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हरिद्वार का क्लॉक टावर या घंटाघर आज शहर की एक पहचान बन गया है। इसे राजा बिरला टावर के नाम से भी जाना जाता है। इसे 1938 में प्रसिद्ध बिड़ला समूह के संस्थापक, राजा बलदेव दास बिड़ला द्वारा हरिद्वार (उत्तराखंड) में बनवाया था। इस टावर के चारों ओर घड़ियाँ लगी हैं। इन घड़ियों में घंटों के लिए रोमन अंकों का इस्तेमाल किया गया है, जबकि मिनट दिखाने के लिए छोटे बिंदु बने हैं। उस दौर में भारत में ऐसे कई घंटाघर बनाए गए थे, तब हर किसी के पास अपनी घड़ी नहीं होती थी।
यह जगह हर की पौड़ी पर होने वाली माँ गंगा की भव्य संध्या आरती देखने के लिए बहुत खास है। यहाँ से आरती का नज़ारा बड़ा मनमोहक लगता है। कुंभ मेले के समय इसके आसपास का क्षेत्र मीडिया के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बन जाता है। मिसाल के तौर पर, 2010 के कुंभ मेले में मुख्य स्नान वाले दिन करीब 300 मीडियाकर्मी यहीं पास बने मंच से कवरेज कर रहे थे।
फिर 2021 कुंभ मेले से पहले इस टावर को एक नया कलात्मक रूप दिया गया। कलाकार हर्षवर्धन कदम ने इसे लाल और सुनहरे रंगों से बने सुंदर भित्ति चित्रों से सजा दिया। ये चित्र हिन्दू पौराणिक कथाओं को दर्शाते हैं, जो वैमानिक शास्त्र के विचारों और लेखों पर आधारित हैं। यह सुंदर काम 'हरिद्वार म्यूरल प्रोजेक्ट' का हिस्सा था। इसे नमामि गंगे कार्यक्रम और कला सामग्री विक्रेता 'मोजार्टो' के सहयोग से पूरा किया गया। इस पूरी कोशिश का मकसद था हरिद्वार में धार्मिक कला दर्शाने के लिए नई और अलग जगहें खोजना। साथ ही, पवित्र गंगा नदी का संरक्षण भी इसका एक अहम उद्देश्य था।
ऊँची मीनारों पर लगी घड़ियाँ, जिन्हें हम घंटाघर भी कहते हैं, सदियों से हमारे जीवन का हिस्सा रही हैं। दुनिया भर में जहाँ भी लोग बसते हैं, वहाँ इन घड़ियों का अपना एक खास महत्व रहा है। ये घड़ियाँ सिर्फ़ वक़्त देखने या बताने के लिए नहीं होतीं। असल में, ये तो किसी भी इलाके की पहचान और वहाँ के लोगों के अपनेपन का निशान होती हैं। अक्सर ये एक मशहूर ठिकाना बन जाती हैं, जहाँ लोग मिलते-जुलते हैं।
इन्हें ऊँची मीनारों या खास इमारतों, जैसे पुराने चर्च या टाउन हॉल, पर भी लगाया जाता है। इनकी बड़ी ख़ासियत यह है कि ये अक्सर दूर से ही दिख जाती हैं। इस तरह ये पूरे मोहल्ले या शहर के लिए एक जानी-पहचानी जगह या एक मिलन केंद्र बन जाती हैं। दुनिया भर में ऐसी घड़ियों की बात करें तो लंदन के बिग बेन को कौन नहीं जानता! 1859 में बना ये घंटाघर लंदन की पहचान बन चुका है। लोग इसे बिल्कुल सही समय बताने और इसकी जानी-पहचानी ‘टन-टन’ के लिए याद करते हैं।
ये घड़ियाँ कई तरह से काम आती हैं। इनसे पूरे इलाके के लोगों को वक़्त का अंदाज़ा लगाने में आसानी होती है। पुराने ज़माने में तो ये रास्ता बताने या दिशा पहचानने में भी मददगार होती थीं। इनका सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव भी बहुत गहरा है। ये लोगों को उनकी जड़ों, उनकी विरासत और पहचान की याद दिलाती हैं।
बहुत सी जगहों पर तो ये घंटाघर एक मशहूर पहचान चिह्न और लोगों के जमा होने का एक तरह से अड्डा बन गए हैं। दोस्तों से मिलना हो, या कोई छोटा-मोटा कार्यक्रम या त्यौहार मनाना हो, लोग अक्सर यहीं इकट्ठा होते हैं। और हाँ, जब घंटाघर की घंटी बजती है, तो उसकी आवाज़ सुनकर कई बार बीते दिनों की यादें ताज़ा हो जाती हैं। ये आवाज़ लोगों को उनकी पुरानी परंपराओं और उनके इतिहास से जोड़ती है।
कुछ खास मौकों पर इन घंटाघरों का इस्तेमाल और भी खास हो जाता है। जैसे, त्योहारों के समय कई घंटाघरों को ख़ास तरह की बत्तियों से सजा दिया जाता है, जिससे वे जगमगा उठते हैं। कभी-कभी किसी बड़े जलसे या उत्सव के शुरू होने या खत्म होने का ऐलान भी इनकी घंटियों से ही किया जाता है।
घंटा घर, भारत में ब्रिटिश राज के समय की खास पहचान हुआ करते थे। ये इमारतें सिर्फ वक़्त बताने के लिए ही नहीं थीं, बल्कि अपनी भव्य बनावट से उस दौर का रुतबा भी दिखाती थीं। इनमें से कई घंटा घरों की अपनी दिलचस्प कहानियाँ हैं और उनकी बनावट भी एक-दूसरे से काफी अलग है।
आइए इनमें से कुछ के बारे में जानते हैं:
01. राजाबाई क्लॉक टावर, मुंबई: यह घंटा घर मुंबई यूनिवर्सिटी के फोर्ट इलाके में शान से खड़ा है। इसकी बनावट गोथिक शैली की है और यह 1878 में बनकर तैयार हुआ था। इसे बनवाने का खर्च बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज शुरू करने वाले प्रेमचंद रॉयचंद ने उठाया था। उन्होंने इसका नाम अपनी माँ, राजाबाई, के नाम पर रखा।
02. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST), मुंबई: मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) तो अपने आप में एक अजूबा है। पहले इसे विक्टोरिया टर्मिनस कहा जाता था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है। इस शानदार इमारत पर एक भव्य घंटा घर भी है। इसे बारीक नक्काशी और सुंदर मूर्तियों से सजाया गया है, और मुंबई की सबसे मशहूर पहचानों में से एक है।
03. जोधपुर क्लॉक टावर, जोधपुर: जोधपुर के हलचल भरे सरदार मार्केट के ठीक बीच में यह घंटा घर मौजूद है। इसे महाराजा सरदार सिंह ने 19वीं सदी के आखिर में बनवाया था। इस घंटा घर के ऊपर से रंग-बिरंगे बाज़ार का बहुत ही खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
04. सिल्वर जुबली क्लॉक टावर, मैसूर: मैसूर के इस घंटा घर को डोडापेट क्लॉक टावर के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर के देवराज मार्केट के पास स्थित है। इसे 1927 में किंग जॉर्ज पंचम के शासन के 25 साल पूरे होने की खुशी में बनवाया गया था। आज यह मैसूर शहर का एक महत्वपूर्ण पहचान चिह्न बन गया है।
05. हुसैनाबाद क्लॉक टावर, लखनऊ: लखनऊ का यह घंटा घर लाल ईंटों से बना है और भारत के सबसे ऊँचे घंटा घरों में इसकी गिनती होती है। इसे 19वीं सदी में बनवाया गया था। इसकी खूबसूरत नक्काशीदार मेहराबें और बालकनियाँ देखने लायक हैं। यह ऐतिहासिक रूमी दरवाज़ा और बड़े इमामबाड़े के नज़दीक ही है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24kdnoet
https://tinyurl.com/2aaralhw
https://tinyurl.com/287u6cvy
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