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लखनऊवासियो, ज़रा अपने बचपन को याद कीजिए। जब हम स्कूल से लौटते समय बगीचों या खेतों के किनारे चलते थे, तो अचानक उड़ती हुई रंग-बिरंगी तितलियाँ हमारी आँखों को कितनी भाती थीं। उनकी नन्हीं-सी उड़ान और चमकते पंखों को देखकर मानो दिल किसी जादुई दुनिया में चला जाता था। लेकिन कभी क्या आपने सोचा है कि इन तितलियों, जो हमारी यादों और खुशियों का इतना अहम हिस्सा रही हैं, के नाम हमारी अपनी भाषा और संस्कृति से जुड़े क्यों नहीं हैं? अब तक इनका परिचय ज़्यादातर अंग्रेज़ी नामों से ही कराया जाता था - जो हमारे लिए अनजाने और दूर के लगते थे। यही वजह है कि तितलियाँ हमारे जीवन का हिस्सा तो बनीं, मगर हमारी कहानियों और परंपराओं में उनके लिए जगह बहुत कम बन पाई। अब इस स्थिति को बदलने के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक बेहद अहम और ऐतिहासिक पहल की है। छह महीनों तक चले गहन शोध और अध्ययन के बाद, उन्होंने उत्तर प्रदेश की तितलियों को ऐसे हिंदी नाम दिए हैं जो न केवल बोलने और याद रखने में आसान हैं, बल्कि हमारी संस्कृति, पौराणिक गाथाओं और प्रकृति से भी गहरे जुड़े हुए हैं। यह नामकरण तितलियों को सिर्फ़ वैज्ञानिक किताबों तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उन्हें हमारी अपनी भाषा और भावनाओं से जोड़कर हमारे जीवन का और भी जीवंत हिस्सा बना देता है।
आज के इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि इन नए नामों के दिलचस्प उदाहरण क्या हैं और कैसे इनमें हमारी संस्कृति झलकती है। इसके बाद हम समझेंगे कि तितलियाँ पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए क्यों ज़रूरी हैं और इन्हें प्रकृति का स्वास्थ्य सूचक क्यों कहा जाता है। फिर, हम देखेंगे लखनऊ विश्वविद्यालय के इस अध्ययन की बड़ी खोजें और यूपी जैव विविधता बोर्ड की भूमिका। अंत में, हम तितलियों पर मंडरा रहे संकट और उनके संरक्षण की उम्मीदों पर चर्चा करेंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इन खूबसूरत जीवों का आनंद ले सकें।

नामकरण के दिलचस्प उदाहरण जो सबको हैरान करते हैं
लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा तितलियों को हिंदी में दिए गए नए नाम न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक जुड़ाव को भी गहराई से दर्शाते हैं। जैसे बर्डविंग को ‘जटायु’ कहा गया, जो रामायण के उस वीर पक्षी की याद दिलाता है जिसने रावण से सीता की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था। इसी तरह स्पॉट स्वॉर्डटेल (Spotted Swordtail) को ‘चित्तीदार शमशीर’ नाम दिया गया है, जो उनके तलवार जैसी पूंछ और चित्तीदार पैटर्न का सुंदर वर्णन करता है। ब्लूबॉटल (Bluebottle) और जे (Jay) को ‘तिकोनी’ नाम मिला, जो उनके पंखों के त्रिकोणीय आकार पर आधारित है, जबकि ब्राउन आउल (Brown Owl) को ‘भूरी सुवा’ कहा गया है, जो उनकी भूरी रंगत और रूप-रंग को दर्शाता है। इन नामों की सबसे खास बात यह है कि ये केवल अनुवाद नहीं हैं, बल्कि लोककथाओं, पौराणिक संदर्भों और दृश्य विशेषताओं से प्रेरित हैं, जिससे आम लोग इन्हें आसानी से याद कर सकते हैं। इस पहल से तितलियाँ अब वैज्ञानिक पुस्तकों तक सीमित न रहकर हमारी कहानियों, भाषाओं और संस्कृति का हिस्सा बन गई हैं।

तितलियों की पारिस्थितिकी में भूमिका और महत्व
तितलियाँ जितनी सुंदर दिखाई देती हैं, उतनी ही महत्वपूर्ण भी हैं, क्योंकि वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की जीवनरेखा मानी जाती हैं। परागणकर्ता के रूप में तितलियों का योगदान अद्भुत है - वे फूलों का रस पीते समय पराग अपने पंखों और शरीर पर इकट्ठा कर लेती हैं और उड़ान भरते हुए उसे दूसरे फूलों तक पहुँचा देती हैं, जिससे पौधों और फसलों का बीजारोपण और वृद्धि संभव हो पाती है। यही नहीं, तितलियों की संख्या और उनकी विविधता किसी भी पर्यावरण की सेहत का सबसे सटीक संकेतक होती है, क्योंकि अगर तितलियाँ गायब होने लगें, तो इसका मतलब है कि स्थानीय पारिस्थितिकी असंतुलित हो रही है। इसके अतिरिक्त, उनका जीवन चक्र - कैटरपिलर (caterpillar) से प्यूपा (pupa) और फिर तितली बनने की अद्भुत प्रक्रिया - बच्चों और विद्यार्थियों के लिए किसी जादू से कम नहीं होती और यही उन्हें जीवविज्ञान और प्रकृति की ओर आकर्षित करती है। कई पक्षी, छोटे स्तनधारी और अन्य कीट भी तितलियों पर भोजन के लिए निर्भर रहते हैं, इस कारण वे खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा हैं। वैज्ञानिक शोधों में भी तितलियाँ महत्वपूर्ण हैं, जैसे मोनार्क तितली (Monarch Butterfly) का मिल्कवीड (Milkweed) पौधों से जुड़ाव हमें दवा-निर्माण की संभावनाओं के बारे में सिखाता है। इस तरह, तितलियाँ केवल आकर्षक जीव ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, पारिस्थितिक और शैक्षिक दृष्टि से भी बहुमूल्य हैं।

लखनऊ विश्वविद्यालय का अध्ययन और नई खोजें
हाल ही में लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन ने तितलियों की दुनिया को लेकर नई संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। शोधकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश में 85 से अधिक तितली प्रजातियों को दर्ज किया, जिनमें कई दुर्लभ और विलुप्तप्राय मानी जाने वाली प्रजातियाँ भी शामिल हैं। इस सूची में जोकर (Joker), रस्टिक (Rustic) और स्मॉल सैल्मन अरब (Small Salmon Arab) जैसी तितलियाँ पाई गईं, जो इस क्षेत्र में जैव विविधता की समृद्धि का सबूत हैं। शोध की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इसमें केवल तितलियों की गिनती ही नहीं की गई, बल्कि उनके आवास, व्यवहार और पसंदीदा पौधों का भी अध्ययन किया गया। यह काम आसान नहीं था, क्योंकि शोधकर्ताओं को छह महीने तक विभिन्न इलाकों में जाकर तितलियों की पहचान और रिकॉर्डिंग करनी पड़ी। इस काम में यूपी जैव विविधता बोर्ड ने भी पूरा सहयोग दिया, जिससे अध्ययन को वैज्ञानिक मान्यता और संस्थागत समर्थन मिला। यह खोज न केवल उत्तर प्रदेश की तितलियों के संरक्षण के लिए आधार तैयार करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएँ तो हमारी जैव विविधता को बचाना संभव है।

तितलियों पर संकट और संरक्षण की उम्मीदें
भले ही तितलियाँ हमें अपने रंग-बिरंगे पंखों से मंत्रमुग्ध करती हों, लेकिन सच्चाई यह है कि उनकी कई प्रजातियाँ धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। प्रदूषण, शहरीकरण, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और बदलती जलवायु ने इनके प्राकृतिक आवास को बुरी तरह प्रभावित किया है। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि तितलियों की कमी का सीधा असर परागण और पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ता है। लेकिन निराश होने की बजाय, उम्मीद जगाने वाली खबरें भी सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हम तितली-हितैषी पौधे जैसे गुरहल, गेंदा, मदार, मिल्कवीड और जंगली बबूल लगाएँ, तो इनकी संख्या को फिर से बढ़ाया जा सकता है। ये पौधे तितलियों के अंडों और कैटरपिलरों के लिए आदर्श भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। इसके अलावा, तितलियों का संरक्षण केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति दे सकता है। तितली पर्यटन आज एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसमें लोग इन नन्हीं जीवों को देखने और समझने के लिए खास जगहों की यात्रा करते हैं। इस प्रकार, संरक्षण न केवल पारिस्थितिकी को सुरक्षित करता है, बल्कि समाज और संस्कृति को भी सशक्त बनाता है।

भारत की कुछ सबसे खूबसूरत और दुर्लभ तितलियाँ
भारत में तितलियों की दुनिया बेहद समृद्ध और रंगीन है, जहाँ कई दुर्लभ प्रजातियाँ अपनी खास पहचान रखती हैं। उदाहरण के लिए, अंडमान कौवा केवल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पाया जाता है और इसका आकार व रंग स्थान के आधार पर बदलता है। ट्री निम्फ तितली (Tree Nymph Butterfly) दक्षिण भारत के पश्चिमी घाट में देखी जाती है और अपने बड़े काले-सफेद पंखों के कारण अलग पहचान बनाती है। तमिल लेसविंग (Tamil Lacewing) उन प्रजातियों में से है जो केवल पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों में मिलती है और वहीं की जैव विविधता की अनोखी धरोहर है। कैसर-ए-हिंद को भारत की सम्राट तितली कहा जाता है और यह पूर्वी हिमालय में पाई जाती है, इसके चमकीले रंग और तेज़ उड़ान इसे बेहद खास बनाते हैं। इसी तरह ग्रेट विंडमिल तितली (Great Windmill Butterfly) अपने लाल और सफेद धब्बों वाले पंखों और अनोखी लहरदार पूंछ के कारण आकर्षण का केंद्र है। इसका प्यूपा छूने पर चीख़ने जैसी आवाज़ करता है, जो इसे और भी अनूठा बनाता है। ये सभी तितलियाँ न केवल प्राकृतिक सुंदरता की मिसाल हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर भी हैं जिन्हें बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/yc7s7mt7