मेरठवासियों, जानिए कैसे छठ पूजा आस्था, अनुशासन और सामाजिक एकता की मिसाल बनी

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
27-10-2025 09:20 AM
मेरठवासियों, जानिए कैसे छठ पूजा आस्था, अनुशासन और सामाजिक एकता की मिसाल बनी

मेरठवासियों, क्या आपने कभी कार्तिक की शांत और ठंडी सुबह में गंगा नहर या हिंडन किनारे वह मनमोहक दृश्य देखा है, जब महिलाएं जल में खड़ी होकर पूरी श्रद्धा से उगते या डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं? यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि समर्पण, अनुशासन और प्रकृति से जुड़ाव का ऐसा अनूठा दृश्य होता है, जो मन को भीतर तक छू जाता है। पीत वस्त्रों में सजी महिलाएं, हाथों में सूप लिए, जिनमें ठेकुआ, केला, नारियल और मौसमी फल सजे होते हैं, जब सामूहिक रूप से सूर्य वंदना करती हैं, तो उस क्षण की पवित्रता शब्दों से परे होती है। यह छठ पूजा, जो कभी बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान मानी जाती थी, आज मेरठ की गलियों, कॉलोनियों और घाटों पर भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से मनाई जाती है। जैसे-जैसे त्योहार नज़दीक आता है, मेरठ के अलग-अलग इलाकों में लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर तैयारी शुरू कर देते हैं। कोई प्रसाद बनाता है, तो कोई घाट की सफाई करता है। मोहल्लों में सामूहिकता की भावना देखने लायक होती है। अब यह पर्व किसी एक भूगोल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में बसे भारतीयों के लिए आस्था और एकजुटता का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
इस लेख में हम छठ पूजा के गहन अर्थ और इसकी सांस्कृतिक परंपराओं को समझेंगे। हम जानेंगे कि इस पर्व का उद्भव कैसे हुआ, इसके चार दिनों तक चलने वाले प्रमुख अनुष्ठान क्या हैं, और यह कैसे हमारे शरीर और मन के लिए प्राकृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से लाभकारी है। साथ ही, छठ पूजा का वैश्विक प्रसार, मूर्तियों के बिना इसे निभाने की अनूठी परंपरा और व्रत के दौरान पालन किए जाने वाले आवश्यक नियमों पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।



छठ पूजा का उद्भव और सांस्कृतिक महत्त्व
छठ पूजा की जड़ें भारतीय सभ्यता के वैदिक काल तक जाती हैं, जब सूर्य देव को जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य का मूल स्रोत माना जाता था। इस पर्व की उत्पत्ति उन प्राकृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं से जुड़ी है, जहाँ सूर्य की आराधना केवल एक देवता के रूप में नहीं, बल्कि एक जीवनदायी शक्ति के रूप में की जाती थी। छठी मैया को बच्चों की रक्षा करने वाली मातृशक्ति के रूप में पूजा जाता है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के मधेश क्षेत्र में यह पर्व एक विशिष्ट पहचान रखता है, जो धार्मिक अनुष्ठानों से आगे बढ़कर सांस्कृतिक आत्मीयता और सामाजिक एकजुटता का उत्सव बन चुका है। मेरठ जैसे शहरों में, जहाँ देश के विभिन्न हिस्सों से आकर लोग बसे हैं, वहाँ अब छठ पूजा न केवल श्रद्धा से मनाई जाती है, बल्कि यह एक सामुदायिक मिलन और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक बन गई है। गली-मोहल्लों में सामूहिक आयोजन, परस्पर सहयोग और एकसाथ अर्घ्य देने की परंपरा इस पर्व को केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन दर्शन का रूप देती है।

चार दिवसीय छठ पूजा के प्रमुख अनुष्ठान
छठ पूजा का हर दिन एक आध्यात्मिक और शारीरिक अनुशासन की मांग करता है, जिसमें श्रद्धालु तप, संयम और समर्पण के उच्चतम स्तर को छूते हैं। पहले दिन को 'नहाय-खाय' कहा जाता है, जिसमें व्रती पवित्र जल स्रोत में स्नान कर शुद्धता का संकल्प लेते हैं और सात्विक भोजन करते हैं। मेरठ में हिंडन और गंगा नहर के किनारे इस दिन स्नान और पूजा की तैयारी का एक विशेष वातावरण बनता है। दूसरे दिन ‘खरना’ होता है, जिसमें पूरे दिन निर्जला उपवास किया जाता है और सूर्यास्त के बाद गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण कर अगले 36 घंटे का निर्जल व्रत आरंभ किया जाता है। तीसरे दिन 'संध्या अर्घ्य' के समय महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सूप लिए, नदी किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह दृश्य सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि अपार श्रद्धा और आंतरिक शक्ति की प्रतीक होता है। चौथे दिन ‘बिहानिया अर्घ्य’ में उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है। ये चार दिन जीवन के चक्र – शुद्धि, त्याग, समर्पण और पुनर्जन्म – का जीवंत प्रतिबिंब हैं।

छठ पूजा की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि और प्राकृतिक स्वास्थ्य लाभ
जहाँ अधिकांश धार्मिक अनुष्ठान प्रतीकों और विश्वासों पर आधारित होते हैं, वहीं छठ पूजा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व रखती है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जब व्रती जल में खड़े होकर सूर्य की आराधना करते हैं, तब सूर्य की किरणों में पराबैंगनी विकिरण (UV rays) की तीव्रता सबसे कम होती है, जो शरीर के लिए लाभकारी मानी जाती है। इस समय की सूर्य किरणें शरीर की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने, विटामिन D (Vitamin D) के निर्माण और त्वचा की सफाई में मदद करती हैं। साथ ही, जल में खड़े होकर सूर्य की ओर देखने से मानसिक एकाग्रता बढ़ती है और ध्यान की स्थिति उत्पन्न होती है। यह एक प्रकार की प्राकृतिक चिकित्सा है जो मन, शरीर और आत्मा तीनों को शुद्ध करती है। मेरठ जैसे शहरी और व्यस्त जीवन वाले नगर में, जहाँ प्रदूषण, तनाव और अव्यवस्थित दिनचर्या आम हो चली है, वहाँ छठ पूजा जैसे पर्व जीवन में संतुलन, शांति और प्राकृतिक जुड़ाव की सशक्त याद दिलाते हैं।

छठ पूजा की वैश्विक उपस्थिति और सामाजिक समावेशन
आज छठ पूजा की गूंज सिर्फ गंगा किनारे या बिहार की गलियों तक सीमित नहीं रही। यह पर्व वैश्विक हो चुका है – अमेरिका, यूके, फिजी, मॉरिशस, ऑस्ट्रेलिया से लेकर जापान और मलेशिया तक, जहाँ भी पूर्वांचली समुदाय है, वहाँ छठ की छवि सजीव हो उठती है। यह एक सांस्कृतिक सेतु बन गया है जो प्रवासी भारतीयों को अपनी जड़ों से जोड़ता है। मेरठ जैसे शहर, जो लगातार सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होते जा रहे हैं, अब छठ पूजा के दौरान नए रंगों में रंग जाते हैं। सोसाइटियों में सामूहिक आयोजन, अस्थायी घाटों का निर्माण और सांझ-सुबह की भक्ति में डूबी स्त्रियाँ – ये सब एक साथ मिलकर उस एकता और सह-अस्तित्व को दर्शाते हैं जिसकी आज के दौर को सबसे अधिक ज़रूरत है। जाति, धर्म, वर्ग, लिंग – इन सबकी सीमाएं मिट जाती हैं और एक साथ खड़े श्रद्धालु प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।



मूर्ति पूजा से रहित छठ: एक अनूठी परंपरा
छठ पूजा की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि इसमें किसी मूर्ति या मंदिर की आवश्यकता नहीं होती। सूर्य – जो सबके लिए समान रूप से प्रकाश और जीवन देता है – उसकी पूजा स्वयं प्रकृति के मध्य, जल में खड़े होकर की जाती है। व्रती सूप में ठेकुआ, नारियल, गन्ना, और मौसमी फलों को अर्पण करते हैं, जिनका चयन भी प्राकृतिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है। इसमें न कोई पंडित चाहिए, न ही कोई पवित्र स्थान की अनिवार्यता – बस मन की पवित्रता और श्रद्धा ही इस पूजा की असली पात्रता है। यह एक ऐसा धर्म-निरपेक्ष आध्यात्मिक अनुभव है जो सबको आमंत्रित करता है – चाहे वह महिला हो या पुरुष, धनी हो या गरीब। मेरठ की गलियों में भी यह सादगी और समर्पण से भरा रूप देखने को मिलता है, जो दर्शाता है कि यह परंपरा जितनी पुरानी है, उतनी ही आधुनिक मूल्यों से भी मेल खाती है।

छठ व्रत के दौरान पालन किए जाने वाले प्रमुख नियम
छठ पूजा में स्वास्थ्य और संयम का सीधा संबंध है। यह व्रत शारीरिक और मानसिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यंत कठोर होता है। ऐसे में व्रत प्रारंभ करने से पूर्व शरीर को तैयार करना अत्यंत आवश्यक होता है। व्रती को व्रत के पहले दिन हल्का, संतुलित और पोषक तत्वों से भरपूर आहार लेना चाहिए – जैसे मौसमी फल, दूध, सत्तू आदि। निर्जल उपवास के दौरान शरीर में जल की कमी न हो, इसके लिए व्रत से पहले नारियल पानी, नींबू पानी या छाछ का सेवन लाभदायक होता है। साथ ही कैफीनयुक्त पेय जैसे चाय या कॉफी से परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि ये शरीर को और निर्जल कर सकती हैं। नींद पूरी करना भी अत्यंत ज़रूरी है, क्योंकि पूजा का समय बहुत सुबह और देर शाम होता है। मेरठ में अब छठ व्रती स्वयं इन बातों के प्रति जागरूक हो रहे हैं और पारंपरिक परंपरा के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता दे रहे हैं – जो इस पर्व की दीर्घकालिकता और प्रभावशीलता को दर्शाता है।

संदर्भ-  
https://tinyurl.com/5h5adsp8 
https://tinyurl.com/49c3dj4a 
https://tinyurl.com/3zuww2nt 
https://tinyurl.com/3dkn48t9