रामपुर से समंदर तक: नीली अर्थव्यवस्था से भारत का सतत और समृद्ध भविष्य

समुद्री संसाधन
09-09-2025 09:14 AM
रामपुर से समंदर तक: नीली अर्थव्यवस्था से भारत का सतत और समृद्ध भविष्य

समुद्र सिर्फ जल का असीम विस्तार नहीं, बल्कि जीवन, रोज़गार और संसाधनों का भंडार है। भारत जैसे देश, जिसकी तटरेखा 7,500 किलोमीटर से अधिक फैली है, के लिए नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) एक नई आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रही है। यह केवल मछली पकड़ने या जहाज चलाने तक सीमित नहीं, बल्कि ऊर्जा, खनिज, परिवहन, पर्यटन और पर्यावरणीय संतुलन के अनगिनत अवसर खोलती है। आने वाले वर्षों में, यह क्षेत्र भारत की जीडीपी (GDP) में बड़ा योगदान देने और लाखों लोगों को रोज़गार देने की क्षमता रखता है।
इस लेख में हम नीली अर्थव्यवस्था की परिभाषा और उसकी अवधारणा को विस्तार से समझेंगे, फिर देखेंगे कि वैश्विक स्तर पर इसका कितना महत्व है और यह दुनिया की अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि भारत की नीली अर्थव्यवस्था का आकार, उसकी विशेषताएँ और प्रमुख आँकड़े क्या हैं। आगे, हम इसके प्रमुख घटकों - मछली पालन, समुद्री परिवहन, नवीकरणीय ऊर्जा और समुद्री खनिज पर चर्चा करेंगे। फिर, हम जानेंगे कि यह भारत में खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा स्थिरता और पारिस्थितिक संतुलन में कैसे योगदान देती है। अंत में, हम भारत सरकार की उन प्रमुख योजनाओं और पहलों पर नज़र डालेंगे जो नीली अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में सहायक हैं।

नीली अर्थव्यवस्था की परिभाषा और अवधारणा
"ब्लू इकोनॉमी" यानी नीली अर्थव्यवस्था का विचार पहली बार औपचारिक रूप से 2010 में गंटर पाउली (Gunter Pauli) ने प्रस्तुत किया था। उन्होंने समुद्र को केवल जल का विशाल भंडार नहीं, बल्कि सतत आर्थिक विकास का एक जीवंत और असीमित स्रोत के रूप में देखा। विश्व बैंक के अनुसार, नीली अर्थव्यवस्था में वे सभी आर्थिक गतिविधियाँ आती हैं जो सीधे-सीधे समुद्र, तटीय क्षेत्रों और समुद्री संसाधनों से जुड़ी होती हैं, लेकिन साथ ही उनका लक्ष्य पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखते हुए आर्थिक लाभ अर्जित करना भी होता है। इसमें मछली पालन, शिपिंग (shipping), समुद्री पर्यटन, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन, समुद्री खनिजों का दोहन और समुद्री जैव विविधता से जुड़े उद्योग शामिल हैं। यह अवधारणा इस सोच पर आधारित है कि हम समुद्र की संपदा का दोहन तो करें, लेकिन इस तरह से कि उसकी प्राकृतिक क्षमता और संतुलन पर नकारात्मक असर न पड़े।

वैश्विक स्तर पर नीली अर्थव्यवस्था का महत्व
दुनिया की अर्थव्यवस्था में नीली अर्थव्यवस्था की हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। इसका वार्षिक मूल्य $1.5 ट्रिलियन (trillion) से अधिक आँका गया है और यह सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से 350 मिलियन (million) से अधिक लोगों को रोजगार देती है। समुद्री संसाधन प्रोटीन (protein) का भी एक अहम स्रोत हैं, खासकर उन विकासशील देशों में जहां भू-आधारित कृषि सीमित है और मछली, झींगा, केकड़े जैसे समुद्री उत्पादों पर खाद्य सुरक्षा निर्भर करती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2030 तक वैश्विक ब्लू इकोनॉमी का आकार लगभग दोगुना होकर $3 ट्रिलियन तक पहुँच सकता है। यह वृद्धि केवल एक आर्थिक संकेतक नहीं है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि समुद्री संसाधनों का बहुआयामी उपयोग - ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, जैव प्रौद्योगिकी और खाद्य उत्पादन दुनिया के भविष्य के लिए निर्णायक होगा।

भारत की नीली अर्थव्यवस्था का परिचय
भारत के लिए नीली अर्थव्यवस्था सिर्फ एक सेक्टर (sector) नहीं, बल्कि तटीय समुदायों की जीवनरेखा है। वर्तमान में इसका देश की जीडीपी में लगभग 4% योगदान है। कोविड-19 (Covid-19) महामारी के दौरान जब कई उद्योग ठप हो गए, तब भी मछली पालन और समुद्री व्यापार ने स्थिरता बनाए रखी। भारत की 7,517 किलोमीटर लंबी तटरेखा 12 प्रमुख और 200 से अधिक छोटे-बड़े बंदरगाहों से सुसज्जित है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अहम केंद्र हैं। मछली उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है और लाखों लोग सीधे-सीधे इस क्षेत्र से अपनी आजीविका कमाते हैं। केवल यही नहीं, समुद्री परिवहन और शिपिंग ने भारत को वैश्विक व्यापार नेटवर्क (global trade network) से गहराई से जोड़ा है, जिससे निर्यात और विदेशी मुद्रा अर्जन में भारी बढ़ोतरी हुई है।

नीली अर्थव्यवस्था के प्रमुख घटक
भारत की नीली अर्थव्यवस्था कई मज़बूत स्तंभों पर टिकी है। पहला, मछली पकड़ना और जलीय कृषि, जो देश में प्रोटीन की आपूर्ति और निर्यात दोनों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करती है। दूसरा, समुद्री परिवहन और जहाज निर्माण, भारत न केवल अपने व्यापारिक माल के लिए समुद्री मार्गों का उपयोग करता है, बल्कि जहाज निर्माण में भी संभावनाओं से भरा है। तीसरा, नवीकरणीय ऊर्जा - पवन, ज्वार और लहरों से बिजली उत्पादन में भारत के पास अपार अवसर हैं, जो भविष्य में ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। चौथा, समुद्री खनिज और आनुवंशिक संसाधन, जिनमें पॉलीमेटैलिक नोड्यूल्स (Polymetallic Nodules) जैसे बहुमूल्य खनिज शामिल हैं, जो उच्च-तकनीकी उद्योगों के लिए अनिवार्य हैं। इन सभी घटकों का सही और संतुलित उपयोग भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति बना सकता है।

भारत में नीली अर्थव्यवस्था का महत्व
नीली अर्थव्यवस्था भारत के लिए सिर्फ आर्थिक वृद्धि का साधन नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संपत्ति है। यह तटीय इलाकों में रोज़गार, आय और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ, जैसे ऑफशोर विंड टरबाइन (Offshore Wind Turbine) और ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती हैं और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाती हैं। इसके अलावा, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण जलवायु परिवर्तन के बढ़ते ख़तरों से निपटने में अहम भूमिका निभाता है। गहरे समुद्र में मिलने वाले खनिज संसाधन भारत की औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं, जिससे देश का विनिर्माण क्षेत्र और भी प्रतिस्पर्धी बन सकता है।

भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाली प्रमुख पहलें
भारत सरकार ने ब्लू इकोनॉमी को सशक्त बनाने के लिए कई महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ शुरू की हैं। सागरमाला परियोजना के तहत बंदरगाहों का आधुनिकीकरण, लॉजिस्टिक्स (logistics) सुधार और उनसे जुड़े उद्योगों का विकास किया जा रहा है। ओ-स्मार्ट योजना (O-SMART) महासागर विज्ञान अनुसंधान और समुद्री तकनीकी विकास को बढ़ावा देती है, जिससे न केवल नए संसाधनों की खोज होती है बल्कि समुद्री आपदाओं की भविष्यवाणी और प्रबंधन भी संभव होता है। समेकित तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM) का उद्देश्य तटीय पर्यावरण का संरक्षण और स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार है। तटीय आर्थिक क्षेत्र (CEZ) समुद्र आधारित औद्योगिक हब (Industrial Hub) के रूप में विकसित हो रहे हैं, जो निवेश और रोजगार दोनों में वृद्धि करेंगे। वहीं, राष्ट्रीय मत्स्य नीति (National Fisheries Policy) सतत और जिम्मेदार मछली पकड़ने को बढ़ावा देती है, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए समुद्री संसाधनों का भंडार सुरक्षित रह सके।

संदर्भ-

https://short-link.me/16GjY 

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