समय - सीमा 263
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1062
मानव और उनके आविष्कार 837
भूगोल 249
जीव-जंतु 309
लखनऊवासियों, क्या आप जानते हैं कि हमारा शहर सिर्फ़ इमारतों, इमामबाड़ों और तहज़ीब के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि यहाँ के लोग पूरे देश की सामाजिक और पर्यावरणीय बहसों में भी अहम भूमिका निभाते हैं? भले ही लखनऊ समुद्र से दूर है और हमारे आस-पास न कोई बीच है और न ही कोरल रीफ़ (Coral Reef), लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं कि समुद्र और तटीय जीवन से जुड़े मुद्दे हमसे अप्रासंगिक हैं। सच्चाई यह है कि समुद्री जीवन और तटीय पर्यटन से जुड़ी गतिविधियाँ सीधे तौर पर हमारी अर्थव्यवस्था, हमारी जीवनशैली और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को प्रभावित करती हैं। जब अतिपर्यटन (Over Tourism) बढ़ता है, तो इसका असर सिर्फ़ उन तटीय इलाक़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरे देश की पर्यावरणीय स्थिति, आजीविका और सांस्कृतिक धरोहर पर पड़ता है। इसलिए, हम लखनऊवासी भी इस विषय को समझें और जिम्मेदार पर्यटक के तौर पर अपनी भूमिका निभाएँ, ताकि हमारा योगदान देश और प्रकृति दोनों के लिए सकारात्मक हो।
आज हम जानेंगे कि भारत में अतिपर्यटन के बढ़ते कारण क्या हैं, जिनमें सस्ती यात्रा, मौसमी पर्यटन और सोशल मीडिया (Social Media) का प्रभाव शामिल है। इसके बाद, हम समझेंगे कि अतिपर्यटन हमारे समुद्र और उनके पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे नुकसान पहुँचाता है। फिर, हम सतत तटीय पर्यटन (Sustainable Coastal Tourism) की आवश्यकता और इसके आर्थिक, सामाजिक व पर्यावरणीय लाभों पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम कुछ सरल और प्रभावी उपाय जानेंगे, जिनसे हम अपनी अगली बीच यात्रा को अधिक पर्यावरण अनुकूल बना सकते हैं और लखनऊवासियों के रूप में जिम्मेदार पर्यटक बन सकते हैं।
भारत में अतिपर्यटन के बढ़ते कारण
भारत में पर्यटन की बढ़ती लोकप्रियता के कई कारण हैं। सबसे पहले, सस्ती यात्रा और सुविधाएँ। आजकल लो-कॉस्ट एयरलाइंस (Low-Cost Airlines), सस्ती रेल टिकट और बजट होटलों ने यात्रा को आसान और सुलभ बना दिया है। पहले जहां लोग केवल बड़े शहरों या प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों तक ही जाते थे, अब छोटे कस्बे, तटीय गांव और दूर-दराज के प्राकृतिक स्थल भी प्रमुख पर्यटन केंद्र बन गए हैं। लेकिन कई बार इन जगहों की स्थानीय अवसंरचना अचानक बढ़ी हुई भीड़ को संभाल नहीं पाती, जिससे पानी, बिजली, सफ़ाई और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं पर दबाव पड़ता है। दूसरा कारण है मौसमी पर्यटन। त्योहारों, छुट्टियों और मौसम के हिसाब से पर्यटकों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए, नए साल पर गोवा और अंडमान के समुद्र तट या गर्मियों में मनाली और कश्मीर की पहाड़ियाँ। इन दिनों में भीड़ इतनी अधिक हो जाती है कि सड़कें जाम, समुद्र तट गंदगी से भरे और स्थानीय संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। तीसरा कारण है नियमों की कमी। कई राष्ट्रीय उद्यान, धरोहर स्थल और तटीय क्षेत्र इस बात का निर्धारण नहीं करते कि एक दिन में कितने लोग प्रवेश कर सकते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि पर्यटक संख्या अनियंत्रित बढ़ जाती है, और धीरे-धीरे प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों को नुकसान पहुँचता है। चौथा कारण है प्रसिद्ध स्थानों का प्रचार। ताजमहल, जयपुर, केरल और गोवा जैसे पर्यटन स्थल अत्यधिक प्रचारित हैं। इसके चलते ये जगहें भारी भीड़ झेलती हैं, जबकि कई खूबसूरत लेकिन कम-प्रसिद्ध तटीय या पहाड़ी स्थल उपेक्षित रह जाते हैं। अंत में, सोशल मीडिया का प्रभाव भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। किसी जगह की एक तस्वीर वायरल होते ही लोग वहां घूमने जाने की इच्छा रखते हैं। लेकिन अक्सर पर्यटक केवल फोटो लेने और अनुभव साझा करने में व्यस्त रहते हैं, जबकि सफ़ाई, पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति का ध्यान नहीं रखते।
अतिपर्यटन से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव
अतिपर्यटन का सबसे गंभीर असर हमारे समुद्र और उनके जीव-जंतुओं पर पड़ता है। बढ़ती भीड़, वाटर स्पोर्ट्स (Water Sports), समुद्र तट पर प्रदूषण और नावों की बढ़ती संख्या समुद्री जीवन को खतरे में डालती है। कोरल रीफ़ का नाश इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण है। कोरल रीफ़ केवल प्राकृतिक सुंदरता नहीं हैं, बल्कि समुद्री जीवन की रीढ़ हैं। स्नॉर्कलिंग (Snorkeling), डाइविंग (Diving) और अन्य जल-क्रीड़ा गतिविधियों की भीड़ से ये नाज़ुक जीव टूट जाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, दुनिया के लगभग 50% कोरल रीफ़ पहले ही मानव गतिविधियों की वजह से नष्ट हो चुके हैं। इसके अलावा, समुद्री प्रदूषण भी बड़ा मुद्दा है। बीच पर छोड़ी गई प्लास्टिक की बोतलें, पॉलीथिन और क्रूज़ शिप्स (Cruise Ships) से निकलने वाला कचरा समुद्र में जाता है। इससे कछुए, मछलियाँ और अन्य समुद्री जीव फँस जाते हैं या मर जाते हैं। प्लास्टिक का माइक्रो रूप समुद्री खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुका है, जो अंततः इंसानों तक भी पहुँचता है। अधिक पर्यटक और होटल की मांग की वजह से ओवरफिशिंग (Overfishing) भी बढ़ती है। समुद्री भोजन की अधिक खपत से मछलियों की आबादी घटती है और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। इसका सीधा असर उन मछुआरों पर पड़ता है जो सदियों से समुद्र पर निर्भर हैं। अत्यधिक नाव और बोट ट्रैफ़िक (Boat Traffic) समुद्र में तेल के रिसाव, शोर प्रदूषण और समुद्री जीवों के लिए खतरा बन जाता है। डॉल्फ़िन (Dolphin), व्हेल (Whale) और अन्य स्तनधारी टकराकर घायल हो जाते हैं। अनियंत्रित बोटिंग समुद्र की सतह और पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित कर देती है।

सतत तटीय पर्यटन की आवश्यकता
यदि हम पर्यटन को पूरी तरह से रोक नहीं सकते, तो इसे संतुलित और सतत बनाना ही समाधान है। सतत तटीय पर्यटन न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ पहुँचाता है। सबसे पहले, यह आर्थिक लाभ बढ़ाता है। छोटे होटल, गाइड, रेस्तरां और स्थानीय दुकानदार सीधे तौर पर लाभान्वित होते हैं। दूसरा, यह सरकारी राजस्व बढ़ाता है। पर्यटन कर, प्रवेश शुल्क और होटल टैक्स से सरकार को पैसा मिलता है, जिसे सड़कें, अस्पताल और अन्य सार्वजनिक सुविधाओं के विकास में लगाया जा सकता है। तीसरा, विदेशी पर्यटक जब भारत में खर्च करते हैं, तो विदेशी मुद्रा आती है। यह विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चौथा, पर्यटन रोज़गार के अवसर बढ़ाता है। होटल स्टाफ से लेकर टैक्सी ड्राइवर और स्थानीय कलाकार तक लाखों लोग इससे जुड़े हैं। अंततः, पर्यटन का पैसा स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करता है। स्थानीय दुकानदार और व्यवसाय इससे प्रत्यक्ष लाभ पाते हैं और इससे समुदाय मजबूत होता है।

समाज और संस्कृति पर पर्यटन का सकारात्मक प्रभाव
पर्यटन केवल आर्थिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और संस्कृति पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।
आपकी अगली बीच यात्रा को पर्यावरण अनुकूल बनाने के उपाय
अब सवाल यह है कि पर्यटक की जिम्मेदारी क्या है और हम अपनी यात्रा को कैसे सतत बना सकते हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/3jf4tsf6
https://tinyurl.com/4wad2h34
https://tinyurl.com/52mvft5e
https://tinyurl.com/5n6vw2e2
https://tinyurl.com/yjsdyrtr
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.