरक्षित और प्रतिस्पर्धात्मक बनाना। इन मानकों के कारण आज फुटबॉल न केवल दुनिया का सबसे लोकप्रिय खेल है, बल्कि सबसे अनुशासित खेलों में भी शामिल है। नियमों की यह पारदर्शिता ही इसकी अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता का आधार बनी। नियमों के विकास में विभिन्न क्लबों, स्कूलों और फुटबॉल एसोसिएशन के बीच चलने वाली चर्चाओं और मतभेदों का भी बड़ा योगदान रहा। फुटबॉल की विश्वसनीयता और खेल भावना को बढ़ावा देने के लिए इन नियमों को समय-समय पर संशोधित और अपडेट भी किया गया। उदाहरण के लिए, ऑफसाइड नियम को कई बार सुधारा गया ताकि खेल अधिक गतिशील और प्रतिस्पर्धात्मक बने। इस प्रक्रिया ने फुटबॉल को केवल खेल नहीं, बल्कि एक विज्ञान और कला का रूप भी दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल का विस्तार और फीफा की स्थापना
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब इंग्लैंड में फुटबॉल संगठित हो चुका था, तब यह खेल धीरे-धीरे यूरोप के अन्य हिस्सों में भी फैलने लगा। 1871 में इंग्लैंड और स्कॉटलैंड के बीच हुआ पहला अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल मैच ऐतिहासिक माना जाता है, जिसे देखने लगभग 4000 दर्शक पहुंचे थे। इस मैच ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के द्वार खोल दिए और फुटबॉल की लोकप्रियता को एक नया आयाम दिया। इसके बाद 1883 में इंग्लैंड, आयरलैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स के बीच पहला अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेला गया, जिसने इस खेल को क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर निकाला। यूरोप के बाहर फुटबॉल की शुरुआत 1867 में अर्जेंटीना में हुई, जहाँ ब्रिटिश कामगारों ने इस खेल को शुरू किया। उस समय स्थानीय लोग इससे दूर थे, लेकिन धीरे-धीरे फुटबॉल अर्जेंटीना की सांस्कृतिक पहचान बन गया। अर्जेंटीना में फुटबॉल के बढ़ते प्रभाव ने दक्षिण अमेरिका में इस खेल की लोकप्रियता को असाधारण रूप से बढ़ावा दिया। विश्व स्तर पर फुटबॉल के प्रभाव को स्थायीत्व और संगठन देने के लिए 1904 में पेरिस में फीफा की स्थापना हुई। इसके संस्थापक सदस्य देशों में फ्रांस, बेल्जियम, डेनमार्क, नीदरलैंड्स, स्पेन, स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड शामिल थे। शुरुआत में इंग्लैंड और अन्य ब्रिटिश देश इससे अलग रहे, लेकिन 1905 में उन्होंने भी सदस्यता ले ली। फीफा ने नियमों के मानकीकरण से लेकर टूर्नामेंट के आयोजन तक इस खेल को वैश्विक पहचान दिलाई। आज फीफा 211 देशों को प्रतिनिधित्व देता है और इसकी पहुंच ओलंपिक से भी ज्यादा मानी जाती है। फीफा ने फुटबॉल को केवल एक खेल नहीं बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक प्लेटफॉर्म भी बनाया, जहाँ देशों के बीच दोस्ताना संबंध और प्रतिस्पर्धा दोनों विकसित हुए। फीफा की पहल से विश्व कप, कॉनकैकेफ, यूईएफए यूरो कप जैसे कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट शुरू हुए, जिन्होंने फुटबॉल को एक वैश्विक खेल के रूप में स्थापित किया।
फुटबॉल वर्ल्ड कप का विकास और लोकप्रियता का सफर
फुटबॉल वर्ल्ड कप की शुरुआत 1930 में उरुग्वे से हुई थी, और उस समय किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह टूर्नामेंट एक दिन दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन बन जाएगा। 13 देशों की भागीदारी और सीमित संसाधनों के बावजूद यह आयोजन ऐतिहासिक रहा और उरुग्वे ने न केवल आयोजन किया, बल्कि खिताब भी जीत लिया। इस टूर्नामेंट की सफलता ने विश्व फुटबॉल संघों को इस आयोजन को नियमित रूप से आयोजित करने की प्रेरणा दी। इसके बाद प्रत्येक चार साल में आयोजित होने वाले वर्ल्ड कप में देशों की संख्या और दर्शकों का उत्साह लगातार बढ़ता गया। आज यह टूर्नामेंट 32 टीमों के साथ होता है, लेकिन 2026 से इसमें 48 टीमें हिस्सा लेंगी, जिससे यह और भी व्यापक हो जाएगा। इस प्रतियोगिता के फाइनल मैच को अरबों दर्शक लाइव देखते हैं, और यह प्रसारण 200 से अधिक देशों में किया जाता है। ब्राज़ील, जर्मनी, अर्जेंटीना, फ्रांस और इटली जैसी टीमों ने इस टूर्नामेंट को ग्लैमर और गुणवत्ता दोनों के स्तर पर ऊँचाई दी है। विश्व कप न केवल फुटबॉल कौशल का महाकुंभ है, बल्कि यह विभिन्न संस्कृतियों के आदान-प्रदान और अंतरराष्ट्रीय दोस्ती का भी माध्यम बन चुका है। फुटबॉल वर्ल्ड कप वह मंच बन चुका है जहाँ खिलाड़ी किंवदंती बनते हैं और राष्ट्र अपने गौरव को महसूस करते हैं। भारत भले ही अभी तक इस आयोजन में नहीं पहुंच पाया है, लेकिन यहां के दर्शकों में फुटबॉल को लेकर प्रेम, जुनून और समर्थन की कोई कमी नहीं है। लखनऊ में भी वर्ल्ड कप के दौरान टीवी स्क्रीन के सामने जमा भीड़, गली-गली में बच्चों का फुटबॉल खेलना, और सोशल मीडिया पर टीमों का समर्थन—ये सब इस खेल की वैश्विकता के प्रमाण हैं। डिजिटल युग में सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग ने फुटबॉल की पहुंच को नई ऊँचाई दी है, जिससे भारत जैसे देशों में फुटबॉल की लोकप्रियता में जबरदस्त वृद्धि हुई है। यह खेल न केवल मनोरंजन का स्रोत है, बल्कि युवाओं को प्रेरित करने वाला एक महत्वपूर्ण सामाजिक तत्व भी बन गया है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/5n7j5r6s
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