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लखनऊवासियों गुरु गोबिंद सिंह जयंती ऐसा दिन है जो हमें सिर्फ इतिहास या किसी पर्व की याद नहीं दिलाता बल्कि हमें यह समझने का अवसर देता है कि साहस करुणा और न्याय जैसे मूल्य किसी भी समाज की असली ताकत होते हैं। लखनऊ की तहज़ीब जहाँ अदब बातचीत की नज़ाकत और आपसी इज़्ज़त को हमेशा से सम्मान दिया गया है वहीं गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन में भी यही भाव सबसे अधिक उजागर होते हैं। उनकी जयंती हमें यह सोचने का मौका देती है कि हम एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं हम किस प्रकार अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं और हम किस तरह अपने बच्चों को ऐसे आदर्श दे सकते हैं जिनसे भविष्य सुरक्षित और न्यायपूर्ण हो। यह सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि हमारी सोच की दिशा तय करने वाला अवसर है जो हमें सिखाता है कि कोई भी समाज उसके नागरिकों के मानवीय दृष्टिकोण से मजबूत बनता है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती को केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी देखा जा सकता है। शबद कीर्तन, सामूहिक भोजन और खुले आयोजन इस दिन को उत्सव का स्वरूप देते हैं, जहाँ आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति साथ-साथ चलती हैं। इस रूप में यह पर्व साझा विरासत का प्रतीक बनता है, जिसमें विविध पृष्ठभूमि के लोग समान भाव से शामिल हो सकते हैं।
आज के इस लेख में हम गुरु गोबिंद सिंह जयंती के महत्व को सरल और दिल से जुड़ी भाषा में समझेंगे। सबसे पहले हम जानेंगे कि गुरु गोबिंद सिंह कौन थे और उनकी जयंती पूरे देश में इतनी श्रद्धा से क्यों मनाई जाती है। इसके बाद हम यह समझेंगे कि इस पर्व की तिथि किस आधार पर तय होती है और नानकशाही पंचांग में इसका क्या महत्व है। आगे हम गुरु साहिब के मुख्य योगदानों को जानेंगे जिनमें खालसा पंथ की स्थापना पंच ककार और उनके धार्मिक सामाजिक तथा आध्यात्मिक संदेश शामिल हैं। अंत में हम यह देखेंगे कि आज लखनऊ सहित पूरे भारत में यह जयंती किस उत्साह के साथ मनाई जाती है और यह दिन हमारी आधुनिक जीवनशैली और समाज को क्या संदेश देता है।
गुरु गोबिंद सिंह कौन थे और यह जयंती क्यों मनाई जाती है
गुरु गोबिंद सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम मानव गुरु थे जिनका जन्म पटना साहिब में हुआ। वे जन्म से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और छोटी उम्र में ही उन्होंने आध्यात्मिकता वीरता और सामाजिक न्याय के मार्ग को अपना लिया। उनके पिता गुरु तेग बहादुर ने धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी जिसने गुरु गोबिंद सिंह के भीतर यह विश्वास और गहरा कर दिया कि धर्म का अर्थ किसी पर दबाव नहीं बल्कि हर व्यक्ति की आस्था का सम्मान है। गुरु साहिब ने अपने जीवन को एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए समर्पित किया जहाँ सभी लोग समान हों और जहाँ किसी के साथ अन्याय न हो। उनकी जयंती उनके जन्म की स्मृति से कहीं अधिक है। यह उस विचारधारा का उत्सव है जो इंसान को निर्भय बनने की प्रेरणा देती है और उसे सिखाती है कि सच्चाई नैतिकता और करुणा ही किसी भी सभ्यता की नींव होती है।

जयंती की तिथि और उसका पंचांगिक आधार
गुरु गोबिंद सिंह जयंती नानकशाही पंचांग के आधार पर मनाई जाती है और यह पौष माह की शुक्ल सप्तमी से जुड़ी होती है। इसीलिए अंग्रेजी कैलेंडर में इसकी तिथि हर वर्ष बदल जाती है। कुछ वर्षों में यह दिसंबर में आती है और कुछ वर्षों में जनवरी में। तिथि का परिवर्तन लोगों में श्रद्धा को कम नहीं करता बल्कि यह याद दिलाता है कि गुरु साहिब के आदर्श किसी एक दिन तक सीमित नहीं बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी प्रासंगिक हैं। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष आयोजन होते हैं जिनमें लोग मिलकर पाठ कीर्तन और सेवा के माध्यम से गुरु साहिब के जीवन और शिक्षाओं को आगे बढ़ाते हैं। पंचांग में यह तिथि सिर्फ धार्मिक निर्देश नहीं बल्कि यह संकेत भी है कि आध्यात्मिक मूल्यों का पालन समय और अवसर दोनों से जुड़ा होता है।
गुरु गोबिंद सिंह के मुख्य योगदान
गुरु गोबिंद सिंह का सबसे ऐतिहासिक योगदान खालसा पंथ की स्थापना माना जाता है। खालसा उन लोगों का समूह था जो अन्याय अत्याचार और भेदभाव के सामने दृढ़ता से खड़े रहते थे। खालसा पंथ सिर्फ एक धार्मिक पहचान नहीं बल्कि साहस और नैतिकता की जीवन शैली है। इसी के साथ गुरु साहिब ने पंच ककार की परंपरा स्थापित की जो अनुशासन आत्मगौरव और धार्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक बन गई। गुरु साहिब का साहित्यिक योगदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अनेक रचनाएँ लिखीं जिनमें आध्यात्मिक सन्देश के साथ वीरता और नैतिकता की गहराई झलकती है। उनके शब्दों में वह शक्ति थी जो मनुष्य को निडर बनाती है और उसे सही के पक्ष में खड़े रहने की शिक्षा देती है। गुरु गोबिंद सिंह ने यह भी सिखाया कि धर्म का अर्थ द्वेष या विभाजन नहीं बल्कि मानवता की रक्षा और समानता की स्थापना है।

गुरु गोबिंद सिंह जयंती कैसे मनाई जाती है
यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और सद्भाव के साथ मनाया जाता है। शहर के गुरुद्वारों में अखंड पाठ आयोजित किया जाता है जहाँ लोग सुबह से शाम तक शांति और भक्ति का अनुभव करते हैं। कीर्तन और सभाओं के माध्यम से गुरु साहिब की जीवन गाथा सुनाई जाती है। लंगर इस पर्व का सबसे सुंदर पक्ष होता है क्योंकि उसमें हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के भोजन कराया जाता है। यह सेवा ही गुरु साहिब की उस शिक्षा को आगे बढ़ाती है जिसमें कहा गया है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। अनेक विद्यालय और सामाजिक संस्थाएँ भी इस दिन संवाद और कार्यक्रम आयोजित करती हैं ताकि युवा पीढ़ी भी गुरु साहिब के विचारों को समझ सके। शहर में विभिन्न समुदायों का आपसी सद्भाव इस जयंती के दिन और अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है क्योंकि यह पर्व हमारी साझा संस्कृति और एकता की मिसाल बन जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाओं का आज के समय में महत्व
आज की दुनिया में जहाँ समाज अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाएं हमें याद दिलाती हैं कि साहस केवल युद्ध का रूप नहीं बल्कि सही बात पर खड़े रहने का संकल्प भी है। वे अपने जीवन से यह बताना चाहते थे कि प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान किसी भी व्यक्ति का मूल अधिकार है और समाज तब ही आगे बढ़ता है जब वह कमजोरों की रक्षा करता है। लखनऊ जैसा शहर जहाँ विविधता सौहार्द और तहज़ीब साथ साथ चलते हैं गुरु साहिब की शिक्षाओं को समझने और अपनाने के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण पैदा करता है। उनकी विचारधारा हमें यह सिखाती है कि आपसी सम्मान सामाजिक एकता और नैतिक आचरण ही एक मजबूत समाज की नींव हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/28xhkyh7
https://tinyurl.com/mu5w6s7f
https://tinyurl.com/kjan9mx4
https://tinyurl.com/mr38mz4e
https://tinyurl.com/4fbe9wry
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