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रामपुरवासियो, जब भी भारत के संविधान की बात होती है, तो हमारे मन में गर्व और सम्मान की एक लहर उठती है। यह वही संविधान है, जिसने हमें लोकतंत्र, समानता और स्वतंत्रता का अमूल्य अधिकार दिया। हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस (National Constitution Day) के रूप में मनाया जाता है - वह दिन जब इस महान दस्तावेज़ को अंगीकार किया गया था। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस संविधान की पहली सुंदर हस्तलिखित प्रति को अपने हाथों से लिखने वाले कलाकार का गहरा संबंध हमारे ही ऐतिहासिक नगर रामपुर से था? उनका नाम था प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा - जिनकी अद्भुत सुलेख कला ने भारत के संविधान को सिर्फ़ एक कानूनी ग्रंथ नहीं, बल्कि एक अमर कलात्मक धरोहर बना दिया। यह वही संविधान है, जिसने हमारे देश को एकता, समानता और न्याय का आधार दिया। उनकी सुलेख कला ने भारतीय संविधान को केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक अमर कलाकृति का रूप दे दिया। आज यह जानना आवश्यक है कि उस महान कलाकार की यात्रा कैसी थी, जिसने अपने शब्दों में भारत की आत्मा को उकेरा।
इस लेख में हम जानेंगे उस अद्भुत कहानी को, जहाँ रामपुर के एक साधारण युवक प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा ने अपनी सुलेख कला से भारत के संविधान को जीवंत दस्तावेज़ बना दिया। हम देखेंगे - कैसे उनकी प्रतिभा दिल्ली तक पहुँची, उन्होंने संविधान की रचना में अपनी कलम से इतिहास रचा, और हर पन्ने पर अपने नाम के साथ अमर हो गए। साथ ही, हम संविधान की कलात्मक सुंदरता, उसकी सुरक्षा व्यवस्था, और उस धरोहर को भी समझेंगे जो आज भी भारत की पहचान और रामपुर की शान के रूप में चमक रही है।
रामपुर से दिल्ली तक: प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा की प्रेरक यात्रा
रामपुर की सांस्कृतिक भूमि हमेशा से ही कला, संगीत और लेखन की संवेदनशील परंपराओं के लिए जानी जाती रही है। इसी परंपरा की विरासत लेकर प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा का परिवार दिल्ली पहुँचा था। 16 दिसंबर 1901 को जन्मे प्रेम बिहारी, दरअसल सुलेखक परिवार से थे। उनके दादा राम प्रसाद सक्सेना एक विद्वान और फारसी व अंग्रेज़ी के ज्ञाता थे, जिन्होंने अंग्रेज़ अधिकारियों को फारसी सिखाई थी। यही वातावरण प्रेम बिहारी के लिए प्रेरणास्रोत बना। उन्होंने बचपन से ही कलम की धार और अक्षरों की लय को साधा। सेंट स्टीफंस कॉलेज (Saint Stephens College) से स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने दादा से सीखी कला को अभ्यास और निखार में बदला। धीरे-धीरे उनकी सुंदर लिखावट की ख्याति दिल्ली से बाहर तक फैलने लगी - और यहीं से उनके जीवन का सबसे ऐतिहासिक अध्याय आरंभ हुआ।

संविधान की रचना: जब लिखावट बनी इतिहास की स्याही
वर्ष 1946 में संविधान सभा की पहली बैठक हुई, और अगले तीन वर्षों में देश के भविष्य की रूपरेखा तैयार की गई। जब संविधान का अंतिम रूप तैयार हुआ, तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने यह निर्णय लिया कि इसकी पहली प्रति छपाई के बजाय हस्तलिखित रूप में तैयार की जाए। इस कार्य के लिए उन्होंने प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा को आमंत्रित किया। यह कार्य केवल लेखन नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय उत्तरदायित्व था। प्रेम बिहारी ने छह महीनों तक लगातार कार्य करते हुए 251 चर्मपत्र पन्नों पर संविधान को उकेरा। 432 पेन होल्डरों और 303 नंबर की निबों के साथ उन्होंने ऐसा दस्तावेज़ तैयार किया, जिसमें न स्याही की धब्बा था, न कोई त्रुटि। यह वही पांडुलिपि थी जिस पर 24 जनवरी 1950 को 284 सदस्यों के हस्ताक्षर हुए - और 26 जनवरी को यह संविधान लागू हुआ।
सुलेख और सौंदर्य: भारतीय संविधान का कलात्मक रूप
भारतीय संविधान का सौंदर्य केवल उसके शब्दों में नहीं, बल्कि उसकी रचना में भी झलकता है। प्रेम बिहारी की इटैलिक (italic) लेखन शैली में हर अक्षर अपनी लय में बहता हुआ प्रतीत होता है - “B” और “R” के घुमावदार आकार, “U” की कोमल वक्रता, उद्धरण चिह्नों की कुंडलित सुंदरता। संविधान के प्रत्येक पृष्ठ को नंदलाल बोस और शांतिनिकेतन के उनके विद्यार्थियों ने सजाया। उन्होंने भारत के इतिहास की झलकियाँ दीं - रामायण, महाभारत, बुद्ध का जीवन, सम्राट अशोक, अकबर और भारतीय सभ्यता के प्रतीक चित्र। इस तरह संविधान न केवल एक शासन दस्तावेज़ बना, बल्कि भारतीय कला और परंपरा की आत्मा का प्रतिबिंब भी बन गया।
प्रेम बिहारी की शर्त: नाम से जुड़ी अमर पहचान
जब नेहरू जी ने प्रेम बिहारी से उनके शुल्क के बारे में पूछा, तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा - “मैं एक पैसा भी नहीं लूंगा। भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है।” लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी - कि हर पन्ने पर वे अपना नाम लिखेंगे और अंतिम पृष्ठ पर अपने तथा अपने दादाजी का नाम अंकित करेंगे। यह मात्र हस्ताक्षर नहीं थे, बल्कि एक कलाकार के आत्मसम्मान और श्रम के प्रति श्रद्धांजलि थे। आज संविधान के हर पन्ने के नीचे लिखा ‘प्रेम’ शब्द उस महान सुलेखक की उपस्थिति को अमर बनाता है। यह दर्शाता है कि जब कोई व्यक्ति अपने कार्य में समर्पित होता है, तो उसका नाम इतिहास में स्थायी हो जाता है।

संविधान की सुरक्षा और उसकी अनमोल विरासत
आज भी भारतीय संविधान की मूल हस्तलिखित प्रति संसद भवन के पुस्तकालय में सुरक्षित रखी गई है। इसे विशेष हीलियम (helium) और नाइट्रोजन गैस (nitrogen gas) से भरे पारदर्शी डिब्बों में 20°C तापमान और 30% आर्द्रता में रखा गया है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि स्याही और चर्मपत्र आने वाले सदियों तक सुरक्षित रहें। यह दस्तावेज़ न केवल कानूनी शक्ति का प्रतीक है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की जीवंत आत्मा भी है। यही कारण है कि इसे आज भी “दुनिया का सबसे लंबा और कलात्मक संविधान” कहा जाता है - एक ऐसा संविधान जो शब्दों से नहीं, भावनाओं से लिखा गया है।

रामपुर का गर्व: एक कलाकार की राष्ट्रीय पहचान
रामपुर की धरती ने भारत को अनेक कलाकार दिए हैं, लेकिन प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा का योगदान सबसे अद्वितीय है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची कला केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि राष्ट्र सेवा भी है। उनका नाम आज भी हर गणतंत्र दिवस पर संविधान के साथ याद किया जाता है। यह गौरव न केवल दिल्ली या भारत का है, बल्कि रामपुर का भी है - वह भूमि जिसने एक ऐसे व्यक्ति को जन्म दिया, जिसने अपने अक्षरों में भारत की आत्मा को स्थायी रूप दिया। रायज़ादा का जीवन आज भी नई पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि कला, जब राष्ट्र के प्रति समर्पित होती है, तो वह अमर हो जाती है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/ejae7p78
https://tinyurl.com/5bhdu66d
https://tinyurl.com/3jzyue7c
https://tinyurl.com/v9rrhdbj
https://tinyurl.com/3je72tn9
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