कैसे मेरठ की हवा अब आईओटी तकनीक से जुड़कर, स्वच्छ हवा की नई उम्मीद जगा रही हैं?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
08-11-2025 09:10 AM
कैसे मेरठ की हवा अब आईओटी तकनीक से जुड़कर, स्वच्छ हवा की नई उम्मीद जगा रही हैं?

आज की दुनिया में शहरीकरण और औद्योगीकरण जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से हमारी हवा भी दूषित होती जा रही है। कभी यह प्रदूषण केवल फैक्टरियों और वाहनों तक सीमित था, लेकिन अब यह हमारे घरों, दफ़्तरों और स्कूलों की हवा में भी घुल चुका है। ऐसे में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index – AQI) केवल एक संख्या नहीं रह गया है - यह हमारी हर सांस का आईना बन चुका है, जो बताता है कि हम किस गुणवत्ता की हवा में जी रहे हैं। हर साल लाखों लोग श्वसन रोगों, एलर्जी (allergy), अस्थमा (asthma), और हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं, जिनका मूल कारण प्रदूषित हवा ही होती है। बच्चे और बुज़ुर्ग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं क्योंकि उनकी श्वसन प्रणाली संवेदनशील होती है। यही वजह है कि अब हवा की गुणवत्ता केवल पर्यावरण या मौसम से जुड़ा विषय नहीं रहा, बल्कि सीधे हमारे स्वास्थ्य, उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ गया है। इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में आधुनिक तकनीक एक नई आशा लेकर आई है - इंटरनेट ऑफ थिंग्स (Internet of Things - IoT)। यह तकनीक ऐसे सेंसर-आधारित (sensor-based) उपकरणों का नेटवर्क है जो वास्तविक समय में हवा की निगरानी करते हैं और तुरंत डेटा (data) उपलब्ध कराते हैं। चाहे शहर के किसी ट्रैफ़िक पॉइंट (traffic point) की बात हो या आपके घर के कमरे की, आईओटी (IoT) अब हर स्तर पर हवा की स्थिति को मापकर चेतावनी देने और सुधार के उपाय सुझाने में सक्षम है।
इस लेख में हम वायु गुणवत्ता और आईओटी तकनीक के गहरे संबंध को समझेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि एक्यूआई (AQI) क्या है और इसका हमारे दैनिक जीवन में क्या महत्व है। इसके बाद, हम बढ़ते वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभावों पर चर्चा करेंगे। फिर हम देखेंगे कि भारत में वायु गुणवत्ता निगरानी की व्यवस्था कैसी है और इसमें कौन-कौन सी संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। आगे, हम समझेंगे कि आईओटी तकनीक कैसे वायु गुणवत्ता सुधार में नई दिशा दे रही है, और आईओटी आधारित समाधान किस प्रकार नीति निर्धारण और शहरी प्रबंधन को अधिक सक्षम बना रहे हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि घरेलू स्तर पर आईओटी उपकरणों के माध्यम से हम अपने घरों की हवा को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।

वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): अर्थ और महत्व
हम जिस हवा में हर पल सांस लेते हैं, उसमें क्या छिपा है - यह सवाल आज हर शहरवासी के लिए उतना ही अहम हो गया है, जितना कि स्वच्छ पानी या भोजन। वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई इसी सवाल का उत्तर देने का एक वैज्ञानिक माध्यम है। यह एक ऐसा मानक पैमाना है, जिसके ज़रिए हवा में मौजूद प्रदूषकों की मात्रा को समझा जाता है। एक्यूआई का दायरा 0 से 500 तक होता है - जहाँ 0-50 को ‘अच्छा’, 51-100 को ‘मध्यम’, और 300 से ऊपर को ‘खतरनाक’ माना जाता है। यह सूचकांक कई हानिकारक तत्वों के स्तर को एक जगह जोड़कर प्रस्तुत करता है - जैसे पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) (पीएम2.5 (PM2.5) और पीएम10 (PM10)), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और ओज़ोन (O₃)। ये सूक्ष्म कण और गैसें, अक्सर अदृश्य रहते हुए भी हमारे शरीर के भीतर गहराई तक प्रवेश करती हैं। इनका असर केवल फेफड़ों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि त्वचा, आँखों, हृदय और दिमाग तक फैलता है।
एक्यूआई की सबसे खास बात यह है कि यह वैज्ञानिक डेटा को आम जनता के लिए समझने योग्य रूप में प्रस्तुत करता है। इसके रंग कोड - हरा, पीला, नारंगी, लाल, बैंगनी और कथिया लाल - एक नज़र में बता देते हैं कि बाहर की हवा कितनी सुरक्षित है। यह प्रणाली न केवल सरकारों को प्रदूषण नियंत्रण की योजना बनाने में मदद करती है, बल्कि नागरिकों को भी अपनी दिनचर्या तय करने, मास्क पहनने या घर के भीतर रहने जैसे निर्णय लेने में सक्षम बनाती है।

बढ़ते वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव
प्रदूषण का असर धीरे-धीरे, लेकिन गहराई से हमारे शरीर में जड़ें जमाता है। हवा में मौजूद पीएम2.5 और पीएम10 जैसे सूक्ष्म कण इतने छोटे होते हैं कि वे सीधे फेफड़ों तक पहुँचकर रक्त प्रवाह में शामिल हो सकते हैं। यही कारण है कि बढ़ते एक्यूआई स्तर का असर तुरंत महसूस होता है - खांसी, सांस फूलना, आंखों में जलन, गले में खराश और थकान इसका शुरुआती संकेत हैं। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से फेफड़ों की क्षमता घट जाती है, जिससे शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन (oxygen) नहीं मिल पाती। इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस (bronchitis) और सीओपीडी (COPD - Chronic Obstructive Pulmonary Disease) जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है। प्रदूषकों के कारण शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, और व्यक्ति बार-बार सर्दी, फ़्लू या निमोनिया से ग्रसित हो सकता है। हाल के अध्ययनों ने साबित किया है कि वायु प्रदूषण का संबंध केवल फेफड़ों की बीमारी से नहीं, बल्कि दिल के दौरे, स्ट्रोक (stroke), उच्च रक्तचाप और कैंसर तक से है। बच्चों में यह उनके फेफड़ों के विकास को रोक सकता है, जबकि गर्भवती महिलाओं में यह भ्रूण के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। बुज़ुर्गों के लिए तो यह और भी खतरनाक है, क्योंकि उनका श्वसन तंत्र पहले से कमजोर होता है। इसीलिए, साफ हवा अब केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है।

भारत में वायु गुणवत्ता निगरानी की व्यवस्था
भारत में वायु प्रदूषण की चुनौती विशाल है - लेकिन इसके समाधान के लिए एक संगठित वैज्ञानिक ढांचा भी मौजूद है। देशभर में वायु गुणवत्ता की निगरानी का कार्य केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) करता है, जो हर शहर और औद्योगिक क्षेत्र से प्राप्त डेटा को संकलित कर विश्लेषण करता है। इसके साथ, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) जैसे संस्थान क्षेत्रीय स्तर पर निगरानी करते हैं। देश में वर्तमान में दो प्रकार के निगरानी स्टेशन हैं - मैनुअल निगरानी स्टेशन (Manual Monitoring Station), जो नियमित अंतराल पर नमूने एकत्र कर प्रयोगशाला में विश्लेषण करते हैं; और सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (CAAQMS), जो सेंसर और आईओटी आधारित तकनीक से वास्तविक समय में डेटा भेजते हैं। इन स्टेशनों से मिलने वाले डेटा को ऑनलाइन पोर्टलों (online portals) और मोबाइल एप्लिकेशनों (mobile applications) के ज़रिए जनता के साथ साझा किया जाता है। इससे नागरिक यह जान पाते हैं कि उनके क्षेत्र की हवा किस स्तर पर है। इस पारदर्शिता ने न केवल सरकारी नीति निर्माण को मजबूती दी है, बल्कि जन-जागरूकता और नागरिक सहभागिता को भी बढ़ाया है। भारत का यह डेटा नेटवर्क अब धीरे-धीरे “स्मार्ट एयर सिटी मॉनिटरिंग” (Smart Air City Monitoring) की दिशा में विकसित हो रहा है।

इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT): वायु गुणवत्ता सुधार में नई दिशा
वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में अब तकनीक सबसे बड़ा हथियार बन चुकी है - और इस परिवर्तन के केंद्र में है “इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी)”। यह तकनीक विभिन्न सेंसर, नेटवर्क और क्लाउड सिस्टम (cloud system) को जोड़कर हवा के हर बदलाव को “महसूस” करने में सक्षम बनाती है। छोटे-छोटे आईओटी डिवाइस अब सड़क किनारे, पार्कों, दफ़्तरों और घरों में स्थापित किए जा रहे हैं, जो लगातार हवा में मौजूद प्रदूषकों को मापते हैं। इन सेंसरों से मिलने वाला डेटा वास्तविक समय में क्लाउड सर्वर पर पहुँचता है, जहाँ उसका विश्लेषण कर रिपोर्ट तैयार की जाती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में पीएम2.5 का स्तर अचानक बढ़ जाए, तो यह सिस्टम तुरंत चेतावनी भेज सकता है। शहर योजनाकार इस डेटा के आधार पर वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक धुआं और धूल नियंत्रण के लिए रणनीति बना सकते हैं। आईओटी तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह केवल माप नहीं करती, बल्कि एक सक्रिय निगरानी तंत्र बनाती है, जो लोगों और सरकार के बीच पारदर्शिता लाता है। इससे नागरिक भी अब डेटा देखकर खुद निर्णय ले सकते हैं - जैसे कब बाहर जाना सुरक्षित है या किन क्षेत्रों में मास्क पहनना आवश्यक है। यह तकनीक वाकई वायु गुणवत्ता प्रबंधन में एक स्मार्ट और मानवीय दृष्टिकोण की शुरुआत है।

IoT आधारित वायु गुणवत्ता समाधान: लाभ और उपयोग
आईओटी आधारित समाधानों ने वायु निगरानी के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। पहले जहाँ वायु गुणवत्ता मापन केवल कुछ सीमित सरकारी स्टेशनों तक सीमित था, अब यह तकनीक पूरे शहर को एक “स्मार्ट नेटवर्क” में बदल सकती है। इसके सबसे प्रमुख लाभों में से एक है कम लागत में व्यापक कवरेज।
आईओटी सेंसर पारंपरिक स्टेशनों की तुलना में छोटे, पोर्टेबल (portable) और सस्ते होते हैं - जिससे इन्हें बड़ी संख्या में विभिन्न स्थानों पर लगाया जा सकता है। इससे “प्रदूषण हॉटस्पॉट्स” (Pollution Hotspots) की पहचान करना आसान हो जाता है, यानी वे इलाके जहाँ प्रदूषण स्तर औसत से बहुत ज़्यादा होता है। इस जानकारी के आधार पर, स्थानीय प्रशासन लक्षित कदम उठा सकता है। इसके अलावा, आईओटी से प्राप्त डेटा नीति निर्माण, ट्रैफिक प्रबंधन, औद्योगिक नियंत्रण, और हरित विकास की योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कई शहर अब इस तकनीक को अपने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स (Smart City Projects) में शामिल कर चुके हैं। सबसे अहम बात यह है कि इस तकनीक ने नागरिकों को भी “डेटा-सक्षम” बनाया है - अब वे खुद यह देख सकते हैं कि उनका क्षेत्र कितना प्रदूषित है। यह पारदर्शिता समाज में विश्वास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी दोनों को बढ़ाती है।

घरेलू स्तर पर वायु गुणवत्ता की निगरानी के IoT उपकरण
हममें से अधिकांश लोग यह सोचते हैं कि प्रदूषण केवल बाहर की हवा में है, जबकि सच्चाई यह है कि घर और दफ़्तर के अंदर की हवा भी कई गुना प्रदूषित हो सकती है। रसोई का धुआं, मोमबत्ती, धूल, पालतू जानवर, या एयर कंडीशनर (Air Conditioner) के फिल्टर - ये सभी इनडोर प्रदूषण के स्रोत हैं। अब आईओटी आधारित वायु गुणवत्ता मॉनिटर इस समस्या का आधुनिक समाधान बन चुके हैं। ये छोटे-छोटे उपकरण लगातार कमरे की हवा में मौजूद गैसों और कणों का मापन करते रहते हैं और मोबाइल एप्लिकेशन पर रीयल-टाइम डेटा दिखाते हैं। अगर किसी प्रदूषक का स्तर खतरनाक सीमा तक पहुँचता है, तो ये तुरंत अलर्ट भेजते हैं। वर्तमान में दो प्रमुख प्रकार के उपकरण उपयोग में हैं - रियल-टाइम मॉनिटरिंग डिवाइस, जो हर सेकंड डेटा देते हैं; और इंटीग्रेटेड सैंपलिंग सिस्टम (Integrated Sampling System), जो दिनभर के औसत प्रदूषण स्तर का विश्लेषण करते हैं। इन उपकरणों के ज़रिए व्यक्ति यह तय कर सकता है कि कब खिड़कियाँ खोलनी हैं, कब एयर प्यूरीफ़ायर (Air Purifier) चलाना है या कौन-सा वेंटिलेशन सिस्टम (Ventilation System) अपनाना है। यानी आईओटी ने हमें अपने घर की हवा पर भी नियंत्रण का अधिकार दिया है - जो एक स्वस्थ और जागरूक जीवनशैली की ओर निर्णायक कदम है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/jbzdeb53 
https://tinyurl.com/3ap6kmp7 
https://tinyurl.com/2n86ea9n 
https://tinyurl.com/ymz86v6y 



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