लखनऊवासियो, ऑनलाइन धोखाधड़ी का बढ़ता खतरा: सतर्कता ही सबसे बड़ी सुरक्षा

संचार एवं संचार यन्त्र
06-10-2025 09:15 AM
लखनऊवासियो, ऑनलाइन धोखाधड़ी का बढ़ता खतरा: सतर्कता ही सबसे बड़ी सुरक्षा

लखनऊवासियो, आज के समय में इंटरनेट (Internet) और मोबाइल (Mobile) ने हमारी ज़िंदगी को कई मायनों में आसान बना दिया है। बैंक में लंबी लाइन लगाने की ज़रूरत नहीं, शॉपिंग (Shopping) के लिए बाज़ार जाने की मजबूरी नहीं, और न ही बिल जमा करने की चिंता - सब कुछ अब कुछ क्लिक (click) में हो जाता है। लेकिन इस सुविधा के साथ एक बड़ा ख़तरा भी तेजी से बढ़ रहा है, और वह है ऑनलाइन धोखाधड़ी (Online Fraud (फ्रॉड))। साइबर अपराधी (Cyber Criminal) उसी तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिस पर हम भरोसा करते हैं, और बड़ी चालाकी से भोले-भाले लोगों को फँसाकर उनकी मेहनत की कमाई हड़प लेते हैं। फ़िशिंग (Phishing), विशिंग (Vishing) और ओटीपी (OTP) जैसे स्कैम (scam) आज हर घर के लिए खतरे की घंटी बन चुके हैं। ये अपराध केवल पैसों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि पीड़ित परिवारों की ज़िंदगी को गहरे संकट में डाल देते हैं। सोचिए, जब किसी बुज़ुर्ग की पेंशन (pension) या किसी परिवार की जमा-पूँजी एक झूठे संदेश या नकली कॉल की वजह से गायब हो जाए, तो उस पर क्या बीतती होगी? न केवल आर्थिक नुकसान होता है, बल्कि पीड़ित मानसिक तनाव, असुरक्षा और समाज में शर्मिंदगी तक झेलते हैं। कई बार तो लोग अपनी ज़िंदगी भर की बचत खोकर अवसाद में चले जाते हैं। यह समस्या सिर्फ़ आँकड़ों तक सीमित नहीं है - यह असली लोगों की असली ज़िंदगियों से जुड़ी हुई है। यही वजह है कि हमें सतर्क और जागरूक होना होगा। हमें यह समझना होगा कि ऑनलाइन धोखाधड़ी अब सिर्फ़ "किसी और" की समस्या नहीं रही, बल्कि यह किसी भी पल हमारे या हमारे अपने जीवन को प्रभावित कर सकती है। आज सबसे बड़ा हथियार यही है कि हम समय रहते इन धोखाधड़ियों की चालों को पहचानें और हर कदम पर सावधानी बरतें।
आज हम सबसे पहले जानेंगे कि ऑनलाइन फ्रॉड किस तेज़ी से बढ़ रहा है और हाल के वर्षों में इसके आँकड़े कितने चिंताजनक हैं। फिर, हम फ़िशिंग और विशिंग जैसी आम धोखाधड़ी तकनीकों को समझेंगे। उसके बाद ओटीपी घोटालों पर नज़र डालेंगे और जानेंगे कि उपभोक्ता किस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अंत में, हम सुरक्षा उपायों और बचाव की रणनीतियों की चर्चा करेंगे, ताकि इस ख़तरे से खुद को सुरक्षित रखा जा सके।

ऑनलाइन धोखाधड़ी का बढ़ता खतरा और हाल के आँकड़े
आज के डिजिटल युग (digital age) में ऑनलाइन फ्रॉड सबसे गंभीर और तेज़ी से बढ़ती चुनौतियों में से एक बन चुका है। साइबर अपराधी हर दिन नई-नई तकनीकें अपनाकर लोगों को फँसाने में माहिर हो गए हैं। केवल 2020 से 2022 के बीच ही ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में हज़ारों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गई। इन घटनाओं से करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, जिसने कई परिवारों की आर्थिक नींव हिला दी। सोचिए, जब कोई व्यक्ति अपनी ज़िंदगी भर की जमा-पूँजी खो देता है, तो उसके सामने केवल पैसों का नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक संकट भी खड़ा हो जाता है। कई सर्वेक्षणों से यह साफ़ होता है कि ऐसे पीड़ित परिवार गहरे तनाव में आ जाते हैं और उन्हें अपनी ज़िंदगी को फिर से सँभालना बेहद मुश्किल लगता है। यही कारण है कि ये आँकड़े सिर्फ़ काग़ज़ पर लिखे नंबर नहीं, बल्कि इंसानी जीवन पर सीधा असर डालने वाली कड़वी सच्चाई हैं।

फ़िशिंग और उसकी कार्यप्रणाली
ऑनलाइन फ्रॉड के सबसे सामान्य और ख़तरनाक रूपों में से एक है फ़िशिंग। अपराधी इसमें बड़े चतुराई से नकली ईमेल या संदेश भेजते हैं, जो पहली नज़र में बिल्कुल असली लगते हैं। ये ईमेल अक्सर किसी नामी बैंक, लोकप्रिय ई-कॉमर्स साइट(e-Commerce Site)  या फिर सरकारी संस्था के नाम से आते हैं। जब लोग ऐसे लिंक पर क्लिक कर देते हैं या मांगी गई जानकारी भर देते हैं, तो अनजाने में अपने पासवर्ड (password), कार्ड (card) विवरण और व्यक्तिगत डेटा सीधे अपराधियों के हवाले कर बैठते हैं। फ़िशिंग तकनीक देखने में सरल लग सकती है, लेकिन इसका असर बेहद गहरा और खतरनाक होता है। एक बार जब किसी का पासवर्ड या बैंक विवरण चोरी हो जाता है, तो केवल पैसों का ही नुकसान नहीं होता, बल्कि पहचान की चोरी जैसी समस्याएँ भी खड़ी हो जाती हैं। इससे व्यक्ति की डिजिटल सुरक्षा पूरी तरह से खतरे में आ जाती है।

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पार्सल डिलीवरी एसएमएस फ़िशिंग संदेश का एक काल्पनिक उदाहरण

विशिंग और उसकी चालें
फ़िशिंग के साथ-साथ विशिंग भी अब बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ चुका है। इसमें अपराधी सीधे फ़ोन कॉल करके लोगों को जाल में फँसाते हैं। वे खुद को किसी बैंक या कंपनी का कर्मचारी बताकर भरोसा दिलाते हैं और धीरे-धीरे संवेदनशील जानकारी निकलवा लेते हैं। अक्सर ये कॉल इतने विश्वासयोग्य होते हैं कि सामने वाला व्यक्ति बिना शक किए अपनी गोपनीय जानकारी साझा कर देता है। विशिंग के दौरान सबसे आम स्थिति तब होती है जब अपराधी ओटीपी, यूपीआई पिन (UPI pin) या फिर बैंक खाते की अन्य डिटेल (detail) माँगते हैं। उपभोक्ता यह सोचकर कि कॉल असली है और बैंक से आया है, घबरा जाता है और तुरंत जानकारी दे बैठता है। नतीजा यह होता है कि कुछ ही मिनटों में उसके बैंक खाते पूरी तरह खाली हो जाते हैं। यह चालाकी हमें दिखाती है कि धोखाधड़ी केवल तकनीक से नहीं, बल्कि मनोविज्ञान से भी खेली जाती है।

ओटीपी घोटाले और उपभोक्ताओं के सामने चुनौतियाँ
पिछले कुछ समय में ओटीपी घोटाले सबसे ज़्यादा चर्चा में रहे हैं। अपराधी नकली डिलीवरी एजेंट (Delivery Agent) बनकर या नामी ई-कॉमर्स कंपनियों का हवाला देकर उपभोक्ताओं से संपर्क करते हैं। वे कहते हैं कि डिलीवरी कन्फ़र्म (delivery confirm) करने या रिफंड (refund) पाने के लिए ओटीपी साझा करना ज़रूरी है। जैसे ही उपभोक्ता यह ओटीपी साझा करता है, अपराधी खाते पर पूरा नियंत्रण पा लेते हैं। कई बार वे इतने आगे बढ़ जाते हैं कि पीड़ित से ऐसे ऐप इंस्टॉल (app install) करवा लेते हैं, जिनसे मोबाइल का पूरा कंट्रोल (control) उनके हाथों में चला जाता है। इस प्रक्रिया में उपभोक्ता को धोखे का पता तब तक नहीं चलता, जब तक कि आर्थिक नुकसान पूरी तरह हो न चुका हो। भारत ही नहीं, विदेशों में भी ऐसी घटनाएँ दर्ज हुई हैं। यही वजह है कि पीड़ित उपभोक्ताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती समय पर इन घोटालों को पहचानना और खुद को सुरक्षित रखना है।

सुरक्षा उपाय और बचाव की रणनीतियाँ
ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचने का सबसे मज़बूत उपाय है सतर्कता और जागरूकता। उपभोक्ताओं को मज़बूत पासवर्ड बनाना चाहिए और उन्हें समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। किसी भी स्थिति में ओटीपी, पिन और व्यक्तिगत जानकारी किसी के साथ साझा नहीं करनी चाहिए - चाहे सामने वाला खुद को बैंक का कर्मचारी ही क्यों न बताए। इस दिशा में बैंकों और सरकार दोनों की ओर से लगातार प्रयास हो रहे हैं। रिज़र्व बैंक समय-समय पर चेतावनियाँ जारी करता है कि कोई भी बैंक कभी भी फ़ोन या संदेश के माध्यम से ओटीपी या पिन नहीं माँगता। साथ ही नागरिकों को जागरूक करने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाए जाते हैं, ताकि वे अपराधियों के झाँसे में न आएँ। सुरक्षित इंटरनेट का उपयोग तभी संभव है, जब हर उपभोक्ता अपनी ज़िम्मेदारी को समझे और सावधानी बरते। असली सुरक्षा वही है, जो हमारी सतर्कता से आती है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/3sfaft86 

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