
समय - सीमा 275
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1027
मानव और उनके आविष्कार 809
भूगोल 249
जीव-जंतु 301
मेरठवासियो, आप भली-भाँति जानते हैं कि हमारा यह शहर केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी उर्वर कृषि भूमि और समृद्ध खेती-बाड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है। गंगा बेसिन के उपजाऊ मैदानी क्षेत्र में बसे होने के कारण, मेरठ की मिट्टी किसानों के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं है। यहाँ के खेतों में गेहूँ, चावल और गन्ने की भरपूर पैदावार होती है और यही फसलें इस क्षेत्र की कृषि प्रणाली की पहचान बन चुकी हैं। इतना ही नहीं, यहाँ के किसान पशुपालन, विशेषकर गाय-भैंसों को पालने में भी आगे रहते हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मज़बूती देता है। लेकिन, जैसे-जैसे समय बदला है, खेती की चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं—रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक प्रयोग, एक जैसी फसलों की बार-बार खेती और जलवायु परिवर्तन का दबाव, इन सबने मेरठ की कृषि प्रणाली को नई परिस्थितियों का सामना करने पर मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि अब हमें अपनी खेती और प्राकृतिक संसाधनों को नए दृष्टिकोण से समझना और सँवारना होगा।
आज हम इस लेख में मेरठ की कृषि प्रणाली और उसकी वर्तमान स्थिति पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम जानेंगे कि जलवायु परिवर्तन का इस क्षेत्र की फसलों और पशुधन पर क्या असर हो रहा है। फिर, हम स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में पाए जाने वाले वृक्षों की फाइटोडायवर्सिटी और उनके एथेनोबोटैनिकल महत्व को समझेंगे। अंत में, हम भारत के शीर्ष पाँच बागवानी राज्यों और उनकी विशेष फसलों पर नज़र डालेंगे और यह देखेंगे कि भविष्य में मेरठ की कृषि प्रणाली के सामने कौन-सी संभावनाएँ और चुनौतियाँ मौजूद हैं।
मेरठ की कृषि प्रणाली और उसकी वर्तमान स्थिति
मेरठ, गंगा बेसिन का हिस्सा होने के कारण प्राकृतिक रूप से बेहद उपजाऊ भूमि और पर्याप्त सिंचाई की सुविधा से संपन्न है। इस कारण यहाँ के किसान पारंपरिक रूप से फसलों की विविध प्रणाली अपनाते आए हैं। विशेष रूप से चावल-गेहूँ और गन्ना-गेहूँ की खेती प्रणाली मेरठ की पहचान बन चुकी है। यह प्रणाली यहाँ के किसानों के जीवन और आजीविका का आधार रही है। किसानों का एक बड़ा हिस्सा केवल फसलों पर निर्भर नहीं है, बल्कि वे गाय और भैंस जैसे पशुधन भी पालते हैं। यह पशुधन दूध उत्पादन में सहायक होने के साथ-साथ खेतों के लिए जैविक खाद उपलब्ध कराता है और कृषि प्रणाली को संतुलित बनाए रखता है। हालाँकि, बदलते समय के साथ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। वर्तमान में कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक और असंतुलित प्रयोग बढ़ गया है। इसी प्रकार लगातार एक जैसी फसलें बोने से मिट्टी की उर्वरता और उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। इन कारणों से खेतों की उत्पादकता धीरे-धीरे घट रही है, और किसानों को उपज के घटते स्तर का सामना करना पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन का मेरठ की कृषि और पशुधन पर प्रभाव
आज के समय में जलवायु परिवर्तन मेरठ के किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। असमय वर्षा, तापमान में अचानक बढ़ोतरी और अधिकतम व न्यूनतम तापमान में असंतुलन ने फसलों की पैदावार को सीधे प्रभावित करना शुरू कर दिया है। खासतौर पर चावल और गेहूँ, जो इस क्षेत्र की मुख्य फसलें हैं, उनकी पैदावार पर गंभीर असर देखने को मिल रहा है। अध्ययन बताते हैं कि आने वाले वर्षों में यदि यही परिस्थितियाँ बनी रहीं तो चावल की पैदावार में 16% तक की गिरावट और गेहूँ की पैदावार में 6% से 19% तक की कमी संभव है। यह समस्या केवल फसलों तक सीमित नहीं है। पशुधन क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। तापमान और मौसम की अनियमितता का सीधा असर दूध उत्पादन पर पड़ता है। अनुमान लगाया गया है कि भविष्य में दूध उत्पादन में लगभग 10% की गिरावट आ सकती है। यह गिरावट न केवल किसानों की आय को प्रभावित करेगी, बल्कि उपभोक्ताओं तक गुणवत्तापूर्ण दुग्ध उत्पाद पहुँचाने में भी बाधा बनेगी।
स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय से प्राप्त वृक्षों की फाइटोडायवर्सिटी और एथेनोबोटैनिकल महत्व
मेरठ के स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में वृक्षों की विविधता पर किए गए अध्ययनों ने यहाँ के प्राकृतिक खज़ाने और उनकी औषधीय महत्ता को उजागर किया है। विश्वविद्यालय में पाई जाने वाली फाइटोडायवर्सिटी केवल पर्यावरणीय संतुलन के लिए ही नहीं, बल्कि मानव स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।
इन पौधों की विविधता यह दर्शाती है कि मेरठ केवल कृषि उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी जैव विविधता और औषधीय पौधों की धरोहर के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत के शीर्ष 5 बागवानी राज्य और उनकी विशेष फसलें
कृषि और बागवानी की व्यापक तस्वीर को समझने के लिए हमें भारत के अन्य राज्यों की ओर भी देखना होगा। भारत के पाँच प्रमुख बागवानी राज्य अपने-अपने क्षेत्र में विशिष्ट फसलों के लिए जाने जाते हैं और इनका योगदान देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करता है।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
कृषि का भविष्य केवल नई वैज्ञानिक तकनीकों या उन्नत बीजों पर निर्भर नहीं है, बल्कि यह पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक संसाधनों के संतुलित उपयोग पर भी आधारित है। किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अपनी खेती की पद्धतियाँ बदलनी होंगी। जल और मिट्टी जैसे संसाधनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। यदि किसान सतत कृषि पद्धतियाँ अपनाएँ और सरकार व शोध संस्थानों से सहयोग प्राप्त करें, तो भविष्य में उत्पादन स्तर बढ़ सकता है। साथ ही, पौधों की विविधता और पारंपरिक औषधीय ज्ञान का संरक्षण भी करना होगा, ताकि हम न केवल फसलों में आत्मनिर्भर बन सकें, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रकृति का यह खज़ाना सुरक्षित रूप से दे सकें। अंत में, यह कहा जा सकता है कि मेरठ की कृषि प्रणाली आज भले ही अनेक चुनौतियों का सामना कर रही हो, लेकिन इसमें विकास और समृद्धि की अपार संभावनाएँ हैं। यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पारंपरिक विधियों का सही संतुलन बना लें, तो मेरठ आने वाले समय में सतत और समृद्ध कृषि का आदर्श बन सकता है।
संदर्भ-
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.