क्यों लखनऊ में सर्दियों का कोहरा, बन जाता है सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण?

गतिशीलता और व्यायाम/जिम
17-11-2025 09:12 AM
क्यों लखनऊ में सर्दियों का कोहरा, बन जाता है सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण?

लखनऊवासियों, जैसे-जैसे सर्दियाँ नज़दीक आती हैं, शहर की सुबहें धुंध से घिरने लगती हैं। हज़रतगंज, गोमती नगर और चारबाग़ जैसे इलाक़ों की सड़कें जब कोहरे में लिपट जाती हैं, तो दृश्यता इतनी कम हो जाती है कि कुछ मीटर आगे तक देख पाना मुश्किल हो जाता है। यही वह समय होता है जब सड़कें ख़तरनाक रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो जाती हैं। हर साल लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्रों में कोहरे के कारण सैकड़ों सड़क हादसे होते हैं - जिनमें कई लोग अपनी जान गंवा देते हैं या गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के आँकड़े बताते हैं कि 2022 में देशभर में हुए 4.6 लाख सड़क हादसों में से एक बड़ा हिस्सा उत्तर भारत के कोहरे-प्रभावित इलाक़ों में हुआ था, जिनमें लखनऊ भी शामिल है। यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है - कि हमें अब सड़क सुरक्षा को लेकर और अधिक सजग और ज़िम्मेदार बनने की ज़रूरत है। लखनऊ जैसे बढ़ते ट्रैफ़िक वाले शहर में, जहाँ हर दिन लाखों वाहन सड़कों पर उतरते हैं, थोड़ी-सी लापरवाही किसी के जीवन की कीमत बन सकती है।
आज के इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति और बढ़ते खतरे क्या हैं, और क्यों सर्दियों का कोहरा सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। इसके साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि देश में सड़क सुरक्षा और बुनियादी ढाँचे से जुड़ी चुनौतियाँ किन रूपों में सामने आती हैं। फिर हम बात करेंगे क्रैश सर्विलांस सिस्टम (Crash Surveillance System) की - एक ऐसा आधुनिक कदम जो सड़क सुरक्षा में बड़ा बदलाव ला सकता है। अंत में, हम सीखेंगे कोहरे में सुरक्षित ड्राइविंग के ज़रूरी सावधानियाँ, ताकि लखनऊ की सड़कें न केवल सुंदर रहें बल्कि सभी के लिए सुरक्षित भी बन सकें।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति और बढ़ते खतरे
भारत में सड़क सुरक्षा आज एक गंभीर राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways, MoRTH) द्वारा जारी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 4,61,312 सड़क हादसे दर्ज किए गए, जिनमें 1,68,491 लोगों की मौत हुई और 4,43,366 लोग घायल हुए। ये आँकड़े न केवल चौंकाने वाले हैं, बल्कि सड़क सुरक्षा के प्रति हमारी नीतियों और जागरूकता की स्थिति को भी उजागर करते हैं। पिछले वर्ष की तुलना में दुर्घटनाओं में 11.9%, मौतों में 9.4% और घायलों में 15.3% की वृद्धि हुई है - यह इस बात का प्रमाण है कि हमारे सड़क नेटवर्क और यातायात प्रणाली में अब भी कई खामियाँ हैं। वाराणसी, उत्तर प्रदेश का धार्मिक और पर्यटन केंद्र, इस समस्या का एक सटीक उदाहरण है। वर्ष 2022 में यहाँ 539 सड़क हादसों में 294 लोगों की जान गई। इन हादसों में से अधिकांश सर्दियों के महीनों में, विशेष रूप से कोहरे के कारण हुए। दृश्यता में कमी, गलत ओवरटेकिंग (overtaking), और तेज़ रफ्तार के चलते हादसे लगातार बढ़ रहे हैं। इन घटनाओं के मद्देनज़र सरकार सड़क सुरक्षा सुधारने के प्रयास कर रही है। उदाहरण के लिए, मुंगरा बादशाहपुर बाईपास, जो अब फ़ोर लेन (four-lane) के बजाय टू-लेन (two-lane) बनेगा, प्रयागराज, आज़मगढ़, गोरखपुर और जौनपुर जैसे शहरों को जोड़ते हुए, सड़क यातायात को और सुरक्षित बनाएगा। इस बाईपास से कोहरे के मौसम में जाम और दुर्घटनाओं की संभावना कम होगी, और यह परियोजना प्रयागराज महाकुंभ से पहले पूरी करने की योजना है।

कोहरा: सर्दियों में सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण
सर्दियों के मौसम में कोहरा सड़क दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण बन जाता है। कोहरा दृश्यता को कम कर देता है, जिससे चालक को सड़क, अन्य वाहन या पैदल यात्रियों को देखना कठिन हो जाता है। कई बार कोहरा इतना घना होता है कि 10 से 20 मीटर से आगे तक कुछ दिखाई नहीं देता। इस स्थिति में वाहनों की रफ्तार, दूरी का अनुमान और प्रतिक्रिया समय - तीनों प्रभावित होते हैं। कोहरे में ड्राइविंग के दौरान सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि चालक को निर्णय लेने के लिए बहुत कम समय मिलता है। अगर आगे कोई वाहन धीमा होता है या अचानक रुक जाता है, तो पीछे आने वाले वाहन के पास ब्रेक लगाने का पर्याप्त समय नहीं होता। भारत के उत्तरी राज्यों - जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार - में दिसंबर से फरवरी के बीच कोहरे के कारण सैकड़ों दुर्घटनाएँ होती हैं। कोहरा न केवल दृश्यता घटाता है, बल्कि सड़क की सतह को नम और फिसलन भरी भी बना देता है, जिससे दुर्घटना का खतरा और बढ़ जाता है।

सड़क सुरक्षा और बुनियादी ढांचे की चुनौतियाँ
भारत में सड़क सुरक्षा की समस्या केवल कोहरे या मौसम तक सीमित नहीं है। इसके पीछे कई संरचनात्मक और प्रशासनिक खामियाँ भी हैं।

  1. खराब सड़कें और रखरखाव की कमी:
    कई सड़कों की स्थिति बेहद खराब होती है - गड्ढे, असमान सतह, टूटी हुई सड़कें और अस्पष्ट संकेतक चिन्ह रोज़मर्रा की हकीकत हैं। इनसे चालक का वाहन नियंत्रण बिगड़ जाता है और दुर्घटनाएँ होती हैं।
  2. सड़क सुरक्षा मानकों का अभाव:
    कई स्थानों पर ट्रैफ़िक सिग्नल, डिवाइडर और रोड मार्किंग सही ढंग से स्थापित नहीं होते। यह न केवल भ्रम पैदा करता है बल्कि दुर्घटनाओं की संभावना भी बढ़ाता है।
  3. वाहनों की सुरक्षा सुविधाओं की कमी:
    भारत में अब भी कई वाहनों में आवश्यक सुरक्षा फीचर्स जैसे एयरबैग, एबीएस(ABS - Anti-lock Braking System), और स्वचालित ब्रेकिंग सिस्टम का अभाव है। जबकि यूरोप और अमेरिका में ये सुविधाएँ अनिवार्य हैं, भारत में इन्हें अभी भी विकल्प (optional) माना जाता है।
  4. सरकारी लापरवाही और योजनाओं की कमी:
    राज्य सरकारें और स्थानीय प्राधिकरण अक्सर सड़क सुरक्षा योजनाओं को प्राथमिकता नहीं देते। सड़क निर्माण में गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया जाता, और समय-समय पर ऑडिट की प्रक्रिया भी कमजोर है।
  5. नागरिकों की जिम्मेदारी का अभाव:
    कई बार हादसों का कारण लापरवाह ड्राइविंग, ओवरस्पीडिंग, शराब पीकर गाड़ी चलाना, मोबाइल फोन का इस्तेमाल या ट्रैफ़िक नियमों का उल्लंघन होता है। जब तक नागरिक खुद को सड़क सुरक्षा का जिम्मेदार भागीदार नहीं मानेंगे, तब तक कोई भी नीति प्रभावी नहीं हो सकती।

क्रैश सर्विलांस सिस्टम: सड़क सुरक्षा सुधारने की दिशा में नया कदम
भारत में सड़क हादसों के सटीक आंकड़े प्राप्त करना आज भी चुनौतीपूर्ण है। इसी समस्या का समाधान है - क्रैश सर्विलांस सिस्टम। यह एक राष्ट्रीय डेटाबेस (database) प्रणाली है जो सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित सभी जानकारी - जैसे दुर्घटना का प्रकार, समय, स्थान, वाहन की जानकारी, सड़क की स्थिति और पीड़ितों का विवरण - एकत्र करती है। वर्तमान में भारत में ऐसा कोई व्यापक सिस्टम नहीं है। पुलिस रिकॉर्ड (Police Record) के आधार पर डेटा एकत्र किया जाता है, जो अक्सर अपूर्ण या असंगत होता है। नतीजतन, नीति निर्माण में सटीक विश्लेषण की कमी रह जाती है। अगर यह सिस्टम लागू किया जाता है, तो इससे कई लाभ मिलेंगे:

  • सरकार को सही डेटा मिलेगा, जिससे सड़क सुरक्षा नीतियाँ वैज्ञानिक आधार पर बनेंगी।
  • दुर्घटनाओं के “हॉटस्पॉट (hotspot) क्षेत्रों” की पहचान होगी, जहाँ तत्काल सुधार किए जा सकेंगे।
  • वाहन सुरक्षा, ड्राइवर प्रशिक्षण और सड़क डिजाइन को लेकर सुधारात्मक कदम उठाए जा सकेंगे।

कई विकसित देशों में ऐसे सिस्टम पहले से मौजूद हैं। भारत में इसे लागू करने से सड़क सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा परिवर्तन आ सकता है।

कोहरे में सुरक्षित ड्राइविंग के लिए ज़रूरी सावधानियाँ
सर्दियों में कोहरे के दौरान ड्राइविंग अत्यधिक सावधानी की मांग करती है। नीचे दिए गए उपाय दुर्घटनाओं से बचाव में कारगर सिद्ध हो सकते हैं:

  1. लो-बीम हेडलाइट्स (Low-Beam Headlight) और फ़ॉग लाइट्स (Fog Lights) का प्रयोग करें:
    कोहरे में हाई-बीम का इस्तेमाल न करें, क्योंकि यह रोशनी को वापस परावर्तित करता है और दृश्यता घटा देता है। फ़ॉग लाइट्स कोहरे को “काटने” के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई होती हैं।
  2. गति धीमी रखें:
    कोहरे में सड़क की स्थिति का सही अनुमान नहीं लग पाता, इसलिए गति को 30-40 किमी/घंटा तक सीमित रखें। धीमी गति आपको अधिक प्रतिक्रिया समय देती है।
  3. पर्याप्त दूरी बनाए रखें:
    सामने वाले वाहन से पर्याप्त दूरी रखें ताकि अचानक ब्रेक लगने पर टकराव न हो। सामान्य स्थिति में जितनी दूरी रखते हैं, कोहरे में उसे दोगुना करें।
  4. सड़क की मार्किंग पर ध्यान दें:
    सफेद या पीली लाइनें आपको दिशा बताने में मदद करती हैं। लेन बदलने से बचें और मार्किंग को मार्गदर्शक के रूप में अपनाएँ।
  5. हैज़र्ड लाइट्स (Hazard Lights) का सही उपयोग करें:
    हैज़र्ड लाइट्स तभी चालू करें जब आपका वाहन रुका हुआ हो या बहुत धीमी गति से चल रहा हो। चलते समय इन्हें चालू रखना भ्रम पैदा करता है और अन्य ड्राइवरों को ग़लत संकेत देता है।
  6. मानसिक सतर्कता बनाए रखें:
    कोहरे में न केवल आपकी दृष्टि सीमित होती है, बल्कि आपकी सुनने की क्षमता भी निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अन्य वाहनों की आवाज़ सुनकर आप ट्रैफ़िक की स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं।

सुरक्षित भविष्य की ओर: जागरूकता और जिम्मेदारी की आवश्यकता
सड़क सुरक्षा केवल कानूनों और अभियानों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए - यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है। सरकारों को बेहतर सड़कें और तकनीकी सुधार प्रदान करने चाहिए, लेकिन नागरिकों को भी यातायात नियमों का पालन करना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में सड़क सुरक्षा शिक्षा को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा सकता है, ताकि बचपन से ही सुरक्षित व्यवहार विकसित हो। साथ ही, मीडिया और सोशल प्लेटफ़ॉर्म (social platform) के माध्यम से सड़क सुरक्षा अभियानों को व्यापक बनाना चाहिए। हर चालक, चाहे वह बाइक चलाता हो या ट्रक, उसे यह समझना होगा कि सड़क पर उसकी एक छोटी सी गलती किसी और की जान ले सकती है। अगर सरकारें बेहतर नीतियाँ बनाएं, नागरिक सजग रहें, और तकनीकी प्रणालियाँ जैसे क्रैश सर्विलांस सिस्टम लागू हों - तो भारत एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ सकता है जहाँ सड़कें यात्रा का साधन हों, हादसों का कारण नहीं।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं की वर्तमान स्थिति और बढ़ते खतरे
भारत की सड़कों पर हर साल लाखों ज़िंदगियाँ जोखिम में पड़ती हैं। तेज़ी से बढ़ते वाहनों की संख्या, अव्यवस्थित ट्रैफ़िक और सड़क सुरक्षा के प्रति लापरवाही - ये सब मिलकर एक गंभीर राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुके हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2022 में भारत में 4,61,312 सड़क हादसे हुए, जिनमें 1,68,491 लोगों की मौत और 4,43,366 लोग घायल हुए। यह आँकड़े न केवल चिंताजनक हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि हमारी सड़कें अब भी यात्रियों के लिए उतनी सुरक्षित नहीं हैं जितनी होनी चाहिए। इन आंकड़ों के पीछे कई कारण हैं - लापरवाह ड्राइविंग, खराब सड़कें, मानकों की अनदेखी, और खासकर सर्दियों में कोहरे का असर। उत्तर भारत के शहरों में, जैसे वाराणसी, प्रयागराज और लखनऊ, सर्दियों में हादसों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। वाराणसी में ही वर्ष 2022 में 539 सड़क हादसों में 294 लोगों की जान गई, जिनमें से ज़्यादातर घटनाएँ घने कोहरे के कारण हुईं। यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम सड़क सुरक्षा को पर्याप्त गंभीरता से ले रहे हैं, या फिर हर साल की तरह यह एक और आंकड़ा बनकर रह जाएगा।

 

संदर्भ -
https://tinyurl.com/2ubc3vf8 
https://tinyurl.com/4ywfbhvz 
https://tinyurl.com/445e4zk7 
https://tinyurl.com/bdh4f3cn 
https://tinyurl.com/5r9bcuw7
https://tinyurl.com/yjxw5s2j 



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