लखनऊवासियो, जानिए कैसे मोती सदियों से सौंदर्य और सम्पन्नता का प्रतीक बने

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
17-09-2025 09:26 AM
लखनऊवासियो, जानिए कैसे मोती सदियों से सौंदर्य और सम्पन्नता का प्रतीक बने

लखनऊवासियो, मोती सिर्फ़ एक रत्न नहीं है, बल्कि यह सदियों से सौंदर्य, सम्पन्नता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता रहा है। इसकी चमक में एक अनोखी शांति और आकर्षण छिपा है, जो न केवल आभूषणों को खास बनाता है बल्कि मनुष्य के दिलों को भी मोह लेता है। प्राचीन काल से लेकर आज तक, मोती ने लोककथाओं, धार्मिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। यही कारण है कि इसे नौ रत्नों में विशेष स्थान प्राप्त है। दिलचस्प बात यह है कि मोती की सुंदरता को निखारने के लिए किसी प्रकार की तराश या पॉलिश (polish) की ज़रूरत नहीं होती। यह प्राकृतिक रूप से ही इतना आकर्षक और चमकदार होता है कि इसकी तुलना किसी और रत्न से करना मुश्किल हो जाता है। यही वजह है कि राजाओं के खजानों से लेकर आम इंसान की इच्छाओं तक, मोती हमेशा एक अनमोल धरोहर की तरह देखा गया है।
इस लेख में हम मोती से जुड़ी जानकारी को कुछ मुख्य पहलुओं के माध्यम से विस्तार से समझेंगे। सबसे पहले हम मोती का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व जानेंगे और देखेंगे कि यह रत्न प्राचीन परंपराओं से लेकर आधुनिक समय तक क्यों इतना खास माना गया है। इसके बाद हम यह समझेंगे कि मोती वास्तव में प्रकृति में कैसे बनता है और उसकी प्राकृतिक प्रक्रिया कैसी होती है। आगे हम मोती के प्रकारों, प्राकृतिक, संवर्धित और कृत्रिम, का परिचय प्राप्त करेंगे। इसके बाद हमारा ध्यान भारत में मोती उत्पादन और उन प्रमुख क्षेत्रों पर होगा जहाँ यह व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके साथ ही हम देखेंगे कि कौन-कौन से कारक मोती के रंग और गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। अंत में हम मोती कृषि के आर्थिक महत्व और इसके साथ जुड़ी चुनौतियों पर विचार करेंगे, ताकि इसकी सम्पूर्ण तस्वीर हमारे सामने स्पष्ट हो सके।

मोती का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
मोती सदियों से मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। ‘पर्ल’ (pearl) शब्द लैटिन (Latin) भाषा के ‘पिलुला’ (pilula) से निकला है, जिसका अर्थ नाशपाती के आकार का रत्न है। भारतीय संस्कृति में मोती को नौ रत्नों में स्थान दिया गया है, और यह माना जाता है कि इसकी पवित्रता और शीतलता मनुष्य के जीवन में सौभाग्य लाती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे किसी कटाई या पॉलिशिंग की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह प्रकृति की अपनी कला से ही अनुपम चमक प्राप्त करता है। ऐतिहासिक समय में राजा-महाराजा और रानी-महारानियाँ मोतियों से जड़े आभूषण पहनते थे, जिन्हें वैभव और गरिमा का प्रतीक माना जाता था। लोककथाओं और धार्मिक ग्रंथों में भी मोती का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे समुद्र से उत्पन्न दिव्य वस्तु कहा गया है। इस प्रकार, मोती केवल आभूषण नहीं बल्कि संस्कृति, परंपरा और मान्यताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

मोती बनने की प्राकृतिक प्रक्रिया
मोती का निर्माण प्रकृति का अद्भुत चमत्कार है। जब किसी मोलस्क (Mollusk) अर्थात सीप के खोल में कोई बाहरी वस्तु, जैसे कि परजीवी या रेत का छोटा-सा कण प्रवेश करता है, तो वह सीप के लिए चोट के समान होता है। इस स्थिति में सीप का शरीर अपनी सुरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर देता है और मेंटल (mental) टिशू नामक हिस्सा नेकर (nacre) नामक पदार्थ छोड़ने लगता है। यही नेकर उस बाहरी कण के चारों ओर परत-दर-परत जमने लगता है। धीरे-धीरे यह परतें मिलकर पुटी (cyst) का निर्माण करती हैं और समय के साथ वह मोती के रूप में परिवर्तित हो जाता है। रासायनिक दृष्टि से यह मुख्यतः कैल्शियम कार्बोनेट (calcium carbonate) और कोंचियोलिन प्रोटीन (conchiolin protein) से मिलकर बना होता है। यही संरचना मोती को उसकी प्राकृतिक चमक और मजबूती प्रदान करती है।

मोती के प्रकार
मोती मुख्यतः तीन प्रकार के पाए जाते हैं, जिनकी अपनी विशेषताएँ होती हैं। प्राकृतिक मोती वे होते हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक प्रक्रिया से, बिना किसी मानव हस्तक्षेप के, सीप के भीतर बनते हैं। ऐसे मोती आज के समय में अत्यंत दुर्लभ हो चुके हैं और इसलिए बहुत महंगे होते हैं। इसके विपरीत संवर्धित (Cultured) मोती वैज्ञानिक तकनीकों की मदद से तैयार किए जाते हैं। इसमें सीप के अंदर कृत्रिम रूप से एक कण डाला जाता है और फिर वही प्रक्रिया दोहराई जाती है, जो प्रकृति में स्वतः होती है। इस तकनीक से बड़े पैमाने पर और नियंत्रित गुणवत्ता वाले मोती प्राप्त किए जा सकते हैं। तीसरी श्रेणी है कृत्रिम मोती, जिन्हें वास्तव में प्लास्टिक, काँच या मछली के शल्क जैसे पदार्थों से बनाया जाता है। ये देखने में असली मोती जैसे लग सकते हैं, लेकिन इनकी चमक और स्थायित्व प्राकृतिक या संवर्धित मोतियों जैसी नहीं होती।

भारत में मोती उत्पादन और प्रमुख क्षेत्र
भारत प्राचीन काल से मोती उत्पादन के लिए जाना जाता रहा है। तमिलनाडु की मन्नार की खाड़ी सदियों से उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक मोतियों के लिए प्रसिद्ध रही है। यहाँ की समुद्री परिस्थितियाँ और पारिस्थितिक तंत्र मोती उत्पादन के लिए अनुकूल माने जाते हैं। इसी प्रकार गुजरात की कच्छ की खाड़ी भी मोती सीपों की रीफ के लिए जानी जाती है। इन क्षेत्रों में विशेष रूप से पिन्क्टाडा फ्यूकाटा (Pinctada fucata) नामक प्रजाति की सीप पाई जाती है, जो मोती उत्पादन के लिए उपयुक्त है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी भारत मोती निर्यात करने वाले प्रमुख देशों में से एक रहा है। भले ही आजकल जापान और चीन जैसे देश तकनीकी रूप से आगे निकल गए हों, परंतु भारत में अब भी मोती उत्पादन की परंपरा जीवित है और वैज्ञानिक तरीकों के जरिए इसे फिर से गति दी जा रही है।

रंग और गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले कारक
मोती का आकर्षण उसकी चमक, आकार और रंग में छिपा होता है। ये सभी गुण अनेक कारकों पर निर्भर करते हैं। सबसे पहले तो सीप की प्रजाति इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, जिस पानी की गहराई और स्वच्छता में सीप पाले जाते हैं, वह भी गुणवत्ता को प्रभावित करती है। यदि पानी साफ और प्रकाश की पर्याप्त उपलब्धता हो, तो मोती अधिक चमकदार और सुंदर बनते हैं। पालन की अवधि भी महत्वपूर्ण है - जितना अधिक समय सीप को मोती बनाने के लिए दिया जाता है, उतनी ही उसकी परतें मोटी और चमकदार बनती जाती हैं। इसके अतिरिक्त तापमान और पर्यावरणीय परिस्थितियाँ भी इसका रंग और मजबूती निर्धारित करती हैं। यही कारण है कि अलग-अलग क्षेत्रों के मोती आकार और रंग में भिन्न दिखाई देते हैं।

मोती कृषि का आर्थिक महत्व और चुनौतियाँ
आज के समय में संवर्धित मोती की कृषि को उभरते हुए व्यवसाय के रूप में देखा जा रहा है। एक प्रशिक्षित किसान वैज्ञानिक तकनीक और सही वातावरण का उपयोग करके 1-2 लाख रुपये प्रतिमाह तक कमा सकता है। यह व्यवसाय ग्रामीण युवाओं और समुद्र तटीय क्षेत्रों के लोगों के लिए आय का नया स्रोत बन रहा है। लेकिन इसके साथ कई चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। मोती उत्पादन में पानी की गुणवत्ता, तापमान, पोषक तत्वों का स्तर और सीपों की देखभाल का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। किसी भी लापरवाही से पूरा बैच खराब हो सकता है। यही कारण है कि यह व्यवसाय जितना लाभदायक है, उतना ही जोखिमपूर्ण भी है। सरकार किसानों को मोती उत्पादन के लिए सब्सिडी और प्रशिक्षण उपलब्ध कराती है, लेकिन सफलता के लिए धैर्य, तकनीकी ज्ञान और पर्यावरणीय मानकों का पालन अनिवार्य है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/GUlWg 

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