पशुओं के चारे की समस्या को सुलझाने में कीट किस प्रकार हो सकते हैं सहायक

तितलियाँ और कीट
20-01-2023 11:37 AM
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 पशुओं के चारे की समस्या को सुलझाने में कीट किस प्रकार हो सकते हैं सहायक

एक या अधिक पशुओं  के समूह को, जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि सामग्रियां प्राप्त करने के लिए पालतू बनाया जाता है, पशुधन के नाम से जाने जाते हैं। आपको बता दें कि उत्तर भारतीय राज्यों के किसानों को गेहूं उत्पादन के अभाव के कारण सूखे चारे की कमी का सामना करना पड़ रहा है। गेहूं की उपज में कमी के कारण कई उत्तरी राज्यों में पशुओं के चारे को लेकर संकट पैदा हो गया है, जो एक चिंतनीय विषय है। इस संकट से हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड जैसे कई उत्तरी राज्य ग्रसित है ।
परिणाम स्वरूप इन राज्यों ने अन्य राज्यों में पुआल (गेहूं या धान आदि के सूखे डंठल जिन में से दाने निकाल लिए गए हो) भेजने पर पूर्ण रूप से या अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा दिया है। दुनिया की कुल कृषि में पशुधन का 70 से 80% हिस्सा है और फिर भी पशुधन द्वारा मनुष्यों द्वारा खपत की जाने वाली कैलोरी और प्रोटीन का क्रमशः केवल 18% और 25% ही उत्पन्न किया जाता है । पशुओं के लिए भोजन उगाने के लिए दुनिया की 33% फसल भूमि का उपयोग किया जाता है, फिर भी पशुओं के लिए चारे का संकट सदैव बना रहता है।  इस समस्या के समाधान के लिए, पशुओं के चारे के रूप में, कीटों को चारे के मौजूदा स्रोतों, जिनमें ज्यादातर मछली और सोयाबीन शामिल हैं, का पूरक बनाया जा सकता है । पशुधन चारे के रूप में कीटों का उपयोग भोजन की स्थिरता में सुधार कर सकता है क्योंकि कीट कम मूल्य वाले जैविक कचरे (जैसे, फल, सब्जियां और यहां तक ​​कि खाद) को उच्च गुणवत्ता वाले चारे में बदल सकते हैं।
मवेशियों की आबादी को बनाए रखने में कीटों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा (Black Soldier Fly larvae ), जिसे हर्मेशिया इल्यूसेंस (Hermetia illucens) भी कहा जाता है , एक ऐसा सबसे आम कीट है, जिसका उपयोग पशु आहार के लिए कीट आहार के रूप में किया जाता है। ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा (BSFL) के सूखे वजन में 50% तक क्रूड प्रोटीन (Crude Protein (CP) तक, 35% तक लिपिड (Lipids) होते हैं और इसमें एक अमीनो एसिड (Amino Acid) होता है जो मछली के भोजन के समान होता है। इन कीटों को पोल्ट्री (Poultry), सूअर, मछली और झींगा की कई प्रजातियों के लिए प्रोटीन के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में पहचाना और उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त इन कीटों द्वारा कृत्रिम वातावरण में भी कचरे को मूल्यवान प्रोटीन में कुशलता से परिवर्तित किया जा सकता है । जानवरों के चारे के रूप में इन कीटों का उपयोग करने से न केवल पोषण के मामले में बल्कि पशु स्वास्थ्य के मामले में भी अतिरिक्त लाभ होते हैं। कीटों की खेती, हालांकि अभी कम ज्ञात और कम चर्चित है, परंतु भारत और दुनिया भर में निरंतर एक फलता-फूलता उद्योग बन रहा है, जिसमें खपत और अन्य उपयोग-मामलों के लिए विभिन्न प्रकार के कीटों का प्रजनन, पालन और कटाई शामिल है।  कीटों की खेती का चलन युगों पहले से चला आ रहा है। प्राचीन यूनानियों और रोमियों द्वारा उस समय के अभिजात वर्ग के लिएएक स्वादिष्ट भोजन बनाने के लिए आटे और शराब से बनने वाले आहार पर बीटल लार्वा का इस्तेमाल किया गया था। तब से लेकर अब तक, सभ्यताओं और संस्कृतियों के पार, कीट खेती बहुत विकसित हुई है। वर्षों से हमारे द्वारा प्रचुर मात्रा में खेती किए जाने वाले कुछ कीटों में, रेशम के कीड़े, मधुमक्खियाँ, टिड्डे, घर की मक्खियाँ, ततैया, टिड्डियाँ, खाने के कीड़े, केंचुए, इत्यादि शामिल हैं । आज, संभवतः खेती द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले कीटों का सबसे प्रमुख उपयोग पशुओं के लिए भोजन और चारा पैदा करने के लिए किया जाता है । जबकि कीट पालन के एक अन्य प्रमुख अनुप्रयोग में मानव उपभोग के लिए खाद्य कीटों जैसे झींगुर आदि का पालन शामिल है ।
हालांकि, पोषण के दृष्टिकोण से कीट, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक बड़ा स्रोत हैं, फिर भी आज की तारीख में, शायद ही कभी मानव उपभोग के लिए इनका उपयोग किया जाता है । मोटे तौर पर, हमारे देश में समग्र जनमत कीटों को खाने की अवधारणा के खिलाफ है। हालांकि, भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में, कीटाहारिता (Entomophagy), जो कीड़ों को खाने की प्रथा को संदर्भित करता है, क्षेत्र के स्थानीय-आदिवासी समुदायों द्वारा बड़े पैमाने पर कई वर्षों से अभ्यास किया गया है और साथ ही यह उनकी आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।  जबकि भारत के कई अन्य राज्यों में, अंत-उपभोक्ताओं की अस्वीकृति खाद्य कीटों से बने आहार को अपनाने की दिशा में एक प्रमुख बाधा के रूप में बनी हुई है, अक्सर यह घृणा की भावना के साथ-साथ कई बार अनिश्चित, आदिम जीवन शैली से जुड़ा हुआ माना जाता है। भारत में कीट पालन से जुड़े अन्य प्रमुख मुद्दों में पशुओं को कीट खिलाने से जुड़ी अन्य चिंताएं भी शामिल हैं, जैसे कि पशुओं में संभावित एलर्जी प्रतिक्रियाएं और संक्रामक रोगों के प्रति भेद्यता। इसी समय, भारत में कीट पालन से जुड़े नियामक कानून पूरी तरह से पूर्ण और अच्छी तरह से परिभाषित नहीं हैं,  इसको बढ़ावा देने के विपरीत यह कीट कृषि क्षेत्र में कई स्टार्टअप/कंपनियों को उत्पादन (कीट-आधारित उत्पादों के) को औद्योगिक स्तर तक बढ़ाने और साथ ही वैश्विक बाजारों तक पहुंच स्थापित करने से रोक रहे है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3w9KiI3
https://bit.ly/3w9KmaL
https://bit.ly/3QM0ski

चित्र संदर्भ

1. घास पर बैठे गुबरैले को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
2. घास पर बैठे हर्मेशिया इल्यूसेंस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. उद्यान सैनिक मक्खी कीड़ा फार्म में अंडे जमा कर रही है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कीट पालन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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