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लखनऊवासियों, गुरु नानक जयंती के इस पावन अवसर पर आइए हम उस महान संत और शिक्षक की शिक्षाओं को याद करें, जिनका संदेश आज भी सिर्फ सिख धर्म तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि पूरे समाज और मानवता के लिए मार्गदर्शक बन चुका है। नवाबों के इस शहर में, जहाँ ऐतिहासिक बाग़-बगीचों, ठाठ-बाट और संस्कृति की अनोखी छाप है, वहीं लखनऊ में गुरुद्वारों और सामाजिक आयोजनों के माध्यम से उनकी शिक्षाओं का उत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन लखनऊवासियों के लिए भजन-कीर्तन, प्रवचन और लंगर के आयोजन होते हैं, जो न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं बल्कि समाज में भाईचारे और समानता की भावना को भी मजबूत करते हैं। गुरु नानक के जीवन और उनके संदेश - करुणा, सेवा, ईमानदारी और सभी के कल्याण के लिए काम करने - को याद करके लोग अपने जीवन में इन्हें अपनाने का संकल्प लेते हैं। यह पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक सद्भाव, मानवता और नैतिक मूल्यों को समझने और उन्हें जीवन में उतारने का भी अवसर प्रदान करता है। लखनऊवासियों के लिए यह एक ऐसा समय है जब हम गुरु नानक की शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर अपने परिवार और समाज में प्रेम, सहयोग और समानता की भावना को बढ़ा सकते हैं।
आज के इस लेख में हम गुरु नानक के जीवन और उनके संदेश को समझेंगे। पहले जानेंगे उनका प्रारंभिक जीवन और बाल्यकाल, जिसमें जन्म, परिवार और शिक्षा शामिल हैं। फिर चर्चा करेंगे उनके आध्यात्मिक अनुभव और ज्ञानोदय की, जिसमें उनका प्रसिद्ध नदी का अनुभव और “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान” का संदेश शामिल है। उसके बाद उनकी यात्राओं (उदासी) और उनके द्वारा फैलाए गए संदेश पर ध्यान देंगे। अंत में हम उनके मुख्य सिद्धांत, आज की प्रासंगिकता और उनके स्थायी प्रभाव यानी विरासत के बारे में विस्तार से जानेंगे।
गुरु नानक का प्रारंभिक जीवन और बाल्यकाल
गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय भुई की तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिता, मेहता कालू, गाँव के अधिकारी और राजस्व संग्रहक थे, जबकि माता त्रिप्ता अपनी दया, स्नेह और धार्मिकता के लिए जानी जाती थीं। उनकी बड़ी बहन नांकी ने गुरु नानक के जीवन में हमेशा मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान किया। गुरु नानक बचपन से ही असाधारण जिज्ञासा और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने स्थानीय और आस-पास के शिक्षकों से शिक्षा ग्रहण की और संस्कृत, फारसी और हिंदी जैसी भाषाओं में प्रवीणता हासिल की। उनके अध्ययन में वे धार्मिक ग्रंथों, वेदों और कुरान की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करते। इसी दौरान उन्होंने समाज में प्रचलित धार्मिक रीतियों, जातिवाद और अन्याय के बारे में सवाल उठाने शुरू किए। उनके भीतर यह गहन आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक समझ उनके भविष्य के संदेश का आधार बनी। गुरु नानक का यह प्रारंभिक जीवन यह दर्शाता है कि बचपन में प्राप्त ज्ञान और अनुभव ही जीवन की दिशा तय करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके परिवार और शिक्षकों ने उनके भीतर नैतिकता, करुणा और न्याय की भावना को विकसित किया।

गुरु नानक का आध्यात्मिक अनुभव और ज्ञानोदय
16 वर्ष की आयु में गुरु नानक सुल्तानपुर लोधी चले गए। वहाँ उन्होंने प्रतिदिन काली बीन नदी के किनारे स्नान किया और मर्दाना नामक अपने मित्र और संगीतज्ञ के साथ समय बिताया। एक दिन, मर्दाना की चिंता के बावजूद, गुरु नानक नदी में डुबकी लगाने के बाद चार दिनों तक दिखाई नहीं दिए। गाँव के लोग और उनके मित्र इस घटना को लेकर परेशान थे। चौथे दिन, गुरु नानक दिव्य प्रकाश और गहन शांति के साथ लौटे। उनके चेहरे पर दिव्यता झलक रही थी और उनकी आँखों में आध्यात्मिक ऊर्जा दिखाई देती थी। उन्होंने कहा: “ना कोई हिन्दू, ना कोई मुसलमान”, जो यह संदेश देता है कि सभी मनुष्य समान हैं और धार्मिक विभाजन केवल सामाजिक बनावट हैं। इस अनुभव ने उन्हें पूरी तरह से आध्यात्मिक जागरूक बना दिया और उनकी दिव्य सेवा का मार्ग खोल दिया। यह घटना उनके जीवन का मोड़ थी। इसके बाद गुरु नानक ने अपने जीवन को मानवता, ईश्वर और नैतिकता के संदेश को फैलाने के लिए समर्पित कर दिया। यह उनके जीवन का पहला आध्यात्मिक संदेश था, जिसने उन्हें एक सच्चे आध्यात्मिक नेता के रूप में स्थापित किया।
गुरु नानक की यात्राएँ (उदासी)
गुरु नानक ने 1499 से 1520 तक लगभग 21 वर्षों तक यात्राएँ की, जिन्हें “उदासी” कहा जाता है। इस दौरान उन्होंने भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन, सऊदी अरब, ईराक और ईरान जैसे क्षेत्रों का भ्रमण किया। इन यात्राओं का उद्देश्य केवल धार्मिक प्रचार नहीं था, बल्कि मानवता, नैतिकता और समानता का संदेश फैलाना था। हर जगह उन्होंने लोगों को सेवा, करुणा और सत्य का महत्व समझाया। वे पैदल चलते, साधारण वस्त्र पहनते और स्थानीय लोगों से मिलकर उनके जीवन और समस्याओं को समझते। गुरु नानक की ये यात्राएँ उनके संदेश को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुईं। उन्होंने विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और सामाजिक समूहों के बीच संवाद स्थापित किया। उनकी यह यात्रा आज भी यह संदेश देती है कि ज्ञान और सच्चाई के लिए सीमाएँ कोई बाधा नहीं हैं।

गुरु नानक की मुख्य शिक्षाएँ

गुरु नानक की शिक्षाओं की आज की प्रासंगिकता
आज के समय में गुरु नानक के सिद्धांत समाज में समानता, नैतिकता और आध्यात्मिकता के मार्गदर्शन के रूप में काम करते हैं। उनके विचार हमें ईमानदारी, सेवा, सहिष्णुता और मानवता का संदेश देते हैं। यह व्यक्तिगत जीवन में आत्म-संतोष और आध्यात्मिक विकास के लिए उपयोगी हैं। साथ ही, समाज में समानता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए भी ये शिक्षाएँ प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएँ आज भी धर्म, संस्कृति और जाति की सीमाओं को पार कर मानवता के लिए मार्गदर्शक हैं। यह संदेश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सहिष्णुता, न्याय और करुणा को बढ़ावा देता है।
गुरु नानक की विरासत
गुरु नानक ने करतारपुर साहिब को एक आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। उन्होंने अपने अंतिम वर्षों में वहाँ लोगों को समानता, सेवा और भक्ति का संदेश दिया। उनके भजन और शिक्षाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। गुरु नानक का संदेश केवल सिख धर्म तक सीमित नहीं है। यह विश्वभर में लोगों को करुणा, सत्य और न्याय की शिक्षा देता है। उनकी विरासत आज भी समानता, मानवाधिकार और सामाजिक सद्भाव का मार्गदर्शन करती है। उनके विचार और संदेश हर युग में प्रासंगिक हैं और मानव समाज को नैतिक और आध्यात्मिक दिशा देने में सक्षम हैं। उनके भजन गुरु ग्रंथ साहिब का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, जिसमें सार्वभौमिक प्रेम, करुणा और ईश्वर में अटूट विश्वास की महत्ता को स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है। गुरु नानक का प्रभाव केवल सिख धर्म तक सीमित नहीं है; उन्होंने पूरी दुनिया में लोगों को सत्य, न्याय और मानवीय मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा दी।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/2pt8wh93
https://tinyurl.com/5n6vxy34
https://tinyurl.com/mtynurdu
https://tinyurl.com/a4srcyyw