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जब मेरठ की फिज़ाओं में पुरातन इतिहास की हल्की सी गूंज सुनाई देती है, तो लगता है जैसे यह शहर सिर्फ़ अपने गदर के किस्सों या स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं, बल्कि उससे कहीं गहरी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ा है। क्या आपने कभी सोचा है कि भारत की यह समृद्ध विरासत सिर्फ़ एशिया तक नहीं, बल्कि मिस्र जैसी दूरदराज़ सभ्यताओं से भी जुड़ी रही है? मिस्र — जो नील नदी के किनारे पनपी एक महान और रहस्यमयी सभ्यता है — भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर होते हुए भी हमारे साथ सांस्कृतिक और धार्मिक संवाद में रहा है। हाल ही में मिस्र के बेरेनिके शहर में मिली भगवान बुद्ध की एक प्राचीन मूर्ति इस गहरे संबंध की सशक्त गवाही देती है। यह केवल व्यापार का मामला नहीं था, बल्कि ज्ञान, आस्था और सांस्कृतिक मूल्यों का ऐसा संवाद था, जिसकी प्रतिध्वनि मेरठ जैसे ऐतिहासिक नगरों तक आज भी महसूस की जा सकती है।
इस लेख में हम जानेंगे कि भारत और मिस्र के बीच प्राचीन काल से किस प्रकार के ऐतिहासिक संबंध रहे, बेरेनिके में मिली बुद्ध की मूर्ति का क्या महत्व है, कैसे व्यापारिक मार्गों ने इन दो देशों को जोड़े रखा, मिस्र में बौद्ध धर्म कैसे पहुंचा, और दोनों संस्कृतियों में क्या-क्या समानताएं रही हैं।
भारत और मिस्र: दो प्राचीन सभ्यताओं के ऐतिहासिक संबंध
भारत और मिस्र दुनिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताएँ हैं — सिंधु घाटी और मिस्र की नील नदी सभ्यता। इन दोनों का उद्भव लगभग एक ही समय (तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व) में हुआ। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे नगर भारत की प्राचीन शहरी संस्कृति का प्रमाण हैं, वहीं मिस्र में पिरामिड, स्फिंक्स और विशाल मंदिर इस सभ्यता की भव्यता दर्शाते हैं। इन दोनों क्षेत्रों के बीच व्यापारिक संबंधों का प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खननों में मिला है, जहाँ मिस्र की वस्तुएँ और प्रतीक चिह्न पाए गए हैं। मिस्र में भारतीय मसाले, कीमती पत्थर, कपड़े और अन्य वस्तुएँ पहुंचती थीं। मिस्र के शासकों और विद्वानों ने भारत को एक समृद्ध और ज्ञानवान भूमि के रूप में देखा।
विशेषकर हेलेनिस्टिक और टॉलेमिक काल में, मिस्र और भारत के बीच धार्मिक और दार्शनिक विचारों का आदान-प्रदान हुआ। टॉलमी द्वितीय के शासनकाल में मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को मिस्र भेजा था, जिससे यह संबंध केवल व्यापार तक सीमित न रहकर आध्यात्मिक भी हो गया। यूनानी और रोमन यात्रियों ने भी भारत की यात्रा कर वहां के सामाजिक, धार्मिक और व्यापारिक जीवन का वर्णन किया। भारत और मिस्र दोनों ही सूर्योपासक रहे हैं। मिस्र में रा (Ra) सूर्य देवता माने जाते थे, जबकि भारत में सूर्य देव की पूजा वैदिक काल से होती आ रही है। इन समानताओं ने दोनों सभ्यताओं के बीच एक गहरी सांस्कृतिक समानता की नींव रखी। साथ ही, दोनों ही सभ्यताओं में जल की पवित्रता का विशेष स्थान रहा है — भारत में गंगा और सरस्वती, जबकि मिस्र में नील नदी। इसने सामाजिक, कृषि और धार्मिक जीवन को दिशा दी।
बेरेनिके में बुद्ध की मूर्ति: भारत-मिस्र संबंधों का पुरातात्विक प्रमाण
2023 में मिस्र के लाल सागर के किनारे स्थित प्राचीन बंदरगाह शहर बेरेनिके में गौतम बुद्ध की एक 1,900 वर्ष पुरानी मूर्ति की खोज ने इतिहासविदों को चौंका दिया। यह मूर्ति भारत और मिस्र के बीच प्राचीन व्यापार और धार्मिक संबंधों का जीवंत प्रमाण बन गई। यह मूर्ति भूमध्यसागरीय संगमरमर से बनी है और इसकी ऊंचाई लगभग 2 फुट है। मूर्ति में बुद्ध के सिर के पीछे सूर्य किरणों से युक्त प्रभामंडल है, जो बुद्ध की दिव्यता और ज्ञान की प्रतीक है। मूर्ति में बुद्ध खड़े हैं और उनका बायां हाथ उनके वस्त्र का एक भाग पकड़े हुए है। साथ ही उनके बगल में कमल का फूल उकेरा गया है।
यह खोज महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह मूर्ति संभवतः अलेक्ज़ेंड्रिया में बनाई गई थी और व्यापार मार्गों के ज़रिए बेरेनिके पहुंची। साथ ही वहाँ से सातवाहन साम्राज्य के दो सिक्के भी प्राप्त हुए, जिससे भारत के साथ सीधे व्यापारिक संपर्क का प्रमाण मिलता है। यह केवल एक मूर्ति नहीं, बल्कि यह उन धर्मों और विचारों की यात्रा का प्रमाण है, जिन्होंने सीमाओं को पार किया। यह मूर्ति दर्शाती है कि भारत का बौद्ध धर्म केवल एशिया तक सीमित नहीं रहा, बल्कि रोमन मिस्र तक भी उसका प्रभाव पहुंचा। यह भी संभावना है कि यह मूर्ति व्यापारियों द्वारा लाए गए धार्मिक उपहार या प्रतीक के रूप में रही हो, जिससे पता चलता है कि व्यापार के साथ-साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी जीवंत था।
प्राचीन व्यापारिक मार्ग और भारत-मिस्र वाणिज्यिक संबंध
भारत और मिस्र के बीच व्यापारिक संबंध कई सहस्राब्दियों तक फैले हुए थे। प्राचीन काल में ज़मीन और समुद्र दोनों मार्गों से व्यापार होता था। लोथल (गुजरात) जैसे बंदरगाहों से जहाज़ मिस्र के बंदरगाहों तक मसाले, रत्न, हाथी दांत, वस्त्र और औषधियाँ लेकर जाया करते थे। इसके बदले में मिस्र से भारत में सोना, कांच, शराब और सुगंधित तेल आते थे। बेरेनिके बंदरगाह, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित हुआ था, भारत और मिस्र के बीच व्यापार का प्रमुख केंद्र बन गया। इस बंदरगाह के माध्यम से समुद्री मार्गों से भारत के दक्षिणी राज्यों — जैसे कि चोल, पांड्य और चेर साम्राज्य — से सामान भेजा जाता था।
स्वेज नहर के निर्माण के बाद आधुनिक युग में भी यह व्यापारिक रिश्ता बना रहा। रोमन काल में इस व्यापारिक संपर्क का इतना महत्व था कि रोमन साम्राज्य में भारतीय मसालों की मांग इतनी अधिक थी कि इसे "गोल्ड फॉर पेपर" व्यापार कहा गया — यानी रोमन सोना भारत चला जाता और बदले में मसाले मिलते। अलेक्ज़ेंड्रिया जैसे शहरों में भारतीय वस्तुओं की दुकानें हुआ करती थीं। भारतीय व्यापारी मिस्र की संस्कृति और भाषा को भी आत्मसात करते थे, जिससे सांस्कृतिक घुलनशीलता और साझी विरासत का निर्माण हुआ। इस व्यापार से जुड़े व्यापारी कई बार स्थायी रूप से मिस्र में बस भी जाते थे, जिससे भारतवंशी समुदाय का उद्भव हुआ।
मिस्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव और प्रसार
मिस्र में बौद्ध धर्म का प्रसार एक अद्भुत ऐतिहासिक घटना रही है। आमतौर पर हम सोचते हैं कि बौद्ध धर्म केवल भारत, नेपाल, तिब्बत, चीन और जापान तक सीमित रहा, परंतु उसकी जड़ें मिस्र तक फैली थीं। सम्राट अशोक ने अपने शासन काल में बौद्ध धर्म को दुनिया भर में फैलाने का प्रयास किया। उनके शिलालेखों में उल्लेख है कि उन्होंने अपने दूतों को मिस्र, सीरिया, यूनान और अन्य पश्चिमी क्षेत्रों में भेजा। माना जाता है कि टॉलेमी द्वितीय फिलाडेल्फस के शासनकाल में यह मिशन मिस्र पहुंचा।
प्रारंभिक रोमन काल में बौद्ध धर्म ने मिस्र में विद्वानों का ध्यान खींचा। फ़िलो, लूसियन और क्लेमेंट जैसे मिस्री विद्वानों ने बौद्ध धर्म के विचारों का अध्ययन किया और उनके ग्रंथों में बौद्ध अवधारणाओं की झलक मिलती है। बेरेनिके की बुद्ध मूर्ति इस बात का प्रमाण है कि बौद्ध धर्म केवल बौद्ध साहित्य तक सीमित न था, बल्कि मूर्तिकला, स्थापत्य और दर्शन में भी मिस्र में उसका असर दिखता है। यह धार्मिक प्रभाव न केवल आध्यात्मिक था, बल्कि सांस्कृतिक और कलात्मक रूप में भी मिस्र की भूमि पर अंकित हुआ। कुछ विद्वान मानते हैं कि बौद्ध भिक्षु शांति, तर्क और आत्मविकास के सिद्धांतों को मिस्र के रहस्यवाद और दर्शनशास्त्र में समाहित करने में सफल रहे।
सांस्कृतिक समानताएँ: खेल, कला और जीवन शैली
भारत और मिस्र की प्राचीन संस्कृतियों के बीच अनेक समानताएँ रही हैं, जो केवल व्यापार और धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन शैली, खेल और कलाओं तक विस्तृत थीं। लोथल (गुजरात) में खुदाई के दौरान जो टेराकोटा खिलौने और खेल के उपकरण मिले हैं, वे मिस्र के शतरंज जैसे खेलों से मिलते-जुलते हैं। मिस्र की रानी हत्शेपसुत के शतरंज सेट से यह तुलना विशेष रूप से की जाती है। दोनों संस्कृतियाँ चित्रकला और भित्तिचित्रों की धनी रही हैं। मिस्र की चित्रकला में जिस प्रकार सजीव रंगों और प्रतीकों का प्रयोग होता था, उसी तरह भारत में अजंता-एलोरा की गुफाओं में यह परंपरा देखने को मिलती है। दोनों समाजों में मृत्युपरांत जीवन की अवधारणाएं थीं और दोनों ही पवित्र ग्रंथों और प्रतीकों में गहरी आस्था रखते थे। मिस्र में पिरामिड मृत्यु के बाद जीवन की यात्रा के प्रतीक थे, वहीं भारत में वैदिक परंपराओं में पुनर्जन्म और मोक्ष की अवधारणा प्रबल थी। वस्त्रों, गहनों और आभूषणों के प्रति लगाव भी दोनों संस्कृतियों में समान था। मिस्र और भारत दोनों में ही महिलाएं कांच की चूड़ियाँ, सोने-चांदी के आभूषण और सुंदर वस्त्र धारण करती थीं। साथ ही संगीत, नृत्य और उत्सव दोनों समाजों के प्रमुख अंग रहे हैं — जिससे यह स्पष्ट होता है कि जीवन का सौंदर्य और आनंद दोनों ही संस्कृतियों में समान रूप से महत्वपूर्ण था।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/4hxw3bx4
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