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भारत की जैव विविधता में तेंदुए (Leopard) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आकर्षक प्राणी हैं। बिल्लियों के परिवार का यह सदस्य न केवल अपनी शक्ति, फुर्ती और शिकार कला के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी उपस्थिति किसी भी वन क्षेत्र के स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र का संकेत भी मानी जाती है। तेंदुए का शरीर सुंदर चित्तियों से सजा होता है जो उन्हें प्राकृतिक आवास में छिपने में मदद करता है। यह जीव अत्यंत चतुर, रात्रिचर और एकाकी स्वभाव का होता है। तेंदुए की उपस्थिति हिमालय की तलहटी से लेकर दक्षिण भारत के वनों तक फैली हुई है, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप के कारण अब इनकी सुरक्षा एक चुनौती बन गई है।
इस लेख में हम सबसे पहले तेंदुओं की विशेषताओं और उनकी शारीरिक बनावट की चर्चा करेंगे। फिर हम जानेंगे कि तेंदुए किन-किन प्राकृतिक आवासों में पाए जाते हैं और उनका भौगोलिक वितरण कैसा है। इसके बाद हम देखेंगे कि भारत में तेंदुओं की संख्या में किस प्रकार की वृद्धि हुई है और उनके संरक्षण हेतु क्या प्रयास किए जा रहे हैं। इसके साथ ही हम भारत में तेंदुओं को देखने के प्रमुख स्थलों की जानकारी भी प्राप्त करेंगे। फिर हम समझेंगे कि मानवीय गतिविधियाँ किस प्रकार तेंदुओं के लिए खतरा बन चुकी हैं। अंत में, हम 2022 की सरकारी रिपोर्ट का विश्लेषण करेंगे, जो भारत में तेंदुओं की वर्तमान स्थिति पर रोशनी डालती है।
तेंदुओं की विशेषताएँँ
तेंदुए एक फुर्तीले, शक्तिशाली और गुप्त तरीके से शिकार करने वाले शिकारी होते हैं। इनका शरीर लंबा, मांसल और चित्तीदार होता है, जो इन्हें अपने परिवेश में छिपने में मदद करता है। तेंदुए का रंग हल्के पीले से लेकर गहरे सुनहरे तक होता है और उनके शरीर पर काले रंग के गुलाब के आकार के धब्बे होते हैं जिन्हें 'रोसेट्स' कहा जाता है। यह पैटर्न न केवल सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से अद्वितीय है, बल्कि प्राकृतिक छलावरण (camouflage) के रूप में कार्य करता है।
वयस्क नर तेंदुआ औसतन 60 से 70 किलो वजनी होता है, जबकि मादा तेंदुए का वजन 30 से 50 किलो के बीच होता है। तेंदुए अत्यधिक फुर्तीले होते हैं — ये 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकते हैं और 20 फीट लंबी छलांग लगा सकते हैं। उनकी दृष्टि बहुत तीव्र होती है, विशेष रूप से रात के समय, जिससे वे अंधेरे में भी आसानी से शिकार कर लेते हैं।
तेंदुए अकेले रहते हैं और अपने क्षेत्र पर कठोर नियंत्रण रखते हैं। वे पेड़ों पर चढ़ने में माहिर होते हैं और अपने शिकार को सुरक्षित रखने के लिए उसे ऊँचाई पर ले जाते हैं। इसके अलावा, तेंदुए तैराकी में भी कुशल होते हैं। उनकी ये विशेषताएँ उन्हें अन्य बड़ी बिल्लियों से अलग बनाती हैं और जंगलों में उनका अस्तित्व सुनिश्चित करती हैं।
तेंदुओं का प्राकृतिक आवास और वितरण
तेंदुए अत्यंत अनुकूलनीय प्राणी हैं, जो दुनिया के विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में रह सकते हैं। भारत में ये हिमालय की तलहटी, अरावली की पहाड़ियाँ, मध्य भारत के जंगल, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तक फैले हुए हैं। इनका प्राकृतिक आवास घने जंगल, सूखे पर्णपाती वन, घास के मैदान, झाड़ियाँ, और यहाँ तक कि मानव बस्तियों के आसपास के क्षेत्र भी हो सकते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेंदुओं का वितरण अफ्रीका के अधिकांश हिस्सों, पश्चिम एशिया, भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला हुआ है। हालांकि, भारत को तेंदुओं की उच्चतम घनत्व वाले देशों में गिना जाता है। ये प्राणी पर्वतीय इलाकों में भी पाए जाते हैं, जहाँ उनका मुकाबला हिम तेंदुए जैसे अन्य शिकारी जीवों से होता है।
तेंदुओं की यह व्यापक उपस्थिति उनकी अनुकूलनीयता का प्रमाण है, लेकिन शहरीकरण और आवासों की कटाई ने इनके वितरण को सीमित कर दिया है। परिणामस्वरूप, अब ये अधिकतर संरक्षित क्षेत्रों और अभयारण्यों में सीमित हो गए हैं, जिससे इनके व्यवहार और पारिस्थितिक भूमिका पर असर पड़ा है।
तेंदुओं की संख्या में वृद्धि और उनके संरक्षण प्रयास
2018 की तुलना में 2022 में भारत में तेंदुओं की संख्या में 8% की वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, तेंदुओं की अनुमानित संख्या 13,874 है। यह वृद्धि विशेषकर मध्य भारत और पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्रों में देखी गई है, जहाँ संरक्षण प्रयास अधिक सक्रिय हैं।
तेंदुओं के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा विभिन्न पहलें चलाई गई हैं। 'प्रोजेक्ट टाइगर' जैसी योजनाओं ने अप्रत्यक्ष रूप से तेंदुओं की सुरक्षा को भी मजबूत किया है क्योंकि तेंदुए और बाघ कई बार समान आवास साझा करते हैं। इसके अलावा, 'इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस' (IBCA) जैसी वैश्विक पहल भी तेंदुओं के संरक्षण में मददगार साबित हो रही है।
सिविल सोसाइटी, एनजीओ, और स्थानीय समुदायों को भी संरक्षण कार्यक्रमों में शामिल किया जा रहा है। 'मानव-वन्यजीव संघर्ष' को कम करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान और मुआवजा योजनाएँ लागू की गई हैं। फिर भी, संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास और संसाधनों की आवश्यकता है ताकि इस बढ़ती आबादी को सुरक्षित रखा जा सके।
भारत में तेंदुओं को देखने के सर्वोत्तम स्थान
भारत के कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य तेंदुओं को देखने के लिए प्रसिद्ध हैं। ये स्थल न केवल जैव विविधता के केंद्र हैं, बल्कि इको-पर्यटन को भी बढ़ावा देते हैं। प्रमुख स्थानों में शामिल हैं:
इन स्थानों पर पर्यावरणीय पर्यटन से स्थानीय आजीविका भी जुड़ी है, जिससे तेंदुओं के संरक्षण को सामाजिक समर्थन भी प्राप्त होता है।
मानवीय गतिविधियाँ और तेंदुओं के लिए खतरे
तेंदुओं के सामने सबसे बड़ा खतरा मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होता है। शहरी विस्तार, कृषि भूमि में वृद्धि, खनन, सड़क निर्माण और वनों की कटाई जैसे कार्य तेंदुओं के आवास को लगातार नष्ट कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, तेंदुए अक्सर इंसानी बस्तियों के निकट आ जाते हैं, जिससे 'मानव-तेंदुआ संघर्ष' की घटनाएँ बढ़ गई हैं।
इसके अलावा, अवैध शिकार भी एक गंभीर समस्या है। तेंदुओं की खाल, मूंछें, और अन्य अंगों की तस्करी के कारण इनकी संख्या में कमी आती रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन करने वाले लोग भी तेंदुओं को खतरनाक मानकर मार डालते हैं।
इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकारें मुआवजा नीति, निगरानी प्रणाली (Camera traps, GPS collaring), और सुरक्षित गलियारों (wildlife corridors) की स्थापना जैसे उपाय कर रही हैं। परंतु इस दिशा में सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
भारत में तेंदुओं की स्थिति पर 2022 की रिपोर्ट का विश्लेषण
2022 की "Status of Leopards in India" रिपोर्ट भारत में तेंदुओं की आबादी के संरक्षण पर एक अहम दस्तावेज है। यह रिपोर्ट बताती है कि तेंदुए अब भारत के लगभग हर राज्य में पाए जाते हैं, लेकिन इनकी संख्या असमान रूप से फैली हुई है। मध्य भारत और पश्चिमी घाट में इनकी संख्या में वृद्धि हुई है, जबकि पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्रों में गिरावट दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, तेंदुओं की सबसे बड़ी आबादी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटका में दर्ज की गई है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि बाघों के संरक्षण के लिए जो प्रयास किए गए, वे तेंदुओं के लिए भी लाभदायक सिद्ध हुए हैं। रिपोर्ट ने यह सुझाव दिया है कि तेंदुओं के लिए समर्पित संरक्षण योजना की आवश्यकता है क्योंकि वे बाघों की तुलना में अधिक लचीले होते हुए भी ज्यादा जोखिम में हैं।
इसके साथ ही रिपोर्ट में डेटा एकत्र करने की तकनीकी प्रगति जैसे कैमरा ट्रैपिंग, सैटेलाइट निगरानी और जीआईएस मैपिंग के उपयोग की भी सराहना की गई है, जिससे भविष्य में तेंदुओं के व्यवहार और संकट क्षेत्रों की पहचान और बेहतर तरीके से की जा सकेगी।
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