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रामपुरवासियों, बदलते समय के साथ भारत का परिवहन भी एक नए युग में प्रवेश कर चुका है - ऐसा युग जो न धुएँ से भरा है और न ही शोर से। आज जब पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, तब देश भर में लोग “इलेक्ट्रिक वाहनों” की ओर तेज़ी से रुख कर रहे हैं। यह सिर्फ़ एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि हमारी सोच, हमारी जीवनशैली और हमारे पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक बनता जा रहा है।
रामपुर जैसे शांत, सांस्कृतिक और बढ़ते शहर में भी लोग अब यह सोचने लगे हैं कि आने वाला भविष्य शायद चार्जिंग स्टेशनों और हरित ऊर्जा से जुड़ा होगा, न कि पेट्रोल पंपों से। इसलिए आज हम जानेंगे कि भारत में यह इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति कैसे आकार ले रही है और इसमें हमारे जैसे शहरों की क्या भूमिका हो सकती है। आज हम जानेंगे कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री इतनी तेज़ी से क्यों बढ़ रही है और इसका हमारे पर्यावरण पर क्या असर हो रहा है। साथ ही समझेंगे कि चार्जिंग स्टेशनों की कमी किस तरह एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। हम सरकार की ‘फेम 1’ (FAME-I) और ‘फेम 2’ (FAME-II) जैसी योजनाओं की भूमिका पर भी नज़र डालेंगे और अंत में यह जानेंगे कि क्या ईवी वास्तव में पर्यावरण के लिए बेहतर विकल्प हैं।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में अप्रत्याशित वृद्धि
वर्ष 2023 भारत के परिवहन इतिहास में एक नया अध्याय लेकर आया। केवल पहले तीन महीनों में ही देशभर में 2.78 लाख से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन बिके - यानी हर महीने औसतन 90,000 से ज़्यादा। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और कर्नाटक जैसे राज्यों ने इसमें उल्लेखनीय योगदान दिया है। यह आँकड़ा इस बात का प्रमाण है कि भारतीय उपभोक्ता अब पारंपरिक ईंधन से हटकर हरित ऊर्जा की ओर भरोसा दिखा रहे हैं। इस बदलाव के पीछे कई कारण हैं - लगातार बढ़ती ईंधन कीमतें, सरकारी प्रोत्साहन योजनाएँ, और पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता। अब आम परिवार यह समझने लगा है कि इलेक्ट्रिक वाहन केवल सस्ती सवारी नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक निवेश हैं जो खर्च और प्रदूषण दोनों को कम करते हैं।
चार्जिंग स्टेशनों की कमी – सबसे बड़ी चुनौती
जहाँ इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में तेजी आई है, वहीं सबसे बड़ी बाधा अब भी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की सीमित उपलब्धता है। भारत में वर्तमान में लगभग 2,700 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन और 5,500 चार्जिंग कनेक्टर हैं, जो मौजूदा ईवी संख्या के मुकाबले बेहद कम हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि 2030 तक देश को कम से कम 20 लाख चार्जिंग पॉइंट्स (charging points) की ज़रूरत होगी ताकि ईवी उपयोग को वास्तविक रूप से बढ़ावा मिल सके। रामपुर जैसे छोटे और उभरते शहरों में तो चार्जिंग स्टेशन की कमी और भी महसूस होती है। इससे लोग लंबी यात्राओं या रोज़मर्रा के उपयोग के लिए ईवी अपनाने में झिझकते हैं। हालांकि, सरकार और निजी कंपनियाँ मिलकर अब देशभर में चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार कर रही हैं - जिससे आने वाले कुछ वर्षों में यह समस्या काफी हद तक दूर हो सकेगी।

सरकार की पहल: ‘फेम 1’, ‘फेम 2’ और 2030 के ईवी लक्ष्य
भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कई ठोस योजनाएँ शुरू की हैं। 2015 में शुरू हुई ‘फेम 1’ योजना और 2019 की ‘फेम 2’ योजना का उद्देश्य है - ईवी खरीद पर उपभोक्ताओं को सब्सिडी देना, चार्जिंग नेटवर्क का विस्तार करना, और घरेलू ईवी निर्माण को प्रोत्साहन देना। ‘फेम 2’ योजना के तहत अब तक 10 लाख से अधिक दोपहिया, 55,000 चारपहिया और 5,000 बसों को प्रोत्साहन मिल चुका है। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 70% वाणिज्यिक वाहन, 30% निजी कारें और 80% दोपहिया व तिपहिया वाहन इलेक्ट्रिक हो जाएँ। यह लक्ष्य न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे भारत की तेल पर निर्भरता भी कम होगी, जिससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
क्या इलेक्ट्रिक वाहन वास्तव में पर्यावरण के लिए बेहतर हैं?
ईवी को अक्सर “शून्य उत्सर्जन वाहन” कहा जाता है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। इन्हें चार्ज करने के लिए प्रयुक्त बिजली का एक बड़ा हिस्सा अब भी कोयला-आधारित संयंत्रों से आता है। इसके बावजूद, जब कुल कार्बन उत्सर्जन देखा जाए, तो ईवी पेट्रोल या डीज़ल वाहनों की तुलना में लगभग 40-50% कम प्रदूषण करते हैं। सबसे बड़ा फायदा स्थानीय वायु गुणवत्ता में सुधार का है। ईवी सड़कों पर धुएँ और शोर को कम करते हैं, जिससे शहरों की हवा और स्वास्थ्य दोनों बेहतर होते हैं। यदि भारत आने वाले वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा से बिजली उत्पादन बढ़ाए, तो इलेक्ट्रिक वाहन वास्तव में पूरी तरह हरित समाधान बन सकते हैं।

हरित भविष्य की दिशा में भारत का अगला कदम
भारत अब एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ ईवी क्रांति को स्थायी बनाने के लिए केवल वाहन निर्माण नहीं, बल्कि संपूर्ण इकोसिस्टम (ecosystem) का विकास जरूरी है। इसमें सोलर चार्जिंग स्टेशन (Solar Charging Station), तेज़ चार्जिंग नेटवर्क, बैटरी रीसाइक्लिंग (Battery Recycling) और नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग शामिल है। कई स्टार्टअप्स अब बैटरियों के पुनर्चक्रण और रीयूज़ पर कार्य कर रहे हैं ताकि पर्यावरण पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। सरकार भी राष्ट्रीय राजमार्गों पर “ईवी कॉरिडोर” (EV Coridor) स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है ताकि लंबी दूरी की यात्रा और आसान बने। यह केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि भारत की सोच में पर्यावरणीय क्रांति का प्रतीक है। यदि यह रफ्तार बरकरार रही, तो आने वाले दशक में भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे स्वच्छ ईवी बाजार बन सकता है - और रामपुर जैसे शहर इसमें अपने स्तर पर हरित योगदान दे सकते हैं।
संदर्भ-
https://bit.ly/3G50yja
https://bit.ly/40TuNkV
https://bit.ly/40SavIt
https://tinyurl.com/bdh3ueuk
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