जिम कॉर्बेट से दुधवा और पीलीभीत तक: रामपुर के जंगलों में बसा वन्यजीवों का स्वर्ग

वन
04-12-2025 09:28 AM
जिम कॉर्बेट से दुधवा और पीलीभीत तक: रामपुर के जंगलों में बसा वन्यजीवों का स्वर्ग

रामपुरवासियों, क्या आपने कभी सुबह की उस ताज़ी हवा को महसूस किया है जो पास के जंगलों से होकर आती है - जिसमें पेड़ों की सुगंध और पक्षियों की चहचहाहट बसी होती है? यही प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता हमारे जीवन का असली आधार है। लेकिन आज यह सुंदरता धीरे-धीरे खतरे में है। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और अंधाधुंध पेड़ कटाई के कारण रामपुर के आसपास के जंगल और उनमें बसने वाले जीव असुरक्षित होते जा रहे हैं। जब कोई बाघ या हिरण अपने घर से बेघर होता है, तो वह केवल एक जानवर नहीं खोता - बल्कि हमारी प्रकृति का एक अहम हिस्सा टूट जाता है। इसलिए, वन्यजीव संरक्षण केवल जंगलों की रक्षा नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन का संतुलन बनाए रखने की कोशिश है।
आज हम इस लेख में समझेंगे कि वन्यजीव संरक्षण की आवश्यकता क्यों है और यह हमारी धरती के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इसके बाद, हम विस्तार से जानेंगे कि राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिज़र्व में क्या अंतर होता है। फिर, हम रामपुर के पास स्थित जिम कॉर्बेट (Jim Corbett) राष्ट्रीय उद्यान, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व के बारे में पढ़ेंगे - जो इस क्षेत्र की प्राकृतिक धरोहर हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि रामपुर के आसपास के अभयारण्यों की विशेषता क्या है और हम अपनी भूमिका से वन्यजीव संरक्षण में कैसे योगदान दे सकते हैं। इस तरह यह लेख आपको प्रकृति, वन्यजीवों और मानव जीवन के बीच के गहरे संबंध को समझने में मदद करेगा।

वन्यजीव संरक्षण की ज़रूरत क्यों है?
रामपुर और उसके आस-पास के इलाके कभी हरे-भरे वनों और विविध प्रजातियों से भरे रहते थे। लेकिन आज बढ़ती आबादी, शहरीकरण, और जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण इन जीवों का अस्तित्व खतरे में है। जब पेड़ काटे जाते हैं, तो सिर्फ लकड़ी नहीं खोती जाती - बल्कि एक-एक पेड़ के साथ हजारों जीवों का घर भी उजड़ जाता है। वन्यजीव केवल जंगलों की शोभा नहीं हैं; ये हमारी पृथ्वी की पारिस्थितिक श्रृंखला की अहम कड़ी हैं। एक भी प्रजाति के विलुप्त होने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है - जैसे मधुमक्खियों के घटने से परागण प्रभावित होता है, और इससे खेती तक को नुकसान होता है। इसलिए, वन्यजीवों का संरक्षण केवल “सरकारी नीति” नहीं, बल्कि हमारी धरती के भविष्य की सुरक्षा है।

राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य और टाइगर रिज़र्व में क्या अंतर है?
भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग प्रकार के संरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य एक ही है - प्रकृति को संरक्षित रखना, पर इनके नियम अलग हैं।

  • राष्ट्रीय उद्यान (National Park) वे क्षेत्र होते हैं जहाँ प्राकृतिक पर्यावरण को पूर्ण संरक्षण दिया जाता है। यहाँ किसी भी तरह की मानवीय गतिविधि - चाहे वह खेती हो, चराई हो या शिकार - पूरी तरह प्रतिबंधित होती है। उदाहरण के लिए, जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान है, जहाँ प्रकृति अपने सबसे शुद्ध रूप में विद्यमान है।
  • वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) थोड़ा लचीला होता है - यहाँ वन्यजीवों की रक्षा तो होती है, परंतु स्थानीय समुदायों को सीमित रूप से संसाधनों के उपयोग की अनुमति रहती है। जैसे चराई या औषधीय पौधों का संग्रह।
  • टाइगर रिज़र्व (Tiger Reserve) विशेष रूप से बाघों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं। ये “प्रोजेक्ट टाइगर” (Project Tiger) के अंतर्गत आते हैं, और भारत के गौरव का प्रतीक हैं क्योंकि यहाँ दुनिया के कुल बाघों की लगभग 70% आबादी रहती है। ये तीनों संस्थाएँ मिलकर हमारे वन्यजीवों की रक्षा के स्तंभ हैं।
Jim Corbett with leopard.

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान – रामपुर के पास स्थित वन्यजीवों का स्वर्ग
रामपुर से मात्र कुछ घंटों की दूरी पर स्थित जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क उत्तराखंड के नैनीताल और पौड़ी गढ़वाल जिलों में फैला है। यह भारत का सबसे पुराना और सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान है, जिसकी स्थापना 1936 में “हैली नेशनल पार्क” के रूप में हुई थी। बाद में इसका नाम बदलकर पर्यावरण प्रेमी जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा गया। यह पार्क 520 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जहाँ घने साल के जंगल, चमकती नदियाँ और हरियाली की बहार देखने लायक होती है। यहाँ बाघ, तेंदुआ, रीछ, हाथी, सांभर, चीतल, मगरमच्छ, और 350 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ निवास करती हैं। रामपुर के लोगों के लिए यह पार्क सिर्फ़ एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने और अपने बच्चों को जीव-जंतुओं के महत्व से परिचित कराने का एक माध्यम है। सुबह की कोहरा-भरी हवा में जब जंगल की सरसराहट और पक्षियों की चहचहाहट गूंजती है, तो यह अनुभव किसी आध्यात्मिक यात्रा से कम नहीं लगता।

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान - दलदली वनों में बसा जैव विविधता का खजाना
लखीमपुर खीरी जिले में फैला दुधवा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर प्रदेश का हृदय माना जाता है। यह पार्क लगभग 811 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और अपने दलदली वनों, ऊँचे घास के मैदानों और सैकड़ों दुर्लभ जीव-जंतुओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भारतीय एक-सींग वाला गैंडा, दलदली हिरण, स्लॉथ भालू (Sloth Bear), सांभर, घड़ियाल, और ऊदबिलाव जैसी कई दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सर्दियों के मौसम में जब सैकड़ों प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं - जैसे बंगाल फ्लोरिकन (Florican), फिशिंग ईगल (Fishing Eagle) और हॉर्नबिल (Hornbill) - तो पूरा पार्क मानो रंगों से भर जाता है। दुधवा केवल जैव विविधता का केंद्र नहीं, बल्कि यह हमें सिखाता है कि प्रकृति अपने संतुलन में कितनी सुंदर और पूर्ण होती है। इसके दलदली जंगल पानी को संरक्षित रखते हैं, जिससे गंगा-घाघरा के मैदानों में जलस्तर स्थिर रहता है - यानी दुधवा केवल जीवों का घर नहीं, बल्कि इंसानों के जीवन का रक्षक भी है।

पीलीभीत टाइगर रिज़र्व – बाघों का सुरक्षित घर
रामपुर से उत्तर दिशा में स्थित पीलीभीत टाइगर रिज़र्व भारत-नेपाल सीमा पर फैला एक अद्भुत प्राकृतिक क्षेत्र है। यह लगभग 800 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ साल के घने जंगल, बाढ़ से बने दलदली मैदान और गंगा की सहायक नदियाँ इस पारिस्थितिकी को समृद्ध बनाती हैं। यहाँ करीब 65 से अधिक बाघ, 5 प्रजातियों के हिरण, 450 पक्षियों की प्रजातियाँ और दुर्लभ जीव जैसे ब्लैकबक (Blackbuck), दलदल हिरण, तेंदुआ और बंगाल फ्लोरिकन पाए जाते हैं। 2018 में इसे “टीएक्स2 अवार्ड” (TX2 Award) से सम्मानित किया गया था - क्योंकि इसने अपने बाघों की संख्या को दोगुना करने का ऐतिहासिक लक्ष्य प्राप्त किया। पीलीभीत न केवल भारत की जैव विविधता का गढ़ है, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि जब मनुष्य और प्रकृति मिलकर काम करें, तो विलुप्तता को भी पलट सकते हैं।

पीलीभीत टाइगर रिजर्व में टाइगर एस3 (S3)

रामपुर के आसपास के अभ्यारण्य क्यों हैं खास?
रामपुर के आसपास स्थित कॉर्बेट, दुधवा और पीलीभीत अभ्यारण्य न केवल जैव विविधता के केंद्र हैं, बल्कि ये इस क्षेत्र की जलवायु, खेती, और अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करते हैं। इन जंगलों से निकलने वाली नदियाँ सिंचाई में मदद करती हैं, पेड़ कार्बन अवशोषित करके वायु को स्वच्छ बनाते हैं, और इको-टूरिज़्म से स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलता है। हर सप्ताहांत रामपुर के लोग इन उद्यानों का रुख करते हैं - कुछ रोमांच के लिए, कुछ शांति के लिए, और कुछ उस “हरी साँस” को महसूस करने के लिए, जो शहरों में अब दुर्लभ होती जा रही है। ये जंगल केवल जानवरों का घर नहीं, बल्कि हमारी साँसों के रक्षक हैं - और इसीलिए इनका संरक्षण पूरे क्षेत्र के लिए जीवनदायिनी आवश्यकता है।

वन्यजीवों की सुरक्षा में हमारी भूमिका
वन्यजीव संरक्षण केवल सरकारी योजनाओं से संभव नहीं। यह तभी सफल होगा जब हर नागरिक - चाहे वह छात्र हो, किसान हो या व्यापारी - अपनी जिम्मेदारी समझे। हमें प्लास्टिक का उपयोग कम करना होगा, अवैध शिकार और जंगलों में आग जैसी घटनाओं पर ध्यान देना होगा, और बच्चों को पर्यावरण शिक्षा देनी होगी। अगर हर परिवार साल में एक पेड़ लगाए और एक दिन पर्यावरण को समर्पित करे, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरी-भरी धरती छोड़ सकते हैं। याद रखिए - जब जंगल बचे रहेंगे, तभी रामपुर की नदियाँ गूंजेंगी, हवा में हरियाली की महक रहेगी, और हमारे बच्चों को भी पक्षियों की वही चहचहाहट सुनाई देगी, जो कभी हमारे बचपन का हिस्सा थी।

संदर्भ- 
http://tinyurl.com/45skpytc 
http://tinyurl.com/mrxt5eh5 
http://tinyurl.com/32yhwsut 
http://tinyurl.com/5fcamvp4 
https://tinyurl.com/4mu4mswv 



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